Title: Consideration of the National Commission for Safai Karamcharis (Amendment) Bill, 2001.
14.37 hrs.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री (डॉ.सत्यनारायण जटिया) : सभापति महोदय, मैं प्रस्ताव ** करता हूं :
“कि राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग अधनियम, १९९३ में और संशोधन करने वाले
विधेयक पर विचार किया जाए ।”
सभापति महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूं कि राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के कार्यकाल को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग अधनियम १९९३ का संशोधन करने वाले विधेयक पर विचार किया जाए । राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग का गठन १२ अगस्त, १९९४ को राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग अधनियम १९९३ के अधीन तीन वर्ष के लिए किया गया था । प्रारम्भ में यह अधनियम ३१ मार्च १९९७ तक के लिए था, जिसका विस्तार राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग संशोधन अधनियम, १९९७ द्वारा ३१ मार्च २००२ तक किया गया । वर्तमान आयोग फरवरी २००१ में पुनर्गठित किया गया और उसकी अवधि अधनियम की धारा – एक की उपधारा-४ के अनुसार ३१ मार्च २००२ तक है । वर्तमान आयोग की अवधि दो वर्ष से कम समय के लिए होगी । यह आयोग के उद्देश्य की प्राप्ति और समुचित कार्य करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी । अत: अधनियम की धारा -१ की उपधारा-(४) का संशोधन करके आयोग का कार्यकाल २९ फरवरी, २००२ तक बढ़ाकर तीन वर्ष करने का प्रस्ताव है ।
सभापति महोदय, मैं यह सदन के विचारार्थ प्रस्तुत करता हूं और निवेदन करता हूं कि इसे पारित किया जाए ।
MR. CHAIRMAN : Motion moved:
“That the Bill further to amend the National Commission for Safai Karamcharis Act, 1993, be taken into consideration.”
* Published in the Gazettee of India, Extraordinary, Part-II. Section-2, dated 23.11.2001
** Moved with the recommendation of the President.
डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह (वैशाली): सभापति महोदय, यह विधेयक असली अंत्योदय है। जो लोग गंदा काम करते हैं, वे बड़े लोग कहलाते हैं और जो सफाई करते हैं उन्हें सबसे छोटा कहा जाता है, नीचा माना जाता है । देश भर में उनकी आबादी करीब आठ करोड है । जिसमें लगभग सवा छ: लाख कर्मचारी हैं, जो म्युनसिपैलिटी एरिया आदि में झाड़ने, बुहारने और सफाई का काम करते हैं । लेकिन उनकी स्थिति बहुत खराब है । अब उस दिन नियम ७२ के अधीन भी २० तारीख को हमने प्रोटैस्ट किया था । लेकिन हमारे सुझाव और कोई बात ये मानने वाले नहीं हैं । ये लोग दलितों के दुश्मनों वाली बात करते हैं, ये लोग दलितों के खिलाफ काम करते हैं । २१ तारीख को माननीय श्री बूटा सिंह जी ने रामलीला मैदान में सफाई कर्मचारियों का एक बहुत बड़ा सम्मेलन बुलाया था, यह बीती २१ तारीख की ही बात है ।
बड़ा संयोग है कि २० तारीख को यह प्रोटैस्ट हुआ, २१ तारीख को इनका सम्मेलन हुआ और आज २३ तारीख को यह विधेयक आ गया। मैं कहना चाहता हूँ कि क्यों पीसमील में इसे बढ़ाते हैं? एक बार १९९४ में इसकी अवधि १९९७ तक बढ़ायी, फिर १९९७ से २००१ तक के लिए बढ़ायी, फिर २००२ तक के लिए बढ़ायी और अब कहते हैं कि २००४ तक बढ़ाएंगे। क्या आप मानते हैं कि तीन-चार वर्षों में आयोग की वजह से इनकी हालत में सुधार आ जाएगा? इसलिए हम मांग करते हैं कि जैसे सब आयोग हैं, उसी तरह का एक स्थायी आयोग इनके लिए बनना चाहिए क्योंकि यह समाज के पिछड़े आदमी का सवाल है जिसको महात्मा गांधी जी ने अंतिम आदमी का नाम दिया था। वह समाज का महत्वपूर्ण व्यक्ति है जो सफाई करने का काम करता है। आप देखिये कि उसकी हालत क्या है, उनका कितना शोषण हो रहा है। यह सवाल छ: लाख क करीब छह लाख लोगों का रिकार्ड में है लेकिन अभी भी गरीब आदमी से झाड़ू वगैरह लगाने का काम लिया जाता है और उनको कहीं २५० रुपये दिये जाते हैं तो कहीं ५०० रुपये दिये जाते हैं। उन पर अत्याचार हो रहा है। जबर्दस्ती उनसे काम कराया जाता है। इसलिए हम माँग करते हैं कि इस आयोग को अन्य आयोगों की भांति स्थायी बनाया जाए जिससे जो सफाई कर्मचारी सफाई का काम करते हैं उनके साथ न्याय हो सके। उनकी सबसे खराब हालत हिन्दुस्तान में है और दलितों में भी जो सफाई कर्मचारी हैं, उनको कई दलित लोग भी अछूत मानते हैं। इसलिए अगर समाज का यह वर्ग शोषण से मुक्त होगा और तरक्की करेगा, तब हिन्दुस्तान दुनिया के अन्य मुल्कों के साथ खड़ा होकर दावा कर सकता है कि हम भी सभ्य और विकसित मुल्क हैं जहां शोषण नहीं है, जहां दलितों का जो उत्पीड़न हजारों वर्षों से हुआ है, अन्याय हुआ है, वह नहीं है और इसी का नाम सामाजिक न्याय है। लेकिन इनको सामाजिक न्याय का पता नहीं चलता है। इनको आग लगाने वाले काम आते हैं, उपद्रव फैलाने वाले काम आते हैं और कभी-कभी ये प्रतिबंधित स्थलों में भी चले जाते हैं। उल्टे-सीधे काम करेंगे लेकिन हिन्दुस्तान आगे बढ़े, तरक्की करे, मेहनतकश आदमी जो पसीना बहाता है, वह आगे बढ़े, उसके लिए इनके पास कोई योजना नहीं है।
इन्होंने कानून बना रखे हैं, लेकिन इतनी कंजूसी से ये आयोग का समय बढ़ाते हैं कि पता नहीं चलता है। क्या यह कम महत्वपूर्ण समुदाय है? इसलिए मैं चाहता हूँ कि इसके लिए भी स्थायी आयोग बनाना चाहिए। पहले के भी कई कानून हैं। सभापति जी हमेशा मजदूरों के लिए लड़ते रहे हैं, आप जानते होंगे कि कॉनट्रैक्ट एक्ट में लिखा है कि इनको कॉनट्रैक्ट पर नहीं रखा जाएगा और ये लोग विधान बना रहे हैं कि क़ॉनट्रैक्ट एक्ट में रखा जाए और ठेकेदारों के द्वारा उनका शोषण हो और सफाई कर्मचारी लेबर सप्लाई में जाए। हम इसके खिलाफ हैं और सरकार को सावधान करना चाहते हैं कि ये बिल लाए हैं और पास कराना चाहते हैं, लेकिन ये एश्योर करें कि इसे अन्य आयोगों की तरह स्थायी आयोग बनाएंगे। जो कर्मचारी बंधुआ मजदूरों की तरह खट रहे हैं, उनको शोषण से मुक्ति मिलनी चाहिए। उनके बाल-बच्चों की, उनकी पढ़ाई-लिखाई की, रहन-सहन की, दवा-दारू की उचित व्यवस्था हो, समाज में उनकी इज्ज़त हो और महत्वपूर्ण समुदाय उनको माना जाए, यही आग्रह हम सरकार से करना चाहते हैं। अगर सरकार यह करती है तो ठीक है अन्यथा हम इस बिल के खिलाफ हैं। मंत्री जी भले आदमी हैं लेकिन भाजपा ने पहले इनको लेबर मनिस्टर बनाया, फिर वहां से धक्का देकर यहां ले आए। अब इसमें जो दलित और शोषित समुदाय है, उसके लिए बहादुरी से काम करिये, नहीं तो भाजपा वाले यहां भी आपको नहीं छोड़ेंगे, ऐसी हमें आशंका है। भाजपा में किनकी चलती है यह भी हमें मालूम है। इसलिए दलित समुदाय के लिए आप निडर होकर काम करें, हालांकि आपको कठिनाई होगी, उसमें बड़े लोग आपके खिलाफ भी होंगे।
सभापति महोदय, ये दकियानूसी लोग हैं, जो अभी तक छुआछूत को खत्म नहीं करना चाहते हैं। ऐसे लोग ही उस पार्टी में हावी हैं। इसलिए मंत्री जी आपको बहुत कठिनाई हो रही है। इस बात को हम समझते हैं। अत: यह आवश्यक है कि हमको मुस्तैद रहना चाहिए, नहीं तो काम नहीं चलेगा। इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं।
डॉ.(श्रीमती) अनीता आर्य (करोल बाग) : सभापति महोदय, मैं राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (संशोधन) विधेयक, २००१ का समर्थन करने के लिए खड़ी हुई हूं। सर्वप्रथम मैं माननीय प्रधान मंत्री और माननीय मंत्री जी का धन्यवाद करना चाहती हूं जिन्होंने समाज के सबसे निम्न वर्ग, यानी सफाई कर्मचारियों के हित के लिए राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग बनाया और आज उसमें संशोधन करने हेतु विधेयक सदन में प्रस्तुत किया है।
सभापति महोदय, आज भी देश के कई प्रान्तों में इतनी प्रगति होने के बावजूद मल तथा कूड़ा हाथ से उठाने की प्रथा मौजूद है। केन्द्र और राज्य सरकारें इस बात से अत्यन्त चिन्तित हैं और सफाई कर्मचारियों के उत्थान और उनके कल्याण के लिए केन्द्र सरकार ने दो प्रमुख योजनाएं चलाई हैं। प्रथम योजना राष्ट्रीय सफाई एवं उनके आश्रितों की मुक्ति एवं पुनर्वास हेतु राष्ट्रीय योजना और दूसरी योजना केन्द्र सरकार ने अस्वच्छ व्यवसाय में लगे लोगों के बच्चों के लिए मैटि्रक पूर्व तक पढ़ाने की योजना और छात्रवृत्ति की योजना प्रारंभ की है। सफाई कर्मचारियों के बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए केन्द्र सरकार बहुत चिन्तित है।
सभापति महोदय, राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के अनुसार सफाई कर्मचारियों की संख्या के जो आंक़ड़े हैं वे लगभग ५,७७,२२८ हैं। उनमें से ३,५०,०५९ सफाई कर्मचारियों को पुनर्वासित किया गया है और १,३६,६८१ सफाई कर्मचारियों को सरकार द्वारा प्रशक्षित किया गया है। सफाई कर्मचारियों की संख्या आज भी विवादास्पद है। वर्तमान आंकड़ों के अनुसार सफाई कर्मचारियों की संख्या ६ लाख के लगभग है। वर्तमान आयोग दिनांक १६-०२-२००१ को बना। आयोग ने केन्द्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है कि क्या वर्तमान आंकड़े सही हैं, यदि हां, तो वैसा बताया जाए और यदि सही नहीं हैं, तो आयोग को सही आंकड़े उपलब्ध कराए जाएं, लेकिन केन्द्र सरकार अभी तक आयोग को सफाई कर्मचारियों की संख्या के बारे में सही स्थिति से अवगत नहीं करा सकी है।
महोदय, मैं प्रार्थना करना चाहती हूं कि राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग को सविल न्यायालय की तरह शक्तियां प्रदान की जानी चाहिए। इस आयोग का कार्यकाल बढ़ाना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि सफाई कर्मचारी समाज का सबसे संवेदनशील वर्ग है जिसका उत्थान और कल्याण बहुत आवश्यक है। इसलिए इसका कार्यकाल बढ़ाया जाना जरूरी है। यह आयोग, प्रदेश सरकारों द्वारा सफाई कर्मचारियों के लिए जो स्कीमें चलाई जा रही हैं उनकी मानिटरिंग करता है। इसके साथ-साथ पूरे देश का दौरा कर के निरीक्षण करता है तथा उसकी रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत करता है।
सभापति महोदय, मैं केन्द्र सरकार को बधाई देना चाहूंगा जिन्होंने राष्ट्रीय सफाई कर्मचारियों के हित एवं अधिकारों की चिन्ता की और इस आयोग का कार्यकाल बढ़ाने हेतु विधेयक प्रस्तुत किया गया है। हाल ही में १५ अगस्त, २००१ को वर्तमान प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने मलिन बस्ती बाल्मीकि आवास योजना के तहत उन्हें आवासीय सुविधाएं प्रदान करने की घोषणा की थी।
मैं उनका धन्यवाद करना चाहूंगी, साथ ही माननीय मंत्री जी से कहना चाहूंगी कि इस आयोग के कार्यकाल को स्थाई रूप से बढ़ाया जाए क्योंकि अभी सफाई कर्मचारियों के उत्थान के लिए बहुत काम करना बाकी है। उनके कल्याण और उन्हें इस हीन भावना से मुक्ति दिलाने के लिए कि वे समाज के सबसे निम्न वर्ग हैं, राष्ट्रीय कर्मचारी आयोग का कार्यकाल स्थाई किया जाए। इन्हीं शब्दों के साथ बहुत-बहुत धन्यवाद।
सरदार बूटा सिंह (जालौर): सभापति महोदय, मैं सर्वप्रथम अपने माननीय सहयोगी, बहुत पुराने साथी, दलितों में उच्च कोटि के महान् विद्वान, हमारे वर्तमान मंत्री डा. सत्यनारायण जटिया जी को इस बात के लिए बधाई देता हूं। मैं समझता हूं कि यह विभाग उनकी इच्छा के मुताबिक उनके हाथ में आया है। मैं उनकी भावनाओं को जानता हूं। वे समर्पित हैं और अब उम्मीद हुई है कि जितने भी दलित, खासकर सफाई वर्ग के जितने भी लोग हैं, उनको सरकार की ओर से कुछ न्याय की तवक्को हो सकती है। अफसोस इस बात का रहा कि सफाई कर्मचारी आयोग, जिसकी नवनियुक्त अध्यक्षा चेयरमैन डा. अनिता आर्य अभी-अभी बोल कर हटी हैं, मैं उम्मीद करता था कि वे कुछ अथॉरिटी के साथ सदन को बताएंगी कि इस वक्त रआयोग की अंदरूनी हालत क्या है। मगर जिस ढंग से उन्होंने आयोग के बारे में अपने विचार व्यक्त किए हैं, ऐसा लग रहा था कि डा. अनिता आर्य अभी तक आयोग को पूरी तरह समझ भी नहीं पाई हैं। आज हालत यह है कि डा. आर्य अध्यक्षा तो बन गई हैं मगर उनका स्टाफ पूरी तरह से नहीं लगा, जो स्टाफ नियुक्त हो चुका है। डा. जटिया जी, उनके कर्मचारियों को पिछले आठ महीने से तनख्वाह नहीं मिली। क्या यह उम्मीद नहीं की जा सकती थी कि चेयरपर्सन महोदया हमको अवगत करवातीं कि मेरे आयोग की यह हालत है? पहले दफ्तर नहीं मिला, कोई गाड़ी नहीं मिली, बैठने के लिए कोई जगह नहीं मिली।…( व्यवधान)
डॉ.(श्रीमती) अनीता आर्य : गाड़ी सबको मिली है, स्टाफ नहीं रखा गया है तो तनख्वाह कैसे देंगे।
सरदार बूटा सिंह: सदस्यों के साथ जो उनके असिस्टैंट, उनके पी.ए. काम कर रहे हैं।…( व्यवधान)
डॉ.(श्रीमती) अनीता आर्य : व्ो प्राइवेट लगे हुए हैं। अभी उनको लगाया नहीं है।
सरदार बूटा सिंह: यहीं से देख लीजिए, क्या मजाक है, आठ महीने से स्टाफ नहीं है। मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कहना चाहता हूं कि अध्यक्ष महोदया के दफ्तर में आठ महीने से स्टाफ काम कर रहे हैं और श्रीमती जी कह रही हैं कि स्टाफ रखा नहीं है। वे आठ महीने से कैसे काम कर रही हैं? वे सफाई कर्मचारी हैं जो आपका दफ्तर साफ करके चले जाते हैं। डा. जटिया जी, इससे पता चलता है कि सरकार की तरफ से आयोग के साथ किस किस्म का व्यवहार हो रहा है। मैं सफाई कर्मचारियों की बात बाद में करूंगा। मुझे खेद है कि हमारी आदरणीय चेयरपर्सन, जिन्होंने इतना परिचय दिया है कि उनको आयोग के बारे में कुछ भी पता नहीं है, इस बात को सिद्ध करता है कि नैशनल कमीशन फार सफाई कर्मचारी बिल, १९९३ यह मांग करता है कि इसके अध्यक्ष और उपाध्यक्ष वे होने चाहिए जिनका सफाई कर्मचारी धंधे के साथ कुछ परिचय हो, जिन्होंने उनके लिए और उनके साथ कभी काम किया हो। आज साबित हो गया है कि डा. आर्य को सफाई कर्मचारी के धंधे और उनकी कार्य पद्धति के बारे में कुछ भी मालूम नहीं है। इसलिए कानूनी तौर पर १९९३ के एक्ट के मुताबिक वे अनक्वालीफाइड हैं, उनको अख्तियार नहीं है कि वे कमीशन की चेयरपर्सन बनी रहें। अच्छा हो यदि वे ईमानदारी से इस पद को छोड़ दें और डा. जटिया किसी ऐसे व्यक्ति को यह पद दें जिसे यह अनुभव हो ।जो जानता हो कि सफाई कर्मचारियों का धन्धा, उनका पेशा कैसा है, जो जानता हो कि उनकी जीवन-पद्धति कैसी है। यह मैं नहीं कहता हूं, यह कानून कहता है। कानून की धारा चार में लिखा हुआ है: “The Chairperson and Vice-Chairperson should be among persons of eminence connected with the socio-economic development of the Safai Karamcharis.”यह एक्ट में लिखा हुआ है। उनको कोई नोलिज भी नहीं है, उन्होंने तो कभी सफाई कर्मचारियों के साथ काम भी नहीं किया, किसी संगठन में काम नहीं किया। आज मैं समझ सकता हूं कि जिस ढंग का उन्होंने परिचय दियाहै, वे यह पोस्ट होल्ड करने के योग्य नहीं हैं और डॉ. जटिया साहब, आप कृपया किसी ऐसे व्यक्ति को लगाइये, हम पार्टी की बात नहीं कर रहे है, जो सफाई कर्मचारियों के बारे में जानता हो। आगे चलते हुए मैं कहूंगा कि यह सफाई कर्मचारी आयोग १२ अगस्त, १९९३ को इसी पार्लियामेंट के अन्दर बना और एक साल तक यह कानून धूल चाटता रहा, इसके मैम्बरों की नियुक्ति नहीं हुई। कानून पास हो गया और उस बात को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री को यह कहना पड़ा, मैं किसी पार्टी की बात नहीं कर रहा हूं, उस वक्त कांग्रेस का राज था। तीन फरवरी, १९९६ को कांग्रेस के प्रधानमंत्री देश के मंत्रियों के सामने बोले थे, मैं उनके शब्द दोहराना चाहूंगा। श्री पी.वी. नरसिंहराव ने यह कहा, जहां तक सफाई कर्मचारियों का प्रश्न है, यद्यपि उनके लिए एक आयोग की स्थापना की गई है, लेकिन कभी-कभी यह सोचकर मैं परेशान हो जाता हूं कि इस आयोग को स्थापित करने के लिए मुझे एक डेढ़ साल तक काफी संघर्ष करना पड़ा। देश की नौकरशाही की यह मनोवृत्ति है कि डेढ़ साल तक प्रधानमंत्री जूझता रहा, लड़ता रहा और आयोग की नियुक्ति नहीं हुई और जब नियुक्ति हो भी गई तो मुझे ज्ञात हुआ है कि आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यगण एक लम्बे अर्से तक कार्यालय भवन और निवास जैसी सुविधा से वंचित हैं। एक साल तक तो उनको भी नहीं मिला था, आपके कर्मचारियों को तो अभी आठ महीने की तनख्वाह नहीं मिली। इसलिए मैं आपकी व्यक्तिगत बात नहीं कर रहा हूं। यह उपेक्षा, यह उदासीनता सफाई कर्मचारी आयोग की शुरू से हुई, जब से इस आयोग का जन्म हुआ था, तब से हो रही है। इस दरम्यान एक ऐसा समय भी आया, इस आयोग की अवधि २००२ तक थी और उस वक्त की मंत्री महोदया मेनका गांधी जी ने दो साल पहले ही इसका गला घोंट दिया और अखबार वालों को कह दिया कि हमें यह आयोग चाहिए ही नहीं। सफाई कर्मचारियों के आयोग की कोई जरूरत ही नहीं है और फिर इस सदन के सभी दलतों के सदस्यों ने स्पीकर साहब सहित प्रधानमंत्री जी को लिखा, मिलकर कहा तो प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी इस बात के लिए परेशान हुए कि ऐसा कैसे हो सकता है कि कानून के मुताबिक अवधि बाकी हो तो यह समाप्त कैसे हो सकता है। जब हमने लिखकर दिया तो उन्होंने कृपापूर्वक जो वर्तमान आयोग है, इसकी नियुक्ति की। इस आयोग के बारे में बोलते हुए नरसिंह राव जी फिर कहते हैं कि मैं आपको अपनी वेदना में सहयोगी बनना चाहता हूं, क्योंकि इस आयोग को स्थापित करने में मुझे जितनी कठिनाइयों का सामना
करना पड़ा, उतनी कठिनाइयां किसी आयोग को स्थापित कने में नहीं आईं।
१४.५९ hrs. ( Shri P.H. Pandian in the Chair)
जटिया जी, इस पृष्ठभूमि में हम आपसे उम्मीद करेंगे, मेनका जी ने इस आयोग को इसकी अवधि से दो साल पहले खत्म कर दिया, इसका दफ्तर बन्द कर दिया, स्टाफ सारा भेज दिया, जबकि दो साल के लिए उनके पास स्वीकृति थी। गाड़ियां वापस कर दीं, स्टाफ वापस कर दिया, दफ्तर बन्द कर दिया और फिर अटल बिहारी वाजपेयी जी ने इस आयोग की नियुक्ति की, जो आज चल रहा है। उस आयोग के सदस्य अकेले-अकेले केवल चेयर पर्सन ही नहीं, सभी सदस्य मुझे कहकर गये कि आपकी हिम्मत से, आपके संघर्ष से, सभी मान्यवर सदस्यों के संघर्ष से इस आयोग को दोबारा जान मिल गई, यह फिर से एग्जिस्टेंस में आ गया। लेकिन इस आयोग का न तो कोई कार्यालय है, न इसके पास स्टाफ है।
15.00 hrs.