Further Discussion On Situation Arising Out Of Floods In Various … on 20 August, 2007

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Lok Sabha Debates
Further Discussion On Situation Arising Out Of Floods In Various … on 20 August, 2007


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Title: Further discussion on situation arising out of floods in various parts of the country, raised by Shri Ananth Kumar on 14.08.2007 (not concluded).

 

 

MR. CHAIRMAN: Now, the House will take up Item No. 21, that is, further discussion on floods. Shri Sita Ram Singh was on his legs. Now, Shri Sita Ram Singh.

श्री सीताराम सिंह (शिवहर)  : सभापति महोदय, देश में बाढ़ और बरसात से उत्पन्न भयानक स्थिति पर सदन में चर्चा हो रही है। सदन में चर्चा के लिए विषय तय हुआ था, उसके पहले एक बाढ़ समाप्त हो चुकी है। अभी चर्चा समाप्त भी नहीं हुई कि दूसरी बाढ़ देश के कई हिस्सों में आ चुकी है। मैं बिहार राज्य से आता हूं और सम्पूर्ण बिहार राज्य में सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 20 जिलों में बाढ़ आने की बात कही गई है।[rep62] 

            महोदय, संपूर्ण बिहार में 20 जिले बाढ़ और बाकी जिले वर्षा से पूर्णरूप से तबाह हो चुके हैं। उसके बगल से लगा हुआ, उत्तर प्रदेश का पूर्वी हिस्सा भी बाढ़ और वर्षा से पूरी तरह परेशान है। देश में आई  बाढ़ से हुए नुकसान और प्रभावित जिलों के बारे में एक किताब छपी है, जिसमें सभी आंकड़े दिए गए हैं। वे आंकड़े आपने भी देखे होंगे। मैं बताना चाहता हूं कि अकेले बिहार में अभी तक 300 से ज्यादा लोग बाढ़ और भारी वर्षा के कारण मारे गए हैं। यह त्रासदी अभी जारी है और लोग अभी भी मर रहे हैं। अभी परसों ही मेरी कांस्टीटय़ूंसी के चिरिया ब्लॉक में एक नाव उलटने से कई आदमी मर गए। आंकड़ों के अनुसार 1 करोड़ 25 लाख आबादी बाढ़ से प्रभावित होना बताई गई है। मैं बताना चाहता हूं कि अकेले बिहार में ही 2 करोड़ से अधिक आबादी को बाढ़ और वर्षा से क्षति पहुंची है। आज बाढ़ और भारी वर्षा के कारण बिहार में यह स्थिति है कि गरीब, भूमिहीन और छोटे-छोटे किसानों के लगभग 5 लाख मकान गिर गए और अभी भी लगातार मकानों का ढहना जारी है। 

            महोदय, प्रति वर्ष बर्सात होती है और बाढ़ आती है। बिहार ही नहीं अन्य राज्य भी इससे प्रभावित होते हैं, लेकिन हम बिहार के लोग बाढ़ के स्थायी भुक्तभोगी हैं। हमारे यहां पूर्वी और उत्तरी बिहार में शिवहर, सीतामढ़ी, मोतीहारी, बेतिया, गोपालगंज, दरभंगा, समस्तीपुर, खगड़िया और बेगूसराय आदि तमाम इलाकों में प्रति वर्ष भारी वर्षा होती है और बाढ़ आती है। इस वर्ष तो पटना शहर और नालंदा जैसे जिले भी बाढ़ से प्रभावित हुए हैं।

            महोदय, हर वर्ष बाढ़ आती है और इस सदन में चर्चा होती है। बाढ़ आ गई, उसका आना भी तय है और चूंकि यह सीजनल होती है, इसलिए चर्चा तक ही बात सीमिति हो जाती है। चर्चा होने के बाद स्थायी समाधान हेतु कोई प्रयास नहीं किया जाता। केवल बिहार में ही नहीं अन्य राज्यों में भी बाढ़ आती है, लेकिन इससे कैसे निजात मिले, कैसे इसे रोकने का स्थायी उपाय हो, इस पर हम ज्यादा संवेदनशील नहीं हैं। हमें बाढ़ रोकने हेतु जो स्थायी उपाय और व्यवस्था करनी चाहिए, शायद उस पर हम अधिक सोच ही नहीं पाते। एक बार सदन में बहस होने के बाद हम चुपचाप होकर बैठ जाते हैं।

            महोदय, बाढ़ आने का कारण सर्वविदित है। जैसे ही वर्षा शुरू हुई और बाढ़ आ जाती है। बिहार से नेपाल सटा हुआ है। वहां वर्षा शुरू होते ही बिहार में चूंकि वह नीचे है, इसलिए बाढ़ आ जाती है। बिहार से लगे उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से हैं, वहां भी बाढ़ आ जाती है। इसके साथ-साथ बाढ़ का प्रकोप बंगाल और असम तक चला जाता है, मगर इसके स्थायी निदान के लिए हम कुछ नहीं कर पाते हैं। इस वर्ष लगातार 20-22 दिन तक वर्षा हुई और बाढ़ आ गई।

            महोदय, मैं बताना चाहता हूं कि राज्य स्तर पर बाढ़ आने से पहले हर वर्ष मीटिंग होती थी, चर्चा होती और इंतजाम किए जाने के बारे में कुछ व्यवस्था बनाई जाती थी, मगर सबसे दुखद स्थिति यह है कि इस वर्ष बिहार में बाढ़ से बचाव के लिए कोई मीटिंग नहीं की और बाढ़ से बचाव के लिए कोई व्यवस्था नहीं की। इस बार बिहार सरकार से यह सबसे बड़ी भूल हुई है। मैं इस बात को विपक्ष का सदस्य होने के नाते अथवा विरोध जताने की दृष्टि से नहीं बोल रहा हूं, बल्कि जो हकीकत है, वह बयान कर रहा हूं कि इस वर्ष बाढ़ से बचाव के लिए बिहार में जो पूर्व तैयारी होनी चाहिए थी, वह नहीं हो सकी।[r63]  [r64] 

इसका नतीजा यह हुआ कि लगातार बरसात से बाढ़ आने के समय कहीं नाव उपलब्ध नहीं थी। ऐसे समय में नाव की आवश्यकता थी। पहले लोग नाव रखते थे, लेकिन एक साल कम बाढ़ आने से लोग नाव बेच देते हैं। बाढ़ की तैयारी हर साल करनी होती है और नाव बाढ़ के समय सबसे जरूरी आइटम होती है। लेकिन सभी जगहों पर नाव के लिए त्राहिमाम मचा रहा, जिसके कारण जानमाल की काफी हानि हुई। सरकार को बाढ़ आने वाले हर इलाके में नाव की व्यवस्था पहले से करनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और बाढ़ आने के बाद भी उसकी समीक्षा देर से हुई। एक भारी गलती यह हुई कि बाढ़ आने के समय हमारे राज्य बिहार के मुखिया बाहर थे। उस समय बड़ी असमंजस की स्थिति थी। राज्य सरकार के नुमाइंदे उस समय गुणा-भाग पेपरों पर ही करते रहे और राहत ठीक से नहीं पहुंची।    

            महोदय, मेरे लोक सभा क्षेत्र में 2005 में बांध टूटा था, जिसकी मरम्मत आज तक नहीं हुई, जिससे नेपाल में थोड़ी बारिश होने से हमारे 6 जिलों और मोतीहारी प्रभावित होते हैं। अभी पचनौर और रमनी में बांध टूट गया। चंपारण और बेतिया में बांधों की मरम्मत के लिए सरकार को कार्य करना चाहिए था। भारत सरकार ने अपने आंकड़ों में बिहार सरकार को बांध की मरम्मत के लिए पैसा दिया है। यदि मैं इन आंकड़ों में जाऊंगा तो बहुत समय लग जाएगा। बिहार सरकार ने बांधों की मरम्मत पर कितना खर्च किया है, यह हमें नहीं मालूम है। भारत सरकार यह कहती है कि बिहार सरकार ने अपने खर्च की रिपोर्ट का प्रतिवेदन नहीं दिया है। दूसरी तरफ बिहार में एक भी नहर की मरम्मत नहीं हुई है, न तो गण्डक नहर की मरम्मत हुई है और न ही बांगमती के बांध की मरम्मत हुई है। जिसकी वजह से मैं समझता हूं कि 15 लाख की आबादी की बर्बादी हमारे इलाके में हुई है। मैं यह कहना चाहता हूं कि सरकार का प्रबन्धन ठीक नहीं है। मैं यह बात केवल इस बहस तक नहीं रखना चाहता हूं बल्कि इसे आगे बढ़ाना चाहता हूं कि भारत सरकार जो रूपया देती है, उसे देने से पहले राज्य सरकारों के साथ बैठक करके, प्लानिंग करके एक डिटेल प्रोजेक्ट बनाकर इस काम को करने की एक समय सीमा निर्धारित करे तभी लोगों को इसका कुछ लाभ मिल सकता है।

            महोदय, जहां तक राहत देने का सवाल है, राज्य सरकार और केन्द्र सरकार दोनों राहत देती हैं। हम लोगों ने पिछले सालों में भारत सरकार से राहत देने के लिए अनुरोध किया था और आपने दी भी थी। अभी भी मांग रहे हैं तो आप देंगे। लेकिन आज यह स्थिति है कि हजारों की संख्या में लोग खुले आकाश के नीचे पड़े हैं और डेढ़ महीने होने जा रहा है, लेकिन आज भी लोगों को प्लास्टिक उपलब्ध नहीं है। बिहार सरकार ने जो भी आंकड़ा दिया हो, लेकिन हम लोग अपनी आंख से देख रहे हैं। बाढ़ पीड़ितों के लिए प्लास्टिक की पूर्ति सरकार नहीं कर सकी[r65]  है।

इन्होंने हैलीकॉप्टर दौड़ाया है, कुछ जगहों पर इन्होंने सामान गिराया है, ड्राप किया है, वह कहीं पानी में गिर जाता है, कहीं और गिर जाता है, इसलिए बड़ी मुश्किल है। होना तो यह चाहिए था कि मोटरबोट से गिराते, लेकिन मोटरबोट की संख्या कम है। जो नाव सामान्य रूप से हर पंचायत में होनी चाहिए, बिल्कुल नगण्य है और आज भी लोग खुले आकाश में वर्षा में भीग रहे हैं, पता नहीं इस देश में प्लास्टिक की फैक्टरी खत्म हो गई। हमारी राज्य सरकार बिहार में कहती है कि हम गुजरात से मंगवा रहे हैं, दूसरे राज्यों से मंगवा रहे हैं, लेकिन प्लास्टिक सरकार नहीं दे पाई। कोई 10-5 नहीं, हजारों लोग बांध पर खुले आकाश के नीचे सोये हुए हैं, उनके पास कोई प्लास्टिक नहीं है। अनाज देने का प्रयास सरकार ने अब शुरू किया है, लेकिन वह नाकाफी है। मैं मानता हूं कि आप जो अनाज दे रहे हैं, वह अनाज अभी कम है, उसको फिर दोहराना पड़ेगा, 25 किलो को आगे बढ़ाना पड़ेगा। सबसे खराब बात यह है कि बाढ़ आई है, आंख के सामने दिखाई पड़ रही है, लोग डूबे हुए हैं, लेकिन अभी राज्य सरकार के अधिकारी और पदाधिकारी वहां पहुंच नहीं पा रहे हैं और रास्ते से निर्णय ले रहे हैं और कह रहे हैं कि यह आंशिक है। यह पूर्णतः है, यह बड़ी खामी है। हम लोगों ने राज्य सरकार को भी कहा, भारत सरकार को भी कहा। भारत सरकार कहती है कि अभी प्रतिवेदन नहीं आया, माननीय सदस्य सदन में आंकड़े दे रहे थे और बता रहे ते कि ये आंकड़े हैं। माननीय मंत्री महोदय ने बखूबी कहा कि आप इसको पन्ने पर उतारकर मत भेजिये, बेहतर रिपोर्ट भेजिये।  मैं सदन के माध्यम से आग्रह करना चाहूंगा कि भारत सरकार बिहार सरकार से विशेष आंकड़े ले। आपने काफी कोशिश की और आप हमारे राज्य में गये, आपने अपनी नजर से बाढ़ को देखा। इस बात से हमारे बिहारवासियों को बल मिला। हम यह चाहते हैं कि आप वहां से रिपोर्ट लेकर भरपूर मदद बाढ़ के मामले में बिहार की करें।

            एक पाइंट और जरूरी है, मैं दो मिनट और लूंगा।…( व्यवधान)

सभापति महोदय : आप बाढ़ और राहत पर तो बोल रहे हैं, पर इस समस्या के समाधान पर भी तो कुछ बोलिये।

श्री सीताराम सिंह :मैं उसी पर आ रहा हूं, लेकिन मैं अब यह कहना चाहता हूं कि हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि भारत सरकार ने 2004 में बहुत गम्भीरता से नोटिस लिया था और कहा था कि हम हाई डैम बनाएंगे, कहा था कि हम कार्यालय खोलेंगे, उन्होंने खोला भी और उसके लिए कई बार बहस भी हुई, सरकार चिन्ता कर रहे है। इस पर हजारों करोड़ रुपये का बजट लगेगा, लेकिन मेरा इसमें साफ कहना है कि इसमें थोड़ी और गम्भीरता से इस काम को करने की दिशा में बढ़ना चाहिए और जितने हजार करोड़ रुपये आप राहत पर खर्च कर रहे हैं, इससे कभी समाधान होने वाला नहीं है। हमारा कहना यह है कि इसकी दिशा मोड़िये और स्थाई निदान के लिए आगे बढ़िये, पक्का निदान निकालिये।

            मगर आज जो बाढ़ से क्षति हुई है, उस पर हम अपनी बात सदन के माध्यम से आपके सामने रखना चाहते हैं। इसके लिए हम चाहते हैं कि यह काम जल्दी हो। पहली बात यह कि जिन किसानों ने फसल लगाई, उसकी फसल बर्बाद हो गई। बिहार सरकार ने ऐलान किया कि लघु और सीमान्त किसानों को हम प्रति एकड़ दो हजार रुपये और फिर चार हजार या पांच हजार रुपये तक मदद पहुंचाएंगे, मगर मेरा एक सवाल है कि लघु और सीमान्त किसान की जो सीमाएं हैं, उससे 10 कट्ठा और एक एकड़ अभी जोतने वाले किसानों ने कौन सा पाप और गलती की है? उसकी सभी फसल बर्बाद हो गई, आप उसको राहत नहीं देंगे, आप उसको बीमे का मुआवजा नहीं देंगे, आप उसका मुआवजा नहीं देंगे? मैं इस सदन के माध्यम से साफ कहना चाहता हूं कि बिहार और इस देश के सवाल पर देश के ऐसे तमाम किसान, चाहे वे लघु हों, सीमान्त हों या सीमान्त से भी ऊपर 8-10 एकड़ खेत जोतने वाले हों, ऐसे तमाम किसानों को पांच हजार रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से क्षतिग्रस्त लोगों को मुआवजा मिलना चाहिए, मेरा पहला सवाल यह है।[R66] 

            महोदय, दूसरी बात मैं कहना चाहता हूं कि आपने पहले भी बिहार के लिए सहायता दी थी।  इंदिरा आवास के नाम पर क्षतिग्रस्त मकानों को, बाढ़ग्रस्त इलाके में बाढ़पीड़ितों को, आपने मकान देने के लिए कहा था।  मैं आपदा प्रबंधन के बारे में कहना चाहता हूं कि इस बाढ़ में बीपीएल और एपीएल का भेद न हो।  बाढ़ के कारण जिन भी गरीब किसानों के मकान गिरे हैं, चाहे वे बीपीएल में हों या एपीएल में हों, ऐसे तमाम लोगों का आपदा प्रबंधन के तहत, इंदिरा आवास योजना के तहत और स्पेशल पैकेज के तहत, गृह निर्माण होना चाहिए।          

            महोदय, मैं तीसरी बात कहना चाहता हूं कि जिन किसानों की फसल खत्म हो गयी, आप उनके ऋण माफ करिए और उनकी मालगुजारी भी माफ करिए।  जब खेतीबाड़ी ही नहीं है या फसल ही नहीं है, तो किस बात के लिए मालगुजारी ली जाए?  अतः आप उनकी मालगुजारी माफ कर दीजिए। 

            महोदय, हम बाढ़ से बचाव करें, इसके लिए दो-तीन बातें जरूरी हैं।  बिहार सरकार से बात करके, हर गांव में नाव की व्यवस्था करनी चाहिए, जब तक कि आप इस समस्या का स्थायी निदान नहीं करते हैं।  इसके अलावा जो गरीब आदमी अभी विस्थापित हैं, जिनके पास अभी प्लास्टिक नहीं है, अगर मैं उनकी हालत पर चर्चा करूंगा, तो घंटों इसी पर चर्चा करना पड़ेगा, क्योंकि यह बहुत दुखद सवाल है, इस परिस्थिति में वह चाहे देश के जिस दिशा में भी हो, उनके लिए तिरपाल या प्लास्टिक की व्यवस्था की जाए।  मैं आपसे यही कहना चाहूंगा कि आप इस क्षेत्र को बाढ़ग्रस्त क्षेत्र घोषित करें।  बिहार प्रदेश को भारत सरकार पूरी मदद करे।  बिहारवासियों को राहत प्रदान करने के लिए और स्थायी निदान के लिए आप कार्यवाई करें।  बिना नेपाल सरकार के स्थायी निदान तो होना ही नहीं है, इसलिए आप नेपाल सरकार से भी बात करें।

            इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं।  आपने मुझे बोलने के लिए समय दिया, इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं।

                                                                                                                                   

 

श्री अनिल बसु (आरामबाग) : सभापति महोदय, बाढ़ की स्थिति बहुत भयंकर हो गयी है।  आज सुबह दिल्ली आते समय, मैं राजधानी एक्सप्रेस से यात्रा कर रहा था, मेरे क्षेत्र पश्चिम बंगाल के आरामबाग लोकसभा के अंदर, पश्चिम मिदनीपुर जिले में घाटाल असेंबली सेगमेंट है, तब वहां से बहुत आतंकजनक फोन कॉल आयी कि वहां 15 फुट पानी हो गया।  वहां ऐसी बाढ़ की स्थिति है।  जो लोग ठीक हैं, वे घर के छत पर चले गए और उन्होंने मुझे वहां से टेलीफोन किया कि जल्दी कुछ करना चाहिए।  वहां आर्मी को बुलाना चाहिए और हेलीकॉप्टर से रिलीफ मैटेरियल्स की एयर ड्रापिंग होनी चाहिए।  मैंने तुंत चीफ मिनिस्टर को टेलीफोन से इस बारे में बताया।  वहां इस प्रकार की भयंकर स्थिति है।  मेरे क्षेत्र में तीन-चार नदियां हैं।  मैंने जिस घाटाल असेंबली की बात कही, वहां दारकेश्वर, सिलावती और रूपनारायण नदियां हैं।  पिछले दो-तीन-चार दिनों में वहां बहुत भारी बारिश हुयी।  इसे फ्लैश-फ्लड कहते हैं।  ये सब रेन फीड नदियां हैं।  बहुत ज्यादा बारिश होने के कारण,  इनमें अचानक पानी आ जाता है और दो-तीन दिनों के अंदर सारा पानी खत्म हो जाता है।[c67]  

मेरे दूसरे क्षेत्र आरामबाग की स्थिति भी अच्छी नहीं है क्योंकि वह दामोदर वैली कार्पोरेशन का नीचे का अंश है। हमने 1998 में डीवीसी सिस्टम बनाया था। छोटा नागपुर इलाके में बहुत वर्षा होती है। बंगाल का नीचे का जो इलाका है, वहां की भयंकर बाढ़ का कारण उस वर्षा का पानी है। जब नेहरू जी प्रधान मंत्री थे, तब पहली पंचवर्षीय योजना में उन्होंने सिद्धान्त लिया था कि दामोदर वैली कार्पोरेशन एक केन्द्रीय संस्था होगी। सारा सर्वे करने के बाद, बातचीत करने के बाद, एक्सपर्ट्स का ओपीनियन लेने के बाद सरकार ने सिद्धान्त लिया कि आठ रिजर्वायर बनाने होंगे। छोटा नागपुर में जितनी वर्षा होती है, उस पानी का संरक्षण करने के लिए आठ रिजर्वायर बनाने पड़ेंगे, लेकिन चार रिजर्वायर ही बने। सन् 1998 में जब उसका उद्घाटन हुआ, पंचेत, तिलैया, मैथन जो बैरेज हुआ, तब भारत सरकार ने घोषणा की कि अब दामोदर नदी की भयंकर स्थिति  में सुधार हो जाएगा। डीवीसी मल्टी-परपज परिकल्पना है। इसमें बिजली बनेगी, सिंचाई का पानी मिलेगा और बाढ़ से राहत मिलेगी। लेकिन आज सन् 2007 में हम देखते हैं कि  डीवीसी की परिकल्पना असफल हो गई, क्योंकि चार रिजर्वायर बने, चार नहीं बने। भारी वर्षा के कारण पचास प्रतिशत अनकंट्रोल्ड वाटर को संरक्षण करने की क्षमता चार रिजर्वायर की नहीं है। इसलिए छोटा नागपुर इलाके में जब भारी वर्षा होती है, तब सारे डीवीसी रिजर्वर से एक लाख, दो लाख और कभी-कभी तीन लाख क्यूसिक से ज्यादा पानी छोड़ देते हैं। जो सिस्टम बाढ़ से राहत देने के लिए बना था, वह अब बाढ़ होने का कारण बन गया। डीवीसी इस सबको छोड़कर अब बिजली बनाने जा रहा है। अभी डीवीसी ज्यादा से ज्यादा थर्मल पावर बनाने के काम में लगा हुआ है।

            केन्द्र सरकार के पास दो संस्थाएं हैं – सैंट्रल वाटर कमीशन और गंगा फ्लड कंट्रोल कमीशन। मैं लगभग 25 साल से इस संसद में हूं, लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आया कि इन दो संस्थाओं का क्या काम है, क्योंकि गंगा फ्लड कंट्रोल कमीशन का काम गंगा का फ्लड कंट्रोल नहीं है।  पश्चिम बंगाल में काफी इरोजन होता है और उसे देखने वाला कोई नहीं है। हमारी सारी नदियां गंगा में जाती हैं और गंगा से समुद्र में जाती हैं। जो कुछ भी बनाया जाएगा, सबको गंगा फ्लड कंट्रोल कमीशन की क्लीयरैंस मिलनी चाहिए। यदि आप जीएफसीसी में कोई स्कीम भेजेंगे, तो दस-पन्द्रह साल हो जाने पर भी उसे सैंक्शन नहीं मिलेगी। जीएफसीसी का क्या काम है? जीएफसीसी बनाने का एक उद्देश्य था, लक्ष्य था। सीडब्ल्यूसी क्या कर रहा है? जिनका सुधारने का काम है, जो सरकार का अंग है. वह अंग काम नहीं करता।[N68] 

इसीलिए दुर्दशा बढ़ रही है। यहां श्री सैफुद्दीन सोज़ जी बैठे हुए हैं, जो जल संसाधन मंत्री हैं। डीबीसी का दफ्तर इनके अंडर है। श्री सैफुद्दीन सोज़ से पहले जो जल संसाधन मंत्री थे, मैंने उनको एक पत्र लिखा था कि सन् 1998 में आपने जो चार रिजर्वायर बनाये, पिछले 40 साल से उनमें इतना सिल्टिंग हो गया, जिससे उनकी जो कैपेसिटी 40 प्रतिशत रह गयी है। उनकी जो पानी संरक्षण करने की क्षमता  थी, वह 60 प्रतिशत से कम हो कर 40 प्रतिशत रह गयी है। इसलिए डी-सिल्टिंग करने के लिए आप काम करें। उस पत्र का हमें उत्तर आया कि डी-सिल्टिंग करना संभव नहीं है। यह क्या बात है? …( व्यवधान)

श्री राजीव रंजन सिंह ‘ललन’  (बेगूसराय)  :  ऐसा ही उत्तर आयेगा। …( व्यवधान)

श्री अनिल बसु  : उत्तर आने से हमें आपत्ति नहीं है, लेकिन देश की जनता का क्या होगा? …( व्यवधान)जिस आदमी का घर उजड़ जाता है, खेती उजड़ जाती है, जान-माल आदि का सारा नुकसान होता है, उनका क्या होगा? …( व्यवधान) आपकी सरकार जब सत्ता में थी, तब यह उत्तर आया था। इसलिए मैंने जिक्र नहीं किया कि वह कौन सी सरकार थी। लेकिन ऐसा उत्तर आया कि डी-सिल्टिंग संभव नहीं है। चार रिजरवायर तैयार हुए और चार रिजरवायर तैयार नहीं हुए। जो चार रिजरवायर तैयार हुए, उसमें पानी संरक्षण की क्षमता सिल्टिंग के कारण 60 प्रतिशत से घट कर 40 प्रतिशत हो गयी। इस तरह कैसे लोग बचेंगे? इसकी परिकल्पना क्या है, परिकल्पना का असर क्या है? इसके साथ-साथ जिस संस्था को भारत सरकार ने बनाया, वह दामोदर वैली कार्पोरेशन सब कुछ छोड़कर बिजली बनाने जा रही है। बहुत बड़े-बड़े थर्मल पावर  भारत सरकार बना रही है। आप खूब थर्मल पावर बनाओ, इसमें हमारी कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन जिस मुख्य उद्देश्य से सरकार ने इस संस्था को बनाया, उस उद्देश्य का क्या होगा? सिंचाई के लिए पानी नहीं मिलता, बाढ़ से प्रोटेक्शन नहीं मिलता, बिजली भी नहीं है। हाइड्रो पावर जनरेशन करने की बात थी, लेकिन तब भी बिजली भी नहीं मिलती। वह थर्मल पावर में चला गया। जो मल्टी परपज स्कीम बनाई गई थी, उस स्कीम का क्या परिणाम हुआ ? इन सबके बारे में आपको सोचना पड़ेगा।

            दूसरा सवाल यह है कि इस साल पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण – यानी सारे भारत में बाढ़ की स्थिति भयंकर है, लेकिन पूर्वी भारत और उत्तर भारत में बाढ़ की स्थिति बहुत भयंकर है। जैसा अभी हमारे बिहार के मित्र बता रहे थे कि वहां बाढ़ से लगभग 500 आदमियों की मौत हो गयी। हर साल लगभग 1500 से 2000 करोड़ रुपया बाढ़ राहत के लिए खर्च होता है।  इसी तरह किसी की जान-माल की क्षति होती है, कैटल पापुलेशन की क्षति होती है, वह लगभग हर साल 15 हजार से 20 हजार करोड़ रुपये की होती है।  इन सारी क्षतियों को ध्यान में रखते हुए हमें कुछ न कुछ करना चाहिए। हर साल हम सदन में इस पर चर्चा करते हैं। सारे एमपीज चाहे वे कांग्रेस के हों, बीजेपी के हों या सीपीएम के हों, सब यही बात बोलते हैं। हर साल हम लोग इस पर चर्चा करते हैं लेकिन इसे सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठाते। हमारा रिलीफ मैन्युअल अंग्रेजों के जमाने से बना हुआ है। जिनका घर एकदम खत्म हो गया यानी डिस्ट्रॉय हो गया,  उसके लिए रिलीफ मैन्युअल में लिखा है  कि उनको चार हजार रुपये मिलेंगे।  जिनका डैमेज हुआ, उनको दो हजार रुपये मिलेंगे। अब आप बताइये कि चार हजार रुपये में क्या काम हो सकता है?[MSOffice69] 

आप अगर लकड़ी खरीदेंगे तो 4000 रूपए में कितनी लकड़ी मिलेगी।  रिलीफ मैनुअल में जो कुछ लिखा है, उसमें सुधार करने की जरूरत है। इसलिए मैं गृहमंत्री जी से अनुरोध करूंगा कि आप सभी राज्यों के रिलीफ मिनिस्टर्स को बुलाइए और रिलीफ मैनुअल को सुधारना चाहिए, उसे बदलना चाहिए। आज के दिन जो स्थिति है उसमें लोगों को क्या रिलीफ देना चाहिए, उसके हिसाब से रिलीफ मैनुअल को ठीक करना चाहिए।  जो नेशनल रूरल इम्प्लायमेंट गारन्टी स्कीम चल रही है, उसके बारे में आप रूरल डेवलपमेंट मंत्रालय के साथ चर्चा कीजिए।  हर पंचायत में इस स्कीम के तहत एलोकेशन मिलती है। जब नेशनल केलामिटी होती है, बड़ी क्षति होती है तो एनआरजीईएस से कम से कम 10 प्रतिशत फण्ड हर पंचायत में मिलना चाहिए जिससे अगर कहीं बहुत नुकसान हो गया है तो वहां लोगों के घर बनाने के लिए मदद दी जा सके।  उनको भी इसके अन्दर लाना चाहिए।  इसके लिए आपको अलग से कोई पैसा नहीं देना पड़ेगा। 

            मेरा दूसरा सुझाव प्रो0सोज़ साहब के लिए है कि आप CWC और GFC को यह सिखाइए कि उनको क्या काम करना चाहिए। आप उनको यह समझ दीजिए। हमारे यहां गंगा नदी की बाढ़ से इतना ज्यादा इरोज़न होता है कि गांव के गांव चले जाते हैं।  हमारे यहां मुर्शिदाबाद में पूरे गांव के गांव हुगली की बाढ़ में चले जाते हैं। बालाघाट थाना और मंगरा थाने में गांव के गांव नदी के अन्दर चले जाते हैं। यह बहुत भयानक स्थिति होती है।  इस इरोज़न को रोकने के लिए हमें प्रोटेक्शन वर्क करना चाहिए।  उसके बारे में सोचना पड़ेगा, नहीं तो जनता कैसे बचेगी, देश को आप कैसे बचाएंगे?  हर साल हम लोग इसके बारे चर्चा करते हैं, हर साल डेढ़ से दो हजार करोड़ रूपए बाढ़ राहत पर खर्च होते हैं, 15 से 20 हजार करोड़ रूपए की खेती और पशुधन की हानि होती है। 

            नेपाल से जो नदियां निकलकर हमारे यहां आती हैं, वे बिहार, उत्तर प्रदेश और हमारे कूच बिहार क्षेत्र में बाढ़ का मुख्य कारण हैं।  नेपाल से आने वाली नदियों को संभालने के लिए कुछ कदम हमें उठाना चाहिए।  इसके लिए नेपाल सरकार के साथ बातचीत करने के बारे में हर साल चर्चा होती है, लेकिन नेपाल के साथ चर्चा करने के बाद अब तक आपने क्या कदम उठाए हैं? जो इण्डो-नेपाल ट्रीटी है, उसके अन्तर्गत आप एक अथारिटी बनाइए, जो विशेष रूप से इन नदियों को संभालने के लिए काम करे।  नेपाल से निकली हुई नदियों का पानी जो हर साल बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में बाढ़ का मुख्य कारण बनता है, उसे कैसे कंट्रोल किया जाए, उसके पानी को कैसे संरक्षित किया जाए और पानी एकत्र करके कैसे हम उसे सिंचाई और बिजली पैदा करने के लिए प्रयोग कर सकें, इसके लिए एक नेशनल वर्कप्लान हमें बनाना चाहिए।  हमारे यहां नेशनल कैलामिटी रिलीफ फण्ड है, लेकिन बाढ़ की स्थिति को संभालने के लिए, जल संरक्षण के लिए, उस पानी को देश में उत्पादन के काम में प्रयोग करने के लिए, हमारे देश में पेयजल की जो कमी है, उसके लिए प्रयोग करने के लिए कोई नेशनल वर्कप्लान नहीं है। इसके लिए एक नेशनल वर्कप्लान होना चाहिए, एक नेशनल इंप्लीमेंटेशन प्लान होना चाहिए।  मैं गृहमंत्री जी से विनती करता हूँ कि आप इस पर ध्यान दें।  सभी राज्यों के मंत्रियों को बुलाकर उनसे इस विषय पर बातचीत कीजिए। इसके लिए एक नेशनल वर्कप्लान बनाइए।

[R70]  

 

 

गृह मंत्री (श्री शिवराज वि. पाटील) : सभापति महोदय, इस चर्चा की मुश्किल यह है कि हर सदस्य बोलकर यहां से चला जाता है। हम जो जवाब देते हैं, वह उनके ध्यान में नहीं आता है। इसके अलावा हम जो लिखित रूप से भी उन्हें देते हैं, वे भी उसे नहीं पढ़ते हैं इसलिए मुश्किल होती है। अभी किसी ने कहा कि किसी का घर डैमेज हो जाए तो 4,000 रुपए मुआवजे के तौर पर दिए जाते हैं। मैं कहना चाहता हूं कि यह सही नहीं है। सरकार की तरफ से 25,000 रुपए दिए जाते हैं। हमने इस पुस्तिका में लिखित रूप से सब कुछ बताया है।

            इसके अलावा एक माननीय सदस्य ने कहा कि नेशनल प्लान बनाएं, स्टेट लेवल पर भी प्लान बनने चाहिए और जिला तथा गांव स्तर पर भी प्लान बनने चाहिए। इसके लिए हमने डिसास्टर मैनेजमेंट एक्ट, डिसास्टर मैनेजमेंट प्लान बनाया है। उसके नीचे डिसास्टर मैनेजमेंट अथोरिटी भी बनाई है, जो मैनेजमेंट प्लान बनाती है। स्टेट के अंदर भी डिसास्टर मैनेजमेंट अथोरिटी बनाने के लिए कहा है। कई राज्य सरकारों ने इसे बनाया है और कुछ ने नहीं बनाया है। इसी तरह से, जिला स्तर पर भी प्लान बनाने के लिए कहा गया है। इसलिए सारी चीजें पहले से दी हुई हैं। ये सब कुछ आपने यहां बैठकर मंजूर की हैं और कानून बनाया है। इसके ऊपर ध्यान नहीं देते हुए अगर हम चर्चा करेंगे तो बात वहीं आ जाती है कि चर्चा से कुछ परिणाम नहीं होता और सारी चर्चा कागज पर ही रह जाती है। हमारा जवाब सुनने के लिए आप बैठते नहीं हैं, इसलिए मुझे बीच में आपको रोककर यह कहना पड़ रहा है।

श्री अनिल बसु : हम ध्यान से आपकी बात सुनते हैं। हमारे जिले में भी मैनेजमेंट प्लान समिति है। उसमें चर्चा तो होती है, लेकिन इम्प्लीमेंटेशन में कमियां हैं।

 

श्री मधुसूदन मिस्त्री (साबरकंठा): सभापति महोदय, मैं आपका शुक्रिया अदा करता हूं कि आपने बाढ़ पर चर्चा के लिए मुझे मौका दिया। मैं गुजरात प्रदेश से आता हूं। वहां हर दूसरे या तीसरे साल, कभी बाढ़ आती है, कभी साइक्लोन आता है या किसी न किसी हिस्से में सूखा पड़ता है। पिछले दो सालों से लगातार गुजरात में बाढ़ आ रही है। 2006 की बाढ़ तो काफी भयानक थी। उस समय हमारे सूरत शहर में कई दिनों तक राहत सामग्री नहीं पहुंचाई जा सकी थी। इतना ही नहीं, आर्मी भी वहां कई दिनों के बाद पहुंच सकी। इस साल की बाढ़ के कारण गुजरात में करीब 290 लोग मारे गए हैं। मैं इंडिविजुअल केस में नहीं जाना चाहता, लेकिन इसके जो कारण सामने आए और इतनी ग्रेविटी बढ़ी है, उस पर कुछ कहना चाहूंगा। राज्य का प्रशासन है और कितनी विकास की गतिविधियां बढ़ी हैं, उस बारे में भी कुछ कहना चाहूंगा।

17.29 hrs.

(Shri Varkala Radhakrishanan in the Chair)

            मुझे यह कहने में भी कोई दिक्कत नहीं है कि विकास के कारण भी बाढ़ की विभीषिका पर प्रतिकूल असर पड़ता है। यहां जल संसाधन मंत्री जी नहीं हैं, वह आ रहे हैं। जितना भी डैम्स में पानी भरता है और क्लाउड बर्स्ट होता है या अरेबियन सी में लो प्रोसेसिंग सिस्टम होता है, उससे भी काफी असर पड़ता है। इससे स्थिति ऐसी हो जाती है कि कुछ एरियाज ऐसे हैं, जहां  24 घंटे में 25 से 30 इंच बारिश होती है और उसकी वजह से डैम्स में पानी भर जाता है।

डैम अथॉरिटी तय नहीं कर सकती कि कितना पानी ग्रेजुअली रिलीज करना चाहिए, डेम के अंदर पानी का फ्लो कितना है? डेम के अंदर कितना पानी उस समय आ रहा है उसको देखने के लिए पहले से ही सिस्टम बना हुआ है लेकिन Somehow, every time, they faulted और एक स्टेज ऐसी आती है जब पानी का लेवल रिजर्वायर के अंदर एक दम बढ़ने लगता है।  इसकी वजह से पानी रिलीज करना पड़ता है, एक दम नदी के अंदर और चारों ओर पानी ही पानी फैल जाता है और वह पानी शहरों के अंदर घुस जाता है। यह होता है, ऐसा एक बार नहीं हुआ है। हमारे अहमदाबाद में, सूरत में, बडोदरा में और भरूच के अंदर यह हुआ है। इनके तट पर नर्मदा का बांध है, ताप्ती का बांध है, नीचे साउथ में जाएंगे तो मधुबन डैम है, साबरमती के ऊपर धरोई पर बांध है, the entire Centralised System that the Government has created in Gujarat is such that if you do not get orders from the Capital, you cannot release the water. कितनी बार देखा गया है कि जो उसे देखने वाली अथॉरिटी है कि पानी किस समय और कितना रिलीज करना चाहिए, वह समय पर काम नहीं करती है। उसका असर उस नदी के आजू-बाजू वाले गांवों पर और शहरों पर पड़ता है और इसका खामियाजा उनको भुगतना पड़ता है। इसको किस तरह से सुलझाया जाए, यह मैं नहीं जानता लेकिन मैं यहां होम डिपार्टमेंट की और सरकार की सराहना करना चाहूंगा कि राज्य सरकारों को जितनी भी जरुरी सहायता चाहिए, जो पैसा या मदद चाहिए, चाहे आर्मी पर्सनल की हो या दूसरे फोर्सेज की हो, वह समय पर पहुंची है। लेकिन स्टेट का एडमिनिस्ट्रेशन हर बार हमें फेल दिखाई दिया है। गुजरात स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट क्रीएट किया गया।  उन्होंने वर्ष 2005-2006 में कहा था कि हमारे सब प्लान तैयार हो रहे हैं और वे हुए। उन्होंने कहा कि हम कैनेडियन एजेंसी को हायर करेंगे।  वे प्लान बनें लेकिन एग्जीक्यूशन की बात जब आई तो वह नहीं हुआ। जीएसडीएमए को बोट खरीदने के लिए पैसा भी दिया गया लेकिन बोट समय से खरीदे नहीं गये और इस साल भी नहीं खरीदे गये हैं। रिजर्वर के अंदर पानी का भरना, उसको समय से रिलीज नहीं करना, एक साथ रिलीज करना और इसकी वजह से हर साल बाढ़ की परिस्थिति कितने शहरों और गांवों में आती है, इसे रोकने का सवाल आज हमारे सामने है। कानून तो हमने बना दिया है लेकिन how do we enforce it? How do we see that the people at the State level work and the officials at the State level put that into an action? It is still a very big question. यह चीज बार-बार ऊभरकर सामने आती रही है। इसको किस तरह से सुलझाया जाए, यह हमारे लिए भी एक पहेली है और इसको मैं मानता हूं।

            दूसरा जो चेहरा हमारे सामने आया है वह यह है कि ईस्ट-वैस्ट के अंदर जो क्वाड्रिलेटरल हाई-वे बने, वे दो-ढाई फीट ऊपर बने। पानी रिलीज होने के जो प्राकृतिक रास्ते थे, उनको या तो बंद कर दिया गया या उनको नापा नहीं गया, जिसकी वजह से बारिश का पानी अगर 20 इंच गिरता है तो जो प्राकृतिक रूप से पानी का निकास होना चाहिए था वह फ्लो नहीं निकलने की वजह से गांव के अंदर पानी भर गया या जहां कभी भी पानी नहीं भरता था वहां भी पानी भर गया। जहां-जहां हाई-वे बने, चाहे हमारा साबरकांठा, भरूच या खेरा डिस्ट्रिक्ट हो, सभी जगह पानी भरता गया और फ्लड की सिचुएशन पैदा हुई। [r71] 

इस वजह से बाढ़ की स्थिति और भी खराब होती गई।

            तीसरा कारण जो मुझे समझ आता है वह है कि नर्मदा नदी का पानी जो ओवर फ्लो होता है, उसे डायवर्ट करने के लिए एक बड़ी कनाल खोदी गई है। उस कैनाल के अंदर सैंट्रल गवर्नमेंट का कोई शेयर नहीं था, राज्य सरकार ने उस कैनाल को बनाने का काम किया। वह कैनाल चार साल में भी पूरी नहीं बन पाई है। वह कनाल साढ़े चार सौ से पांच सौ किलोमीटर लंबी होने की वजह से जो पानी पहले तरीके से निकलता था, वह पानी भी निकलना बंद हो गया। इस वजह से भी गांव और खेतों में पानी भरने लगा। इसका कोई रास्ता निकालना चाहिए। राज्य सरकार इन कार्यों को करती है। The Central Government has to work through the States and State Disaster Management Authorities. इसलिए केंद्र के लिए जो चुनौती है, वह यह है कि आप पैसा दे सकते हो, मैन पॉवर दे सकते हो, आप प्लान बनाने के लिए कह सकते हो, लेकिन वह प्लान प्रभावी ढंग से क्रियान्वित होगा, यह बहुत बड़ा सवाल खड़ा होता है। मैं इसी साल का उदाहरण दे रहा हूं। मेरे दोस्त कृपया हल्ला न करें। इस साल गुजरात के अंदर बहुत बारिश हुई है। हमारे यहां पूरा प्रशासन सैंट्रेलाइज हो गया था, चीफ मिनिस्टर के हाथ में ज्यादा-से-ज्यादा शक्तियां थीं। जब बहुत बारिश हुई थी, तब चीफ मिनिस्टर स्विटजरलैंड में थे। उनके या सीएम हाउस के मार्गदर्शन के बावजूद कोई एक्शन नहीं लिया गया। यहां तक कि प्रभावित इलाकों में रिलीफ मैटीरियल भी नहीं दिया गया। हर रोज लोग मरते गए। ऐसी स्थिति में चीफ मिनिस्टर पांच घंटे पहले अपनी यात्रा समाप्त करके गुजरात पहुंचे। बिंदु यह है कि पूरा सैंट्रेलाइज सिस्टम होने की वजह से राहत कार्य में देरी हुई। जैसे वर्ष 2006 के अंदर हमारे पास 1100 करोड़ रुपया था, जो पहले का था और 500 करोड़ रुपया सरकार ने तुंत दिया था, जब हमारी यूपीए की चेयरपरसन सूरत के दौरे पर आई थीं। बाद में 200 करोड़ रुपया और दिया, कुल 700 करोड़ रुपया दिया, लेकिन उन रुपयों का पूरा यूटीलाइजेशन नहीं हुआ। केंद्र सरकार ने घोषणा कि थी कि जो लोग मारे गए हैं, उन्हें सरकार की ओर से दो लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा। बहुत बेहूदे रीजंस सामने आए, हमें इस वजह से बहुत हैरानी हुई, जिसकी फाइल डिजास्टर मैनेजमेंट अथोरिटी की तरफ से केंद्र सरकार को भेजी गई। वह पैसा दिया गया। लेकिन वह फाइल भेजनी है या नहीं भेजनी है, इसे डिजास्टर मैनेजमेंट अथोरिटी का डायरेक्टर तय करता है। मैं बताना चाहता हूं कि एक बार आदिवासी इलाके में बारिश की वजह से पानी भर गया। एक आदिवासी वहां से क्रास करने गया, प्रशासन की तरफ से कहा गया कि आप क्रास मत कीजिए। उसे घर जाना था, इस कारण वह क्रास करने लगा और पानी में बह कर मर गया। उसके परिवार वालों ने मुआवजे के लिए जब आवेदन किया, तब गुजरात सरकार ने लिखित उत्तर दिया कि इस आदमी को कहा गया था कि पानी में मत जाओ, फिर भी वह पानी में गया, इसलिए यह मुआवजे का हकदार नहीं है।

            इसमें आतिशयोक्ति का सवाल नहीं है। एक जगह पर तालाब में पानी भरने की वजह से दो बच्चों की डूबने से मौत हो गई। उन्हें भी मुआवजा नहीं देने के लिए यही रीजन दिया गया।[R72] 

            अब मैं पॉलिटिक्स पर आता हूं। आपने पॉलिटिक्स किस तरह यूज किया, उसके बारे में बताना चाहता हूं। केन्द्र सरकार ने गुजरात सरकार को राहत कार्यों के लिए पैसा दिया। राहत पहुंचाने की सामग्री के ऊपर भारतीय जनता पार्टी ने अपनी स्टैम्प लगा कर और कमल का साइन करके सब लोगों को बांटा। यह गुजरात सरकार ने पैसे नहीं दिए थे। हर जगह कमल खिलता नहीं है, वह मुरझा भी जाता है।..( व्यवधान)आप उधर बैठे हैं इसलिए आपको बचाव करना पड़ रहा है लेकिन हकीकत यह है कि जो डयू क्रैडिट केन्द्र सरकार को देना चाहिए उसके बजाय वहां की राज्य सरकार केन्द्र सरकार की कमियां दिखा कर अपना फेलियर छुपा रही है। …( व्यवधान) मैं कहना चाहता हूं कि केन्द्र सरकार की तरफ से कोई मैकेनिज्म तैयार किया जाए ताकि अगर केन्द्र सरकार कोई राशि राज्य सरकार को देती है, उसका ठीक तरह से यूज हुआ या नहीं, इसका पता लगाया जा सके। उसमें किस को कितना पैसा मिलेगा, वह राज्य सरकार तय करती है – जैसे सस्टेनन्स एलाउंस है, उसके पूरे पैसे नहीं मिलते हैं, सर्वे करने के बाद 10 दिन के बाद देते हैं, 12 दिन के बाद देते हैं या 15 दिन के बाद देते हैं। मैंने डिजास्टर का काफी काम किया है, इस वजह से ये सब बातें कह रहा हूं। बारिश की वजह से लोगों के घर अक्सर टूट जाते हैं। मैंने देखा है कि तारपोलिन शीट दो-तीन महीने के लिए ऐसा इनस्टूमैंट बन जाती है कि जिससे टैम्पररी शैल्टर खड़ा किया जा सकता है, लेकिन राज्य सरकार ऐसा कुछ काम नहीं करती है कि जल्दी से जल्दी उनको अच्छी तारपोलिट शीट दे सके। अगर आप इस बारे में कुछ राहत पहुंचा सकें तो अच्छा होगा।

            सीआरएफ के पैसे राज्य सरकारों को दिए गए हैं। …( व्यवधान)इस किताब के अन्दर सब कुछ दिया है, आप चाहें तो देख सकते हैं।  गढ़वी साहब, अगर आपने यह किताब पढ़ी नहीं है तो पढ़ लें। मैं आपको यह भी कहना चाहता हूं कि गुजरात में आपकी सरकार गलत बात कह रही है कि उसने कान्टीजैंसी फंड से पैसा लेने के लिए एप्लाई किया है लेकिन यह डॉक्यूमैंट कह रहा है कि गुजरात सरकार ने आठ दिन तक एप्लाई नहीं किया और आपने आठ दिन तक केन्द्र सरकार से इस बारे में पैसे नहीं मांगे। वहां  इलैक्शन  होने जा रहे हैं इसलिए आप लोगों को गलत बात कह रहे हैं कि गुजरात सरकार केन्द्र सरकार से पैसा मांग रही है और केन्द्र सरकार दे नहीं रही है। सीआरएफ में एक हफ्ता एडवांस पैसा देने का भी प्रावधान है। गुजरात सरकार को जितना पैसा खर्च करना चाहिए था, उतना उसने खर्च नहीं किया। इतना ही नहीं उसने गरीबों और मालदारों के बीच भेदभाव किया। सबसे ज्यादा पैसे इंडस्ट्री वालों को दिए गए और सबसे कम पैसे उन गरीब लोगों को जिन का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ, दिए गए। ऐसा इसलिए किया कि गुजरात सरकार 5-7 उद्योगपतियों को, जिन को नुकसान हुआ, खुश करना चाहती है और उससे आगे जाना नहीं चाहती है।…( व्यवधान)

            मेरा कहना है कि सीआरएफ की कड़ी मॉनिटरिंग होनी चाहिए। सूरत में जो पैसा दिया गया, वह उसका ऑडिट प्राइवेट ऑडिटर से करवा रही है, उसका गवर्नमेंट ऑडिट नहीं हो रहा है। वहां के एमएलएज ने असेम्बली में कहा है कि इसे प्राइवेटली कैसे ऑडिट करवाया जा रहा है, इसका पूरा हिसाब किया जाए और पूरे खर्चे का हिसाब असेम्बली में दिया जाए। सीआरएफ के पैसे का हिसाब अभी तक नहीं दिया गया है। केन्द्र सरकार की ओर से पिछले वर्ष जो 700 करोड़ रुपए दिए गए थे, उसका भी हिसाब आज तक नहीं दिया गया है। मेरा कहना है कि यह पैसा अच्छी तरह यूज नहीं किया गया है। इसलिए गुजरात सरकार ने इस वर्ष एनसीसीएफ में से कोई पैसा नहीं मांगा है।  यह गुजरात सरकार की असफलता है। मैं बार-बार एक ही मुद्दे पर आ रहा हूं कि आप नेशनल डिजास्टर मैनेजमैंट एथॉरिटी से इंश्योर करवाइए कि जिन को मदद के लिए पैसा दिया जाता है, उसका बराबर यूज होता है या नहीं होता है, इसे देखा जाए।  

अगर सही यूज नहीं होता है तो इस पर एक्शन लीजिए। लेकिन मैं ऐसा मानता हूं कि हम उसको कम से कम एक्सपोज़ तो कर सकते हैं। इसमें कोई इलाका बाकी नहीं है। जहां ट्राइबल या निचला हिस्सा है, जहां पानी भरा है, फ्लड की सिचुएशन आई है, वहां पर परिस्थिति चार या छः महीने में सामान्य नहीं होती है। वहां एग्रीकल्चर क्रॉप खराब हो जाता है, उनको उसके जितने पैसे मिलने चाहिए, वे आज तक नहीं मिले हैं। रिलीफ मैटिरियल के संबंध में स्थिति यह है कि जैसे मेरा घर चला गया लेकिन किचन घर के बाहर है तो मुझे घर के पैसे मिलेंगे, किचन बाहर है तो किचन के पैसे नहीं मिलेंगे क्योंकि जो घर की व्याख्या है उसमें अगर किचन बाहर है तो वह व्याख्या में नहीं आता है, राज्य सरकारों ने ऐसे कितने नॉर्म्स तैयार किए हैं।  These norms require a thorough review from the Union Government. मेरा निवेदन है कि इस संबंध में एक्शन लिया जाए। मैं आपको और आपके डिपार्टमेंट को फिर से धन्यवाद देता हूं कि गुजरात सरकार ने कितने पैसे यूज किए, यह मुझे पता नहीं लेकिन बाढ़ में केंद्र सरकार ने लोगों की मदद की है और आपने कोई भेदभाव नहीं किया।

            मैं इन्हीं शब्दों के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं। 

 

 

SHRI TAPIR GAO (ARUNACHAL EAST): Hon. Chairman, Sir, every year this House discusses about the flood situation in the country.  But whatever Mistry ji has said during the past 25 minutes, we are discussing only about emergencies where we are talking only about relief.   But, here, I would like to draw the attention of the Government of India that this is an issue where every year we are losing our national properties, human lives, livestock and what not.  Why are we not taking up remedies to solve this problem and not to face the consequences every year? Rightly the hon. Home Minister has pointed out that we have passed a law in this House, namely, the Disaster Management Act.  Before the arrival of monsoon in this country, up to what extent the disaster management at the Central level, at the State level and at the district level has been activated to face this consequence in Bihar, UP, Assam, Gujarat and in the Southern part of this country? For the disaster management, we have passed the law that we must have paramilitaries well-trained to face this sort of consequence. We must have medical teams, medicines, and essential commodities at the places where the floods and other disasters are taking place.  Daily we are hearing about loss of human lives.  Even the rescue teams, even the Army personnel and the paramilitary personnel are also drawn in such operations.  After passing this Disaster Management Act, after constituting the disaster teams, we are yet to activate it at the Centre, at the State level and at the district level.  It needs to be activated.

            I would like to ask the concerned Minister to tell while he replies that before monsoons, before taking place of such floods in Bihar and in other States in the North-Eastern Region, how many teams of paramilitaries and Armed Forces have been readied to face this challenge? How many helicopters, motorboats, doctors, medicines, and how much ration have been accumulated to come forward in this situation?  We need to evaluate and monitor these disaster management teams in this country. Prevention is better than cure[r73] . 

[R74] 

            This is a national loss.  Every year we are facing this situation.  The flood water came to Bihar and UP.  It comes from the Himalayas and Nepal.  Where from water in Assam has come?  It comes from the main tributaries of Brahmaputra, Arunachal Pradesh and Nagaland.  So, what are the remedies?  If the Government of India is having a Treaty with the Nepal Government, then I would like to know as to why it is being delayed and also why it is not being activated to resolve the flood situation in Bihar and UP.  What is the progress of the Indo-Nepal Treaty for construction of dams or water reservoirs to resolve the flood situation in UP and Bihar? 

            I would like to draw one very interesting aspect.  I feel that a kind of deprivation has been made to my State, Arunachal Pradesh.  When flood comes every year during the monsoon season, the hon. Ministers – the Water Resource Minister, maybe the Prime Minister, and the hon. Chairperson of the UPA, Madam Sonia Gandhi – used to visit Assam only. Of course, Assam face the major consequences and damages at the time of flood but the Government of India is not trying to find out where from this water comes.  All the major tributaries of Brahmaputra come from Arunachal Pradesh. We need to do a lot of homework before the monsoon season in the North Eastern Region; we need construction of water reservoirs in the State of Arunachal Pradesh; we need to construct major dams in the main tributaries of Arunachal Pradesh; and we need to construct water protections, flood protections and embankments inside Arunachal Pradesh.  Only then we can get major solutions for the flood situation in Assam.

            Now, I would like to stress one point with the Government of India.  Now, sedimentation takes place during flood and it spreads to Assam.  Why can the Government of India not use dredging of the river course in the winter season so that the over-flooded water may not spread to the plains in Assam.  This is a very important scientific way.  During the British days, this dredging of river course had taken place in the north eastern parts of the country, and it may be applicable in Bihar, UP and Nepal borders also. 

            Now, as a part of relief to that part of the North Eastern Region, the hon. Home Minister has rightly mentioned that a sum of Rs. 25,000 would be given to the person whose house has been totally damaged. I would like to know how much money has been given to the Government of Arunachal Pradesh.  In this monsoon season, six districts of Arunachal Pradesh have been totally affected by this flood.  The only problem is that the flood in Arunachal Pradesh has changed the geography.  The entire roads, the bridges and the infrastructure were washed away within a few hours of rainfall, but the Central Team never reached that place.  I would like to give one example.  In my Parliamentary constituency, there is one district, Dibang Valley. The major bridge which is the only way to reach that district headquarter has been totally damaged by this flood within a few hours of rainfall. Now, for months together, upper Dibang district remains cut-off from the rest of the country.  Even the essential commodities and the doctors could not reach that district because the Air Force helicopters could not be operated in the Himalayas due to cloud and rain. [R75] 

            Therefore, this sort of relief should be extended to Arunachal Pradesh, Nagaland and other Himalayan States. Recently, in Himachal Preadesh, the cloud got burst and major floods came out there and so many houses and roads got washed away. These natural disasters are happening in all the years in the hilly States, in the North-Eastern Region.  Therefore, it is my request that there should not be any discrimination to the smaller States, specially, the hilly and the Himalayan States of the North-Eastern Region.  Therefore, I would urge upon the Government of India to please do not neglect the hilly States of the North-Eastern Region.  Assam should be compensated with a heavy amount.  It is the rightful demand of the people of Assam.

            Water source should also be calculated thoroughly and the inputs for remedial measures be worked out.   The State where major waters came out due to floods is Assam.  I would like to suggest and request to the Government of India that a proper monitoring should be done in these relief operations. I had the opportunity to sit in the Lok Sabha TV Channel with the hon. Minister of Water Resources a few hours ago. One hon. Member from Assam was highlighting the problem that floods are taking place. The livestock are drowned, people are dying but the Government of India is seeking the Utilisation Certificates of the previous funds allocated to that State.

            My point is that when the people are dying, States, viz., Bihar, Gujarat, UP and others are facing emergency situations, you need an explanation of previous funds allotted to those States!   There may be such a system evolved that, you may take the account of the expenditures after the Monsoon is over, but when the relief issues  such as deputation of army, deputation of doctors, taking relief measures, providing essential commodities and other expenditures are arising, you need not seek the Utilisation Certificates from the concerned State Governments.    There is a need for taking up measures for immediate relief to the affected people.

            Now, after the floods, there is a danger of epidemic breaking out in the affected areas.  Right now, flood situation is serious in Bihar and Assam.  How many doctors are being readied by the Disaster Management to face the challenge of epidemic after the floods?  How many relief materials have been readied for the restoration andconstruction of the buildings, highways and the bridges in the flood affected areas?  All these things need to be highlighted and told to the nation that the Disaster Management Authority is really working on the ground to face such challenges.

            With these few words I conclude. 

MR. CHAIRMAN :  Hon. Members, it is 6 o’ clock.  Now, I have to take the sense of the House.  We have about 50 more speakers to take part in this discussion.  If you all agree, the time for the discussion may be extended by one hour today.

THE MINISTER OF STATE IN THE MINISTRY OF CHEMICALS AND FERTILIZERS AND MINISTER OF STATE IN THE MINISTRY OF PARLIAMENTARY AFFAIRS (SHRI B.K. HANDIQUE):  Yes, Sir, the time may be extended for the discussion.

SOME HON. MEMBERS:  Yes, Sir… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: So, the time of the House is extended by one hour.

… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: But it does not mean that the Members can take their own time.  They must limit their speeches.  It is true that we have extended the time.  But even by extending the time by one hour today, we would not be able to finish the debate today. So, please bear in mind the time constraint.

            Now, I am calling Shri Shailendra Kumar to speak. You have to be very brief and to the point.[r76] 

18.00 hrs.

(Dr. Laxminarayan Pandeya in the Chair)

 

श्री शैलेन्द्र कुमार (चायल)  :  सभापति महोदय, प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा और श्री हन्नान मोल्लाह ने नियम 193 के अंतर्गत बाढ़ से उत्पन्न स्थिति पर चर्चा करने के लिये विषय उठाया है, मैं उनका आभारी हूं। मैं आपके माध्यम से कहना चाहता हूं कि गृह मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और जल संसाधन मंत्री का इससे सीधा संबंध है। यह सत्य है कि सदन में पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ के सदस्यों ने अपनी बात विस्तार से रखी है। अगर इस बाढ़ की स्थिति के साथ साथ सूखे की स्थिति पर भी विचार-विनिमय होता तो मेरे ख्याल से बहुत ही उत्तम होता। उत्तर प्रदेश में पश्चिम के ऐसे बहुत से इलाके हैं जो सूखे की स्थिति से जूझ रहे हैं। इसका मुख्य कारण जनसंख्या में दिनोदिन वृद्धि होना है। आज शहरों में बिलडर्स निर्माण कार्य कराते जा रहे हैं लेकिन  पानी की निकासी के साधन की व्यवस्था नहीं करते हैं। इसके साथ साथ कस्बों और देहातों में तालाबों की न तो खुदाई होती है और न नालों की सफाई ही हो पाती है। इस कार्य के नाम पर लाखों-करोड़ों रुपया चला जाता है। भ्रष्टाचार का बोलबाला होने के कारण आज बाढ़ की हालत हमारे  सामने है।

            सभापति महोदय, जब नदियां उफान पर होती हैं, उसके बाद बालू भर जाने से उनका खनन कार्य किया जाना चाहिये। अगर यह कार्य जोरदार तरीके से किया जाये तो हम बाढ़ की समस्या से निजात पा सकते हैं। इसलिये नदियों को जोड़ने की बात कही जाती रही है। जहां पानी नहीं होता है, वहां नदियों को डायवर्ट करके पानी पहुंचाया जा सकता है। इससे बाढ़ की स्थिति रुक सकती है। इस कार्य की शुरुआत उत्तर प्रदेश से की गई है। अगर देखा जाये तो मालूम होगा कि असम,मेघालय, हरियाणा, उतराखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मुम्बई में आंशिक रूप से बाढ़ की स्थिति है। जहां तक उत्तर प्रदेश की स्थिति है, मैं माननीय गृह मंत्री जी को अवगत कराना चाहूंगा कि बाढ़ से 20 जिले बुरी तरह से प्रभावित हैं। वहां सैंकड़ों जानें जा चुकी हैं। सरकारी आंकड़े 205 की संख्या बता रहे हैं और 1404 गांव बुरी तरह बाढ़ से डूबे हुये हैं। 72 हजार से ज्यादा मकान धराशायी हो गये हैं और 50 करोड़ रुपये से ज्यादा की हानि हुई है। आज समाचार पत्र में आया है कि पिछले 24 घंटों में बाढ़ से 17 मौतें और हुई हैं। उत्तर प्रदेश में नदियां बाढ़ के कारण खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। इसका मुख्य कारण है कि  जब नेपाल और उतराखंड में बारिश होती है, उसका पूरा पानी गंगा, यमुना और उसकी सहायक नदियां – शारदा, बूढ़ी गंडक, बेतवा राप्ती, घाघरा में आता है। इससे उत्तर प्रदेश में बाढ़ की स्थिति भीषण हो जाती है।

            सभापति महोदय, उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिले बाढ़ से बुरी तरह से प्रभावित हैं। गोरखपुर, बस्ती, देवरिया, कुशीनगर,मऊ वगैरा 8-10 मंडलों के लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। केन्द्र सरकार ने  300 करोड़ रुपया बाढ़ राहत कार्यों के लिये दिया है। राज्यों सरकारों के लिये बुकलैट दी गई है, जहां उन्हें आपदा प्रबंधन से निपटने के लिये बताया गया है। बाढ़ की भीषण स्थिति के कारण जहां बदइंतजामी है। वहां आपदा प्रबंधन  ने उसकी पोल खोल दी है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के 20 जिलों में कम से कम 4 लाख हैक्टेयर भूमि बाढ़ की चपेट में है जहां खड़ी फसलें बिलकुल बरबाद हो रही हैं। गंगा-यमुना के बीच का क्षेत्र जिसे दोआबा कहते हैं, उसमें मेरा संसदीय क्षेत्र चायल पड़ता है, जहां की हज़ारों बीघे जमीन की फसलें नष्ट हो रही हैं। गंगा नदी की तराई में लेहदरी, सांतो, हब्बूनगर, शहजादपुर, तरसौरा, संदीपन, पल्हाना, फतेहपुर घाट जैसे इलाकों में किसान मूंगफली, बाजरा, शकरकंद और तिल्ली की खेती करते हैं, जो बाढ़ से प्रभावित होने के कारण नष्ट हो गई है।[s77] 

            जहां आज हम बाढ़ की स्थिति पर चर्चा कर रहे हैं, वहीं हमें सूखे की स्थिति पर भी ध्यान देना पड़ेगा और उससे भी निपटने का रास्ता ढूंढ़ना पड़ेगा। राज्यों से आपके पास रिपोर्टें आएंगी। कौशाम्बी, फतेहपुर, इलाहाबाद और खासकर उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में खरीफ़ की 60 प्रतिशत फसलें बरबाद हुई हैं। 50 प्रतिशत गेहूँ बोया भी नहीं गया है और 30 से 50 प्रतिशत किसान रोज़गार के लिए दूसरी जगह पलायन कर गए हैं जहां मज़दूरी करके वे अपने परिवार का पेट भर रहे हैं। आज भी उस एरिया में कृषि योग्य भूमि पर केवल 42 प्रतिशत में सिंचाई की व्यवस्था है। मैं गृह मंत्री जी को बताना चाहूंगा कि 2006-07 में डीपीएपी कार्यक्रम में 360 करोड़ रुपये का प्रावधान आपने किया है। 31.1.2007 तक 15.38 लाख हैक्टेयर क्षेत्र को शामिल करने की योजना है। मैं बताना चाहूंगा कि 3076 नयी परियोजनाओं को भी उसमें शामिल किया गया है। मैं आपके माध्यम से गृह मंत्री जी से निवेदन करना  चाहूंगा कि बाढ़ग्रस्त और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में केन्द्र की एक टीम भेजें जो सही मायनों में देखा जाए तो पहले से ही चिह्नित है। हम हर साल सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि, चक्रवात, सुनामी और भूकंप जैसी आपदाओं पर विस्तार से चर्चा करते हैं। मैं चाहूंगा कि आपके पास जो टीम है, आप उसे वहां अवश्य भेजें ताकि प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्य तेज़ी से पहुँचाया जा सके। आप मॉनीटरिंग भी करें। राज्यों को आप जो पैसा देते हैं, उसमें भी मॉनीटरिंग करनी चाहिए कि वहां पर राज्य सरकारें खर्च कर रही हैं या नहीं। आपके आंकड़े बता रहे हैं कि आपने पैसे दिये हैं लेकिन राज्य सरकारें खर्च नहीं कर पा रही हैं, राहत कार्य नहीं पहुँचा पा रही हैं। इसकी मॉनीटरिंग होनी चाहिए। ज्यादातर ग्रामीण इलाके इस बाढ़ से प्रभावित हुए हैं।  आज ज़रूरत इस बात की है कि किसानों का कृषि बीमा और लगान माफ किया जाना चाहिए, पशुओं के चारे की व्यवस्था की जानी चाहिए, मकानों की मरम्मत का कार्य किया जाना चाहिए क्योंकि बहुत से मकान धराशायी हो गए हैं। स्वास्थ्य केन्द्रों का भी इंतज़ाम करना चाहिए क्योंकि बाढ़ के बाद बीमारियां फैलती हैं। तमाम ऐसी बीमारियां हैं, जैसे डायरिया है जो प्रदूषित पानी से फैलता है और उससे गांव के गांव प्रभावित हो जाते हैं। ऐसी बीमारियां एक प्रकार से महामारी का रूप ले लेती हैं। हमारे स्वास्थ्य मंत्री जी भी यहां बैठे हैं। मेरा ऐसा मानना है कि जब बाढ़ की स्थिति पर चर्चा हो रही है और जल संसाधन मंत्री जी, गृह मंत्री जी और स्वास्थ्य मंत्री जी भी यहां बैठे हैं, तो वे इन सब व्यवस्थाओं को देखें और खासकर जो प्रभावित परिवार हैं, जिनके घर गिर गए हैं, उनके रोज़गार की व्यवस्था अवश्य करें। राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी कार्यक्रम की व्यवस्था आपने पूरे देश में की है। कुछ जिलों में लागू की है, कुछ जिलों में लागू नहीं की है। इस योजना को आप वहां अस्थायी तौर पर लागू करके प्रभावित लोगों को रोज़गार देने की व्यवस्था करें ताकि वेह अपने परिवार को पाल सकें और अपना जीवन स्तर उठा सकें।

            इन्हीं शब्दों के साथ मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मुझे इस विषय पर बोलने का मौका दिया।

                                                                                                                       

 

श्री भुवनेश्वर प्रसाद मेहता (हज़ारीबाग):माननीय सभापति महोदय, बाढ़ की स्थिति पर सदन में चर्चा हो रही है। देश के लगभग दस राज्यों में – बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, गुजरात, असम, केरल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में इस साल बाढ़ आई है। जब भी बाढ़ आती है तो हम लोक सभा में इस पर चर्चा करते हैं। बाढ़ आने के पहले राज्य सरकारों या केन्द्र सरकार द्वारा बाढ़ से निपटने के लिए जो उपाय करने चाहिए, वे नहीं किये जाते हैं। अभी हम बिहार के दो जिलों का दौरा करके आए। हमारे साथ लोक सभा के माननीय सदस्य अप्पा दुरई जी भी थे। हम बेगूसराय और खगड़िया जिलों में गए। बेगूसराय में बूढ़ी गंडक का बाँध टूट गया था जिसके चलते लगभग 65 पंचायतें जलमग्न हो गईं। ऐसा लगता था जैसे वह समुद्र हो गया है। इसी तरह से खगड़िया में भी बाढ़ की वही लीला है। वहां का करीब तीन-चौथाई हिस्सा जलमग्न हो गया।  बिहार में करीब 20 जिलों में बाढ़ आई जिसमें दस जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।[H78] 

            इसी तरह से पूर्वी उत्तर प्रदेश और दूसरे जिस राज्य की हमने चर्चा की है, सब जगह बाढ़ आई है। वहां जो राहत का सामान समय पर पहुंचना चाहिए। मैंने जैसे अभी कहा कि जब बाढ़ आती है तो हम चर्चा करने लगते हैं, तब राज्य सरकारें और केन्द्र सरकार भी जाग जाती है। केन्द्र से भी लोग दौरा करने लगते हैं कि कैसे बाढ़ का सामना किया जाए, कैसे इससे निपटा जाए, इसकी चर्चा करते हैं। बाढ़ से पहले केन्द्र सरकार और राज्य सरकार को जो योजना बनानी चाहिए, वह योजना नहीं बनती है, मालूम नहीं पड़ता है और एकाएक बाढ़ आ जाती है। जब हर साल बाढ़ आती है तो  इसके लिए लोगों को पहले से तैयारी करनी चाहिए। अब बिहार में श्रीमती सोनिया गांधी जी गईं और हमारे गृह मंत्री जी भी गए, सब लोग बिहार में गए। ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि बिहार में इस साल बाढ़ आई, दूसरे साल नहीं आएगी। यह अलग बात है कि कुछ क्षेत्रों में पहले आती है, कुछ क्षेत्रों में बाद में आती है, लेकिन बाढ़ आती हर साल है। उसी तरह से दूसरे राज्यों में भी बाढ़ आती है, लेकिन इसे फेस करने के लिए कैसे बाढ़ से निपटा जाए, इसकी तैयारी पहले से होनी चाहिए, जो नहीं हो पाती है। हम आपसे कहना चाहते हैं कि आप जो पैसा देते हैं, मैंने खुद जाकर देखा कि 25 जुलाई को वहां बाढ़ आई, लेकिन पांच अगस्त तक वहां कोई भी राहत का काम नहीं किया गया। वहां कितने दिन से लोग भूखे मर रहे हैं, उनके लिए नाव, तिरपाल आदि चीजों का कोई इंतजाम नहीं। वहां लोग भूख एवं प्यास से मर रहे हैं, उनकी किसी को कोई चिन्ता नहीं है। बिहार में साढ़े तीन सौ से ज्यादा लोगों की बाढ़ के कारण मृत्यु हुई है, इसी तरह से अन्य राज्यों में भी हुई हैं। अगर इसी तरह से होता रहा तो बाढ़ आती रहेगी और लोग मरते रहेंगे। आप रिलीफ का काम चालू करते रहेंगे, थोड़ा-बहुत पहुंचाते रहेंगे, इससे बाढ़ की समस्या का समाधान नहीं हो सकता है, जब तक इसका स्थाई समाधान नहीं ढूंढा जाएगा।

            महोदय, मैं 1991 में भी पार्लियामेंट में था। उस समय भी बिहार के बारे में बाढ़ की चर्चा होती थी। नेपाल से जो नदियां आती हैं, उसी के चलते बिहार में बाढ़ आती है और बिहार के साथ-साथ यूपी में भी बाढ़ का पानी चला जाता है। उस समय भी चर्चा होती थी कि नेपाल सरकार से बात करनी चाहिए। नेपाल सरकार से बात करके जो बहुउद्देशीय योजना है, उसे लागू करना चाहिए। 15-16 वर्ष बीत गए हैं, लेकिन उस पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। इस समय मंत्री जी यहां बैठे नहीं हैं, मैं उनसे कहना चाहता हूं कि नेपाल सरकार से जितनी जल्दी हो सके, उनसे बात कीजिए और जो बहुउद्देशीय योजना है, जिसकी चर्चा हर बार पार्लियामेंट में होती रहती है, उसे लागू कीजिए, नेपाल में पानी को रोकिए, थर्मल पावर स्टेशन बनाइए और सिंचाई की व्यवस्था कीजिए। उसी पानी को बिहार में लाइए ताकि बाढ़ की समस्या का स्थाई समाधान हो सके, नहीं तो बाढ़ की समस्या का समाधान नहीं होगा। मैं इस बार बाढ़ की लीला बिहार में देख कर आया हूं, वहां जो बांध टूटा है उसमें उस गांव के डेढ़ सौ घर एक साथ बह गए। वहां साढ़े तीन सौ लोगों की मृत्यु हुई है। दूसरे राज्यों में भी इसी तरह की लीला हुई है। इसलिए इसका कहीं न कहीं स्थाई समाधान ढूंढना होगा। हम केन्द्र सरकार के गृह मंत्री जी से कहना चाहते हैं कि जहां बाढ़ आती हैं, वहां के मुख्य मंत्रियों को बैठाइए, सभी मुख्य मंत्रियों को बैठा कर इसके स्थाई समाधान की बात सोचिए ताकि हर बार ऐसा न हो। मैंने बेगुसराय के जिला कलेक्टर से पूछा कि आप बाढ़ पीडितों की सहायता क्यों नहीं कर रहे हो तो उन्होंने कहा कि मेरे पास साधन नहीं हैं और ऐसे में यह भी होता है कि इसको देना है, इसको नहीं देना है, जिसकी चर्चा अभी एक माननीय सदस्य ने की थी, जब कि बाढ़ में सब लोग प्रभावित होते हैं। किसी की पांच एकड़ जमीन है, किसी की तीन एकड़ जमीन है और किसी के पास नहीं है, अगर यह देखा जाएगा तो हम समझते हैं कि बाकी जो पांच एकड़ वाला है, उसका क्या कसूर है। उसका तो खेत, मकान सब कुछ चला गया, तब तो वह भीख मांगेगा। इसलिए आपका जो यह नियम है, उसे आप बदलिए और बाढ़ से जो प्रभावित होते हैं, उन सभी लोगों को आप सहायता पहुंचाएं।

           

            जहां तक नदियों की बात है, अभी एक माननीय सदस्य चर्चा कर रहे थे। पूर्वांचल, पश्चिम बंगाल एवं अन्य राज्यों के मंत्रियों को बैठा कर एक नीति बनाइए और बाढ़ से निपटने के लिए एक स्थाई समाधान ढूंढिए, नहीं तो हर बार बाढ़ आएगी और नुकसान होगा, रिलीफ के काम से समाधान होने वाला नहीं है, इसलिए इसके लिए कोई स्थाई समाधान कीजिए। यही केन्द्र सरकार से और मंत्री जी से हम कहना चाहते हैं, यह कह कर मैं अपनी बात समाप्त करता हूं।                                                                                                                                                                                                         [rep79]             

 

 

 

 

SHRI BRAHMANANDA PANDA (JAGATSINGHPUR): Respected Chairman, Sir, I am very grateful to you for allowing me to participate in this debate which is on a very sensitive issue like the flood situation in the country.  As you are aware, Indian economy is severely affected because of recurrent floods.  Unless a permanent solution is found, situation is likely to worsen and our dreams of being a strong and prosperous nation can never be achieved.

MR. CHAIRMAN : Shri Brahmananda Panda, please speak in English. 

SHRI BRAHMANANDA PANDA : Mr. Chairman, Sir, I extend my hearty thanks for giving me an opportunity to speak on the sensational issue.  As you know, every year the people of India are subjected to heavy floods as a result of which there is a huge loss of human life and valuable properties. 

            I represent the State of Orissa which is one of the most backward States of the country.  The present UPA Government is giving importance for all round development of the country.  It is the duty of the Centre to ensure that Orissa is not discriminated.  As you know, we have been constantly facing floods, supercyclone and drought as a result of which the financial backbone of the State has led to a collapsing state. We feel proud that our State is full of natural resources.  We have vast iron ore reserves but most of the people of my State depend on agriculture. Agriculture is their only source of income.  But due to constraints and the threat of floods, the normal life of the people of this State has been paralysed.

 

 

*English translation of the speech originally delivered in Oriya

Last year, there was a heavy flood in Orissa as a result of which there has been huge loss; of life and property. As you know, 47.13 per cent of people are living below the poverty line and the State of Orissa  is dominated by the Scheduled Caste and the Scheduled Tribe population. My leader Shri Biju Patnaik, the then international hero has rescued Indonesia Supremo from the clutches of the Dutch soldiers.  In his name, my party has been named to see and realise that while India prospers and and Orissa is not neglected. 

Though there is a demand of Rs.3,000 crore from the Chief Minister of Orissa last year for providing relief to flood victims and for extending other financial assistance to the flood victims, it is really shocking that the Government of India has extended only Rs.25 crore as a financial package. This has hurt the sentiments of the people of the State.  We agree that India should prosper and all the other States should also get benefits.  We have nothing to say about that.  When our national leaders are rushing to Andhra Pradesh and Maharashtra, they have an equal responsibility to rush to Orissa where common people and the poorest people of the country are suffering a lot.  That is why, my humble appeal to this august House is, some permanent measures should be undertaken to overcome the flood situation in the State. [r80] By making this arrangement, we are going to only help them.  It is pity to note that the benefits are going to the middlemen and not to the genuine poor and needy.

            I had been to my constituency recently and I found that there are heavy floods; people are not able to come out of their houses. As you know, no financial help was extended to the Government of Orissa yet. It is only trying to extend all the financial help to the people of the locality. Similarly, people of North Orissa and South Orissa have been severely affected due to the recent fresh floods and their normal lives have also been paralysed. Five districts from these regions and none from others have been severely affected. In this context, I would like to appeal that a permanent national programme should be undertaken to control floods.

            My second point is that adequate financial assistance should be given to the poor people in the affected areas; the agriculturists and those who have lost their paddy crops must be adequately compensated by extending financial help. You will find different rivers rising now-a-days. That is the acute problem. The rivers are flooding because they are filled with sands and no permanent measure is taken to dredge those rivers. That is why, there is a proposal that there must be an inter-river connectivity. The dredging of rivers has become the most essential part, failing which people have to suffer in this way.

            During low pressure seasons – as you know, Orissa had been subjected to low pressures about 14 times last year and this year also, we have faced low pressures – carrying heavy floods; and people are not able to maintain their normal lives. In such circumstances, I would like to tell the Union Government that by discussing the matter here or by making sweet announcements, we cannot remove the sufferings of the common people of this country. It is high time that this august House should take up permanent measures to see that people are not put to untold sufferings because of natural calamities.

            Disaster Management Committees which have been set up in different districts have to be monitored by the Centre. The Centre should also announce a special package for different States. The Orissa Government demanded Rs.3,000 crore as calamity relief fund, but you will be surprised to know that only a meagure Rs.25 crore has been given by the Central Government, though the Prime Minister had announced that Rs.200 crore will be given to the State of Orissa. But unfortunately, we have been discriminated against may be because neither the Congress nor its allies is ruling the State of Orissa. Shri Naveen Patnaik, worthy son of Shri Biju Patnaik is ruling the Orissa State and that is why, there may be such discrimination and that is why, Orissa has been neglected and no financial package have been deliberately given by the Government of India.

            So, I would like to highlight that we feel proud of national integration; the only source of national integration is Lord Jagannath. As you know, Gopabandhu Das, the famous poet who was a leader during the national struggle said:

            “The holy land of Utkal needs no leader,

            Because the Lord guide Utkal”.

           

That is why, I appeal to the Union Government that if you discriminate against our State this way, Lord Jagannath is there to rescue us. [MSOffice81] 

With that moral and spiritual theme of love and affection, we appeal to the Government of India and more particularly the Union Home Minister as well as the Minister of Water Resources to announce a special package.  I know the Minister of Water Resources.  They are all large hearted.   They should not discriminate my State.  They should announce a special package taking into consideration the critical situation which is now prevailing in my State. Jai Jagannath.

                                                                                                           

 

 

 

 

 

श्री राजीव रंजन सिंह ललन (बेगूसराय):सभापति महोदय, बाढ़ पर चर्चा के दौरान आपने मुझे बोलने का अवसर दिया, मैं आपका आभार व्यक्त करना चाहता हूं।

18.26 hrs.

(Shri Varkala Radhakrishanan in the Chair)

            यह हमारे देश की त्रासदी है कि हम हर साल या तो बाढ़ पर चर्चा करते हैं या सुखाड़ पर चर्चा करते हैं। आज तक आजादी के बाद से कोई ऐसा साल नहीं है, जब हम बाढ़ या सुखाड़ पर चर्चा नहीं करते। लेकिन हम चर्चा तक ही उसको सीमित रखते हैं। जब सुखाड़ आया, हमने चर्चा की और अपनी चिन्ता व्यक्त कर दी। भारत सरकार भी रिलीफ के लिए जो भी सम्भव हुआ, राज्यों को मदद पहुंचाई। पहुंचाई गई रिलीफ बांटी गई, लेकिन उसके बाद हम उस पर कंसेंट्रेट ही नहीं करते हैं कि हमको आखिर इस त्रासदी से निजात कैसे पाना होगा, क्योंकि हमारे देश की एक सबसे बड़ी समस्या वाटर मैनेजमेंट है। एक तरफ हमारे यहां अति पानी के कारण, जल के कारण बाढ़ आ रही है और दूसरी तरफ हम पानी की कमी के कारण सुखाड़ से जूझ रहे हैं, इसलिए वाटर मैनेजमेंट और उसके स्थाई समाधान की जो आवश्यकता है, उस पर हमें ध्यान कंसेंट्रेट करना चाहिए, तभी हम इस काम को कर सकते हैं।

            इस बार जो बाढ़ आई, कई माननीय सदस्यों ने उसकी चर्चा की और बताया कि यह अभूतपूर्व बाढ़ थी। अभूतपूर्व बाढ़ इसलिए थी कि मध्य जुलाई के बाद अगस्त के प्रथम सप्ताह तक कई राज्यों में इतनी भारी बारिश हुई, महाराष्ट्र जैसे राज्य भी बाढ़ से प्रभावित हुए, कि नेपाल से निकलने वाली नदियों के कारण, सिर्फ हमारे देश में ही नहीं, नेपाल की तराई में भी बारिश हुई, इससे नेपाल से निकलने वाली नदियां खतरे के निशान से दो से तीन मीटर तक ऊपर पहुंच गईं। बारिश के कारण लगातार जो मौसम विभाग की सूचना है, जो केन्द्रीय जल आयोग का कहना है कि नोर्मल रेंज से 300 से 350 प्रतिशत तक बारिश हुई। इस स्थिति में हम इसको अभूतपूर्व बाढ़ मानें और सारे देश ने इसको स्वीकार किया, लेकिन उसके साथ-साथ मैं कहना चाहता हूं कि यह अनएक्सपेक्टिड बाढ़ थी, अप्रत्याशित बाढ़ थी। अप्रत्याशित हम इसलिए कह रहे हैं कि वह बाढ़ का समय नहीं था। बाढ़ मुख्य तौर पर सितम्बर के अन्तिम सप्ताह में आती है, इसलिए हम अनावश्यक बाढ़ की चपेट में फंस गये, वहां के कई सदस्यों ने सही कहा कि 19 जिले उससे तबाह हो गये। केवल 19 जिले ही नहीं, करीब 200 प्रखण्ड और दो करोड़ आबादी उससे प्रभावित हुई। अभी बाढ़ खत्म नहीं हुई है, जब पानी निकलेगा तो मिट्टी के और कच्चे मकान गिरेंगे। हम लोग यह महसूस कर रहे हैं लगभग पांच लाख से ज्यादा कच्चे मकान बिहार में गिरेंगे, ध्वस्त होंगे। सात लाख हैक्टेयर भूमि पर जो फसल लगी हुई है, वह फसल बर्बाद हो गई, पानी से नष्ट हो गई। अब आप समझिये कि जब सात लाख हैक्टेयर भूमि पर फसल नष्ट हो जायेगी तो एक तरफ तो हम फूडग्रेन के क्राइसिस में चले जाएंगे, क्योंकि कृषि हमारी अर्थव्यवस्था का आधार है और दूसरी तरफ जो बड़े किसान या जो भी किसान हैं, जब उनकी फसल बर्बाद हो जायेगी तो वे किसी लायक नहीं बचेंगे।

            राहत कार्यों की चर्चा हुई है। राहत कार्य चल रहा है। केन्द्र सरकार ने भी मदद की है और राज्य सरकार के बूते भी जितनी संभावना और क्षमता है, उसके बल पर राहत कार्य चलाये जा रहे हैं। कई माननीय सदस्यों ने चर्चा की, लेकिन राहत कार्य राहत होती है। किसी भी विपत्ति में, प्राकृतिक आपदा की स्थिति में कोई आदमी नोर्मल लाइफ नहीं जी सकता है।[R82] 

            महोदय, राहत, राहत है।  राहत में कहीं न कहीं समस्या रह जाती है, जब इतने बड़े पैमाने पर राहत कार्य चलता है।  राहत कार्य चल रहा है और केंद्रीय सरकार ने भी वहां मदद की है।  माननीय गृह मंत्री जी और यूपीए की चेयरपर्सन वहां गयी थीं।  हम उनके प्रति आभार प्रकट करते हैं कि उन्होंने विपत्ति के समय बिहार के लोगों के साथ अपनी संवेदना जोड़ी और केंद्र सरकार से जो भी संभव है, उन्होंने किया।  इसके अलावा एक बहुत बड़ी समस्या है कि बाढ़ का स्थायी समाधान कैसे किया जाए? बाढ़ के स्थायी समाधान और बाढ़ के कारणों की ओर अगर हम जाएंगे, तो हम पाएंगे और जिसे हम मान रहे हैं कि आज प्रदूषण सबसे बड़ा कारण बाढ़ के लिए है।  कई ऐसे राज्य हैं, जैसे – महाराष्ट्र में फ्लड एक कहानी की तरह थी।  लोग कहानी के रूप में जानते थे कि वहां बाढ़ आयी।  अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखें, तो ऐसे कई देश हैं, चीन है, इंग्लैंड है, इनके लिए कहानी थी कि बाढ़ भी कोई कहानी होती है।  ये सुनते होंगे कि बाढ़ में लोग कैसे जीते हैं?  लेकिन आज ये प्रदेश और देश भी बाढ़ देख रहे हैं।  उसका मुख्य कारण है कि हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।  आज आवश्यकता इस बात की है कि हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना बंद करें, अगर हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना बंद नहीं करेंगे, तो प्रकृति का प्रकोप हमारे देश और विश्व पर बढ़ता जाएगा।  हम लोग इस चीज को मानें।

            महोदय, इसके साथ ही नेपाल के संबंध में चर्चा हुयी। नेपाल में हाई डैम बनाने की आवश्यकता है।  जब नेपाल में आप हाई डैम बनाएंगे, तो आप उससे पानी को नियंत्रित कर सकते हैं।  पनबिजली की योजना चलाकर बिजली का उत्पादन कर सकते हैं और सिंचाई की भी व्यवस्था कर सकते हैं।  नदियों को जोड़ने की योजना राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के समय शुरू हुयी थी।   हमारे बिहार राज्य में अभी की सरकार ने नदियों को जोड़ने की योजना बनायी है।  शायद भारत सरकार के जल संसाधन विभाग में जरूर वह पहुंचा होगा या पहुंचने वाला होगा, यह मुझे नहीं मालूम है।  नदियों को जोड़ने से जहां सुखाड़ की स्थिति होती है, वहां हम पानी ले जा सकते हैं और जहां जल की अति होती है, हम उसे रोक सकते हैं। 

            महोदय, बिहार आर्थिक रूप से एक कमजोर राज्य है।  भारत सरकार के गृह मंत्री वहां गए।  उन्होंने रिलीफ के मद में काफी मदद की, इसके लिए हम उनका आभार व्यक्त करना चाहते हैं।  बिहार के मुख्यमंत्री अभी आए थे और बिहार के मुख्यमंत्री ने आकर प्रधानमंत्री जी से मुलाकात की।  प्रधानमंत्री जी से मुलाकात करने के बाद उन्होंने एक मेमोरेंडम दिया।  उस मेमोरेंडम में उन्होंने 30 लाख क्विंटल अतिरिक्त अनाज मांगा है।  कई माननीय सदस्य इस बारे में बोल रहे थे, उन्होंने कहा कि 25 किलो अनाज दिया गया है, लेकिन 25 किलो अनाज पर्याप्त नहीं है, उसे बढ़ाकर 50 किलो करना होगा।  यही बात बिहार के मुख्यमंत्री ने भी प्रधानमंत्री जी को  ज्ञापन में दिया है, उसमें कहा है कि 50 किलो अनाज हम प्रत्येक परिवार को दें, इसके लिए हमें 30 लाख क्विंटल अतिरिक्त अनाज आवंटित किया जाए।  इसके अलावा उन्होंने किरोसिन तेल के बारे में कहा है, क्योंकि लोग जब बांध पर रह रहे हैं, तो किरोसिन तेल की खपत ज्यादा होगी, इसलिए 180 लाख लीटर अतिरिक्त किरोसिन तेल की मांग उन्होंने केंद्र सरकार से की है।  इस सब के बाद फसल का मुआवजा, जिसको माननीय सदस्य 2 हजार रूपए प्रति एकड़ कह रहे थे, उसमें गलती से उन्होंने मकान की बात कह दी, जिसे माननीय गृहमंत्री जी ने तत्काल काटने का काम किया।  सीआरएफ से जो फसल बर्बाद होती हे, उसके लिए 2 हजार रूपए प्रति एकड़ केन्द्र सरकार सीआरएफ से देती है और दो हजार रूपए राज्य सरकार ने घोषणा किया है कि हम अपनी तरफ से देंगे। मुख्यमंत्री ने अपने ज्ञापन में कहा है कि 5 हजार रूपए प्रति एकड़ के हिसाब से हमें किसानों को फसल का मुआवजा देने के लिए साढ़े 3 सौ करोड़ रूपए की अतिरिक्त आवश्यकता होगी।  इसके अलावा एक जो सबसे बड़ी चीज जिसकी चर्चा हम कर रहे हैं कि लांग टर्म मेजर्स कैसे लिया जाए, इसके लिए भी मुख्यमंत्री जी ने सुझाव दिया है और प्रधानमंत्री जी से आग्रह किया है कि प्रधानमंत्री जी के कार्यालय में एक सेल गठित किया जाए।  उस सेल में हाई डैम बनाने के लिए लांग टर्म फ्लड स्ट्रेटेजिक ग्रुप बनाया जाए, जिसमें प्लानिंग कमीशन के लोग रहें, जिसमें विदेश मंत्रालय के लोग रहें, जल संसाधन विभाग के लोग रहें और राज्य सरकार के भी प्रतिनिध रहें और समेकित रूप से प्रधानमंत्री कार्यालय में एक लांग टर्म स्ट्रेटजिक ग्रुप काम करे ताकि इसका स्थायी समाधान कैसे हो, इस बारे में निर्णय करे।  [c83]      

इस दिशा में कार्यवाही करने की आवश्यकता है।

            हमने कई बातों की चर्चा की। हम सभी कंस्ट्रक्टिव बातें कह रहे हैं, कोई राजनीतिक बात नहीं कह रहे हैं। लेकिन यहां राजनीतिक बात भी हुई है। बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा के समय यदि कोई राजनीति करता है, तो उससे ज्यादा जनता के हितों के विपरीत काम करने वाला कोई नहीं है। हमने 14 अगस्त की प्रोसीडिंग देखी है। भारत सरकार के एक राज्य मंत्री ऐसे भाषण दे रहे थे जैसे वे भारत सरकार के मंत्री की हैसियत से नहीं, एक राजनीतिक पार्टी के सांसद के रूप में भाषण दे रहे हों। उन्होंने कई बातों की चर्चा की। उन्होंने तटबंध की चर्चा की। सभापति महोदय, हम आपको बताना चाहते हैं कि बिहार में कुल 3,432 किलोमीटर तटबंध है। वह करीब 22 नदियों पर है। जिन मंत्री जी ने यहां राजनीतिक पार्टी के उम्मीदवार के रूप में भाषण दिया, उन्होंने बिहार में 15 वर्षों तक शासन किया। आठवीं पंचवर्षीय योजना में 1992 से 1997 तक उन्होंने मात्र 227 किलोमीटर बांध की मरम्मत करवाई। नौंवीं पंचवर्षीय योजना में मात्र 176 किलोमीटर तटबंध का निर्माण करवाया। दसवीं पंचवर्षीय योजना में 2002 से 2006 तक वे शासन में थे। उन्होंने मात्र 148 किलोमीटर तटबंध का निर्माण करवाया। सन् 2004 में बाढ़ आई। वहां जो सिंचाई मंत्री हैं, हम उनके द्वारा दिए गए भाषण की अखबार का कटिंग लाए हैं। हम उन्हें बता सकते हैं कि जब उनके समय में वहां तटबंध टूटा, तो सिंचाई मंत्री ने कहा कि अधिकारियों की गलती के कारण टूट गया। वे रिस्पौंसीबिलिटी लेने के लिए तैयार नहीं थे और यहां उन्होंने बांध और तटबंध पर भाषण दिया। उन्होंने बहुत लम्बा-चौड़ा भाषण दिया कि हमने इतना पैसा स्वीकृत कर दिया। बिहार सरकार ने तटबंध के लिए 3,000 करोड़ रुपये का प्रस्ताव रिकमैंड करके भेजा है। 2,882 करोड़ रुपये का प्रस्ताव अभी गंगा फ्लड कंट्रोल ने रिकमैंड किया है। इनकी प्रक्रिया इतनी लम्बी है कि गंगा फ्लड कंट्रोल से प्लानिंग कमीशन, प्लानिंग कमीशन से वहां और वहां से जल संसाधन, फिर यहां से बीस तरह की क्वैरी और पता चलेगा कि  अगले साल फिर बाढ़ आ गई और वह सारा तटबंध वैसे ही पड़ा रह गया। इसलिए बिहार के मुख्य मंत्री ने कहा है कि प्रधान मंत्री जी के कार्यालय में एक लॉग टर्म स्ट्रेटजी ग्रुप बनाइए जिसके माध्यम से बाढ़ के राहत की कार्यवाही की जा सके।…( व्यवधान) मैं दो मिनट में अपनी बात समाप्त कर रहा हूं।…( व्यवधान)

            बिहार के एक केन्द्रीय मंत्री आज भी बाढ़ के साथ राजनीति कर रहे हैं। गृह  मंत्री जी गए। मैडम सोनिया जी, यूपीए की चेयरपर्सन बिहार गईं। यह लोग हैलीकॉप्टर पर बाढ़ का दौरा करके बैठ गए, अखबारों में यह समाचार छपा। हैलीकॉप्टर का इंजन चालू हो गया। गृह मंत्री जी और सोनिया जी पसीने से परेशान हैं और एक केन्द्रीय मंत्री बाहर टीवी में बयान दे रहे हैं। यह प्रकृति की मार है और प्रकृति की मार में राजनीति नहीं करनी चाहिए। वह केन्द्रीय मंत्री बयान दे रहे हैं।  बिहार में सन् 2004 में बाढ़ आई थी, 2005 और 2006 में बिहार में कोई बाढ़ नहीं आई। मेरे पास सन् 2004 के अखबार की कटिंग है। उनका बयान है कि पानी आई तब न खईब मछरी। उन्होंने बिहार में बाढ़ को आपदा नहीं माना। मेरे पास उनके सन् 2004 के इंटरव्यू का कॉपी है जिसमें कहा गया है कि बाढ़ आपदा नहीं होती, बाढ़ में गरीब लोगों को मछली मिल जाती है और वे बढ़िया क्वालिटी की मछली खाते हैं। प्राकृतिक आपदाओं के बारे में जिसकी यह समझदारी हो, उसे बोलने का क्या अधिकार है।[N84] 

            आज की इस परिस्थिति में पिटे हुए मोहरे को  बिहार में राजनीति करने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए हम अपील करना चाहेंगे कि इस त्रासदी में राजनीति करने की बजाय सब लोगों को मिलकर, एकजुट होकर बिहार में बाढ़ से पीड़ित लोगों को राहत कैसी पहुंचायी जाये, इस पर गंभीरता से विचार  करना चाहिए।  भविष्य में वहां ऐसी परिस्थिति पैदा न हो, इसके लिए लाँग टर्म प्लान बनाना चाहिए, जो सुझाव वहां के मुख्यमंत्री ने प्रधान मंत्री जी को दिया है।

            इन्हीं शब्दों के साथ आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

                                                                                                           

जल संसाधन मंत्रालय में राज्य मंत्री (श्री जय प्रकाश नारायण यादव):   सभापति महोदय, मेरी बाबत बात आयी है इसलिए मेरा बोलना बहुत जरूरी है। …( व्यवधान)

MR. CHAIRMAN :  No clarification.  It cannot be allowed. Rules do not permit.

… (Interruptions)

श्री जय प्रकाश नारायण यादव : सभापति महोदय, हमने जो कुछ सदन में कहा था, उस पर टिप्पणी की गयी है। …( व्यवधान)

MR. CHAIRMAN: No allegation against you.

… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: No clarification is allowed.

… (Interruptions)

श्री राजीव रंजन सिंह ‘ललन’ : सभापति महोदय, अगर ये बोलेंगे, तो हम भी बोलेंगे।…( व्यवधान)

श्री जय प्रकाश नारायण यादव : सभापति महोदय, हमने जो कुछ सदन में कहा, उस पर टिप्पणी की गयी है। आप हमें उस पर सफाई देने  दीजिए। …( व्यवधान)

MR. CHAIRMAN: Shri M. Shivanna can speak.

… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: It is only a discussion.  Shri Shivanna, you can speak. 

श्री जय प्रकाश नारायण यादव :  हमें सफाई देने का अधिकार है या नहीं? …( व्यवधान)

MR. CHAIRMAN: If you have anything to say, you can give it in writing.  We will consider it.

… (Interruptions)

श्री जय प्रकाश नारायण यादव : उन्होंने जो कुछ कहा है, केन्द्र सरकार ने जो राशि दी है। …( व्यवधान) हमने सदन में जो कुछ कहा, उस पर उन्होंने टिप्पणी की है। …( व्यवधान)  जब मिनिस्टर कोई चर्चा कर रहे हैं। …( व्यवधान) मैं उनकी बात का जवाब दे रहा हूं। हमारी बात सुन ली जाये। …( व्यवधान) केन्द्र सरकार ने जो राशि दी। …( व्यवधान)

MR. CHAIRMAN: My hon. friend, you can tell me what you have to say.  After going through the statement, we will decide.

… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: I won’t allow it.

… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: Nothing will go on record except Shri Shivanna’s speech.

(Interruptions)* …

MR. CHAIRMAN: Nothing will go on record.

(Interruptions)* …

MR. CHAIRMAN: Nobody need support him.  We are not allowing it.

… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: Nothing will go on record. Only Shri Shivanna’s speech will be recorded.

(Interruptions)* …

MR. CHAIRMAN: It will not go on record.  Nothing will go on record except Shri Shivanna’s speech.

(Interruptions)* …

MR. CHAIRMAN: Shri Shivanna, you can speak.  Your speech alone will go on record.

(Interruptions)* …

MR. CHAIRMAN: If I allow you, then I have to allow him also.  It cannot go on like this.  Then, there will be no end to it.

… (Interruptions)

 

* Not recorded

SHRI M. SHIVANNA (CHAMRAJANAGAR) : Sir, let me thank you for giving me an opportunity to participate in the discussion under rule 193 on problems arising out of floods in the country. 

            I would like to draw the attention of the Government through you about the pathetic condition of the flood affected people.

            It is a matter great of concern that our country is being suffered by natural calamities like floods, drought etc.  it is very unfortunate.  Sir, this year some states like Bihar, Karnataka, Andhra Pradesh, Maharashtra, Uttar Pradesh, Gujarat, West Bangal are badly affected by the flood.

            Sir, despite this being a regular feature year after year, the Government has not taken any permanent measure to check these natural calamities.  Precautionary steps are to be taken to check such natural calamities.  It is not the right way to make efforts to find solution when the problem has arisen but we should be ready with all equipment and strategies to tackle the problems before they arise.

            As far as, Karnataka is concerned,  large parts of the state has been severely affected by floods. The raging floods have claimed 242 lives in the last 3 months. Property worth over Rs. 4,000 crore has been damaged.  Nearly 9 lakh people have been rendered homeless.  Over one lakh hectares of land was submerged in flood water. Standing crops like Johar, Paddy, Sunflower, sugar cane in about 86,000 hectares have also perished.  Both private and public property worth Rs. 5,000 Crore has been damaged.

            Sir, coming to my constituency Chamarajnagar, my constituency is one of the most backward districts in the country sir. The irony is Chamarajnagar is  always suffering from both the drought and floods. Even now the whole country has been affected by flood but the irony is that the people of Chamarajnagar are suffering from  both  floods and  drought  situation. There  are  8 taluks  in   my

 

*English translation of the speech originally delivered in Kannada

constituency. Out of them 5 taluks are affected by floods and 3 taluks are facing severe drought. Taluks like Santemarahalli Hauur, Chamarajnagar, are part of Kollegal, Nausnugud and Gundlupet, are facing drought situation there is no rain in these taluks, whereas T.Narsipar, Yalandur, part of Kollegal, Nanjnugud, taluks are badly affected by the flood.  Heavy rains created havoc in these areas. The living condition of the people in Chamarajnagar district is very pathetic. 

            Sir, Karnataka state Government under the able leadership of Shri H.D.Kumara Swamy and Deputy Chief Minister Shri B.S.Yadiyurappa has taken several relief measures.  They undertook an aeriel survey in flood affected areas to obtain first hand information. Rs.50 Crore has been released for immediate relief works. Gruel centers has been set up, food, clothes are being supplied to flood victims.  But it is not sufficient. Our Hon. Chief Minster H.D.Kumara Swamy has already sought Central assistance to the tune of over Rs. 500 Crore to take up immediate relief works.  I appeal to the Central Government to consider the grim flood situation in Karnataka and release Rs.500 crore to take up immediate relief works and strengthen the hands of our young chief Minsiter Shri H.D. Kumara Swamy. At last I would like to suggest that the Government should come forward to interlink the river’s of India, so that natural calamities like, flood can be tackled by the interlinking of the rivers.

            With this I conclude my speech thank you, Sir.

 

      

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

MR. CHAIRMAN :  Hon. Minister Prof. Saifuddin Soz, you can speak now.

THE MINISTER OF WATER RESOURCES (PROF. SAIFUDDIN SOZ):  Mr. Chairman, Sir, first of all I must thank the hon. Members cutting across party lines to show concern for the serious problem of floods in the country. Variations in speeches are already there. That happens always. Sometimes, there are repetitions. Sometimes, Members are saying certain things.… (Interruptions)

श्री मदन लाल शर्मा (जम्मू) : सर, हमें भी बोलने का मौका दीजिए।…( व्यवधान)

MR. CHAIRMAN: He can intervene. I will tell you. Please take your seats. Any Minister can intervene in the discussion. He is only intervening. It is not the final reply.

… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: As I told you, it is not the final reply. Any Minister can intervene and take part in the discussion. The Minister is also a Member of the House. He can take part in the discussion. The Minister concerned will be replying finally. Mr. Minister, you can continue.

… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: The procedure has been made clear. A Minister is also a Member of the House. Any Minister can intervene. If his name is in the list, I will call him.

… (Interruptions)

PROF. SAIFUDDIN SOZ: If you want, I can speak tomorrow. I can do that.… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: The final reply will be at the last. He is going to intervene.

… (Interruptions)

PROF. SAIFUDDIN SOZ: If the debate is concluded tomorrow, I can speak tomorrow. I have no objection to that.… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: I will strictly obey the rules. Mr. Minister, you can continue.

PROF. SAIFUDDIN SOZ: If it can be done tomorrow, if the debate is concluded tomorrow, I have no objection to that.… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: I know all these things. I will do only according to the rules. Yes, Mr. Minister, you can speak.

… (Interruptions)

SHRI RAJIV RANJAN SINGH ‘LALAN’ (BEGUSARAI): How many times will he intervene? … (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: Mr. Minister, you can speak. You need not address them. You should address the Chair.

… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: It is not good. The hon. Minister may address the Chair. The time is extended only up to 7 p.m. If you cannot conclude, you can continue next time. On no account will the time be extended because at 7 p.m. the House will be adjourned for a cultural programme.

… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: There is no ‘Zero Hour.’

… (Interruptions)

PROF. SAIFUDDIN SOZ: You will have to seek some more minutes.… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: There is no Zero Hour after this. There is a cultural programme. Hon. Members have informed me that they would like to go to that cultural programme.

PROF. SAIFUDDIN SOZ: Mr. Chairman, I cannot speak less than 20 minutes.

MR. CHAIRMAN: You can continue it. Why do you address them?  You must address the Chair.

PROF. SAIFUDDIN SOZ: I am addressing the Chair.  With apology to my friends which I convey through the Chair, I would say that since the hon. Home Minister’s name and my name have been bracketed, since relief and rehabilitation is a serious concern, the debate will be concluded by the hon. Home Minister.… (Interruptions) Relief and rehabilitation is a serious matter.

श्री मदन लाल शर्मा (जम्मू)  : सर, यह अपॉलॉजी का सवाल नहीं है।…( व्यवधान)

            हमें भी बोलने का समय दीजिए।

MR. CHAIRMAN: The discussion will be continued tomorrow. It was announced earlier.

… (Interruptions)

श्री सैयद शाहनवाज़ हुसैन (भागलपुर):सर, हम लोग कब बोलेंगे।…( व्यवधान)

AN. HON. MEMBER: Do not allow him to speak today. He should speak tomorrow.… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: That is left to him. That is not for me to decide. He has to decide that.

PROF. SAIFUDDIN SOZ: If the House has any objection, I will speak tomorrow.… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: That is left to him and not for me to decide. He has to decide that. I am not the person to decide when he should speak. His name is in the list.

… (Interruptions)

PROF. SAIFUDDIN SOZ: You cannot drag the debate.[R85] 

Sir, if the House has objection, I will intervene tomorrow.

SHRI RAJIV RANJAN SINGH ‘LALAN’ : Mr. Chairman, Sir, the Minister of State for Water Resources intervened the other day and now the Minister of Water Resources is intervening. How many times will the Ministers will intervene? … (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: It will not go on record.

(Interruptions)* …

MR. CHAIRMAN: Mr. Minister, are you yielding to him?

… (Interruptions)

PROF. SAIFUDDIN SOZ: Sir, I will go by the ruling of the Chair. … (Interruptions)

 

* Not recorded

MR. CHAIRMAN: There are certain rules which have to be observed in the House. Two Members cannot speak together. You can speak only if the Minister yields the floor to you. Otherwise it will not be on record.

… (Interruptions)

SHRI KHARABELA SWAIN (BALASORE): Mr. Chairman, Sir, since you say that the sitting of the House will not be extended beyond 7.00 p.m. today, let the Minister speak tomorrow because there are only five minutes left now for the House to adjourn. … (Interruptions)

MR. CHAIRMAN: It is for him to decide.

SHRI RAJIV RANJAN SINGH ‘LALAN’ (BEGUSARAI): Sir, we are not going to sit beyond 7.00 p.m. today. … (Interruptions)

PROF. SAIFUDDIN SOZ: It is a serious thing. Please listen to me for a minute. … (Interruptions) Sir, either you extend the time of the House today or I will speak tomorrow.

MR. CHAIRMAN: You can speak now. I have allowed you to speak.

… (Interruptions)

THE MINISTER OF STATE IN THE MINISTRY OF CHEMICALS AND FERTILIZERS AND MINISTER OF STATE IN THE MINISTRY OF PARLIAMENTARY AFFAIRS (SHRI B.K. HANDIQUE): Mr. Chairman, Sir, the Minister can speak today till the House adjourns and then he can continue his speech tomorrow. … (Interruptions)

PROF. SAIFUDDIN SOZ: Mr. Chairman, Sir, I congratulate the hon. Members who have participated in this debate and I am one with them so far as the concerns expressed by them to solve this serious problem of recurring floods in the country are concerned. I salute their sentiments and I am one with them on this.

            Sir, I made copious notes of the points made by hon. Members who spoke in this debate starting from Shri Ananth Kumar to Shri Shivanna and perhaps I could answer to all of them, but that will take a lot of time of the House. So, I will skip that.

SHRI BIKRAM KESHARI DEO (KALAHANDI): You may reply to the points raised by them in general. You need not specifically reply to points raised by each and every Member. … (Interruptions)

PROF. SAIFUDDIN SOZ: I will generate a debate for the nation as to what the Ministry is going to do. I will not go into details and answer every point. But many Members lumped many suggestions together. So, I chose only four areas and I will initially talk about them. For instance, many Members spoke about inter-linking of rivers and an impression was created here that, perhaps, this Government has put that proposition to the back burner. That is a very wrong impression. This Government is vigorously following the proposal of inter-linking of rivers, but perhaps this House should discuss the proposal of inter-linking of rivers as a separate proposition because that needs time. I would like to submit that a Task Force was constituted on this subject and the Task Force gave its recommendations in December, 2004. It finished its job within six months of its constitution, it gave the terms of reference, it gave the details, it gave the expenditure and it gave a proposal for linking of peninsular rivers and also gave a proposal for linking of Himalayan rivers and this Government has been vigorously following them. … (Interruptions) You had been a Minister. … (Interruptions)

श्री सैयद शाहनवाज़ हुसैन (भागलपुर): महोदय, साढ़े तीन साल में एक कदम भी नहीं बढ़ाया।

प्रो. सैफुद्दीन सोज़: शाहनवाज़ जी, आप तो मिनिस्टर रहे हैं। आप पूरी डिटेल नहीं सुनेंगे, तो आपको कैसे पता चलेगा? 

श्री सैयद शाहनवाज़ हुसैन (भागलपुर):  बिहार में लोग डूब रहे हैं।

प्रो. सैफुद्दीन सोज़:  बिहार के लिए हमने जो किया है, उसे पहले आप सुनिए।… (Interruptions)[R86]    

19.00 hrs.

[r87] Sir, I was wanting to say that we are inter-linking rivers… (Interruptions) Sir, they do not want to face the facts… (Interruptions)

MR. CHAIRMAN : Mr. Minister, you can continue tomorrow.

            Now, the House stands adjourned to meet again on Tuesday, the 21st August, 2007 at 11 a.m.

 

19.01 hrs. The Lok Sabha then adjourned till Eleven of the Clock

on Tuesday, August 21, 2007/Sravana 30, 1929 (Saka).

 

 

 

                                                                                      

 

 

 

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