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Title : Discussion on the motion for consideration of the Delhi Laws (Special Provisions) Bill, 2006.
SHRI S. JAIPAL REDDY : I beg to move:
“That the Bill to make special provisions for the areas of Delhi for a period of one year and for matters connected therewith or incidental thereto, be taken into consideration.”
Sir, the hon. Members are aware, the large in-migration of people from all over the country, over the years, into the National Capital Territory of Delhi, has resulted in a huge growth in demand for residential and commercial space. As envisaged in the Master Plan 1962 notified under the Delhi Development Act, 1957, the Government adopted planned development of Delhi through large scale acquisition of land and development and disposal of such land through the Delhi Development Authority, for meeting the needs of the people, for residential, commercial and other spaces[r6] .
However, problems in operationalisation of the Plan, poor enforcement and inadequacy and non-affordability of shelter, particularly for the poor, have led to growth of slums and unauthorised construction and large-scale commercialisation of residential areas, especially along the major roads. The Government of India has taken note of these deficiencies and as of now placed emphasis on the need for alternative policy options to secure proper development of Delhi.
With this objective, the draft Master Plan for Delhi has been prepared with a perspective of 2021. About 7000 suggestions and objections received from the public are under examination. Finalisation of the Master Plan is likely to take some time. In the meantime, the Government has also constituted a Committee headed by Shri Tejendra Khanna, former Lieutenant Governor of Delhi to suggest a comprehensive strategy to deal with the issue relating to unauthorised construction and misuse of premises. Their recommendations will also be taken into account in finalising the Plan.
As regards the problems of those living in slums and Jhuggi Jhopris, the Government proposes to deal with the matter with requisite compassion and the need for proper shelter and basic services for the urban poor. But given the dwindling availability of land for re-location of slum dwellers, it has become imperative to re-visit the current policy and look for sustainable solutions for their rehabilitation. There are a large number of street vendors in different parts of Delhi. While the local bodies are formulating schemes in pursuance to the national policy on street vendors, it has to be ensured that the schemes are realistic and takes into account not only the concerns of hawkers and squatters, but also citizen’s access to public places. This will also require some time for finalisation.
Meanwhile a number of representations were received by Government against demolition and sealing of premises by the local bodies. Several Members of this august House, as well as elected representatives of Delhi have been demanding for intervention to sort out the complex issues that have led to the present situation. While a large number of persons are affected by the on-going drive, at the same time, there is wide divergence of public opinion and views on the best way to deal with the issue. These have to be taken into account while finalising the comprehensive and balanced policy on each of these complex issues. This process would involve ground level survey, collection of requisite data, its analysis, consultations with the Residents’ Societies and Residents’ Welfare Associations by the local bodies of Delhi. Professional expert organisations may also have to be involved to formulate a sustainable strategy. This is a time consuming exercise.
Mr. Speaker, it will be noted that for the finalisation of the norms, policy guidelines, a period of about one year will be required. While this exercise is taken up by the Government and its agencies, it is necessary and desirable to maintain status quo in respect of these categories of unauthorised development existing as on 1.1.2006 so as to prevent unnecessary and avoidable hardship and harassment to the people[snb7] .
The Government, therefore, considers it necessary and desirable to enact the Delhi Laws (Special Provisions) Bill, 2006 for this purpose.
Sir, in the facts and circumstances of the matter as mentioned by me in order to meet the aforesaid objects, I move this Bill.
“That the Bill to make special provisions for the areas of Delhi for a period of one year and for matters connected therewith or incidental thereto, be taken into consideration.”
We will have a general discussion on the Bill now and would like to finish it by 1.30 p.m.
श्री राम कृपाल यादव (पटना) : महोदय, मेरा एक महत्वपूर्ण मामला था और आपने एश्योर किया था कि आप इसके लिए हमें समय देंगे।
अध्यक्ष महोदय : हमने कोई एश्योरेंस नहीं दिया थ। हमने केवल यह कहा था कि हम इसे सुनेंगे, कितना समय देंगे यह नहीं कहा था। If it is a matter to have been raised after the Question Hour, you shall do it at 6 p.m.
प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा (दक्षिण दिल्ली) : अध्यक्ष जी, यह प्रश्न दिल्ली के लाखों नहीं बल्कि एक करोड़ से अधिक लोगों से सम्बन्ध रखता है। इसलिए बिल लाए जाने के लिए जो नियम बने हैं, जिन नियमों का पालन सरकार ने यह बिल लाने में नहीं किया है और जिन नियमों के पालन का उल्लेख अभी किया गया है, हमने स्वयं आपसे इसके लिए अनुरोध किया था कि उन सभी नियमोंको अलग रखते हुए यह बिल लाया जाए और इसे पारित करने का प्रयास किया जाए।परन्तु मैं कहना चाहूंगा कि जो बिल अभी श्री जयपाल रेड्डी जी ने रखा है, it is too late and too little. मैं इसके बारे में आपको बताना चाहूंगा ताकि सदन इस बात को अच्छी तरह से समझ ले कि इस बिल के बाद क्या होने जा रहा है और क्या आशंकाएं हैं।
अध्यक्ष जी, मैंने मार्च के महीने में, ६ मार्च, २००६ को एक कॉलिंग अटेंशन आपके सामने रखा था जिसमें मैंने कहा था कि अगर तत्काल कोई कार्रवाई नहीं की गयी तो दिल्ली में बहुत भयंकर त्रासदी होने की गुंजाइश है। उस समय श्री रेड्डी जी ने मेरी बात का मजाक उड़ाया और उन्होंने जो शब्द कहे, उसे मैं आपके सामने रखना चाहता हूँ। उन्होंने कहा था :
“Prof. Vijay Kumar Malhotra has also tried to paint an alarmist scenario. It is not correct.”
“His entire speech was based on the premise that the court has said ‘No’ to this plea. ”
“ There is no need for us to get worked up and get people worked up. Prof. Malhotra knows much more about the problem but he is merely interested in exploitation of the problem than in providing a solution to the problem.”
अध्यक्ष जी, तीन महीने पहले, उस समय भी मैंने कहा था कि यह कार्रवाई तुरन्त करने की जरूरत है। इससे पहले कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आर्डर्स आएं, आप तुरन्त कार्रवाई कीजिए और यदि आपने कार्रवाई न की तो भूचाल या सुनामी जैसी भयंकर त्रासदी आएगी। उस समय इन्होंने कहा कि ये लोगों को डरा रहे हैं। पिछले तीन महीने में, जिस दिन मैंने यह कॉलिंग अटेंशन रखा था जिसे आपने स्वीकार नहीं किया, ४० हजार दुकाने सील हो चुकी हैं, करीबन २० हजार मकानों पर हथौड़े चल चुके हैं और हजारों झुग्गी-झोपड़ियों को बिना जगह दिए उजाड़ा जा चुका है। यह आर्डर दिया गया है कि यदि किसी भी एसएचओ के क्षेत्र में कोई पटरी वाला या रेहड़ी वाला दुकान लगाकर बैठ जाता है तो उसे बुलाकर कार्रवाई की जाए। यदि उस समय यह कार्रवाई की गयी होती तो अच्छा होता। उस समय मेरी बात का मजाक बना दिया गया और कहा गया कि मैं लोगों को डरा रहा हूं और ऐसा कुछ नहीं होगा। हम लोग हाईकोर्ट में जाएंगे, लेकिन उससे कुछ नहीं हुआ। इसलिए मैं कहना चाहता हूँ कि आपने इस बारे में आपराधिक लापरवाही बरती है। उसी समय अगर आप यह कर देते और मैंने कहा था कि इसी सेशन में कीजिए, लेकिन दिसम्बर सेशन निकल गया, बजट सेशन का पहला हिस्सा निकल गया लेकिन आपने इस बारे में बिल लाने की जरूरत नहीं समझी और कहा कि बाद में जब होगा तब करेंगे। तब मैंने कहा था कि आपने जो तेजिंदर खन्ना कमेटी बना दी है, उसकी रिपोर्ट आने तक अधिकांश दिल्ली उजड़ चुकी होगी। please do something about it immediately. लेकिन उस समय आपने मेरी बात को स्वीकार नहीं किय्ाा[R8] ।
अध्यक्ष महोदय, आपने कहा था कि इसमें राजनीति नहीं होनी चाहिए। मैं राजनीति में नहीं जाना चाहता था, लेकिन आठ साल से दिल्ली में कांग्रेस पार्टी की सरकार है, चार साल से निगम में कांग्रेस का बहुमत है और दो साल से आप केन्द्र में सत्ता पर हैं। मैं पूछना चाहता हूं कि इन आठ, चार और दो सालों में क्या आपने एक भी नई मार्केट दिल्ली में बनाई है? क्या आपने दिल्ली में एक भी हॉकिंग जोन बनाया है? क्या आपने रेहड़ी-पटरी वालों के लिए, जहां वे व्यापार कर सकें, कोई जगह बनाने की व्यवस्था की है या लोगों के लिए एक नया मकान भी बनाया है? क्या आपने नई कोआपरेटिव सोसाइटी बनाकर हाउसिंग प्राब्लम सॉल्व करने की कोशिश की है? आपने कोई ऐसे काम का जिक्र नहीं किया कि हमने यह किया है। वह नहीं करने के बाद अब आप यहां यह बिल लेकर आए हैं।
अध्यक्ष महोदय, मैं मंत्री जी को कुछ बातों पर सावधान करना चाहता हूं। मैं इस पूरे बिल या इतिहास में नहीं जाना चाहता, लेकिन मैं बताना चाहता हूं कि आज से ४०-५० साल पहले जब दिल्ली में निगम बना था, तो मैं उसका पहले सदस्यों में से एक था। उस समय भी यह मामला आया था।…( व्यवधान)
श्री रामदास आठवले (पंढरपुर) : आप इसे तो सपोर्ट करें।
अध्यक्ष महोदय : कृपया बीच में न बोलें। आप बैठ जाएं।
प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा : उस समय यह बिल आया था कि यहां जितनी भी अनअथोराइज्ड कंस्ट्रक्शंस हो चुकी हैं, उन्हें नियमित कर दिया जाए और आगे होने से रोका जाए। It started in 1958. जब यहां पहली बार निगम बना था। तब से लेकर अब तक यह प्राब्लम चल रही है इसलिए यह काफी गम्भीर मामला है। इस पर विचार करना चाहिए।
अध्यक्ष महोदय, मैं विशेष रूप से दो बातों पर सरकार को चेतावनी देना चाहता हूं और सावधान करना चाहता हूं। आपने बिल में लिखा है –
“….the problem of unauthorised development with regard to the under-mentioned categories, namely:–
(a) mixed land use not conforming to the Master Plan;
(b) construction beyond sanctioned plans; and
(c) encroachment by slum and Jhuggi-Jhompri dwellers and hawkers and street vendors ”
आगे लिखा है, एक साल के लिए एक्शन रोका जाए। एक तरफ आप स्वयं कह रहे हैं कि ये अनअथोराइज्ड कंस्ट्रक्शंस हैं। मैं आपको चेतावनी इसलिए दे रहा हूं कि कोर्ट के पास आप जाएंगे और उनसे कहेंगे कि यह अनअथोराइज्ड कंस्ट्रक्शन है, लेकिन एक साल के लिए एक्शन मत लें, How can it stand the judicial scrutiny? मैं पिछले दो साल से लगातार इस बात को कह रहा हूं, जैसे चिदम्बरम साहब यहां कालेधन को सफेद करने के लिए एक फार्मूला लेकर आए थे और कहा था कि इन-इन शर्तों के साथ सबको रेग्युलराइज कर रहे हैं, जो कुछ आज तक लोगों के पास है। वैसा ही कुछ आप यहां लाते और कहते कि १ जनवरी, २००६ से पहले दिल्ली में जिन्होंने अपने प्लाट्स के अंदर, अपनी टैरीटरी के अंदर, जितनी अनअथोराइज्ड कंस्ट्रक्शन की है या दुकानें बनाई हैं, वे सब रेग्युलराइज कर रहे हैं और तीन महीने, छ: महीने या एक साल के अंदर लोग इतना जुर्माना देकर नियमित करा लें, तो यह बात कोर्ट मान लेता। ये कह रहे हैं कि अनअथोराइज्ड कंस्ट्रक्शन है, अनअथोराइज्ड स्क्वैटर्स हैं, अनअथोराइज्ड मिक्स्ड लैंड यूज है। इस तरह से आपने सब जगह अनअथोराइज्ड शब्द यूज किया है और कह रहे हैं कि कोर्ट एक साल के लिए कोई कार्रवाई न करे। इस बीच में हम इस पर विचार करेंगे। Why can you not say that you are going to do it? जो भी करना चाहते हैं, लगाइए कंडीशन कि यह होगा, जैसे सरकारी जमीन पर होगा तो हम नहीं मानेंगे, किसी रेजिंडेशियल जगह पर ये-ये चीजें नहीं मानेंगे। जैसे चिदम्बरम साहब ने भी कहा था कि अगर ड्रग से पैसा कमाया हो, करप्शन से कमाया हो या फलां चीज से कमाया हो, उसे रेग्युलराइज नहीं करेंगे, बाकी सब रेग्युलराइज हो जाएगा। आप वह नहीं कह रहे हैं, किस जगह को रेग्युलराइज करेंगे, जिसके लिए कोर्ट में जाएंगे। फिर वही बात होगी, जो पिछली बार मुझे जवाब देते हुए आपने कहा था कि कोर्ट न नहीं कहेगा। हम कोर्ट के पास जाएंगे, कोर्ट हमारी बात को मान लेगा, लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि कोर्ट नहीं मानेगा। आपने पहले भी कोर्ट से छ: महीने मांगे, तीन महीने मांगे, लेकिन आपको अनुमति नहीं मिली। उन्होंने कहा –
“If it is unauthorised, it is unauthorised. Make it authorised. ”
आप इसे अथोराइज करें, आप इसे लीगल करें। आपने तब एक नोटफिकेशन निकाल दिया। हमारे काबिल दोस्त माकन साहब यहां बैठे हुए हैं। पूरी दिल्ली में उन्होंने बोर्ड लगा दिए थे कि यह नोटफिकेशन निकाल दिया है, अब सारी दुकानें रेग्युलराइज हो गई हैं। उसके बाद इनको बधाइयों के इश्तहार भी पूरी दिल्ली में लगा दिए गए और बड़े-बड़े बोड्र्स लगाकर इनको बधाई के संदेश दिए गए। लेकिन उसके अगले ही दिन लोगों के मकान टूटने और दुकानों की सीलिंग शुरू हो गई, बुलडोजर चलने शुरू हो गए। जिस दिन इन्होंने नोटफिकेशन निकाला, उसके अगले दिन यह कार्रवाई शुरू हो गई। इसलिए आप जो कर रहे हैं, आप जल्दबाजी में यह कर रहे हैं। मेरा यह कहना है कि इस पर विचार करने की जरूरत है[R9] ।
दूसरी बात मैं यह कहना चाहता हूं, आपने कहा कि अब आगे कुछ नहीं होगा। पिछली एक जनवरी २००६ से लेकर आज तक जो आपकी आपराधिक लापरवाही के हुआ है, आपकी क्रिमनल नैगलिजेंसी से हुआ है, उसके बारे में कुछ नहीं लिखा है। करीब ४० हजार दुकानें सील हुई हैं। What happens to them? इसमें तो कुछ नहीं है कि वे ४० हजार दुकानें डी-सील होंगी या नहीं।I am saying there is nothing such in the Act. You have to make it in the Act also. आप गलत बात मत कहिये कि हो जाएंगी। कोर्ट के सामने पहले भी आपने कहा था लेकिन कुछ नहीं हुआ।
वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री (श्री पवन कुमार बंसल ): पहले कानून नहीं था।
प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा : कानून नहीं था, यह पर्सपैक्टिव है, कानून यह नहीं है कि वे डी-सील हो गयी हैं। वे रुक जाएंगी। Please read what it says:
“All notices issued by any local authority for initiating action… ”
फिर ये कि एक साल के लिए इसे रोक दिया जाए। जो ४० हजार दुकानें सील हो गयी हैं उनके बारे में भी इसमें कुछ डाला जाए। जो हजारों मकान तोड़े गये हैं, हजारों झुग्गियां हटा दी गयी हैं, जो हजारों रेहड़ी-पटरी वालों को निकाल दिया गया है उनका क्या होगा? एक जनवरी २००६ के बाद जो यह ६ महीनों में हुआ है यह सब आपके कारण से हुआ है उन लोगों का क्या होगा, इस एक्ट में इसे भी डालना पड़ेगा। जो सारे एक्शन लिये जा चुके हैं न कि वे जो लिये जाएंगे, उनको भी समाप्त कर दिया जाएगा, डी-सील कर दिया जाएगा। जो मकान तोड़ दिये गये हैं जिनको आप बाद में रैगुलराइज करेंगे और जिनको आप कह रहे हैं कि रैगुलराइज कर देंगे, लेकिन जिनके तोड़ डाले गये हैं उनका क्या कसूर था?
दिल्ली में किसी बड़े लीडर का मकान नहीं तोड़ा गया, मुख्यमंत्री जी से लेकर मंत्रियों तक, कॉरपोरेशन के मैम्बर्स से लेकर स्टेंडिंग कमेटी के चेयरमैन तक, सबके यहां अन-आथराइज्ड कंस्ट्रक्शन थी लेकिन उनको नहीं तोड़ा गया है, गरीब आदमियों के मकान तोड़ दिये गये हैं। क्या आप उनको दुबारा बनाएंगे? …( व्यवधान)
श्री राम कृपाल यादव : आपका तोड़ा या नहीं तोड़ा …( व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय : आप बैठ जाइये। प्रधान जी, आप बैठ जाइये।
…( व्यवधान)
MR. SPEAKER: He has not yielded.
… (Interruptions)
अध्यक्ष महोदय : आप क्यों परेशान होते हैं he is very competent.
… (Interruptions)
प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा : मेरा कहना है कि जो गरीब आदमियों के मकान तोड़ दिये गये हैं क्या आप उनको दुबारा बनाने की इजाजत देंगे। एक आदमी के ८० गज के प्लॉट में पीछे कवर किया हुआ था, उसको तोड़ दिया, लगातार बुलडोजर चलते रहे हैं। उनका जो नुकसान हुआ है क्या आप उसको कंपनसेशन देंगे? अगर आप तीन महीने पहले यह बिल लाते तो यह बर्बादी नहीं होती। यह सब बर्बादी आपकी वजह से हुई है। क्या आप उनको कंपनसेशन देंगे, उनको कंपनसेट करेंगे, उनको दुबारा बनाने देंगे, आल्टरनेटिव एक्मोडेशन देंगे। इस बिल में इसका कोई जिक्र नहीं है कि उनका क्या किया जाए।
आपने यह मिक्स्ड लैंड यूज का ब्लैंकिट बैन लगा दिया। जयपाल जी, आप बहुत काबिल हैं, बहुत योग्य हैं, बैस्ट पार्लियामेंटेरियन हैं लेकिन मिक्स्ड लैंड यूज की परिभाषा क्या है? उसकी परिभाषा यह है कि जो आपने वर्ड यूज किया है कि इसके अंदर जो मकान-मालिक खुद रहता हो और नीचे दुकान चलाता हो। दूसरी परिभाषा लिखी है कि वह उसे किराये पर न दे। आपने कहा कि मिक्स्ड लैंड यूज रोक देंगे। तो जो आपकी दुकान है उस पर एक्शन न हो। प्लीज आप मिक्स्ड लैंड यूज की बजाए कमर्शियल वर्ड यूज कर दें कि जो कमर्शियल एक्टिविटीज हैं एक जनवरी २००६ तक वह अपने में कमर्शियल एक्टिविटीज बनी रहेंगी। जब तक कि नये आर्डर आते तब तक आपकी बात चलती। लेकिन आपने कमर्शियल वर्ड यूज नहीं किया है मिक्स्ड लैंड वर्ड यूज किया है। मिक्स्ड लैंड यूज में वे कह रहे हैं कि ग्राउड फ्लोर में दुकान होगी, अगर ऊपर की जगह दुकान या ऑफिस है तो उसको सील कर दो, वह नहीं खोला जाएगा।
कल ही आर्डर आया है कि ६० फीट की सड़कों पर सीलिंग शुरू कर दी जाए। उन्होंने कहा है कि सिर्फ ग्राउड फ्लोर की दुकानों को छोड़ेंगे, ऊपर की सारी एक्टिविटीज बंद कर देंगे। Please, instead of using the words ‘mixed land use’ अगर आप कमर्शियल वर्ड यूज करते तो उनको रिलीफ मिलता[r10] ।
अध्यक्ष महोदय, मैं दूसरी बात भी कहना चाहता हूं कि कोई नैगेटिव लिस्ट भी रखनी चाहिए थी। यह अजीब बात है कि रेजिडेंशियल एरिया में डबल रोटी की दुकान तो बंद की जा रही है, लेकिन शराब की दुकानें खोल रखी हैं। शराब की लगभग डेढ़ सौ दुकानें रिहायशी इलाकों में हैं। आप देखिए कि उन्हें किसी तरह का रिलीफ न दिया जाए। अगर कोई बैंक्वेट हाल बनता है तो सारे इलाके के लिए मुसीबत हो जाती है। आपने क्या किया है, एक साल के लिए रोक लगाई है। क्या एक साल तक शराब की दुकानें घर में चलेंगी? एक साल तक पब चलेंगे, एक साल के लिए रिहायशी इलाके में बैंक्वेट हाल लोगों का जीना दूभर करेंगे। ये नेगेटिव चीजें हैं, जिन्हें रिलीफ नहीं मिलना चाहिए। यह बात भी इस बिल के अंदर आनी चाहिए थी। मेरा आपसे अनुरोध है कि This will not work. यह बात ज्यूडीशियल स्क्रुटिनी पर नहीं ठहरेगी। आप एमनेस्टी स्कीम के बारे में चिदम्बरम जी से राय लें। पेपरों में आ रहा है कि वे फिर से एमनेस्टी स्कीम बना रहे हैं। सारी सरकारी जमीनों को छोड़ कर, उनके अतिक्रमण को छोड़ कर और ऐसी जगहों की नेगेटिव लिस्ट बना कर और जो कुछ एक जनवरी, २००६ तक जो कुछ बन चुका है उन सब को कहें कि हमने एमनेस्टी स्कीम में रेग्युलराइज कर दिया है और भविष्य में बनने नहीं देंगे। भविष्य के बारे में कुछ नहीं कहा गया कि अगर कहीं कुछ ऐसा बन गया तो इसे रोकने के लिए डिसमिसल की जाए, उसे हटाया जाए। उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाए। ऐसे स्टीजेंट एक्शन लेने की जरूरत है। आप गलत बात बात मत कीजिए कि मास्टर प्लान अमेंड करके हम इन्हें बेनफिट देंगे। मास्टर प्लान अगले २० सालों के लिए है और यह नहीं हो सकता है कि सौ फीसदी चीजें इसके तहत कवर हो जाएं। मास्टर प्लान से इसे फायदा नहीं होगा। पिछले को रेग्युलराइज करके और भविष्य में सख्ती से रोक लगाने से ही काम चलेगा। इसलिए मैंने कहा कि It is too late and too little. Please consider all these points,
ताकि ऐसा न हो कि यह सैशन खत्म हो जाए और फिर यहां हाहाकार मच जाए और फिर जैसा तीन महीने पहले मैंने वार्न किया था लेकिन आपने सुना नहीं, मैं फिर से आपको चेतावनी देना चाहता हूं कि कृपया इस सैशन में एमनेस्टी स्कीम ला कर इन सबको रेग्युलराइज कर दीजिए, तभी ठीक होगा। बहुत कमियां होने के बाद भी हम चाहते हैं कि यह बिल पास हो जाए और हम इस बिल का समर्थन करते हैं।
श्री सज्जन कुमार (बाहरी दिल्ली) : अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी ने दिल्ली के लिए वर्ष २००० का विधेयक प्रस्तुत किया है, मैं उसके समर्थन में बोलने के लिए खड़ा हुआ हूं। मैं यह भी उम्मीद करता था कि माननीय विजय कुमार मल्होत्रा इस बिल का समर्थन करते हुए इसके ऊपर कोई टीका-टिप्पणी नहीं करेंगे, लेकिन लगता है कि श्री मल्होत्रा और भाजपा इस बिल का समर्थन करते हुए इस पर राजनीतिक रोटियां सेकनें का भी प्रयास कर रहे हैं। कल भी हमने देखा कि इन्होंने संसद की कार्यवाही नहीं चलने दी। जो विधेयक आज आया है, अध्यक्ष जी, आपने खुद कहा था कि इस विधेयक का हिंदी अनुवाद न होने की वजह से यह नहीं आ पाया, लेकिन उसके बावजूद मैं समझता हूं कि लोकसभा और राज्य सभा की कार्यवाही एक दिन न चलने देना, यह देश का और संसद का कितना बड़ा नुकसान हुआ है। श्री मल्होत्रा जी इस नुकसान का खुद अंदाजा लगा सकते हैं।…( व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय : श्री मल्होत्रा जी बोल चुके हैं।
…( व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय : मल्होत्रा जी ने अच्छी तरह से कहा है।
…( व्यवधान)
MR. SPEAKER: Nothing will be recorded except the speech of Shri Sajjan Kumar.
(Interruptions) …*
श्री सज्जन कुमार : महोदय, श्री मल्होत्रा जी जिक्र कर रहे थे कि सरकार पर आपराधिक मुकदमा बनाया जाए और कह रहे थे कि यह बिल तीन महीने लेट हुआ है। मैं श्री मल्होत्रा जी को याद दिलाना चाहता हूं कि यह विधेयक तीन महीने नहीं बल्कि १० साल लेट हुआ है। श्री मल्होत्रा जी आपको याद होगा कि आपकी अध्यक्षता में एक कमेटी बनी थी[i11] ।मास्टर प्लान २००१ बना था। उनमें कुछ संशोधन करने के लिए सुझाव दिए थे लेकिन आपके माननीय मंत्री श्री जगमोहन जी और उसके बाद जो दूसरे मंत्री आए थे, वह इस हाउस के मैम्बर भी हैं, उन्होंने आपकी कमेटी की रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में डाल दिया। यदि उस वक्त उस रिपोर्ट को मान लिया जाता तो शायद आज इतना बड़ा नुकसान दिल्ली के लोगों को नहीं उठाना पड़ता। भाजपा और एनडीए की सरकार कह रही है कि हमने लेट किया। आपको याद होगा कि २००१ में मास्टर प्लान लागू हो जाना चाहिए था। जरूरत इस बात की थी कि १९९८ में उस कार्य को शुरू करते
* Not Recorded.
लेकिन २००१ तक नया मास्टर प्लान बनाने के लिए कुछ नहीं किया। यदि नया मास्टर प्लान आ गया होता और लागू हो गया होता तो जिन चीजों के आप सुझाव दे रहे हैं यदि वे सारे सुझाव सम्मिलित कर दिए होते तो ४० हजार दुकानें सील नहीं होती और न ही हजारों मकान गिराए जाते। यदि उसके लिए कोई जिम्मेदार है तो पूरी तरह से भाजपा और एनडीए की सरकार जिम्मेदार है जिस ने मास्टर प्लान के लिए कुछ नहीं किया। हमारी सरकार आने के बाद यह काम हुआ। मैं जयपाल रेड्डी जी, अजय माकन जी और केन्द्र सरकार को बधाई देना चाहता हूं। हमने नया मास्टर प्लान बनाने का काम शुरू किया और जन-प्रतनधियों को शरीक किया तथा दिल्ली के सभी लोगों को सम्मिलित किया। जैसा माननीय मंत्री जी ने कहा कि करीब सात हजार सुझाव आए हैं। हम चाहते थे कि अदालत से समय मिलता और उसमें तेजेन्द्र खन्ना की अध्यक्षता में बनी कमेटी के सुझाव शरीक होते। माननीय विजय कुमार जी, हम पिछले मास्टर प्लान में संशोधन करके अदालत के समक्ष गए लेकिन कामयाब नहीं हुए। अब एक साल के लिए स्टे करने का काम किया है। मुझे उम्मीद थी कि आप उसका स्वागत करते हुए सिर्फ इतना कहते कि इसे जल्दी से जल्दी लागू किया जाए।
आप पटरी, रेहड़ी लगाने वालों और अनऑथोराइज्ड कॉलोनियों की बात कर रहे हैं। आप जरा याद करिए, अगर ये अनऑथोराइज्ड कॉलोनियां रैगुलराइज्ड नहीं हुईं तो उसके लिए कौन जिम्मेदार है? माननीय …… *ने ही जनहित याचिका डाली थी। उन्होंने कहा क इन अनऑथोराइज्ड कॉलोनियों को पास न किया जाए और झुग्गी:झोंपड़ी क्लस्टर को दिल्ली से हटाया जाए। …( व्यवधान)
MR. SPEAKER: I will see that. I am deleting it. आप नाम मत लीजिए।
श्री सज्जन कुमार : उन्होंने कहा कि जो लोग सड़कों पर पटरी और रेहड़ी लगाते हैं, उनको हटाया जाए। वह अदालत गए। हम अदालत नहीं गए। आप यहां खड़े होकर कुछ कहते हैं और बाहर जाकर कुछ कहते हैं। मैं जानता हूं कि आपको झुग्गी-झोंपड़ी वालों की तकलीफ नहीं हुई, रेहड़ी-पटरी वालों की तकलीफ नहीं हुई, अनऑथोराइज्ड कॉलोनियों की तकलीफ नहीं हुई, आपको बड़े-बड़े घरानों की तकलीफ होती है। आपको गरीब से कोई लेना-देना नहीं है। मैं समझता हूं कि इसके लिए भाजपा और एनडीए की सरकार जिम्मेदार है।
माननीय मंत्री जी, आप नया मास्टर प्लान ला रहे हैं। नए मास्टर प्लान में जब तक इन सभी चीजों को सम्मिलित नहीं करेंगे तब तक दिल्ली के लोगों को रिलीफ नहीं दे पाएंगे। मैं उम्मीद करता हूं कि हमने
* Not Recorded.
और आपने जो कुछ मास्टर प्लान में अच्छे सुझाव दिए हैं, उन सभी को सम्मिलित करेंगें।
मैं एक और बात के बारे में निवेदन करना चाहता हूं। १९०८ में दिल्ली में हदबंदी हुई थी। ग्रामीण क्षेत्रों का लाल डोरा बनाया गया था और उसे रैजिडैंशिअल बना सकते हैं लेकिन बाकी खेती की जमीन होगी। १९०८ के लाल डोरा के अन्दर भी बहुत भारी डैमोल्यूशन हुआ। उसमें भी अदालत का आदेश आया है[R12] ।
माननीय मंत्री जी जो बिल लाए हैं, मैंने देखा है इसमें लालडोरा और गांव का जिक्र नहीं है। यदि आपने कवर किया है तो ठीक है, आप उसमें कवर कर लें क्योंकि गांव से शहर बसा है और गांव से कालोनी बसी है, गांव से ही सब कुछ हुआ है। लेकिन मैं आपकी सेवा में प्रार्थना करना चाहता हूं और यह भी कहना चाहता हूं कि वर्ष २००१ के मास्टर प्लान के लिए कौन जिम्मेदार है? आज जो अनऑथोराइज्ड दुकानें बनी हैं, उसके लिए कौन जिम्मेदार है? अनऑथोराइज्ड कन्स्ट्रक्शन के लिए कौन जिम्मेदार है? डी.डी.ए. को दुकानें बनाकर देनी चाहिए थीं, रूल्स के मुताबिक बनाकर देनी चाहिए थीं और मास्टर प्लान में आपने जो कहा है, उसके मुताबिक बनाकर देनी चाहिए थी। लेकिन कुल १६ प्रतिशत दुकानें बनी हैं और ८४ प्रतिशत डी.डी.ए. दुकानें बनाकर नहीं दे सका। आखिर लोग दुकानें खरीदने के लिए कहां जाएंगे? वे सड़कों पर दुकानें खोलेंगे। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? उन मकानों के लिए कौन जिम्मेदार है? इसके लिए सीधे-सीधे बनाने वाला डी.डी.ए. जिम्मेदार है। हम दिल्ली के लोगों को दिल्ली की जरूरत के मुताबिक मकान नहीं दे सके इसलिए वहां अनऑथोराइज्ड कालोनियां बनी, लोगों ने दुकानें बनाईं और झुग्गी-झोपड़ी और कलस्टर बने। मैं समझता हूं कि इसमें लोगों के साथ सरकार भी जिम्मेदार है इसलिए इस बात को ध्यान में रखते हुए नियम बनाए जाएं। जैसा प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा जी कह रहे हैं कि उन पर जुर्माना लगा दीजिए, उन पर पैनेल्टी लगा दीजिए लेकिन कहीं न कहीं दिल्ली का स्वरूप बना रहे, दिल्ली सुंदर भी बनी रहे। हम भी यही चाहते हैं और हमारी पार्टी की तरफ से हमने कहा है कि जिस सरकारी जमीन पर एन्क्रोचमेंट है, हम इसके साथ सहमत नहीं हैं इसलिए उसे तुरंत हटा दिया जाए।लेकिन इस वक्त मौजूदा जो अनऑथोराइज्ड कन्स्ट्रक्शन हो रही है, उसे रोका जाए। हम इसके खिलाफ हैं। लेकिन जो मौजूदा बने हुए हैं, उन्हें रिलीफ देने का काम किया जाए। मैं समझता हूं कि डॉ. मनमोहन सिंह जी की सरकार में माननीय मंत्री जी जरूर छूट देंगे और दिल्ली के लाखों लोग, जो भयभीत हैं, उन्हें रिलीफ मिलेगा। मैं पुन: एक बार इस बिल का स्वागत करता हूं। आपने मुझे बोलने का मौका दिया इसके लिए मैं आपका धन्यवाद करता हूं।
श्री हन्नान मोल्लाह (उलूबेरिया) : अध्यक्ष महोदय, सदन में जो विधेयक लाया गया है, वह देर से आया है। इसके लिए जैसा एक कारण बताया गया है और यह समस्या सरकार के सामने थी। लेकिन पिछली जितनी भी सरकारें थीं, उन सब सरकारों ने उपेक्षा की है और जिम्मेदारी को निभाया नहीं है। इसमें भ्रष्टाचार दोनों में है, एक तो सरकार की उपेक्षा थी और दूसरा अफसरों में भ्रष्टाचार था। भ्रष्टाचार के कारण लोगों ने अनऑथोराइजेशन बढ़ाया लेकिन किसी अफसर ने हटाने का काम नहीं किया, ऐसा होता रहता है। अगर आज के बाद भविष्य में अनऑथोराइज्ड ऑक्यूपाई या दखल होगा और उस पर कोई कार्यवाही न होगी, जिस अफसर के अंडर होगा और उस पर कोई कार्यवाही न होगी तो ऐसा भविष्य में होता रहेगा। करप्शन और सरकार की उपेक्षा, इन दोनों कारणों की वजह से आज यह परिस्थिति पैदा हुई है। यह परिस्थिति हजारों लोगों के लिए पैदा हुई है, इसका यह मुख्य कारण है। आज अदालत को मौका मिला है और यह परिस्थिति पैदा हुई है। यह सरकार की जिम्मेदारी है। पिछली सरकारों की नाकामयाबी, उपेक्षा और इनएफशिएंसी और करप्शन के कारण यह परिस्थिति पैदा हुई है इसलिए जल्दी में इसे करना पड़ रहा है। बड़े-बड़े दुकानदारों के दबाव के कारण यह बिल डिस्कशन के लिए आया है। इसे स्टैंडिंग कमेटी में ले जाने का समय नहीं है। वाइड डिस्कशन की बात कही जा रही है, यह कहां डिस्कस होगा? लेकिन यह देश की सबसे बड़ी पंचायत की कमेटी में डिस्कस हो, ऐसी परिस्थिति पैदा नहीं हुई है। लेकिन अर्जेंसी पैदा हुई है। पिछली सरकारों के निकम्मेपन की वजह से आज इसे जल्दी से पारित करना पड़ेगा। मैं मानता हूं कि इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए भविष्य के लिए फैसला करना चाहिए। अभी जैसा कमेटी के बारे में कहा गया है, मेरी जानकारी के मुताबिक एक कमेटी बनाई गई है[v13] ।
अभी ए. से डी. तक जो कैटेगरीज हैं, उनकी आठ कैटेगरीज बनाने के बारे में सरकार सोच रही है और शायद कमेटी भी ऐसा सोच रही है कि जो ए. से डी. तक कैटेगरीज हैं, ये पॉश कालोनियों के लिए होंगी। इन एरियाज को इन चार कैटेगरीज में रखा जायेगा। लेकिन जो बाकी चार कैटेगरीज होंगी, वे पूअर और मडिल क्लास के लोगों के लिए होंगी। इस तरह से इन एरियाज का कैटेगराइजेशन किया जायेगा। मगर सरकार क्या कर रही है। यदि सरकार यह सोच रही है कि जो अमीर लोगों के एरियाज हैं, उन एरियाज में भविष्य में दुकानों को तोड़ने की परमीशन दी जायेगी, क्योंकि उस एरिया में जो बिजली और पानी वहां की जनता इस्तेमाल करती है, उस बिजली और पानी को बड़े-बड़े दुकानदार, शोरूम्स और शादीघर आदि ज्यादा इस्तेमाल कर लेते हैं और वहां की लोकेलिटी को बिजली और पानी नहीं मिलता है। इसलिए यदि आप अमीर लोगों के एरियाज में इन्हें तोड़ेंगे तो वहां के लोगों को और अधिक सुविधाएं मिलेंगी। लेकिन जहां गरीब और मडिल क्लास के लोग रह रहे हैं, वहां इन दुकान आदि को चालू रखने का फैसला होने जा रहा है, जो ठीक नहीं होगा। इन एरियाज में गरीब और मडिल क्लास के लोगों को पहले से ही बिजली और पानी कम मिलता है, यदि इन जगहों पर व्यापार चलते रहेंगे तो इन इलाकों के लोगों के लिए बिजली और पानी की समस्या पैदा होगी। जैसा कोर्ट ने बताया है, वह सही बताया है कि जो बड़ी-बड़ी जगहें हैं, वहां इस कानून को लागू करना है, लेकिन जहां दिन-प्रतदिन की जरूरत की चीजों की दुकाने हैं, उन्हें छोड़ देना चाहिए और जो शादीघर, बड़े-बड़े शोरूम्स आदि हैं, जो दिन-प्रतदिन की जरूरत में नहीं आते हैं। इन चीजों को लेने के लिए लोग दूर जाकर दो-चार महीने में एक-दो बार खरीद सकते हैं। इसलिए सरकार को इस बारे में सही द्ृष्टिकोण रखना चाहिए और कैटेगराइजेशन में डिस्क्रिमिनेशन नहीं होना चाहिए। मैं समझता हूं कि जहां बड़े लोग रहते हैं, वहां इस तरह की छूट नहीं देनी चाहिए तथा मडिल क्लास, लोअर मडिल क्लास और गरीब लोगों के बारे में सरकार की जो सोच है, उसे बदलना चाहिए।
इसके साथ ही मैं एक बात और कहना चाहता हूं कि जो डिमोलिशन हो रहा है, उसके तहत जो स्लम क्लस्टर्स हैं, झुग्गी-झोंपड़ियां हैं, इन्हें पिछले काफी समय से हटाया जा रहा है। इनके बारे में सरकार ने तय किया था कि इन्हें शहरों से दूर लेकर बसाया जायेगा। लेकिन पिछले सात-आठ सालों से इस बात का कोई फायदा नहीं हुआ। जो जगहें इनके लिए बनाई गई हैं, उनके बारे में सरकार एक भी मिसाल नहीं दे सकती कि ऐसा कोई इलाका डवलप किया गया है तथा उसे कोई बिजली, पानी या अन्य कोई नागरिक सुविधा दी है। मैं नहीं समझता कि सरकार ने ऐसा कुछ किया है। आप जो बात कह रहे हैं, उसमें इस बात की क्या गारंटी है कि इसके कारण जो १२ लाख स्लम ड्वैलर्स सफर करेंगे, उन्हें कोई सुविधा मिलेगी। इसलिए उनके लिए सरकार को सही कदम उठाना चाहिए। यह बात सच है कि स्लम ड्वैलर्स के लिए पिछली सरकार ने भी ऐसा ही किया था और अभी भी यह चल रहा है, इसे रोकना चाहिए और स्लम ड्वैलर्स के सामने अनेक समस्याएं हैं, आप उन्हें दूर शिफ्ट कर रहे हैं। हम जानना चाहते हैं कि आप उन्हें कितनी दूर शिफ्ट करेंगे। यदि आप उन्हें दूर शिफ्ट करेंगे तो वे अपने कामों पर कैसे आयेंगे। इसलिए सरकार को उन्हें सुविधाएं देने के बारे में कुछ कदम उठाने चाहिए।
दूसरी बात मैं कहना चाहता हूं कि इल्लीगल कंस्ट्रक्शन का मामला है तथा जो हॉकर्स के इविक्शन की बात है, दिल्ली में इनकी संख्या चार लाख से अधिक है। ये हॉकर्स कहां जायेंगे। जैसा सरकार ने बताया कि डी.डी.ए. अपनी योजना में असफल हुआ और इन लोगों को जगह नहीं दे पाया। जिसके कारण ये लोग इधर-उधर बैठकर अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं। आज इन्हें हटाने के बारे में सरकार जो सोच रही है, उस पर सरकार को सही ढंग से विचार करना चाहिए। इन लोगों के अधिकारों पर हमला करने का किसी को हक नहीं है। आज ऐसा दिखाई पड़ रहा है कि दिल्ली में सिर्फ इलीट लोग रहेंगे, अमीर लोग रहेंगे और गरीब लोगों के लिए दिल्ली में कोई जगह नहीं रहेगी, ये लोग आउटस्कर्ट में रहेंगे। गरीब लोग जिंदा रहें या न रहें, उन्हें सुविधाएं मिले या न मिलें, इस तरह की जो परिस्थिति चल रही है, इसे सरकार को देखना चाहिए। क्योंकि कॉमन मनिमम प्रोग्राम में जो बात कही गई थी कि स्लम ड्वैलर्स, हॉकर्स और जो गरीब लोग हैं, उन्हें कोई असुविधा पैदा नहीं होगी। लेकिन आज वही परिस्थिति चल रही है। इसलिए आने वाले दिनों में जो एक साल का समय मिलेगा, जिसमें सरकार सारे प्लान बनायेगी, उस प्लान में सारे लोगों के इंटरैस्ट का ध्यान रखे और सारी पार्टियों का सहयोग लेकर इस मास्टर प्लान को कम्पलीट करे और इसी के आधार पर इसे सुधारने का काम करेगी, तभी हम इसे बचा पायेंगे।
13.00 hrs.
श्री मोहन सिंह (देवरिया) : अध्यक्ष महोदय, मैं इस विधेयक का समर्थन करने के लिए खड़ा हुआ हूं। मुझे खुशी है कि देर से ही सही, मंत्री जी को कुछ गरीब और परेशान लोगों की चिन्ता हुई। दुस्वारी यह है कि जो कोई भी दिल्ली में सरकार बनाता है और दुनिया की सैर करता है, उसको भारत की राजधानी की भी चिन्ता हो जाती है। इसीलिए जब इमरजेंसी का दौर था, जगमोहन जी यहां के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे तो दिल्ली की सफाई का अभियान, इमरजेंसी के कानून का इस्तेमाल करके बड़ी तेजी से हुआ और उसका दंड १९७७ के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को भोगना पड़ा। फिर भारतीय जनता पार्टी के लोग भी यहां बैठे हैं और हमारे मित्र गोयल जी को और जगमोहन जी को फिर से दिल्ली को वल्र्ड क्लॉस सिटी बनाने की चिन्ता सवार हुई और सारे भवन जो चांदनी चौक के थे, उनको गिराकर ब्यूटीफिकेशन का एक अभियान चला। भारतीय जनता पार्टी के भीतर ही द्वन्द शुरू हुआ और खुराना जी ने मंत्री रहते हुए, जो अभियान चल रहा था, उसके खिलाफ जगमोहन जी के खिलाफ वक्तव्य दिया। नतीजा क्या हुआ कि भारतीय जनता पार्टी, उसमें एक हमारे बड़े भाई मल्होत्रा जी को छोड़कर पूरी भारतीय जनता पार्टी का सफाया दिल्ली को वल्र्ड क्लॉस सिटी बनाने में हो गया। अब इस बार सुप्रीम कोर्ट ने अभियान चलाया कि वल्र्ड क्लॉस सिटी बनाओ और उसकी जो लपट इनके ऊपर आने लगी तो साल भर के बाद इनको चिन्ता सवार हुई कि उनका वाला हश्र हमारा न हो, तो इस विधेयक को देर से ही, रेड्डी साहब लेकर आए हैं। इसलिए यह झुग्गी-झोंपड़ी बचाओ विधेयक नहीं है, कांग्रेस की सरकार बचाओ, विधेयक है। …( व्यवधान)
इसलिए मैं इसका समर्थन करता हूं और मैं कुछ सुझाव देना चाहता हूं क्योंकि भारत की राजधानी में दो लाख लोग हर साल बढ़ जाते हैं। जिस तरह से क्षेत्रीय विषमता बढ़ रही है, गांवों में बेरोजगारी बढ़ रही है और जो साधन बढ़ रहे हैं, पिछले पचास वर्ष में एक करोड़ से अधिक लोग दिल्ली शहर में आए हैं। उसका कारण है कि हर साल जिस शहर में न पीने का पानी है ,न बिजली है, न लोगों के रहने के लिए घर है, केवल इसलिए कि मेहनत करके दोनों वक्त हम भोजन कर लेंगे, इस लालच में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों ने इधर दौड़ लगानी शुरू की। आजादी के पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की दौड़ कलकत्ता शहर की ओर होती थी, हावड़ा में जाते थे लेकिन जब कुछ उधर के चक्कर बंद हुए तो लोगों की दौड़ दिल्ली की तरफ शुरू हुई। अब जब यहां आते हैं, फुटपाथ पर सोते हैं तो डंडा लेकर पुलिस उनको मारने के लिए दौड़ पड़ती है। इन दोनों के बीच का एक रास्ता भारत सरकार को निकालना चाहिए। दिल्ली शहर अनऑथोराइज्ड कॉलोनी का एक महानगर न बन जाए, यह भी हमारी कोशिश होनी चाहिए और उसी तरह से जो सड़क पर सोकर अपना पेट पालने के लिए दिल्ली शहर में आए हैं, उनके भी हित की हम रक्षा कर सकें, इसका भी प्रयास होना चाहिए। एक अभियान चला कि दिल्ली शहर के रिहायशी इलाकों से जितने कल-कारखाने हैं, इनको बाहर कर दिया जाए। उन्हें बाहर तो कर दिया, लेकिन लाखों लोग बेरोजगार हो गये, सड़क पर आ गये लेकिन वह जो कल-कारखानों की जमीन थी, उसको बहुत ही थ्रो-अवे प्राइस पर हम नहीं कह सकते, ऊंचे दाम पर बेचकर बिल्डर्स ने इसको खरीदा और रिहायशी इलाका वहां बनाया जाने लगा।
मेरा सुझाव होगा कि दिल्ली का प्रबन्धन करने के लिए तीन बड़ी संस्थाएं हैं। एक तो म्युनसिपल कॉरपोरेशन दिल्ली है, दूसरी नई दिल्ली म्युनसिपल कॉरपोरशन दिल्ली है और डी.डी.ए.(दिल्ली डैवलपमेंट ऑथोरिटी) है। दिल्ली इतनी बड़ी हो गई कि अकेले डी.डी.ए. उसका ठीक से रख-रखाव नहीं कर सकी, इसलिए मेरा सुझाव होगा कि यदि माननीय मंत्री जी दिल्ली का प्रबन्धन ठीक से करना चाहते हैं तो डी.डी.ए. जैसी तीन ऑथोरिटीज इस शहर के लिए बननी चाहिए। एक आउटर रिंग रोड से बाहर और एक इनर और आउटर रिंग रोड के बीच में और उसके बीच का जो इलाका है, उसके प्रबन्धन के लिए डी.डी.ए. जैसी तीन ऑथोरिटीज बननी चाहिए, यही मेरा सुझाव होगा।
दूसरे, जो एंटी-एनक्रोचमेंट ड्राइव होती है, वह नई दिल्ली म्युनसिपल कॉरपोरेशन से बाहर ही होती है[R14] । इस बारे में रोज़ अखबारों में खबर छपती है, सुप्रीम कोर्ट कहती है। जिसे हम दिल्ली लुटियन ज़ोन कहते हैं, उस पुराने इलाके के नाम को, उसे बनाने वाले इंजीनियर लुटियन के नाम पर रखा गया लेकिन आज भी कहा जाता है कजितने अनधिकृत इलाकें हैं, उन पर कोई अभियान नहीं चलता है जहां पर चलना चाहिये था। इसलिये मैं आग्रहपूर्वक कहना चाहूंगा कि एन.डी.एम.सी. पर भी इसकी जिम्मेदारी है, केवल अदालतों पर यह जिम्मेदारी नहीं है, सरकार उसे पूरा करे। इसके अलावा हमने जो एक महानगर बनाने की कोशिश की थी कि कैपिटल सिटी के आसपास जो वृहद् महा य़ोजना है जिसे हम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कहते हैं, चाहे उत्तर प्रदेश के उसमें आने वाले इलाके हों, चाहे हरियाणा के आने वाले इलाके हों। भारत सरकार ने सोचा है कि दिल्ली के आसपास के जितने छोटे छोटे शहर हैं, उन्हें बड़ा बनाना है। इसलिये मैं आग्रहपूर्वक कहूंगा कि जो राज्य सरकारें हैं उनकी सीमा में विकास नहीं हो पायेगा क्योंकि नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुड़गांव या फरीदाबाद, जिनका हम उपयोग करना चाहते हैं, उनका वृहदीकरण राज्य सरकार नहीं कर सकती हैं, उसमें केन्द्र सरकार को सहयोग करना चाहिये। जब तक हम राजधानी क्षेत्र दिल्ली के शहर से जुड़े हुये इलाकों को खूबसूरत नहीं बनायेंगे, वहां बिजली और पानी मुहैय्या नहीं करेंगे तो मैं समझता हूं कि दिल्ली शहर को न्यूयार्क बनाये जाने का सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश है, कोई सरकार उसे नहीं कर सकती है।
अध्यक्ष महोदय,. दिल्ली शहर की मुख्य समस्या पर भारत सरकार गम्भीरतापूर्वक विचार करे। मास्टर प्लान की तरह इसकी एक दीर्घकालीन योजना बनाये। इन्हीं शब्दों और इन्हीं सुझावों के साथ मैं इस विधेयक का समर्थन करता हूं और माननीय मंत्री जी को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने सही समय पर इस विधेयक को लाने का निर्णय लिया।
श्री देवेन्द्र प्रसाद यादव (झंझारपुर) अध्यक्ष महोदय, दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) विधेयक, २००६ पर आज सदन में चर्चा हो रही है। माननीय मलहोत्रा जी ने यहां तक कह दिया कि इस कानून में विलम्ब का कारण सरकार का आपराधिक कारण है। मैं मलहोत्रा जी का जिक्र किसी इंटैशन से नहीं कर रहा हूं। मैं जानना चाहता हूं क यह २००१ का मास्टर प्लान था, उसके आधार पर यह कार्य १९९८-९९ में शुरु होना चाहिये था। चूंकि २००३ में एन.डी.ए. शासनकाल के दौरान इस मामले को जोर से उठाया गया था तो जो विलम्ब हुआ उसमें इनकी भी समान रूप से भागीदारी रही है। इन्होंने इस मामले को गम्भीरता से नहीं लिया। यहां तक कि श्री मलहोत्रा जी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी जिसमें इन्होंने कह दिया कि जो इल्लीगल हैं, उन्हें रैगुलराइज़ कर दिया जाये। कुछ महत्वपूर्ण अनुशंसायें की गई थीं जिन्हें तत्कालीन शहरी विकास मंत्री श्री जगमोहन और श्री अनंत कुमार ने रिजैक्ट कर दिया था। इसलिये इन सब के लिये सरकार पर विलम्ब का कारण थोपना कहां तक उचित है? सत्ता पर कारण थोपना कहां तक ठीक है जबकि इन्हें अपने गिरेबान में झांकना चाहिये।
अध्यक्ष जी, यह विषय दिल्ली की बढ़ती हुई आबादी से जुड़ा हुआ है। यह मामला किसी दल विशेष से नही जुड़ा हुआ है। अगर आजादी के ५७ वर्षों का हिसाब लिया जाये तो मालूम होगा कि गांवों में जॉब ओरिएंटेड काम नहीं हैं जहां उन्हें रोज़गार नहीं मिला, इसलिये वे शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। इससे शहरों में कंजैशन हुआ, किसी को ट्रेफिक में दिक्कत पड़ी, कुछ लोग दिल्ली को क्लास-१ सिटी बनाना चाहते हैं और कुछ लोग दिल्ली में न्यूयार्क का सपना दिखाना चाहते हैं। उधर सुप्रीम कोर्ट एक्जीक्यूटिव पर भारी पड़ती है और वह अपना निर्णय एग्जीक्यूटिव पर थोपना चाहती है। मैं न्यायालय पर चर्चा नहीं करना चाहता लेकिन कल इस सदन में इस बारे में चर्चा करनी होगी। गन्दे नाले की सफाई करनी हो या टीचर्स का मामला निपटाना हो – क्या ये सब काम न्यायालय देखेगा? लगातार सुप्रीम कोर्ट में अतिक्रमण के बारे में चर्चा हो रही है लेकिन यह बुनियादी सवाल है जिस पर कार्यपालिका का हक है। आज लगातार कार्यपालिका के काम में हस्तक्षेप हो रहा है। इससे देश के अंदर बहुत ही महत्वपूर्ण परिस्थिति पेदा हुई है। संसदीय सरकार अपना काम करेगी या नहीं? कोई भी काम हो, उसके लिये न्ययायालय में पहुंच जाते हैं जैसे लगता है कहम लोग नाकारा हैं और संसद बिलकुल नाकारा हो चुकी है ।
संसद बिल्कुल नाकारा हो चुकी है। यह लोकतंत्र का सर्वोच्च सदन है जहां हमें कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है। आज बिल पर चर्चा हो रही है और हम कानून बनाने जा रहे हैं मगर इस कानून को कौन परिभाषित करेगा, इसकी व्याख्या कौन करेगा – न्यायालय करेगा। यदि न्यायालय इसकी व्याख्या दूसरी तरह से कर दे तो यह सारा कानून और सारी एक्सरसाइज़ जो इस विधेयक को पास करने की हम कर रहे हैं, इसको लाने की आवश्यकता और अनिवार्यता समझ रहे हैं, इस पर पानी फिर सकता है। मैं इस बिल के माध्यम से एक अर्ज़ और करना चाहता हूं चूंकि आप आसन पर हैं। मैं कहना चाहता हूं कि एक दिन विस्तार से इस पर बहस हो जाए क्योंकि संविधान ने हमारी सीमाएं निर्धारित कर दी हैं। न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका की सीमाएं निर्धारित हैं। इसके बाद भी रोज़ लक्ष्मण रेखा लांघी जा रही है। यह एक नई परिस्थिति पैदा हो रही है। इस पर हम निवेदनपूर्वक कह रहे हैं कि इस पर विचार करना जरूरी है। यह सामयिक सवाल है। हर संसदीय कार्य में, जो कि विधाई कार्य होता है, उसमें हस्तक्षेप किया जाता है। आखिर क्या होगा? लोकतंत्र में संविधान सबसे ऊपर है और हमारे भारतीय संविधान के तहत जो प्रावधान हैं, उसके तहत जो कार्य हमें सीमांकित किये गये हैं, उसके तहत हमें अपने कार्य करने की, दूसरी संस्थाओं के प्रति रिस्पैक्ट करने की आदत नहीं है तो उसके लिए कोई न कोई बहस होनी चाहिए। आदत खराब हो रही है, सीमां लांघी जा रही है, लक्ष्मण रेखा लांघी जा रही है, इसीलिए यह परिस्थिति पैदा हो रही है। ठीक कहा, पहले ८० फुट था, अब ६० फुट से ऊपर भी होगा। आज चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि एपीएल क्लास इस तोड़-फोड़ से बड़ी तेज़ी से प्रभावित हुई है। जो कॉमर्शियल एक्टिविटी करने वाले लोग हैं, वे सामने दिखते हैं। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोग स्लम्स में रह रहे हैं, रेहड़ी-पटरी लगाकर अपना जीवन बिता रहे हैं, झुग्गी झोंपड़ियों में अपनी ज़िन्दगी बिता रहे हैं, जिनको प्रदूषण के नाम पर इसी न्यायालय के आदेश से लाखों लोगों को पावर्टी ट्रेन में बैठाकर पिछले साल बिहार, पश्चिम बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश और असम भेजा गया। उस समय ये क्या कर रहे थे? उस समय नींद क्यों नहीं टूटी थी? यह समस्या तो कल आनी ही थी। लाखों लोगों को कारखाने बंद करने के नाम पर, प्रदूषण फैलाने के नाम पर उजाड़ा जा रहा है। क्या प्रदूषण को केवल गरीब लोग ही ठीक करेंगे? आज दिल्ली की चमक इन गरीबों और कारीगरों की मेहनत से है। झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने वाले लोग नाली साफ करते हैं, सफाई का काम करते हैं, बिजली के तार लगाते हैं, अस्पतालों में सफाई का काम कररते हैं, खोमचा लगाकर पेपर बेचने का काम करते हैं। दिल्ली की चमक और सौन्दर्य इनके कारण ही है। लेकिन आज कहा जा रहा है कि जिन गरीबों की मेहनत से दिल्ली चमक रही है, उन मेहनतकश लोगों को दिल्ली से १०० किलोमीटर बाहर फेक दो। यह पॉलिसी है।
प्रो. राम गोपाल यादव (सम्भल) : गाय-भैंस भी नहीं रख सकते।
श्री देवेन्द्र प्रसाद यादव : कुछ नहीं रख सकते। इन लोगों को दिल्ली से १०० किलोमीटर बाहर ले जाओ। गरीबों के पास न गाड़ी है, न कार है, वह कैसे दिल्ली में काम करने आएगा? यह दिल्ली का मास्टर प्लान बन रहा है। मैं दुख के साथ कह रहा हूं कि पूवार्ंचल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम के लगभग ४०-५० लाख लोग यहां हैं जो गरीबी के कारण, बेरोज़गारी के कारण और बाढ़ तथा सुखाड़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण दिल्ली में झुग्गी-झोंपड़ियों में रह रहे हैं और अपना गुजर-बसर कर रहे हैं। उनके साथ लगातार अन्याय हो रहा है, उनको उजाड़ा जा रहा है। सबसे पहले एनडीएमसी का बुलडोज़र उनकी झुग्गी-झोपड़ियों पर ही चलता है। मैंने इसलिए इस बात का जिक्र किया कि पंडित नेहरू के समय में और इंदिरा गांधी के शासन काल में १९६२ और १९८४ तक क्रमश: ८० गज, ६० गज और ४० गज के प्लाट का आबंटन किया गया था जिसमें गरीब लोगों को कोई रकम नहीं देनी पड़ती थी।
प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा : हमने ८० गज किया था।
श्री देवेन्द्र प्रसाद यादव : उसमें कोई रकम नहीं देनी पड़ती थी। स्वर्गीय राजीव गांधी जी के समय में भी ४० से २५ गज के प्लाट आबंटित किये गये थे। १९९० में पूर्व प्रधान मंत्री वी.पी.सिंह जी के शासन काल में झोपड़ियों को नियमित करने का काम प्रारंभ हुआ था जो अधूरा रह गया। वर्ष २००० में जब मास्टर प्लान की चर्चा हुई तो भारी तादाद में झुग्गी-झोपड़ियों की तोड़-फोड़ हुई और सब जगह यह काम शुरू हुअ्ाा[h15] ।
जो सरकार बहुमंजिली बना करके आबंटन करना चाहती है, उसमें लगभग १ लाख ५५ हजार लागत आ रही है, जो गरीब झुग्गी वासियों के लिए असंभव है। इसलिए मेरा निवेदन है कि या तो उन्हें खाली प्लाट दें और अगर खाली प्लाट देने में कोई दिक्कत हो तो ऐसे लोगों को मुफ्त में या नोमिनल राशि लेकर मकान उपलब्ध कराया जाए। वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में १००० झुग्गियों को बिना सूचना के तोड़ा गया, जिनके पास ३० साल पुराने राशन कार्ड आदि सभी दस्तावेज मौजूद हैं, उन्हें भी वहां से भगाया जा रहा है। नगला माची, मिन्टो रोड, लक्ष्मी नगर जैसे क्षेत्रों में झुग्गीवासियों को, कार्डधारी लोगों को तत्काल बसाना जरूरी है। जिन झुग्गीवासियों का १९९० में पहचान-पत्र बना, टोकन बना, उन्हें साढ़े अठारह मीटर, और जिसके पास १९९० का टोकन नहीं है, उस कार्डधारी को साढ़े बारह मीटर प्लाट आबंटन करते समय ७००० रुपए जमा करना पड़ता था। यह व्यवस्था अब क्यों नहीं हो सकती है? …( व्यवधान) अभी भी जो ७००० रुपए लाएगा, उसे मकान दिया जा सकता है। …( व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय, मैं प्रेक्टीकल बात बता रहा था, इसलिए मैं निवेदन करना चाहता हूं कि राष्ट्रीय राजधानी में इन गरीब लोगों को बसाना जरूरी है। मैं इस विधेयक का इसलिए समर्थन कर रहा हूं, जो तेजेन्द्र खन्ना कमेटी बनी थी, उस समति की क्या अनुशंसा है, उस बारे में मैं नहीं कह सकता हूं, लेकिन जो भी अनियमित, लगभग १४०० अप्राधिकृत कालोनियां हैं, इर्रेगुलर हैं, उन्हें रेगुलर करने के लिए और जो चार लाख के करीब होकर्स लोग हैं, उन्हें आबादी के आधार पर बसाने का और झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले जो गरीब लोग हैं, गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोग हैं, उन्हें बसाने के लिए विचार किया जाए, गरीब लोगों को उजाड़ने का काम न हो।…( व्यवधान) यही कहते हुए मैं इस विधेयक का समर्थन करता हूं।
SHRI BRAJA KISHORE TRIPATHY (PURI): Hon. Speaker, Sir, this Bill has been introduced today and the Parliament has been in Session since last three days. Sir, hon. Minister has gone to the Media two days back. I do not appreciate such action of the hon. Minister. When the Parliament is in Session and the Bill is not introduced, a Minister should not have gone to Media two days back.
This legislation is envisaged in regard to certain enforcement to be kept in abeyance for a period of one year. Also, it is intended to take all possible measures to finalise norms, policies, guidelines and feasible strategies to deal with the problems of unauthorised development in Delhi. This Bill also provides for it not to apply in certain cases. I do not want to go into the details. These are there in the Bill itself.
Everybody knows the growth and demand for housing and commercialisation and there is a growing gap between the demand and supply in Delhi in particular. The entire country is suffering for this thing. It is because the people are not getting employment in rural areas and they are flowing to the urban areas. This is a problem of the country. Government should think to tackle this problem. The population is growing so much in the urban areas and because of employment it is creating a lot of problems, as no civic amenities are available. So, the Government should think in that way. Along with Delhi they should think also about the entire country and the urban problem of the country. This is a problem for the country.
I do not want to go into the details. We should not encourage any unauthorised development. The Government should look into this also. There have been lapses on the part of the Government. The Government has not introduced the Bill earlier nor has taken any steps for the Master Plan to be done quickly and because of it this has happened and the court has given the order. Otherwise, there was no need to come to such a situation of embarrassment. The Parliament is coming to the rescue of the Government. The Government should have seen to it that the Master Plan could be completed in 2001. They should have taken the steps much before so that this situation should not have arisen[krr16] .
Anyway, we are supporting this Bill because a lot of people are involved and a lot of people staying in jhonpri, jhuggi and slums are affected. We are supporting this Bill, but the Government should not take for granted the Parliament. It should not happen that they will go on in this way and the Parliament will come to the rescue of the Government. This is not to be encouraged.
At the same time, demolition is stopped by this Bill. The Government must look into the environment aspect also when the Master Plan is prepared. They should not take it without looking at the environment aspect. Otherwise, there will be lot of difficulties in future. So, that aspect should also to be looked into.
Those who are staying in jhonpri, jhuggi and slums should be given permanent accommodation. When the Government is taking steps for their removal, they should be given permanent accommodation with civic amenities so that they can stay there instead of remaining unauthorisedly in some jhonpri, jhuggi and slums. So, the Government should take care of it. There should not be a single person affected, who is staying in jhonpri, jhuggi and slums, without giving him permanent arrangement and accommodation with civic amenities.
This demolition has also affected religious places. Jagannath Temple in North Delhi is also demolished. That is a Government land and nobody is there. Even the MCD people are saying that they have not given any orders. Then, how has this happened? Oriya people have also written to the Government as to how this temple has been demolished. Some people in the Estate business are interested to grab that land. So, they wanted for demolition of this temple. This should also be looked into while you authorize this act of demolition. You should also ask the MCD people and the State Government people that they should not do it in such a manner so that the religious sentiments of the people are affected.
SHRI GURUDAS DASGUPTA (PANSKURA): Sir, we support this Bill undoubtedly, but I have a one-point suggestion to the Government. We favour city beautification. Delhi must look as beautiful as possible. Let the Government do whatever it can. But we are strongly opposed to it if the beautification is done at the cost of the poor people. Migrant labour is a reality in Delhi. A large part of labour engaged in the construction, which is going on, is migrant labour. Therefore, the interest of the city poor and migrant labour has to be protected. Five-star glamour of the urban city of Delhi at the cost of the toiling masses will be a sad commentary on the part of any civilised Government. That has to be ensured.
While the Minister was speaking, he was speaking of relocation and, at the same time, compassion. Sir, we understand what is relocation. It was because of the judicial order that industries in Delhi were shifted in the name of relocation, and relocation was done as far as in Uttaranchal. If the Government believes that relocation and compassion can go hand in hand, in that case, the Government will have to categorically say what is the limit within which the relocation has to be done. Otherwise, it will be totally vague and it will be totally playing to the gallery. While saying so, I must suggest that Delhi has become absolutely a hell of a city. I am not going into the question of law and order.
This situation derives out of the deep-rooted business of the real estate in connivance with the people in power. If the reckless way in which the real estate business is being carried on is not taken care of and if the nexus is not sought to be broken, the grandchild of Shri Reddy, if he finds a place in Parliament, will have to come for another law because it will be a persistent problem of political connivance and financial corruption[S17] . What would the Government like to do with it? This is a very important question.
As regards settlements, settlements have been allowed to continue for 30 years, but it is illegal. Why did these settlements continue for 30 years? Why were the power-lines erected? Why was sanitation arranged there? Why were they included in the voters list? Why were they given ration cards? Furthermore, after 30 years, you call these people illegal occupants, and you bring in bulldozers — by calling them illegal occupants — to demolish after giving them just seven-days’ time. Is it a human approach? It is a basic human problem that the Government is dealing with here, and in dealing with this basic problem there has to be a material compassion and not verbal compassion. This is expected from the Government, which is in power today.
While saying so, I must say that the Bill is absolutely belated. Mr. Azad was the Minister earlier, and Mr. Maken did not have the privilege of becoming the Minister of State at that point of time. He will remember that we have been jointly imploring upon Mr. Azad to do something concrete in order to tackle this basic problem, but nothing was done. Therefore, the complaint of Mr. Malhotra that it is belated should not be taken as a political allegation. It is a practical allegation, and I can believe that I am a party to the discussion that took place in the room of Mr. Azad one-year ago. You have allowed the situation to deteriorate, and now you are appearing as the angel who is saving the poor of this city. It is unfortunate.
You have to admit that it is belated; you have to admit that you have faulted; you have to admit that compassion and relocation will be combined; you have to admit that city beautification at the cost of the working people will be taken as a criminal offence; and you have to admit that the Government will move with caution because it is a deeply distressing human problem with which we are confronted today not only in the city of Delhi, but in many other cities of the country also. I believe that Mr. Reddy will look into the problem with a sense of compassion.
श्री प्रभुनाथ सिंह (महाराजगंज, बिहार) : अध्यक्ष महोदय, मैं इस बिल के समर्थन में बोलने के लिए खड़ा हुआ हूं। मैं मंत्री जी को यह बिल लाने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं, बेशक यह बिल विलम्ब से लाया गया है।
SHRI GURUDAS DASGUPTA : It is better late than never.
श्री प्रभुनाथ सिंह : अखबार और टीवी के माध्यम से यह सब पढ़ और देख रहे हैं। मैं तीन-चार बिन्दुओं पर चर्चा करना चाहता हूं। अभी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से तीन-चार काम हो रहे हैं, जिनमें से एक है बुलडोज़र चलना। मुझे लगता है कि आदेश देने वाले लोग सिनेमा ज्यादा देखते हैं। सिनेमा देखने का उन पर मानसिक असर पड़ा है और वे यह समझने लगे हैं कि यदि बुलडोज़र चलेगा तो उनकी अहमियत बढ़ेगी। यदि वे लोग सिनेमा नहीं देखते तो इस तरह के आदेश देने का वे कभी भी काम नहीं करते।
दिल्ली देश की राजधानी है और यहां देश के हर कोने से लोग आते हैं। दूसरे देश के लोग भी यहां पर निवास करते हैं और रोजी-रोटी की तलाश करते हैं। जिसकी दुकान टूट रही है, उसका रोज़गार भी छिन रहा है। एक दुकान के माध्यम से पांच आदमियों को काम मिला हुआ है। चालीस हजार दुकानों को बंद कर दिया जाएगा तो दो लोख लोग बेरोज़गार हो जाएंगे। इतना ही नहीं छोटी-छोटी दुकान, चाय-पान की दुकान चलाने वालों की गिनती मल्होत्रा जी और सज्जन कुमार जी भी नहीं कर पाएंगे। अब वे लोग दिल्ली से पलायन करने के लिए मजबूर हैं और यहां से पलायन कर रहे हैं। ऐसी स्थिति क्यों पैदा हुई? अनधिकृत कालोनी की बात चल रही है। अनधिकृत जगहों पर दुकान बनाने की बात चल रही है, उनको बसाने की बात चल रही है[c18] ।
अध्यक्ष महोदय, कहां-कहां अनधिकृत कालोनियां हैं, कहां-कहां अनधिकृत कमरे बने हुए हैं, क्या दिल्ली की सरकार ने और सर्वोच्च न्यायालय ने उसकी समीक्षा करवाई है? अगर अनधिकृत सड़कों पर बना हुआ है, सरकारी जमीन पर बना हुआ है तो मंत्री के भी आवास में अनधिकृत कमरे बने हुए हैं, सांसदों के आवास में भी अनधिकृत कमरे बने हुए हैं। उच्च न्यायालय के एक जज के आवास में भी अनधिकृत कमरे बने हुए हैं और सर्वोच्च न्यायालय के जज के आवास में भी अनधिकृत कमरे बने हुए हैं, क्यों नहीं फैसले लेते …( व्यवधान)
MR. SPEAKER: I hope, you take the responsibility for the same.
श्री प्रभुनाथ सिंह : अध्यक्ष जी, हमें सत्य बोलने की आदत है, बोल रहे हैं और इसको सुन लीजिए। हम सदन में नहीं बोलेंगे तो कहां बोलेंगे। अगर बाहर बोलेंगे तो कण्टैम्प्ट चलाकर जेल में ही बन्द कर देगा तो कम से कम अन्दर तो सच बोलने दीजिए, जो दिल की बात है।…( व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय : बोलने को हम मना नहीं करते, लेकिन रेस्पोंसबलिटी से बोलिये।
श्री प्रभुनाथ सिंह : इसलिए हम कहना चाहते हैं कि अगर अनधिकृत को परिभाषित करना पड़ेगा तो चाहे छोटे लोग हों या बड़े लोग हों, हर जगह को भी तलाश करना पड़ेगा और कहां-कहां अनधिकृत जगह बनी हुई है, अगर तोड़ना होगा तो सब को तोड़ना पड़ेगा। लेकिन इसकी जड़ में एक बात पर विचार करना पड़ेगा कि आखिर अधिकार किसको है। इस जनतंत्र में सरकार यह व्यवस्था चलाएगी या यह व्यवस्था न्यायालय चलाएगा। इस देश की अजीब स्थिति हो चुकी है। कहीं अगर चीफ जस्टिस की नियुक्ति करनी है तो न्यायालय आदेश देता है कि यहां चीफ जस्टिस फलां रहेगा। अगर डी.जी.पी. की नियुक्ति करनी होगी तो न्यायालय कहेगा कि डी.जी.पी. फलां व्यक्ति रहेगा। अगर सड़क तो तोड़ना है तो न्यायालय तुड़वाएगा, अवैध निर्माण तुड़वाना है तो न्यायालय तुड़वाएगा, जेल भिजवाना है तो न्यायालय भिजवाएगा। लेकिन अगर आप गहन अध्ययन करेंगे, मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता हूं तो अखबार और टी.वी. में आ चुका है कि जमीन घोटाले में वही लोग आते हैं, जो लोग इस तरह के आदेश करते हैं। कहीं सैक्स स्कैंडल में वही लोग आते हैं, जो इस तरह का आदेश करते हैं और अपनी जन्म-तथि में गड़बड़ कर नौकरी करने वाले वही लोग आते हैं, जो इस तरह का आदेश करते हैं। इन सब चीजों पर गम्भीरता से विचार करने की जरूरत है और चिन्तन करने की जरूरत है। अध्यक्ष जी, हम समझते हैं, आप सिर हिला रहे हैं, यानी अभी आपको हमारी बात पर थोड़ी आपत्ति हो रही है, लेकिन सच बात आप सुन लीजिए। हम तो कहेंगे कि इन सब सवालों पर लोक सभा में बहस करानी चाहिए कि क्या अधिकार किसका बनता है। कार्यपालिका का अधिकार क्या है, न्यायपालिका का अधिकार क्या है और विधायिका का अधिकार क्या है, कौन इस लोकतंत्र में इस देश को चलाएगा। आज लोक नीचे दबता जा रहा है और तंत्र ऊपर होता जा रहा है, लोक को दबाया जा रहा है, इसलिए हम कहेंगे कि इस लोकतंत्र में जब लोक तब जायेगा…( व्यवधान)
दो-तीन मिनट में हम अपनी बात समाप्त करेंगे। …( व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय : फस्र्ट वार्निंग है। बोलिये।
श्री प्रभुनाथ सिंह : अध्यक्ष महोदय, हम यह कहना चाहते हैं और दिल्ली में इससे नुकसान कहां-कहां हो रहा है, यहां सील हो रही है, ब्याह-शादी करने वाली जो जगह बनाई गई, जो ब्याह स्थल बनाया गया, स्कूल बन्द हो रहा है, व्यवसाय बन्द हो रहा है। अध्यक्ष जी, हम कहेंगे कि जब बच्चा पैदा होगा तो स्कूल में तो पढ़ेगा और यदि बड़ा हो जायेगा तो उसका ब्याह करना पड़ेगा। दिल्ली को सुन्दर बनाने के लिए अगर इस
ढंग से काम करना होगा तो पहले तो सुप्रीम कोर्ट को आदेश देना पड़ेगा क …*
MR. SPEAKER: That portion will be deleted.
श्री प्रभुनाथ सिंह : जब तक बच्चे पैदा होते रहेंगे, तब तक स्कूल की जरूरत पड़ेगी, शिक्षा की जरूरत पड़ेगी, शैक्षणिक संस्था की जरूरत पड़ेगी और ब्याह-शादी के लिए ब्याह-स्थल की जरूरत पड़ेगी। जिस तरह से झुग्गी-झोंपड़ियों पर बुलडोजर चलाया गया, उनको तोड़ा गया, आज मंत्री जी कहते हैं कि हम एक साल के लिए इसको स्थगित कर रहे हैं। मंत्री जी, एक साल के स्थगन से इस समस्या का निदान होने वाला नहीं है, इसका परमानेण्ट निदान ढूंढना पड़ेगा। दिल्ली देश की राजधानी है, आप इसकी व्यवस्था के लिए एक साल मांग रहे हैं तो एक साल किसलिए, दो साल मांगिये न, हम लोग देने के लिए तैयार हैं। जो पीड़ा और दर्द हम लोग दिल्ली में रहने वाले लोगों की देख रहे हैं, हम लोग पहले आ गये हैं, दिल्ली ऐसी जगह है, जहां देहात से लोग आते हैं। सांसद होने के नाते हम लोगों के यहां भी लोग आते हैं। हम लोग तो इसलिए तैयार हैं कि कहीं किसी के यहं चिट्ठी हम लोग लिख देते हैं तो १५०० से २००० रुपये का वेतन देता है। १५०० रुपये से २००० रुपये के वेतन से दिल्ली जैसे शहर में किस तरह वह अपना गुजारा करता है और किस तरह अपना पेट काटकर अपने परिवार को भेजता होगा, यह सिर्फ विचार किया जा सकता है, सोचा जा सकता है, चिन्तन करने की जरूरत है और वैसे लोगों को भी यहां से रोजगार से जो भगाया जा रहा है, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
जब मल्होत्रा जी और सज्जन कुमार जी बोल रहे थे तो हम बड़ा आनन्द ले रहे थे। हमें लगता है कि यह इन पर आरोप है और यह इन पर आरोप है, लेकिन हमको लगता है कि दोनों में से किसी ने भी इन झुग्गी वालों की कभी भी चिन्ता नहीं की, बल्कि इन दोनों ने लोगों को प्रताड़ित किया। हम इण्डीपेंडेंटली बोल रहे हैं, सुन लीजिए। यहां आपका भी राज रहा है और इनका भी राज रहा है।
इन्होंने गलत किया है, तो ये सत्ता से बाहर हो गए। आप तो इतने दिनों से सत्ता में हैं, लेकिन इसके बाद आप क्या कर रहे हैं?अभी तक आपने क्या किया है? …( व्यवधान) आपका तो दिल्ली में भी शासन है और दिल्ली प्रदेश में भी शासन है।आप कह रहे हैं कि ये इतने दिनों तक शासन में थे और इन्होंने नहीं किया। आप इतने दिनों से आए हैं, तो आप इसकी व्यवस्था कीजिए। …( व्यवधान)
* Not Recorded.
महोदय, मैं लाल डोरा के संबंध में कहकर अपनी बात को समाप्त करता हूं। लाल डोरा की जमीन का यहां लोकेशन सन् १९०८ में किया गया और वहां पर उद्योग धंधे भी लगे हुए हैं, लेकिन गांव में जो लोग छोटे-छोटे रोजगार या कुछ और धंधा किए हुए हैं, इस बुलडोजर में वह भी टूट रहा है। अध्यक्ष महोदय, इसलिए मैं माननीय मंत्री जी से कहूंगा कि दिल्ली के अगल-बगल जो गांव हैं, उनको सुरक्षित करने के लिए और वहां के छोटे-मोटे रोजगार को बचाए रखने के लिए आप ठोस कदम उठाएं। आप इस बिल को लेकर आए, इसके लिए एक बार फिर हम आपको धन्यवाद देते हैं। आपको यह बिल थोड़ा और पहले लाना चाहिए था, अगर पहले लाते, तो हम तीन-चार बार धन्यवाद देते। आप इस बिल को देर से लाए हैं, इसलिए कम धन्यवाद देकर मैं अपनी बात को समाप्त करता हूं।
SHRI S. JAIPAL REDDY : Sir, at the outset I must express my profound sense of gratitude to all the senior Members who have taken the trouble of participating in this discussion and making valuable suggestions.
Sir, Prof. Vijay Kumar Malhotra is a great scholar of Hindi. He has a great flair for fire-eating oratory. But today, I have found neither fire nor oratory because he did not know how to oppose the Bill, how to find fault with it. He was more than satisfied. Yet he had to indulge in formal criticisms, which I take in a fairly sporting spirit.
When the debate took place in this House when he was in a hurry to leave for Melbourne, I did point out to him that, if necessary, Government would certainly come forward with a piece of legislation. He knows more than most others that the situation then was evolving. The matter then was relating only to shopkeepers. We are equally concerned over shopkeepers’ affairs because it not only relates to shopkeepers but it relates to a lot of others dependent on shops. Other categories of people in Delhi, namely, slum dwellers, vendors, and people who for some reasons indulged in unauthorised constructions have since been affected.
The situation was then evolving. We had at that time appointed Tejendra Khanna Committee to look into these problems and give us a set of masterly recommendations, which will be received by us any time now. They are in the process of being finalised.
One friend asked me as to why I had gone to the media. The Cabinet took a decision to clear the Bill. There was a need to take the country into confidence and people of Delhi into confidence about the Bill that had been cleared by the Cabinet[KMR19] .
This is what is routinely done; and I gave a notice of the Bill to the hon. Speaker and asked for exemption from 7 days’ requirement.
So, Prof. Vijay Kumar Malhotra wanted to ask for something more than what we could give. But will Prof. Malhotra or any of his friends enumerate a list of things for which I can give an amnesty? We need one year to enumerate a list of pardonable violations or negligible violations.
SHRI GURUDAS DASGUPTA : Pardonable violations!
SHRI S. JAIPAL REDDY: They are, naturally.… (Interruptions)
I think, no adjective can be easily separated from noun if one is to be meaningful.
So, friends, to ask for grand amnesty is okay from public platform. But I think, we must try and draw a distinction between Parliament of India and public platform.
Prof. Vijay Kumar Malhotra headed a Committee and made recommendations of a sweeping nature in his own characteristically liberal way. But what did his Government do when they were in power? Mr. Jag Mohan rejected them with the contempt they did not deserve… (Interruptions)
अध्यक्ष महोदय : उन्होंने कहा है ‘they did not deserve’.
प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा : It was Sheila Dixitji जिन्होंने रिजैक्ट किया, जगमोहन जी ने रिजैक्ट नहीं किया। It is on record. So, he should not make statements which are not true… (Interruptions)
MR. SPEAKER: All right.
SHRI S. JAIPAL REDDY: I am saying, Prof. Malhotra that you were quite generous in your recommendations but your Minister was parsimonious, parsimonious to the point of being contemptuous. So, you cannot possibly blame us for what your Government failed to do.
Sir, Mr. Sajjan Kumar, who knows Delhi inside out drew our attention to Lal Dora, urbanised villages and rural villages. I would like to assure him that this Bill takes full care of Lal Dora areas both urbanised villages and rural villages.
If we did not bring this Bill, there could be orders not merely for shops existing on 80 feet road but also on 60 feet road. It does not, however, mean that in the next one year we are going to condone everything; no.
As you know, the Master Plan Delhi draft has been notified; 7,000 objections and representations have been received. They are being heard by the Board of Inquiry. After that they will be referred to the Delhi Development Authority; and then the Government of India will take a view. This process will be expedited.
Sir, I am rather surprised by the concern that Prof. Malhotra expressed about the disturbance or the nuisance that would be caused by Banquet Halls. On the one hand he was expressing concern about the closure of shops and on the other hand he was expressing concern about the nuisance of Banquet Halls.
PROF. VIJAY KUMAR MALHOTRA : I am talking about those in the residential areas.
SHRI S. JAIPAL REDDY: It is true. But, Sir, most of these shops against which there are complaints have been operating in the residential areas[KD20] . I would request Prof. Malhotra not to run with the hare and hunt with the hounds. You may stick to one line.
We are bothered about slum dwellers. There have been orders from various agencies which are very harsh on slum dwellers. Without slum dwellers, the great construction, which one wants to embark upon in Delhi, cannot go on. If you want world class Delhi, who will provide construction workers?
SHRI TATHAGATA SATPATHY (DHENKANAL): You will bring world class slums! Let us build more slums.
SHRI S. JAIPAL REDDY: Let me explain this. You do not take such a cynical position! You are much too young to get cynical at this stage!
Slum dwellers provide people, provide services and provide construction workers. To treat them as some nuisance would be not only morally incorrect, but would also be empirically incorrect. Without them you cannot build Delhi. However, that does not mean that we are going to extend an open-ended invitation. Our policy is to provide alternative accommodation for all those who came to Delhi and settled down in slums before 1998. We shall provide accommodation to them.
An hon. Member also pointed out as to whether they will all be thrown away to the fringes of the city. Shri Gurudas Dasgupta, in his characteristic fashion, raised this point. I would like to assure him that we would like to go in for in situ development as far as possible. They will be located where they are, and it is possible to do so. We shall go in for re-location only in areas, which are specifically required for public projects. We shall not remove them because it will vitiate the optical vision of some elites in Delhi; certainly not.
I announced that in the next two years, through in situ development, we shall provide one lakh apartments for slum dwellers, and it is possible to do so, without taking money from our generous friend, Shri Chidambaram. I will raise money through slum land and provide one lakh apartments, and it is possible. We are doing it already.
प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा : बाकी जो चार लाख बचेंगे, उनके लिए आप क्या करेंगे ?
SHRI S. JAIPAL REDDY: I am happy.
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री तथा महासागर विकास मंत्री (श्री कपिल सिब्बल) : क्या आपने १०० अपार्टमैंट्स भी बनाये थे ? …( व्यवधान)
श्री हरिन पाठक (अहमदाबाद) : यह आप हमारे लिए छोड़ दीजिए। …( व्यवधान) You may leave it for us.
SHRI KAPIL SIBAL: That is only if you come back!
SHRI GURUDAS DASGUPTA : He is still dreaming! Within Parliament, he is having sweet dreams!
MR. SPEAKER: There is no harm in dreaming; everybody has dreams.
SHRI S. JAIPAL REDDY: In situ development is required not only for the sake of slum dwellers, but also for providing services to those who live in multi-storeyed mansions. Our corporate captains or political potentates and our flamboyance fixers need their services – if you want me to get back into my natural oratorical style! But I do not want to.
THE MINISTER OF STATE IN THE DEPARTMENT OF COMMERCE, MINISTRY OF COMMERCE AND INDUSTRY (SHRI JAIRAM RAMESH): Sir, I want a dictionary!
MR. SPEAKER: Much simpler than humoungous!
SHRI S. JAIPAL REDDY: Our hawkers and vendors have been there for years and decades. They have been here for a much longer period than some of the elected representatives of Delhi or others who keep giving orders. We need to evolve a policy and we already have a policy draft but we need time. I cannot throw out hawkers and vendors just because they are obstructing some streets. Yes, we cannot have unregulated system in regard to hawkers and vendors. We will have to provide for them but they also serve a function. Our Delhi needs not only big, shining, gleaming malls, it also needs street corner hawkers and vendors.
SHRI GURUDAS DASGUPTA : Mr. Minister, we also need modest dwelling places.
SHRI S. JAIPAL REDDY: There will be modest dwelling places. We will try to evolve a pattern by which people who belong to middle class can get modest dwelling places. It has to be done in a transparent fashion. I do not want Delhi’s invaluable land to be used as concealed subsidy in the name of modest dwellings houses.
While we are talking of all these things we are not unmindful of the need to build Delhi as a world class capital. There is no contradiction between the two. There is no city in the world where poor people do not exist. The poor and the rich can both exist and this is possible. We are going to make it possible.
As far as encroachments are concerned, the Bill says clearly that from now on we will not tolerate any encroachment. This is a kind of moratorium only on unauthorised construction or conversion that took place before 1.1.06. But we are not going to put up with encroachments that took place in the past or that may take place in future because any encroachment on public land will mean unimaginable kind of difficulties for people living in Delhi.
SHRI KHARABELA SWAIN (BALASORE): I am repeating the sentence you have just now said; ‘running with the hare and hunting with the hound’. Are you not just doing the same thing? You are allowing everything to be regularised and then saying that you will not do anything in future. Are you exactly not doing the same thing. Sir, you know very good English.
SHRI S. JAIPAL REDDY: I do not think, Sir, I would like to win an argument against Shri Swain. I would rather yield my palm.
A suggestion has been made about the need to look at the National Capital Territory Region. It is a very valid suggestion. We are trying to look at development of not only Delhi but the National Capital Territory Region in an integrated and planned manner and more suggestions in this regard are welcome.
With these few words I would like to commend this Bill for approval of the House.
MR. SPEAKER: Because of the demand from all sides of the House, I have allowed rules to be relaxed today but it should not be taken as the usual method. However, since the matter concerns the common ordinary people of the city, apart from others, therefore, I have permitted this.
“That the Bill to make special provisions for the areas of Delhi for a period of one year and for matters connected therewith or incidental thereto, be taken into consideration”
The motion was adopted[R21] .
MR. SPEAKER: The House will now take up clause-by-clause consideration of the Bill.
“That clauses 2 to 5 stand part of the Bill.”
The motion was adopted.
Clauses 2 to 5 were added to the Bill. Clause 1, the Enacting Formula, the Preamble and the Long Title
were added to the Bill.
SHRI S. JAIPAL REDDY: Sir, I am sure the corrigenda has been received by the hon. Members.
… (Interruptions)
MR. SPEAKER: I think the corrigenda has been taken note of.
SHRI S. JAIPAL REDDY: I beg to move:
“That the Bill be passed.”
“That the Bill be passed.”
The motion was adopted.
MR. SPEAKER: Now we would meet at 3.00 p.m. for the Private Members’ Business.
13.56 hrs.
The Lok Sabha then adjourned for lunch till
Fifteen of the Clock.
———–
15.11 hrs.
The Lok Sabha re-assembled after Lunch at eleven
minutes past Fifteen of the Clock.
(Shri Balasaheb Vikhe Patil in the Chair)
MR. CHAIRMAN: Let us now take up Private Members’ Legislative Business. There are several Bills to be introduced.
Shri Subodh Mohite — not present;
Shri Chengara Surendran — not present;
Shri P. Karunakaran — not present;
Shri Anandrao Vithoba Adsul — not present.