Title: Discussion on the Protection of Plant Varieties and Farmers’ Rights Bill, 2000 moved by Shri Nitish Kumar on the 12th March, 2001. (Bill passed.)
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MR. CHAIRMAN : Now, we will go on to item no. 14, to further consider the motion moved by Shri Nitish Kumar on Protection of Plant Varieties and Farmers’ Rights Bill. The total time allotted is four hours. We have already consumed one hour and eleven minutes. So, the time now left for completion of this discussion is two hours and forty-nine minutes.
Prof. Ummareddy Venkateswarlu was on his legs. Now, he is not present. So, Shri Giridhari Lal Bhargava.
(जयपुर) : सभापति महोदय, मैं पौधा किस्म और कृषक अधिकार, संरक्षण विधेयक, २००० का समर्थन करने के लिए खड़ा हुआ हूं। यह मेरी सरकार की ओर से रखा गया है। कृषि राज्य का विषय है और केन्द्र राज्यों से परामर्श किये बिना इसमें किसी प्रकार का संशोधन नहीं कर सकता।
फिर भी यह अन्तर्राज्यीय प्रश्न है। केन्द्र सरकार को यह अधिकार है कि जो बात अच्छी लगती हो उस बारे में राज्य सरकार की राय ले। आज सरकार इस बिल को यहां लाई है। मैं इस बिल का पुरजोर समर्थन करता हूं। टीआरआईसी के बावजूद इंडोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड और फलिपीन्स में अभी भी पौधे की किस्मों के संबंध में कानून नहीं बना है। भारत ने इस संबंध में पहल की है। इसके लिए मैं केन्द्र सरकार को धन्यवाद देता हूं। केन्द्र सरकार ने इस संबंध में विचार करके अच्छा किया।
कृषकों द्वारा बीजों के पंजीकरण से संबंधित यह बिल है। संवर्धन के रूप में ऐसे बीजों का उत्पादन करना लगभग असंभव होगा। नवीनता, वशिष्टता, एकरूपता तथा स्थिरता संबंधी सभी चारों मापदंड पर यह बिल खरा उतरता है।
भारतीय अनुसंधान परिषद ने यह कार्य प्रारम्भ किया है और कपास, मक्का, टमाटर के संबंध में एक बीज तैयार किया है तथा इसकी खेती भी प्रारम्भ की है। इस खेती का अमेरिका में विरोध होने लगा है। आज किसानों के पास ३५० प्रकार के बीज हैं। बीज किसान पैदा करें यही मेरा निवेदन है। भारत में जैव वविधता के अपार भंडार हैं लेकिन इस तरफ प्रॉपर ध्यान न देने के कारण जैव वविधता तेजी से लुप्त हो रही है। हम रिकॉर्ड उत्पादन करने में सक्षम हैं लेकिन वे दोबारा उगाए नहीं जा सकते और उनका दोबारा अंकुरण नहीं हो सकता। आप इस संबंध में विचार करें। जन मानस में यह भावना द्ृढ़ होती जा रही हैं कि उर्वरकों के अधिकाधिक उपयोग से मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है लेकिन असंतुलित उर्वरकों का प्रयोग करने से भूमि स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। किसानों के मन में यह बात भी है कि अमेरिकन खाद के आने से ठीक से फसल पैदा नहीं होगी। किसानों को यह अधिकार होना चाहिए कि वे सभी प्रकार के बीज यहां पैदा कर सकें। अमेरिका से आने वाले बीजों के प्रति किसी में चिंता पैदा न हो, आप इसका ध्यान रखें। अमेरिका के बीज आएं और हम उसे उगाएं। भारतवर्ष के किसान सब प्रकार के बीज स्वयं ही पैदा और उपयोग करें ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए। मेरा फर्ज है कि मैं इस बिल का समर्थन करूं। पशुओं का जीन पौधों में डाल कर उसकी खेती अमेरिका में की जाती है। इसका अब विरोध होने लगा है। हम भारतवर्ष की जनता को भी इस बारे में शक्षित करें। आशा है मंत्री जी मेरी कही बातों पर गम्भीरता से विचार करेंगे। केन्द्र सरकार किसानों में बीजों के प्रति विश्वास पैदा करे। आपने मुझे बोलने का समय दिया, इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
(वैशाली):सभापति महोदय, डबल्यूटीओ का जो एग्रीमैंट हुआ उसमें एग्रीकल्चर, टि्रप्स, टि्रम्स और चौथा गैट जोड़ दिया। इसमें एग्रीकल्चर को जोड़ना सबसे खतरनाक था। यह किसानों के खिलाफ है। इसके बाद ट्रेड रिलेटिड इंटेलैक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स का मामला आया। सरकार ने दावा किया कि यह विधेयक लाकर किसानों को प्रोटैक्शन देंगे लेकिन इससे किसानों का बहुत नुकसान होने वाला है।
15.00 hrs.
जैसा हमारे पुरखे प्राचीनकाल में हल्दी, आंवला, बासमती चावल और अन्य चीजों का अनुसंधान करते आ रहे थे, उन्हीं चीजों का उत्पादन हमारा आज का किसान यहां कर रहा है…( व्यवधान ).. उन्हीं चीजों का हम लोग इस्तेमाल कर रहे हैं। अभी अमरीका हल्दी, बासमती चावल को पेटेंट करा रहा है। हमारे यहां बनने वाली कढ़ी जो दही और बेसन से बनाते हैं, जापान उसे पेटेंट करा रहा है। मैं सरकार को बताना चाहता हूं कि इस तरह का यह खतरनाक कानून आप लाये हैं। एग्रीमेंट होने के बाद हमारा किसान लड़ता रहेगा जो किसानों के बस में नहीं है। भारत सरकार भी लड़ रही है लेकिन इस मामले में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का क्या फैसला हुआ है, हम नहीं जानते।
सभापति महोदय, आंवला, कद्दू, भिण्डी, परवल आदि हमारे पुरखों ने पैदा किया है। आलू विदेश से आया था। हमारे यहां गेहूं, चना, जौ, कंदमूल, मक्का आदि पुराने समय से पैदा होते रहे हैं। इनमें कई चीजें ऐसी हैं जो कम पानी और कम समय में पैदा होने वाली हैं। इन सब चीजों का अनुसंधान हमारे पुरखों ने किया जिसे आज का किसान पैदा कर रहा है। आज कुछ बहुराष्ट्रीय कम्पनियां छल कर रही हैं और हमारी सब चीजों को पेटेंट कराने जा रही हैं। कुछ विकसित देश हमसे हमारी चीजें छीन लेना चाहते हैं। किसानों को प्रोटैक्शन देने के नाम पर यह विधेयक लाया गया है, लेकिन किसानों पर कोई असर पड़ने वाला है?
सभापति महोदय, इस सदन में यह सवाल उठाया गया तो मामला कमेटी को रैफर कर दिया गया। कमेटी ने बहुत मेहनत की लेकिन उसके बावजूद जो विधेयक यहां लाया गया है, उसमें किसानों को उत्पादक माना गया है, उसे संवर्द्धक नहीं माना गया। बिहार में समस्तीपुर कृषि फार्म पर मशीन से मकई के बीज का किसान ने उत्पादन किया, अमरीका को चुनौती दी और उसे पछाड़ने का काम भी किया। किसान ने नया अनुसंधान किया लेकिन इस पौधा संरक्षण विधेयक में उसे उत्पादक माना गया, संवर्द्धक नहीं कहा गया। यह बहुत ही खतरनाक बात है।
सभापति महोदय, हमारे यहां का किसान नये नये अनुसंधान करता रहा है। यदि एक किसान कोई अच्छी चीज पैदा करता है तो बगल वाला किसान उससे बीज लेकर उस वस्तु का उत्पादन करता रहा है। ऐसा नहीं सोचा गया कि केवल उस किसान का अधिकार था लेकिन इस विधेयक के माध्यम से किसान को यह हक नहीं मिलेगा कि वह दूसरों को अच्छा बीज बेच सके। देहातों में यही होता रहा है कि यदि कोई किसान अच्छे बीज से अनाज पैदा करता, तो पड़ोसी उसका बीज लेकर उसी प्रकार का फल,सब्जी या अनाज पैदा करता रहा है।
सभापति महोदय, डब्लयू.टी.ओ. का समझौता हुआ है, टि्रप्स पेटेंट कराया लेकिन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की वजह से इन किसानों का भला होने वाला नहीं है। हमारी नई कृषि नीति के अंतर्गत बहुराष्ट्रीय कम्पनियां बाहर से आकर यहां की जमीन लीज़ पर ले लेंगी। हमारा भारत कृषि प्रधान देश है। यह कहा गया है कि यहां के ८० प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर करते हैं।
उसके बाद अब हमारी अमरीका और विदेश की मल्टी नेशनल कम्पनीज हमारी खेतों को लीज पर ले लेंगी और अपना बीज लायेंगी। उसमें दो प्रकार के बीज होंगे। यह बहुत खतरनाक बात है। वे वहां से बांझ बीज लायेंगी। उसे अंग्रेजी में टर्मिनेटर बीज कहते हैं। उससे एक बार उत्पादन हो जायेगा और उससे जो बीज होगा, वह दूसरी जगह इस्तेमाल नहीं हो सकता। उसे टर्मिनेटर बीज कहते हैं। इतना भारी छल किया जा रहा है। यहां का निश्छल किसान, इन्नोसैन्ट किसान, मेहनत करने वाला किसान कहां से टर्मिनेटर बीज की जांच करेगा कि यह कौन सा बीज है। टर्मिनेटर जैसा खतरा हमारे सामने है। मैं सरकार से जानना चाहता हूं कि क्या आपके पास कोई उपाय है कि आप यहां के किसानों को टर्मिनेटर बीज के खतरे से बचा सकें। किसान जो यहां उत्पादन करेगा, अंमरीका से हाई ब्रीड सीड के नाम पर चकमक बीज महंगे दामों पर आ रहा है। कहा गया है कि इससे बड़ा-बड़ा टमाटर होगा। सभी लोग जानते हैं और सेब खरीदकर खाते हैं, हमें एक आदमी ने सेब लाकर दिया। वह इतना बड़ा सेब था और उस पर गोल कागज में वाशिंगटन लिखा हुआ था। लेकिन उसका स्वाद हिंदुस्तानी सेब जैसा नहीं था। उसमें कोई गुण नहीं था, पता नहीं कौन सी दवा पीये हुए था। लेकिन देखने में बड़ा चकमक था। मेरे साथ बूटा सिंह जी थे, वह देश-विदेश में घूमे हैं। उन्होंने कहा कि वाशिंगटन में सेब नहीं होता। अब पता नहीं कहां-कहां से सेब यहां ला रहे हैं। हमारे देश के लोग मानसिक गरीबी, दासता में रहे हैं, हमारा देश बहुत दिनों तक गुलाम रहा है। इस वजह से लोग अभी भी मानसिक गरीब बने हुए हैं। समझते हैं कि विदेश से आई हुई चीज बहुत अच्छी है। जैसी-जैसी चीजों का यहां इस्तेमाल हो रहा है, सब देख रहे हैं कि किसान तबाह हो रहा है। किसान को संवर्धक क्यों नहीं माना गया है। आपकी क्या लाचारी है। इस विधेयक में किसान को संवर्धक और संरक्षक का अधिकार आपने क्यों नहीं दिया है। कहते हैं कि किसान को अधिकार दे दिया है। आपने किसान को केवल उत्पादक का अधिकार दिया है। वह मल्टी नेशनल कम्पनी का बीज खरीद कर उत्पादन करें, उसे बढ़ायें नहीं, फैलाये नहीं, यह कितने बड़े खतरे की बात है। इसे सरकार स्पष्ट करे कि इस तरह के खतरनाक कानून से खेती पर निर्भर किसानों के हितों का कैसे संरक्षण हो सकेगा। बाहर की मल्टी नेशनल कम्पनीज पर हम किस प्रकार निर्भर रहेंगे। आज इस तरह की स्थिति बन रही है कि दुनिया में हिंदुस्तान की जो फूड सिक्युरिटी है, भोजन की सुरक्षा का प्रबन्ध है, इस स्थिति के मुताबिक हिन्दुस्तान फूड वैपन का शिकार हो सकता है। सौ करोड़ की आबादी वाले देश में फिर से अनाज की कमी हो जायेगी, किसान निरुत्साहित हो जायेंगे । यदि किसानो के अधिकारों का संरक्षण नहीं होगा तो यही होगा। मल्टी नेशनल कंपनीज से हमारा किसान कन्टैस्ट नहीं कर सकता। चकमक की दुनिया रिझा सकती है। वह आकर्षक पैक बना सकते हैं। दूध और दही पैक बंद करके लायेंगे। लिख देंगे कि इसमें सभी तरह का विटामिन है। जो हमारे पुराने किसान झबही, बाल्टी और टेकान में दूध लाकर बेचते थे, उन्हें कौन पूछेगा। पैक वाला दूध और दही बिकेगा। बाहर के मुल्क हाई ब्रीड बीज लिखेंगे और लिखेंगे उसमें ए.बी.सी.डी विटामिन है। सब इस तरह से लिखेंगे। हमारा किसान मल्टी नेशनल कंपनीज से कन्टैस्ट नहीं कर सकता। इसलिए सरकार को चाहिए कि डब्ल्यू.टी.ओ. का जो हमारा एग्रीकल्चर का फंड है और आज हमारा किसान टि्रम्स, टि्रप्स और गैट समझौते से घिरा हुआ है इसलिए हमारे देश में इनसे सुरक्षा का प्रबंध होना चाहिए। सिएटल में कुछ छूट हुई थी। अभी हाल में जो कांफ्रैन्स होने वाली है, उसमें सबको एकजुट हो जाना चाहिए। इतना ही नहीं ४७ पिछड़े देशों का उसमे नाम लिखा गया है। उन्हें १५-२० वर्षों तक छूट होगी। लेकिन हमारे देश का नाम उनमें नहीं है।
हमारे यहां का जनप्रतनधि जाता है तो क्या देखते हैं कि वह आँख मूँदकर वहां दस्तखत करके चला आता है। बाकलम खास पढ़वाकर सुन और समझ लिया और बाकलम खास दस्तखत बना दिये। इस तरह से देश के हितों और किसानों के हितों का संरक्षण कैसे हो सकता है? ४७ देशों का जो नाम आया है कि उनका संरक्षण रहेगा, हिन्दुस्तान का नाम उसमें नहीं है। कैसे हम इस तरह के बिल का समर्थन कर दें जब हमें मालूम है कि किसानों के अधिकारों का इसमें ध्यान नहीं रखा गया है। इसमें लिखा है कि किसानों के अधिकारों के संरक्षण का यह विधेयक है। ऐसा नहीं है। किसानों के अधिकारों को न केवल समाप्त करने वाला यह विधेयक है बल्कि किसान को उद्योग नहीं मान रहा है, इससे किसानों का संवर्द्धन नहीं होगा, इस बिल से किसानों के अधिकारों की रक्षा नहीं होगी। इसलिए जो हमारा पुराना जर्म प्लास्मा है, पुराना जो जैविकी अनुसंधान पुरखों का किया हुआ है, उसके संरक्षण का प्रावधान इसमें नहीं है और फिर किसान के विकास और तरक्की करने का इसमें कोई उपाय नहीं है। इसलिए सरकार इस पर गंभीर हो और आगे जो WTO का समझौता होने वाला है, हाल ही में बैठक होने वाली है, उसमें मजबूती से हिन्दुस्तान के किसानों के पक्ष को रखे, नहीं तो किसान निराश्रित तो है ही मगर बाढ़, बरसात और प्रकृति से लड़ते-लड़ते वह लड़ाकू भी हो गया है। हम प्रकृति से लड़ना जानते हैं तो किसान विरोधी सरकार से भी लड़कर उनके छक्के छुड़ाने की ताकत रखते हैं और उनके छक्के छुड़ाएंगे।
इन्हीं शब्दों के साथ मैं अनुरोध करूंगा कि इस विधेयक को सुधार करके किसान के हित में लाया जाए, अन्यथा इस रूप में हम इसका विरोध करते हैं।
(कपड़वंज) : महोदय, रघुवंश प्रसाद जी ने बहुत सही बातें सदन के सामने रखी हैं। मैं भी व्यक्तिगत रूप से इस बिल का विरोधी हूं लेकिन जेपीसी का मैं मैम्बर था, पार्टी की नीति है, देश को चलना है, और हम सबको चलाना है। दुनिया छोटी होती जा रही है, डब्लू टी ओ से जुड़े रहना है और प्रैशर के नीचे काम करना है। मैं चाहूंगा कि प्रैशर ऐसा न हो कि किसानों को मुश्किलें हो जाए। अभी बताया गया कि किसान गांवों में रहता है, खेती पर निर्भर हमारा देश है, देश कुछ सालों पहले ८० परसेंट क़ृषि पर निर्भर था तो आज शायद ६० या ५५ परसेंट रह गया है। आने वाले दिनों में यह और कम होता जाएगा। धीरे-धीरे हमारी काश्तकारी छोटी होती जा रही है और इस बिल का नाम तो प्रोटैक्शन ऑफ प्लांट वेराइटिस एंड फार्मर्स राइट्स बिल है लेकिन फार्मर्स के राइट्स का ध्यान इसमें सही अर्थ में नहीं रखा गया है। इसी संदर्भ में कुछ बातें कहने के लिए मैं खड़ा हुआ हूं।
सभापति महोदया, इस बिल पर जो समति बनी थी उसने सभी राज्यों का दौरा किया। जहां मैं गया था वहां मैं सदन के सामने यह बात रखना चाहता हूं कि किसी भी राज्य में कोई भी किसान संगठन ऐसा नहीं था जिन्होंने इस बिल का विरोध न किया हो और माफ करिये ‘स्माल इज़ ब्यूटिफुल‘। छोटे किसान जो आते थे उन्होंने भी अपनी बात कुछ ने लिखकर दी, कुछ ने लिखकर नहीं दी, लेकिन सभी छोटे किसानों ने जो अपने गांव और खेत में खेती करता है, सबने इसका विरोध किया। एक भी राज्य का किसान इस बिल से खुश नहीं है, यह मैं रेकार्ड पर रखना चाहता हूं।
यह ठीक है कि हमारी एनडीए की सरकार में कई पार्टियां हैं। मैं बीजेपी के मित्रों को पूछना चाहता हूं कि पैरिस कनवेन्शन ऐक्ट की विरोधी ये पार्टी जिसमें मैं भी कुछ साल पहले था, डटकर इन्होंने इसका विरोध किया। आज का हो गया है।
अब आपको सरकार चलाने का जौ मौका आया, तब आज भी भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ और आज भी स्वदेशी जागरण मंच, जो सरकार का अपना सिस्टर कंसर्न है, उससे अभिप्राय लीजिए कि क्या हम सही दिशा में देश को आगे ले जा रहे हैं? कई साल तक जो संस्कृति की बात करते थे, जिस संस्कृति का स्वदेशी जागरण मंच आज भी विरोध करता है, भारतीय किसान संघ आज भी डटकर खुलेआम विरोध करता है और प्राइम मनिस्टर और पूरी सरकार का विरोध करता है, इसके बावजूद भी डब्ल्यू.टी.ओ. में हम शामिल हैं। आगे आने वाले दिनों में इनकी मेहरवानी भी हमें चाहिए, इसलिए हम दबाव में बिल पास कर रहे हैं, इस बात को भी हमें ध्यान में रखना है।
स्मॉल स्केल इंडस्ट्री और बड़ी इंडस्ट्री आज खत्म होती जा रही हैं। ग्लोबेलाइजेशन और मॉडरनाइजेशन के नाम पर बैंक्स के फ्रॉड्स, स्कैम के ऊपर स्कैम, इंडस्टि्रयल यूनिट्स, स्मॉल स्केल इंडस्ट्री और छोटे यूनिट्स पूरे देश में आज बीमार हैं या बंद हो गये हैं। इंडस्टि्रयलिस्ट बेरोजगार हो गये हैं और जो उनमें छोटी यूनिट्स में जो ५-१५ मजदूर काम कर रहे थे, वे भी बेरोजगार हो गये हैं। यानी चाहे स्मॉल स्केल इंडस्ट्री हो या बड़ी इंडस्ट्री हो या टाटा बिड़ला हो, इनको भी दुनिया के आगे, मल्टी-नेशनल कंपनीज के आगे सरेंडर होने का कम्पलशन है। अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान पर कई सालों तक शासन किया। हमारे देश को आज़ाद हुए आज ५५ साल हो गये हैं लेकिन आज भी गांव में किसान अपने खेत में बैल और हल चलाता है। वह आज़ादी हमारी पोलटिकल आज़ादी थी। लेकिन छोटी, मध्यम या बड़ी इंडस्ट्री सरकार की मेहरवानी पर जिंदा रहने वाली इंडस्ट्री आज मर रही हैं। इनके ऊपर लोग जी रहे हैं, वे भी मर रहे हं क्योंकि वे खुद मर रहे हैं तो उनके ऊपर जीने वाले लोग नहीं जी सकते। इसलिए जो इंडस्टि्रयल हालत है, इससे बत्तर एग्रीकल्चर हालत है, वह ठीक नहीं है। बड़ी-बड़ी फम्र्स अमरीका में लाखों एकड़ जमीन में हैं और वहां पूरी टैक्नीकल एग्रीकल्चर है। हमारे यहां हमारा किसान आज भी खेत में हल और बैल चलाता है। उसकी बीबी और बच्चे खेती पर जिंदा हैं और वे भी उसके साथ काम करते हैं। दुर्भाग्य से हमारे देश में यांत्रिकी खेती नहीं हो रही है। आज भी गांव में एकड़ के नीचे छोटे पीसेज एग्रीकल्चर है, बिजली नहीं है। आज भी किसान जो एक्सैस प्रोडक्शन करना है, उसका उचित दाम उसे नहीं मिलता। फर्टिलाइजर्स हो या बिजली हो, सब महंगी होती जा रही है। जब किसान अपना माल बाजार में बेचने के लिए जाता है तो एक साथ प्रोडक्शन होता है और उसको रखने की सुविधा नहीं है, कोल्ड स्टोरेज की सुविधा नहीं है। उचित भाव नहीं मिलते । जब बारिश बरसती है तो सरकार कहती है कि हमारा सीजन अच्छा है। मैं कहना चाहता हूं कि आपकी मेहरवानी से भी तो कुछ अच्छा होना चाहिए। इतने साल हो गये चाहे इस पार्टी की सरकार हो या दूसरी पार्टी की सरकार हो, किसान की आज भी वही हालत है। ५५ साल के बाद भी आज भी किसान वही हल और बैल चलाता है। उसको उसकी प्रोडयूस का सही दाम भी नहीं मिलता है। हिन्दुस्तान के पास इतनी किस्में हैं कि अगर सही ढंग से उनका पेटेंट मिल जाये तो हिन्दुस्तान जैसा रुपये वाला देश दुनिया में कहीं नहीं है। उड़ीसा के लोग, कालाहांडी के लोग आज भी भूखे मर रहे हैं लेकिन ट्राईबल एरिया के लोग ऐसी वनस्पति निकाल लेते हैं कि जो पन्द्रह दिन तक भी अगर कुछ खाने को नहीं मिले तो भी कोई बात नहीं है। इसी तरह से ऋषि मुनि पहले जिया करते थे और वे सिर्फ प्राण वायु और जडी बूटियों पर जिंदा रहते थे। इतनी वनस्पति हमारे देश में हैं जकि जिन्हें खाने के बाद आदमी दिनों तक भूखा भी रहे तो भूख नहीं लगती।
नान फर्टिलाइजर का प्रयोग करके बहुत सी चीजें पैदा की हैं, फ्रूट्स पैदा किए हैं। ये सब चीजें भी बाहर के देशों की पैटेंट हो जायेंगी, तो हमारे किसानों का क्या होगा। हिन्दुस्तान को अपनी चीजों को संभाल कर रखना चाहिए और पैटेट के मामले में किसानों का मार्गदर्शन करना चाहिए। मशीनरी उपलब्ध करानी चाहिए, अगर कोई किसान पेटेंट कराना चाहता है, तो वह करा सके। पेटेंट कराने के बाद अगर कोई उसका उपयोग करता है, तो कड़ी सजा होनी चाहिए। महोदया, मैं गुजरात से आता हूं। इस राज्य की काश्तकारी इजराइल की काश्तकारी से बहुत अच्छी है। हमारे राज्य में दो फीट लम्बी लौकी पैदा होती है। एक-एक किलो के टमाटर, पैदा होते हैं। एक-एक, दो-दो किलो के बैंगन पैदा होते हैं। हमारा राज्य कृषि के अनुसंधान में एक नम्बर है। हमारे यहां कलर्ड काटन पैदा होती है। ऐसे फार्मर्स के उत्पादन का पेटेंट नही होगा, तो उनको नुकसान हो जाएगा। इन चीजों का पेटेंट हमारे देश के किसानों के नाम से होना चाहिए। इन बातों को इस बिल में रखना चाहिए।
इन शब्दों के साथ मैं इस बिल का समर्थन करता हूं।