Discussion Regarding Threat To International Peace Due To Mounting … on 19 February, 2003

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Lok Sabha Debates
Discussion Regarding Threat To International Peace Due To Mounting … on 19 February, 2003

13.58hrs.

Title

: Discussion regarding threat to international peace due to mounting tension between USA and Iraq. (Concluded)

MR. SPEAKER: We now go on to the Discussion under Rule 193. The discussion is to be raised by Shri Nawal Kishore Rai. Since he is not present in the House, the next name is that of Shri Ramji Lal Suman. I would request him to initiate the debate but, let me make it clear to the Members that, as decided in the Business Advisory Committee, this debate will continue for two hours. Since the hon. External Affairs Minister is not in India, the former Minister for External Affairs has agreed to reply to the debate. Therefore, we will be calling him immediately after the discussion is over or he may come and sit in the House even before that.

14.00 hrs.

Or he may come before that and sit in the House. But I want that after two hours, we should start the reply to the debate.

SHRI SHIVRAJ V. PATIL (LATUR): This is an important debate and in the Business Advisory Committee, as far as allocation of time for this subject was concerned, we did not pay any attention to it and we did not discuss it also. Two hours should be sufficient. But if it is not sufficient, let us discuss it for some more time.

MR. SPEAKER: As far as possible, we should complete it in two hours.

डॉ.विजय कुमार मल्होत्रा (दक्षिण दिल्ली):अध्यक्ष महोदय, कोई खास बात ही हो जाए तो अलग बात है, नहीं तो दो घंटे काफी हैं।

अध्यक्ष महोदय : इसीलिए मैंने कहा है कि यदि हो सके तो दो घंटे में पूरा करेंगे।

डॉ.विजय कुमार मल्होत्रा: इसमें पोलिटीकल पार्टीज का और कंट्री का यूनैनीमस ओपीनियन है, कोई डिफरैन्स ऑफ ओपीनियन नहीं है। The difference of opinion is only in the expression of our views. So, two hours’ time should be sufficient.

MR. SPEAKER: Let us try to complete it in two hours.

श्री रामजीलाल सुमन (फिरोजाबाद):अध्यक्ष महोदय, मैं आपका आभार प्रकट करता हूं कि एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर, जिससे सारी दुनिया चिंतित है, बहस प्रारम्भ करने का आपने मुझे अवसर दिया। दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह सोचा गया था कि अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का लोकतंत्रीकरण हो और यह प्रयास किया जाए कि यदि कहीं विवाद हो तो उसका हल बातचीत के जरिये निकाला जाए। एक राजनीतिक कार्यकर्ता होने के नाते मैं स्वयं यह मानता हूं कि अगर हमारी नीयत साफ हो तो दुनिया की कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसका हल न निकाला जा सके।

आज अमरीका इराक पर हमला करने के लिए उतावला है। हम युद्ध के परिणामों को जानते हैं। युद्ध तबाही और बरबादी देता है। युद्ध से किसी का हित नहीं होता, अहित ही होता है। जिस देश के विरुद्ध युद्ध होता है, वहां की जनता को उसके परिणाम भोगने पड़ते हैं। लिहाजा पूरी दुनिया में जितनी लोकतांत्रिक शक्तियां है, जितने अमनपसंद लोग हैं, उनका यह दायित्व है कि दुनिया के किसी भी हिस्से में युद्ध न हो, इसका प्रयास हम लोगों को भी करना चाहिए।

हिन्दुस्तान गांधी जी का देश है और हम अहिंसा के पुजारी हैं। हमारा यह दायित्व और धर्म है कि इराक पर हमला न हो। दुनिया के किसी देश पर कोई दूसरा देश हमला न करे। इसलिए इसका हम न सिर्फ विरोध करें, बल्कि उसमें सार्थक पहल करें, हस्तक्षेप करें और अगुवाई करे। इसलिए मैं आपकी मार्फत यही कहना चाहूंगा कि आज जो अमरीका की दादागिरी है, जो रवैया है, अमरीका जो इराक में करना चाहता है, उसमें भारत को सार्थक पहल करनी चाहिए।

अध्यक्ष महोदय, मैं विनम्रतापूर्वक यह भी निवेदन करना चाहूंगा कि खाड़ी का मामला या इराक का मामला इराक तक सीमित नहीं है। खाड़ी में हिंदुस्तान के भी तीस लाख लोग रहते हैं। लिहाजा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर अगर वहां तनाव पैदा होता है तो उसका शिकार हमें भी बनना पड़ेगा। जहां तक देश के प्रधान मंत्री जी का सवाल है, उनका हम बड़ा सम्मान करते हैं। उनका और सरकार का द्ृष्टिकोण साफ है कि इराक का मामला संयुक्त राष्ट्र संघ तय करेगा। दूसरी तरफ अमरीका का द्ृष्टिकोण यह है कि अगर संयुक्त राष्ट्र हमें सहयोग नहीं करेगा तो भी हम इराक पर हमला कर सकते हैं।

अध्यक्ष महोदय, जब अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया तो हिन्दुस्तान पहला देश था जिसने बिना किसी शर्त के अमेरिका का साथ दिया और उसका परिणाम यह हुआ कि विश्व में जनमत अमेरिका के पक्ष में बना। हमारा फर्ज़ बनता है, धर्म बनता है कि हम भी अमेरिका पर दबाव डालें और यही प्रयास आज हम लोगों को करना चाहिए। अफगानिस्तान में कौन शासक था, कौन राजा था, कौन प्रधान मंत्री था, कौन राष्ट्रपति था, वह एक अलग सवाल है। लेकिन जब कोई युद्ध होता है तो परिणाम वहां की जनता को भुगतना पड़ता है और उसके परिणाम बड़े दुखदायी होते हैं। मैं समझता हूँ कि अगर युद्ध होता है तो इसी तरह की पुनरावृत्ति इराक में होगी।

अध्यक्ष महोदय, सही मायनों में झगड़ा हथियारों का नहीं है, अणु बम या परमाणु बम का नहीं है। सही मायनों में अमेरिका की नीयत इराक के तेल भंडारों पर कब्ज़ा करने की है। इसी द्ृष्टि से ये सब काम किया जा रहा है। इराक के खिलाफ सुरक्षा परिषद् में प्रस्ताव १४४१ आया कि इसके पास परमाणु हथियारों का ज़खीरा है। संयुक्त राष्ट्र में पांच सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं और दस अस्थायी सदस्य हैं। सभी १५ देशों ने इस पर सहमति जताई कि इसकी जांच होनी चाहिए और एक एक्सपर्ट हैन्स ब्लिक्स को जांच करने के लिए कहा गया। जब उन्होंने जांच की तो जांच के बाद उन्होंने बताया कि हमें इराक में कुछ नहीं मिला। इसके बाद भी कार्रवाई की बात कही जा रही है। ब्रिटेन, बेल्जियम और इटली को छोड़कर मैं नहीं समझता कि दुनिया का कोई देश अमेरिका की इस दादागिरी के हक में है। जर्मनी, फ्रांस और रूस, ये सभी लोग युद्ध के विरोधी हैं और संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव कोफी अन्नान साहब ने एक बार नहीं, अनेक बार कहा है कि युद्ध किसी भी कीमत पर नहीं होना चाहिए। हैन्स ब्लिक्स की जो रिपोर्ट है, उस पर हमें विचार करना चाहिए।

अध्यक्ष महोदय, मेरे पास कतरन है। दुनिया के नोबल पुरस्कार विजेताओं ने संयुक्त रूप से अपील की है दुनिया से कि अमेरिका जो इराक पर हमला करना चाहता है, उसका हर कीमत पर विरोध होना चाहिए। यह बात सही है कि सुरक्षा परिषद् में अमेरिका की दादागिरी थी। लेकिन इस सवाल पर सुरक्षा परिषद् में भी अमेरिका अकेला पड़ गया। अमेरिका इराक पर हमला करना चाहता है। वियतनाम युद्ध के बाद, युद्ध के संबंध में इतना विरोध दुनिया में कभी नहीं हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ का जो कार्यालय न्यूयार्क में है, उसी के पड़ोस में ढाई लाख लोगों ने प्रदर्शन किया और युद्ध विरोधी नारे लगाए। शिकागो में विरोध हुआ। यूरोप, बेल्जियम, ब्रिटेन में लाखों लोगों ने प्रदर्शन किया। लंदन की सड़कों पर पांच लाख लोगों ने प्रदर्शन किया। इटली की राजधानी रोम में दस लाख लोगों ने मिलकर प्रदर्शन किया।

अध्यक्ष महोदय, अब तक कुल मिलाकर जो विरोध-प्रदर्शन हुए हैं, वे ६०० शहरों के लगभग ६० लाख लोगों ने किए हैं और अमरीका को इराक पर हमला नहीं करना चाहिए, इस प्रकार के नारे भी लगाए गए हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार अमरीका के ६० फीसदी लोग युद्ध नहीं चाहते। अमरीका के लोग भी युद्ध के खिलाफ हैं और उन्होंने नारा लगाया है कि बुश को हटाओ, बम नहीं गिराओ। पूरा विश्व जनमत इस लड़ाई के खिलाफ है। भाई दिग्विजय सिंह जी यहां बैठे हैं। वे विदेश राज्य मंत्री हैं। वे अभी पिछले आठ महीने में दो बार इराक हो आए हैं।

इराक हमारा दोस्त है। इराक का उदारवादी द्ृष्टिकोण है। अमरीका अपने को सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश मानता है, लेकिन इराक पर हमला करना चाहता है और हमें रोज सबक सिखाता है कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान को आपस में मिल बैठ कर बात करनी चाहिए। मैं पूछना चाहता हूं कि उत्तरी कोरिया के बारे में अमरीका का क्या द्ृष्टिकोण है। अमरीका हर काम अपनी सुविधा के अनुसार करना चाहता है।

महोदय, आज संयुक्त राष्ट्र संघ की जो स्थिति है वह ठीक नहीं है क्योंकि जैसा मैंने पहले निवेदन किया, अमरीका ने कह दिया कि उसे संयुक्त राष्ट्र संघ की कोई परवाह नहीं है। संयुक्त राष्ट्र संघ में हमारी क्या स्थिति है, हमें इस तरफ भी देखना चाहिए। हम संयुक्त राष्ट्र संघ के संस्थापक सदस्यों में से हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्माण में मार्शल टीटो के साथ-साथ पं. जवाहर लाल नेहरू का भी बड़ा भारी योगदान रहा है। हमने बार-बार गुहार की, बार-बार प्रार्थना की है कि हमें संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थाई सदस्य बनाया जाए, लेकिन हम अभी तक संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थायी सदस्य नहीं बन पाए। हम सात बार संयुक्त राष्ट्र के अस्थायी सदस्य रहे, लेकिन पिछली बार वर्ष १९९६ में हम जापान से अस्थाई सदस्यता में भी हार गए। दुर्भाग्य की बात यह है कि अब हम सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्य भी नहीं हैं, लेकिन आगे आने वाले दो वर्षों के लिए पाकिस्तान सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बन गया है। यह अत्यन्त गम्भीर मामला है। संयुक्त राष्ट्र संघ की जो प्रभावी भूमिका, जो प्रभावी रोल होना चाहिए, वह नहीं है।

महोदय, खुशी की बात है कि फ्रांस और जर्मनी जैसे देश भी आज अमरीका के विरोध में खड़े हो गए हैं, लेकिन सब से दुखद पहलू यह है कि सुरक्षा परिषद् को वीटो पावर का अधिकार है और भारत को हर कीमत पर इराक पर युद्ध करने के अमरीका के प्रयास का विरोध करना चाहिए। पांच महाशक्तियों में से कोई भी एक महाशक्ति यदि किसी सवाल पर वीटो कर दे, तो कितना भी गम्भीर मामला हो, उसको टाला जा सकता है। दुनिया के तमाम देशों ने इराक पर अमरीकी हमले का विरोध किया है और जहां तक मुझे जानकारी है, फ्रांस की संसद ने तो प्रस्ताव भी पास किया है। सही मायने में जो अब दस्तावेज प्रकाश में आए हैं उनसे लग रहा है और एक समाचार पत्र वाशिंगटन पोस्ट में छपा है, उसके मुताबिक १९८० के दशक में स्वयं अमरीका ने ही इराक को इन हथियारों को बनाने और प्रोत्साहित करने में मदद की थी। दिनांक २० दिसम्बर, १९८३ को डोनाल्ड रम्सफैल्ड, जो इस समय अमरीका के डिफेंस सैक्रेट्री हैं, सही नाम क्या है, इस बारे में दिग्विजय सिंह जी जानते होंगे क्योंकि वे बगदाद गये थे और ९० मिनट तक बातचीत की थी ।

अध्यक्ष महोदय, यह बहुत गंभीर सवाल है। जैसा मैंने पहले विनम्रता के साथ निवेदन किया कि युद्ध तबाही एवं बर्बादी देता है। दुनिया के जिन हिस्सों में तनाव है, उस तनाव को दूर करने के लिए भारत को अहम् भूमिका का निर्वाह करना चाहिए। पाकिस्तान के साथ हमारी जो समस्या है, मैं समझता हूं कि वह समस्या इराक से ज्यादा गंभीर है। हमें हर बार यह समझाया एवं बुझाया जाता है कि अमेरिका कोई मध्यस्थता नहीं करेगा, अमेरिका का कोई रोल नहीं है। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान को आपस में बैठ कर बात करनी चाहिए। जब यह सबक हमें अमेरिका सिखा सकता है तो हम अमेरिका से ही क्यों नहीं कह सकते कि दुनिया की कौन सी ऐसी समस्या है जो बातचीत के जरिए हल न हो सके, बशर्ते हमारी नीयत साफ हो। हमारे साथ अमेरिका और पाकिस्तान का क्या रिश्ता है, मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है। वित्त मंत्री जी यहां तशरीफ रखे हुए हैं। आपका जो २००४ का बजट बनने वाला है, संभवत: अमेरिका ने भारत को ५३.२५ मलियन डालर और पाकिस्तान को ३२६.२५ मलियन डालर देने की बात कही है। इसका मतलब यह है कि उसे हिन्दुस्तान की तुलना में पाकिस्तान के साथ ज्यादा हमदर्दी है।

महोदय, हम आपका संरक्षण चाहते हैं, यहां किसी पार्टी का सवाल नहीं है। यह संसद पूरे देश के सभी वर्गों और धर्मों का प्रतनधित्व करती है। मैं सत्तारूढ़ दल के लोगों से बड़ी विनम्रता के साथ निवेदन करना चाहूंगा कि उनके जो सहयोगी एवं मित्र हैं, वे इराक के सवाल पर, हमले के सवाल पर यह बयान भी देते हैं कि भारत सरकार को अमेरिका का समर्थन करना चाहिए। वे समाज का कोई भला नहीं कर रहे हैं। अभी प्रवीण तोगड़िया जी का बयान छपा। मल्होत्रा जी, आप क्यों हाथ हिला रहे हैं।…( व्यवधान)आप पढ़े-लिखे हैं, लेकिन मैं भी थोड़ा-बहुत जानता हूं। आपका काम सरकार को बचाने का है। आप सरकार को बाद में बचा लेना। एक बार नहीं बल्कि अनेक बार बयान छपा कि भारत को अमेरिका का साथ देना चाहिए। अगर इराक पर युद्ध होता है तो मैं समझता हूं कि ये सब ठीक नहीं है। विजय कुमार मल्होत्रा जी, यह आपकी सेहत के लिए भी ठीक नहीं है। अखबार आप भी पढ़ते हैं और मैं भी थोड़ी-बहुत जानकारी रखता हूं। आप जब अपनी बात कहें तो निश्चित रूप से इन सवालों पर चर्चा करिए।

अध्यक्ष महोदय, मैं आपकी मार्फत एक ही विनम्र प्रार्थना करना चाहता हूं, पूरे सदन की तरफ से यह भावना जानी चाहिए कि अमेरिका की जो खलीफागिरी, दादागिरी है, वह इराक पर हमला करना चाहता है और हमला ही नहीं करना चाहता है बल्कि डेढ़ लाख फौजें वहां इनकी तैनात हैं, उसके जो मित्र देश हैं, उनकी फौजें वहां तैनात हैं, अमेरिका का जो इरादा है, इनके उस इरादे की हम सिर्फ आलोचना नहीं करते, भारतीय संसद को प्रस्ताव पास करना चाहिए। महोदय, हम आपका संरक्षण चाहते हैं, आपकी तरफ से यह प्रस्ताव आना चाहिए कि अमेरिका का जो रवैया है, हम उसकी आलोचना करते हैं और किसी भी कीमत पर अमेरिका को इराक पर हमला नहीं करना चाहिए। मुझे विश्वास है कि सदन में सब लोगों की भावना इसी के अनुकूल होगी। अगर इस तरह का संदेश भारत की संसद के मार्फत हम दुनिया को दे सकें तो मैं समझता हूं कि आपकी बड़ी कृपा होगी। मुझे यही निवेदन करना था।

डॉ.विजय कुमार मल्होत्रा

(दक्षिण दिल्ली):अध्यक्ष महोदय, इस समय सदन जिस विषय पर चर्चा कर रहा है, यह विषय बहुत ही महत्व का है। संसार में युद्ध की विभीषिका इस समय छाई हुई है और सारा विश्व इस बात से त्रस्त है कि क्या आने वाले दिनों में कोई युद्ध होगा। निश्चित रूप से भारत युद्ध के खिलाफ है। चाहे कैसा भी युद्ध हो और कहीं पर भी हो, जब तक कि उसमें कोई अनिवार्यता न हो जाए। युद्ध की विभीषिका से सारा विश्व परचित है। जितने युद्ध होते हैं, उनमें हजारों लोग मरते हैं, स्त्रियां विधवा होती हैं और बच्चे अपाहिज एवं अनाथ हो जाते हैं। खेत एवं खलिहान उजड़ जाते हैं। ऐसे में युद्ध से बचना हरेक का काम है। हम भी निश्चित तौर पर चाहते हैं कि किसी तरह से भी युद्ध टालना चाहिए, युद्ध नहीं होना चाहिए। यह जो बात कही जा रही है कि इराक के पास मॉस डिस्ट्रक्शन के हथियार हैं, कैमिकल वैपंस हैं, इस प्रकार की चीजें उसके पास हैं, जिनके आधार पर युद्ध की बात की जा रही है, अभी तक ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के वैपन इंस्पैक्टर्स ने भी यह बात आकर कही है कि ऐसे कोई हथियार वहां पर हैं, इसकी कोई जानकारी उन्हें प्राप्त नहीं हुई। ऐसे हालात में जबकि इस प्रकार के कोई सबूत भी नहीं हैं, कोई ऐसी बात नहीं है और कुछ है भी, उसका भी अगर डिसआर्मामेंट करना है, इराक के इन हथियारों को नष्ट भी करना है तो वह संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से होना चाहिए। किसी एक देश को ऐसा कोई अधिकार नहीं मिल जाता कि वह इस प्रकार की बातों को लेकर अपने आप सारे विश्व का दरोगा बन जाये या सारे विश्व का सम्राट बन जाये। सारी दुनिया का केवलमात्र वही एक नेता है, ऐसा सोचने का कोई कारण नहीं है।

हम चाहते हैं कि अगर कोई केमिकल वैपंस हैं या दूसरे वैपंस हैं तो उनको नष्ट किया जाना चाहिए। उसके लिए भी विश्व जनमत तैयार हो और इसका कोई सबूत मिल जाये तो इस बात को देखा जाये। हम इस बात से भी सहमत हैं कि आतंकवाद के खिलाफ युद्ध रहना चाहिए। अलकायदा, बिन लादेन ने जो कुछ किया है, उसके खिलाफ कार्रवाई विश्व में सब को मिलकर करनी चाहिए। आतंकवाद के खिलाफ एक युद्ध चल रहा है, परन्तु आतंकवाद के युद्ध में अगर अमेरिका ईमानदार है और अमेरिका की ईमानदारी है कि वह आतंकवाद के खिलाफ युद्ध करना चाहता है तो उसे अपना टार्गेट, अपना निशाना इराक के बजाय पाकिस्तान को बनाना चाहिए। इराक को उन्होंने इस समय अपना निशाना बनाया हुआ है, जिसके यहां कोई सबूत नहीं मिल रहा है, परन्तु पाकिस्तान के सबूत तो जगजाहिर हैं। सारी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान क्या कर रहा है। जितने पाकिस्तान में अफगानिस्तान से अलकायदा के लोग भागकर आये, जितने तालिबान आये, सब पाकिस्तान में शरण लेकर बैठे हुए हैं। जितने लोगों को आबूधाबी में छोड़ा गया, वे सब आकर पाकिस्तान में शरण लिए हुए हैं। पाकिस्तान ने जिनको पकड़ा था, उनको रिहा कर दिया है। पाकिस्तान हिन्दुस्तान के खिलाफ क्रास बोर्डर टैरेरिज्म में जो कुछ कर रहा है, उसके बारे में सदन में अनेक बार चिन्ता प्रकट की गई है। मैं सहमत हूं, अभी जो बात कही गई कि अमेरिका ने पाकिस्तान को मोस्ट फेवर्ड नेशन बना रखा है, ३२६ मलियन डालर की उसे सहायता दे रहा है। यह रुपया पाकिस्तान के पास जाता है तो वह क्रास बोर्डर टैरेरिज्म पर खर्च होता है, वह आतंकवाद को बढ़ाने में खर्च होता है, वह दुनिया में आतंकवाद फैलाने में खर्च होता है, वह अलकायदा और बिन लादेन की मदद के लिए खर्च होता है। वहां पर बैठी हुई ये ताकतें जो इस समय कर रही हैं, अमेरिका उसकी तरफ ध्यान नहीं दे रहा।

बंगलादेश का एक नया केन्द्र बन गया है। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने भी उसके बारे में बड़ी चिन्ता प्रकट की है, आसपास के लोगों ने भी चिन्ता प्रकट की है कि बंगलादेश एक नया सैण्टर बनता जा रहा है। अमेरिका को इसकी कोई चिन्ता नहीं है। अमेरिका दुनिया भर में अगर आतंकवाद खत्म करना चाहता है तो जो सचमुच में आतंकवाद भड़का रहे हैं, उसके बारे में भी उसे चिन्ता करनी चाहिए। अमेरिका को यू.एन.ओ. को भी देखना चाहिए, संयुक्त राष्ट्र संघ को देखना चाहिए, उन पर दबाव नहीं डालना चाहिए। यूरोप के अधिकांश देश उसे कह रहे हैं और उस समय जब यह कह दिया गया है कि कोई हथियार हैं ही नहीं, वहां हथियार नहीं पाये गये तो और समय दिया जाये। वहां इंस्पैक्टर्स देखें और हथियार मिल जायें तो सारी दुनिया मिलकर उन हथियारों को नष्ट करने के लिए प्रयास करे। डैमोक्रेटिक रिलेशंस से भी इस दिशा में कोशिश की जा सकती है, और तरीके अपनाये जा सकते हैं।

हमारे तो बहुत से आर्थिक हित भी इससे जुड़े हुए हैं। आज पैट्रोल एकदम से महंगा होता जा रहा है। अमेरिका इराक पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए या अपनी जिद पूरी करने के लिए उस पर हमला कर दे और यह दिखाये कि उसने इराक के ऊपर दो महीने, चार महीने के लिए कब्जा कर लिया तो उसका क्या असर होगा। हमारे लाखों लोग कुवैत में फंसे हुए हैं, हमारे लाखों लोग सऊदी अरब में हैं, और जगह पर हैं, उनकी सुरक्षा खतरे में पड़ती है, हमारे आर्थिक हित खतरे में पड़ते हैं। हमारे इराक से भी बहुत से आर्थिक हित जुड़े हुए हैं और इराक ने बहुत समय तक भारत की सहायता की है।

मैं कहना चाहता हूं कि यह कोई सविलाइजेशन कान्फ्िलक्ट नहीं है। हम इसे बिल्कुल सविलाइजेशन कान्फ्िलक्ट नहीं मानते, क्योंकि पहले भी जब अमरीका इराक का युद्ध हुआ था तो कई मुस्लिम देश अमरीका के साथ मिलकर लड़े थे। उस समय अमरीका और उन्होंने मिलकर कुवैत पर हमला कर दिया था। इस समय कोई सविलाइजेशन कान्फ्िलक्ट है, कोई सभ्यताओं का संघर्ष हो रहा है या कोई मजहबों की लड़ाई हो रही है, ऐसा इसमें कुछ नहीं है। इस कारण इसे ऐसा नहीं माना जाना चाहिए। सारे विश्व के जनमत को देखकर इस समय वहां युद्ध नहीं होना चाहिए। अगर कोई हथियार हैं तो उनके लिए समय दिया जाये, उसे देखा जाये। इसके साथ-साथ केमिकल वैपन्स या मास डैस्ट्रक्ट्रशन वैपन्स को खत्म करने के लिए विश्व जनमत तैयार करें। अमरीका अगर सचमुच आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ना चाहता है तो पाकिस्तान के ऊपर वह अपना निशाना साधे, यही मैं आपसे कहना चाहता हूं।

SHRI MANI SHANKAR AIYAR

(MAYILADUTURAI): Mr. Speaker, Sir, ever since the hon. Minister of State Shri Digvijay Singh and his senior colleague assumed office in South Block, the distortions that have been introduced in the foreign policy by their predecessor have begun to be rectified. I must, in all fairness, add that the enormous mistakes which Shri Yashwant Sinha committed in the Ministry of Finance have begun to be rectified by Shri Jaswant Singh. Perhaps, the original sin lay in the decision of the Prime Minister to have placed them in the wrong places. But because I see that the ghost of the past is likely to be responding to this debate, I would urge Shri Digvijay Singh to please counsel restraint upon his senior colleague and ensure that India’s foreign policy continues along the lines he and Shri Yashwant Sinha are laying down, rather than the distortions which we had to suffer during Shri Jaswant Singh’s tenure.

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