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Title: Further discussion on the motion for consideration of the Representation of the People (Amendment) Bill, 2009, as passed by Rajya Sabha, moved by Dr. M. Veerappa Moily on the 2nd December, 2009 (Discussion not concluded).
SHRI PRABODH PANDA (MIDNAPORE): Sir, the other day during the discussion on the Representation of the People (Amendment) Bill, 2009, I have raised some points. I have to say two or three more points, and I think, the hon. Minister will respond to them.
15.13 hrs.
(Shrimati Sumitra Mahajan in the Chair)
Firstly, we are talking about criminalization of politics. It goes without saying that the muscle power and the money power vitiate the political situation, the democratic atmosphere and the electoral process as well of our country. It is needless to say that. But what would be the proper measure to arrest them? I refer to the recommendations made by the Indrajit Gupta Committee earlier. I do not want to go into the details of the recommendations but I would like to mention only two points in regard to those recommendations.
Firstly, ban on donation by government companies for political purposes should continue. The question as to whether there should be any ban on donations by other companies and corporate bodies for political purposes may be decided. My opinion is that it should be banned.
Secondly, the Committee made a very important suggestion to create a separate Election Fund, a corpus, for the purpose of election expenses. Funding does not mean providing cash but providing in kind. I think, necessary legislation will come in this august House, at least, for finance and discipline so far as the electoral process is concerned.
My next point is that election is a part of our democratic polity. We witness elections every year, be it elections of the Lok Sabha, be it elections of the Vidhan Sabhas, be it elections of Panchayats, be it elections of Municipalities, or be it bye-elections. So, we are facing elections in one part or the other every year. And during elections what happens is that there is an embargo, which is imposed. Due to that embargo, developmental work in that area gets affected. Therefore, I would request that this point should be taken into consideration so that the developmental work does not get hampered. Our developmental process should go on.
My next point is with regard to observers. There should be code and conduct of the observers. There are allegations against these observers. Such allegations come from different places that observers go to the different parts of our country and they are behaving party cadres, they behave like loyal to certain political force. Therefore, a concrete code of conduct should be there so that the observers behave in an impartial manner and no political force or political combination get benefit out of it.
I am concluding by saying that I do support the Representation of the People (Amendment) Bill and I hope that the Minister will come forward with a proper timeframe by which he would bring out comprehensive electoral reforms so that we are all benefited.
श्री अर्जुन राम मेघवाल (बीकानेर): सभापति महोदया, आपने मुझे लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) अधिनियम, 2009 के दूसरे संशोधन पर हो रही परिचर्चा में भाग लेने का अवसर दिया, इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं। मैं आपके माध्यम से कुछ ऐसे सुझाव देना चाहता हूं जिससे इस लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में सुधार हो और हमारी चुनाव प्रक्रिया में भी सुधार हो। इलैक्शन रिफोर्म्स के बारे में लम्बे समय से इस सदन में भी चर्चा होती रही है और बहुत सी कमेटियों के माध्यम से बहुत से सुझाव भी आये हैं। लेकिन इलैक्शन कमीशन के पास अभी जो 22 रिक्मैंडेशंस पैंडिंग थीं, उनमें सिर्फ पांच रिक्मैंडेशंस पर ही इस अधिनियम में संशोधन लाया गया है। मैं चाहूंगा कि जो शेष 17 अभिशंसाएं हैं, उन पर भी यथाशीघ्र संशोधन प्रस्तुत किया जाए।
महोदया, मैं यह भी कहना चाहता हूं कि इस देश में, जैसे मंत्री जी ने बताया था कि 80 करोड़ मतदाता हैं और उनमें से 22 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करते हैं। मैं इस संबंध में आपके माध्यम से सरकार से अनुरोध करना चाहता हूं कि मतदान को वोटिंग राइट्स को कम्पलसरी किया जाना चाहिए और जब तक आप मतदान को कम्पलसरी नहीं करेंगे, तब यह समस्या खड़ी रहेगी। मैं इसमें यह सुझाव भी देना चाहता हूं कि जो मतदान करेगा उसे साक्षरता का लाभ मिलेगा, जो मतदान करेगा उसे एन.एच.आर.एम. का लाभ मिलेगा, जो मतदान करेगा, उसे मिड डे मील का लाभ मिलेगा।
अगर ऐसा कुछ प्रावधान वोटिंग राइट के साथ कर दें तो मतदान का परसंटेज भी बढ़ जायेगा और जो योजनायें हैं, उनमें भी गम शतप्रतिशत लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।
सभापति महोदया, वोटर आई कार्ड लम्बे समय से प्रक्रिया में है। कुछ राज्यों ने अच्छी प्रगति की है। मैं राजस्थान राज्य से आता हूं जहां पर 80 प्रतिशत और किसी किसी जिले में 90 प्रतिशत आई कार्ड बन गये हैं। मेरा मानना है कि आई कार्ड को कम्पलसरी करना चाहिये। जब तक आई कार्ड को कम्पलसरी नहीं करेंगे, वह हर मतदाता के पास नहीं होगा, तब तक फर्जी मतदान को आप रोक नहीं सकते हैं। आप एक तरफ फ्री एंड फेयर और इक्विटेबल इलैक्शन की बात करते हैं, वह बेमानी हो जायेगा। यहां पर ट्रिब्यूनल की बात आयी है। न्यायालयों में लम्बे समय़ तक पैटीशन्स लम्बित रहती हैं। अगर उसके लिये इलैक्शन ट्रिब्यूनल बन जाये तो बेहतर होगा।
सभापति महोदया, यहां पर बहुत बहस चली कि हमारे देश में लोक सभा, विधानसभा, ग्राम पंचायत, को-आपरेटिव, नगर पालिका के चुनाव होते हैं। अगर ये सब चुनाव एक साथ करा दिये जायें तो बार बार मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट की तलवार नहीं लटकेगी। जब राज्यों में 45 दिन पूर्व चुनाव की तारीख की घोषणा होती है तो मॉड़ल कोड ऑफ कंडक्ट लागू हो जाता है। सारी प्रशासनिक मशीनरी ठप्प हो जाती है। चुनाव के बाद परिणाम आते हैं तो उसके 8-10 दिन के बाद मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट उठा लिय़ा जाता है। फिर कोई दूसरा चुनाव आ जाता है तब फिर मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट लग जाता है। मेरा आपके माध्यम से सरकार से अनुरोध है कि जितने भी चुनाव हों, वे सब एक साथ कराये जायें क्योंकि यहां पर जो पब्लिक विल की बात आयी थी, उसे भी नापा जा सकता है। हम उस पर खरे उतर सकते हैं। इसके माध्यम से चुनाव सुधार का बहुत बड़ा काम हो सकता है। चुनाव की घोषणा से मॉडल कोड आफ कंडक्ट के कारण हमें गाड़ी नहीं मिलती, सर्किट हाउस में नहीं ठहर सके। एक साथ चुनाव होने से सारी समस्या समाप्त हो जायेगी।
सभापति महोदया, इम्पैक्ट फीचर के नाम पर जो प्रिंट मीडिया या इलैक्ट्रोनिक मीडिया के लिये एक एम.पी. को 25 लाख रुपये का पैकेज दिया जाता है। मेरा सुझाव है कि एक एम. पी. को 25 लाख से 50 लाख रुपये का खर्च करने का अधिकार दिया जाये और वह आदमी जो एम.पी. जो चुनाव लड़ रहा है, उसके 50 लाख रुपये सरकार अपने खाते में जंमा करे और सारा खर्च खुद करे तो चुनाव व्यय ठीक से होगा और चुनाव लड़ने वाले को फर्जी एफिडेविट नहीं देना पड़ेगा। सरकार इस सुझाव पर गम्भीरता से विचार करे।
सभापति महोदया, मैं एक बात वोट जोड़ने और वोट कटने के बारे में कहना चाहता हूं। फॉर्म-6,7,8 को अभी सरल किया गया है लेकिन अभी भी उसमें कठिनाई है। इसमें प्रोवीजन है कि साधारणतया आप कहीं के रेज़िडेंट है तो आपका नाम वोटर लिस्ट में जुड़ जायेगा। मेरा कहना है कि जहां से वह आदमी आता है, अपने बिजनैस के सिलसिले में कोलकाता, मुम्बई या सूरत रहता है जहां उसका मकान भी है लेकिन औरिजिनल जगह पर उसका वोट कट जाता है लेकिन जहां वह बिजनैस करता है, वहां से कहा जाता है कि आपका वोट यहां नहीं बनेगा। इसलिये इस प्रक्रिया में सुधार किये जाने की आवश्यकता है। साधारणतया या तो वह मूल स्थान पर रहने वाला हो, वहां उसका वोट बने या जहां वह बिजनैस करता है, वहां उसका वोट बने नहीं तो डुप्लीकेशन प्रोसैस में दोनों जगहों पर उसका वोट कट जाता है और वह मताधिकार से वंचित रह जाता है। नामांकन दाखिल करने वाले दिन वोटर लिस्ट में अमेंडमेंट की बात करते हैं। कई बार ऐसा होता है और जैसा अभी राजस्थान में नगरपालिका के चुनाव थे, कुछ ऐसे लोगों को टिकट दे दिया गया जिनका नाम ही वोटर लिस्ट में नहीं था। पता चला कि एम.पी इलैक्शन के समय तो वोटर लिस्ट में नाम था लेकिन इसमें कैसे रह गया? अचानक कोई बी.एल.ओ. जाता है और सर्वे हो जाता है , पता नहीं गलती से नाम कट जाता है तो मेरा इसमें यह कहना है कि जिस दिन नामांकन भरना हो, उस दिन तक वोटर लिस्ट में नाम जुड़ने की सुविधा होनी चाहिये वरना पार्टी किसी व्यक्ति को टिकट दे देगी लेकिन वोटर लिस्ट में उसका नाम ही नहीं होने से वह चुनाव नहीं लड़ पाता है। इसमें यह व्यवस्था होनी चाहिए। मैं आपके माध्यम से निवेदन करना चाहता हूं कि इलेक्शन में जो ऑब्जर्वर लगते हैं, कई बार ऐसा होता है कि दो स्टेट उन ऑब्जर्वर पर ठीक खर्चा करते हैं तो वे उन्हें सही रिपोर्ट दे देते हैं, कहते हैं कि सब सही चल रहा है। वे काफी-कुछ अपनी डिमांड करते रहते हैं। किसी का लिविंग स्टेट कुछ है, किसी का कुछ है। मेरा कहना है कि उन्हें कंसोलिडेटिड फंड से उन्हें खर्चे करने का अधिकार होना चाहिए, उन्हें स्टेट की मर्सी पर डिपेंड नहीं रहने चाहिए।
महोदया, अंतिम बात मैं इलेक्शन कमीशन के बारे में कहना चाहता हूं। मैं आपके माध्यम से कहना चाहता हूं कि इलेक्शन कमीशन को इतने अधिकार नहीं दिये जाने चाहिए। मैं आपको बताना चाहता हूं कि मैं एक जगह पर डीएम था, इलेक्शन प्रोसेस शुरू हो गया और मेरी शिकायतें शुरू हुईं। इलेक्शन कमीशन ने मुझे हटा दिया। मैं इलेक्शन कमीशन के पास गया कि मुझे क्यों हटाया गया, मेरी गलती क्या है? कहा गया कि साहब, आपकी डाक ज्यादा आती थी, हमने देखा कि रोज आपकी चिट्ठी आती है, आपको हटा ही देते हैं ताकि यह डाक कम हो जाए। यह क्या तरीका है? उसके बाद कोई अपील नहीं है। मैं कहना चाहता हूं कि इलेक्शन कमीशन भी अपनी सीमा में काम करे और जो ऑब्जर्वर आता है, उसे कंसोलिडेटिड फंड से खर्चा करने का अधिकार दे दो ताकि वह निष्पक्ष राय दे सके। इन्हीं शब्दों के साथ आपने मुझे बोलने का समय दिया, इसके लिए मैं आपको बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं।
श्री जय प्रकाश अग्रवाल (उत्तर पूर्व दिल्ली): महोदया, मैं आपका हृदय से धन्यवाद करता हूं कि आपने मुझे इस बिल पर अपनी बात कहने का मौका दिया। जो बातें यहां हमारे सभी माननीय सदस्य, साथियों द्वारा कही गयी हैं, मैं उन्हें दोहराना नहीं चाहता हूं। मैं एक बात जरूर कहता चाहता हूं कि आजादी के बाद से चुनाव होते रहे और चुनाव प्रक्रिया के पूरा होने के बाद सरकारें बनती रहीं। आज भी 100 करोड़ के हिंदुस्तान में जो चुनाव हुए, वे निष्पक्ष हुए, अच्छे हुए और दुनिया के किसी भी अखबार ने कोई टिप्पणी इस तरह की नहीं की, कि हमारे चुनाव में कोई खराबी हुई है या हम अपने उद्देश्य से अलग हो गये हों। मुझे बहुत अचम्भा हुआ जब उस पूरे दिन मैं सबकी बातें सुनता रहा। मुझे लगा कि हम अपने ऊपर कोई प्रश्नचिन्ह पैदा कर रहे हैं। आज भी अन्य देशों के लोग हमसे यह राय मांगना चाहते हैं कि हम अपने यहां चुनाव कैसे कराते हैं? वे हमारा अनुभव जानना चाहते हैं। हमारे यहां से कुछ टीमें कई जगह यह बताने के लिए गयी हैं कि हमारी प्रक्रिया ऐसी है और हम इसे ऐसे पूरा करते हैं। जिस तरह की बातें मैंने उस दिन सुनीं, मुझे ताज्जुब हुआ। हो सकता है कि कुछ फैसले हमारे हक में न होते हों। वर्ष 1971 में जब श्रीमती इंदिरा गांधी चुनाव जीतकर आयीं, भारत में कांग्रेस की सरकार बनी तो बहुत जोर से कहा गया कि रूस में बैलेट छपा था और इस वजह से कांग्रेस जीत गयी। अभी भी श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व में यहां चुनाव हुआ और हमारी यूपीए की सरकार बनी। यह कहा गया कि मशीनों में कहीं भी बटन दबाओ, कांग्रेस पर लगता है, इसलिए कांग्रेस जीत गयी। सवाल कुछ भी कह दें, लेकिन एक बात सही है कि आज हमारा इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया के नाम से एक मजबूत विंग है, जो बहुत अच्छे तरीके से चुनाव कराता है। हमें उसमें पूरा भरोसा रखना चाहिए।
महोदया, इसके साथ-साथ मैं एक बात और कहना चाहता हूं, जिसका जिक्र किसी ने भी नहीं किया है। जब हम चुनाव लड़ने जाते हैं तो बहुत सारी पाबंदियां, कायदे और कानून के मुताबिक हमसे कही जाती हैं। उसमें यह भी है कि आप कोई भी वोट धर्म के नाम पर नहीं मांगेंगे। धर्म का कोई भी उद्देश्य रखकर आप चुनाव नहीं लड़ेंगे। आप कोई भी मीटिंग करेंगे तो उसके अंदर आप किसी भगवान का जिक्र नहीं करेंगे, किसी धर्म का जिक्र नहीं करेंगे। मुझे अफसोस है कि आज भी आपके इस कानून का पालन नहीं होता है। शायद इसे दोबारा से देखने की जरूरत है। अक्सर यह देखा गया है। यह ज़रूरी नहीं कि चुनावों के दौरान आप धर्म या भगवान का नाम लें या न लें, लेकिन जिस समय आप चुनाव की तरफ जा रहे हों, जब चुनावों में छः महीने या साल भर रह जाए …( व्यवधान)
सभापति महोदया : आप चाहें तो अपना वाक्य पूरा करें, नहीं तो बाद में आप अपना भाषण कंटीन्यूट करेंगे। अब प्राइवेट मैम्बर्स बिजनैस का समय हो गया है।
श्री जय प्रकाश अग्रवाल: क्या यह नहीं हो सकता कि प्राइवेट मैम्बर्स बिज़नैस को चार बजे कर दें? पहले भी ऐसा होता रहा है।
MADAM CHAIRMAN: You will continue next time.
Now, we take Private Members’ Business.