Title: Further discussion on the motion for consideration of the Cotton Ginning and Processing Factories (Repeal) Bill, 1998. Motion for Consideration- adopted
14.59 hrs
DR. SAROJA V. (RASIPURAM): I thank you for giving me this opportunity to present my views in this august House.
The repeal Bill will provide a thrust and incentive to the modernisation efforts in the cotton ginning and pressing sector to ensure quality processing of cotton and charging remunerative price for the services provided for. In this context, I would like to say that cotton is the major crop that is being cultivated in India. A number of States produce cotton and Tamil Nadu is one among them. Out of 80 per cent of the total fibre 66 per cent is consumed by the textile sector.
15.00 hrs.
The textile policy statement of 1985 stated that there will be off-take of the farmers produce at the remunerative prices. It also laid down that cotton needed by the domestic textile industry would be made available in adequate quantity at reasonable prices. The twin objects are sought to be achieved through timely announcement of remunerative Minimum Support Price to the farmers and also through proper import and export policy as and when necessary.
Sir, it is our observation that there is an imbalance between the production and consumption of cotton. The Cotton Advisory Board made its observation in its meeting held on 6.3.1998 that the increase in the production of cotton has been of the order of 30 lakh bales since 1950-51. It has increased to about 178 lakh bales in the year 1996-97.
Sir, though there is an increase in the production of cotton, yet there is a decline in the production for the year 1997-98. There is also a decline in quality of cotton produced. The consumption of the cotton was 125 lakh bales during 1992-93, it has increased to about 162.50 lakh bales during the year 1997-98.
Sir, three varieties of cotton are produced. But there is only one variety, namely, medium staple variety which is of good quality. This quality is exportable also. In this context, I would like to draw the attention of this august House that the Government announces Minimum Support Price for the varieties of cotton every year to ensure remunerative prices to the cotton growers. The Cotton Corporation of India is the only agency to implement this. The procurement of the produced cotton is done by the Cotton Corporation of India. But proper procurement is not there. Sir, in my district of Tamil Nadu, for example, the total production of cotton per year is 20 million tonnes. Most of the varieties produced are MCU, LRA, Varalakshmi, swin, hybrid variety and F1-Sruthi.
I would like to draw the attention of this august House to one more matter. We talk about poor farmers and also about economic empowerment of rural women. About 50 spinning mills are located in my district of Salem but less that five ginning mills are there. I have also motivated a few women farmers to come forward to start ginning factory to cater to the needs of 50 spinning mills which are located in and around this area. The cotton produced in Salem district is marketed through Salem, Kolathur, Rasipuram and Konkanapuram marketing societies. But even after procuring cotton through these societies, artificial scarcity is being created. It is stocked by the private traders. I urge upon the Government to regulate these markets. I would also request the Government to check this artificial scarcity created by the traders.
In this context, I would make an appeal to the agricultural scientists. It is stated that F1 variety of the new cotton hybrid variety contains specific protein which determines the genetic value of product and quantity of the cotton. I would urge upon the agricultural scientists to concentrate more on these varieties so as to have more quantity and quality based variety.
Sir, as per the survey conducted on the agricultural land as also on forest land one-third of the land is lying fallow and also barren. One-third of this land is cultivable. But it is lying vacant.
I would urge upon this Government to instruct the agricultural scientists to have a soil conservation so that the land can be put to use by proper research activities.
> श्री मोहन सिंह (देवरिया): अध्यक्ष महोदय, मेरा बहुत ही संक्षिप्त भाषण है। चूंकि आवश्यक वस्तु अधनियम में ये सारी बातें आ गई हैं इसलिए अब कपास ओटाई और दबाई कारखाना अधनियम, १९२५ के कोई मायने नहीं रह गए हैं। इस दृष्िट से मंत्री जी ने सदन में जो विधेयक प्रस्तुत किया है उसका विरोध करने का हमारा कोई इरादा नहीं है। मैं इस अवसर का लाभ उठाते हुए मंत्री जी को एक सुझाव देना चाहता हूं, कयोंकि मेरे इलाके की एक गंभीर समस्या है। अकसर ऐसा माना जाता है कि आपका विभाग केवल वस्त्र उद्योग से संबंधित है, लेकिन कुछ ऐसे भी उद्योग हैं जो वस्त्र उद्योग के महकमे के अंतर्गत बाद में लिए गए। महोदय, १९७७ में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तो स्वदेशी काटन मिल, कानपुर में हड़ताल हुई। मिल मालिकों से समझौता नहीं हुआ और उसका लाभ उठाते हुए स्वदेशी काटन मिल से संबंधित जितनी इकाइयां थी उनका अधिग्रहण कर लिया गया, राष्ट्रीयकरण हो गया। उसके बाद की परस्िथति में, उस जमाने की बहुत सी मिलों को सरकार ने ले लिया। वे सरकार के स्वामित्व में आने के बाद भी आज तक बंद हैं। उसी तरह ब्रटिश इंडिया कारपोरेशन की चार चीनी मिलें, गौरीबाजार, पडरौना, कठकुईयां और परौरा थीं, इनको आपने बाद में कानपुर शुगर वर्कस एक कारपोरेशन बना कर अपने निगम के तहत वस्त्र मंत्रालय में ले लिया। इन चारों चीनी मिलों को आपकी सरकार ने बेच दिया और वे निजी हाथों में चली गईं, लेकिन स्वदेशी काटन मिल से संबंधित एक चीनी मिल, आनन्द नगर शुगर मिल पिछले तीन साल से बंद है। वह इसलिए बंद है कयोंकि वह वस्त्र मंत्रालय के अधीन है। वस्त्र मंत्रालय कपड़ा उद्योग के बारे में, नयी नीति बनाने के बारे में तो सोचता है लेकिन उसी के तहत चलने वाली चीनी मिल की तरफ सरकार का कोई ध्यान नहीं है। मजदूर मर रहे हैं, किसान परेशान हैं। इस अवसर का लाभ उठाते हुए मैं मंत्री जी से आग्रह करना चाहता हूं कि जब भी आप अपने विभाग के बारे में विचार करें तो इन काटन मिलों के संबंध में तो विचार करिए ही, उसी के साथ-साथ जो चीनी मिलें पूंछ की तरह आपके साथ चली गई हैं उनको आप अपने एजेंडा से बाहर न कर दीजिए। आनन्द नगर चीनी मिल को चलाने का प्रयास होना चाहिए। वहां के मजदूरों और किसानों के हित में सरकार को अवश्य कदम उठाना चाहिए। इतना आग्रह करते हुए आपके द्वारा प्रस्तुत विधेयक का मैं इस उम्मीद के साथ समर्थन करता हूं कि मेरी कही हुई बात का समर्थन आप भी करेंगे और उस दिशा में कुछ कदम बढ़ाएंगे।
> डा. रामकृष्ण कुसमरिया (दमोह) : माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी जो कपास ओटाई और दबाई कारखाना (निरसन) विधेयक, १९९८ लोकसभा में लाए हैं इसके लिए मैं उनका धन्यवाद करता हूं। १९२५ में ब्रटिश शासन के समय बना कानून अभी तक हमारे देश में चल रहा था, जिसकी अब कोई आवश्यकता नहीं रह गई थी। चूंकि अब आवश्यक वस्तु अधनियम के अंतर्गत कपास को ले लिया गया है इसलिए अब इसका कोई औचित्य नहीं है। जो संशोधन विधेयक मंत्री जी लाए हैं उसके लिए मैं धन्यवाद करता हूं। इसके साथ ही मेरा यह सुझाव है कि वास्तव में किसानों को कपास का मूल्य नहीं मिलता है और जब किसानों को मूल्य नहीं मिलता है तो फिर वे उसकी पैदावार में भी कम रूचि लेते हैं, परिणाम यह होता है कि उस वस्तु की कमी हो जाती है। उसके कारण तमाम इंडस्ट्रीज प्रभावित होती हैं। इस विधेयक के जरिये किसानों को संरक्षण मिले,उनको कपास का उचित मूल्य मिले और कारखानों की भी चिंता की जाए, यह हमारे सुझाव हैं। इस बिल के माध्यम से आधुनिकीकरण होने से अच्छी कवालिटी का कपास बनेगा, उसकी प्रोसैसिंग की जाएगी, एकसपोर्ट बढ़ेगा और देश में विदेशी मुद्रा भी आएगी। आधुनिक युग के अनुरूप इसमें जो प्रावधान किए गए हैं, उनको देखते हुए हम इसका समर्थन करते हैं आशा करते हैं कि इन बातों पर मंत्री जी ध्यान देंगे जिससे इसकी उपयोगिता सार्थक होगी।
> वस्त्र मंत्री (श्री काशीराम राणा): अध्यक्ष महोदय, मैंने कॉटन गनिंग ऐंड प्रेसिंग फैकट्रीज एकट १९२५ रद्द करने के लिए सदन में रखा है। मुझे खुशी है कि सभी सांसद जो इस बिल पर बोले हैं, उन्होंने इस बिल के रिपील करने का स्वागत किया है। मैं इनका बहुत आभारी हैं। यह बिल तीसरी बार लोक सभा में आ रहा है। दसवीं लोक सभा में ११ दिसम्बर १९९५ को यह बिल इंट्रोडयूस हुआ था। इसके बाद यह कॉमर्स मनिस्ट्री की स्टैंडिंग कमेटी को रैफर किया गया। इसकी रिपोर्ट ८ मार्च १९९६ को ले की गई लेकिन लोक सभा डिजाल्व होने के बाद इस बिल का अस्ितत्व नहीं रहा। श्री अजीत जोगी (रायगढ़): आपको इसका श्रेय मिलना था। श्री काशीराम राणा : ११वीं लोक सभा में २५ जुलाई १९९५ को यह बिल इंट्रोडयूस हुआ। लोक सभा ने १३ अगस्त १९९७ को यह बिल पास कर दिया था। राज्य सभा में इसको रखा गया लेकिन इस बीच लोक सभा डिजाल्व हो गई। श्री राजो सिंह (बेगूसराय): आप इसे जल्दी पास करिए। हमारा नुकसान न कराइए। आप खतरनाक बिल लेकर आए हैं। श्री खारबेल स्वाईं (बालासोर): आप इसमें थोड़ा मदद करिए। श्री काशीराम राणा : इस बिल का परपज गनिंग ऐंड प्रेसिंग फैकटि्रयों पर बेवजह नियंत्रण को हटाना है। कागजी कार्यवाही करने में जो देरी होती थी, वह भी इससे दूर होगी। असेंशियल कमोडिटीज एकट १९५५ के तहत कॉटन कंट्रोल ऑर्डर १९८६ में बने थे। इसमें बहुत सारे प्रावधान थे। इसमें और प्रावधान किए गए हैं। कॉटन गनिंग ऐंड प्रेसिंग फैकट्रीज एकट के रिपील करने से बेवजह के बर्डन से मुकित मिलेगी और कॉटन की कवालिटी सुधारने पर पूरा कनसैनट्रेशन होगा और विचार होगा। वैसे तो इस बिल पर ज्यादा कुछ कहना ठीक नहीं है। जिन माननीय सदस्यों ने सवाल उठाए, मैं उनका जवाब देना चाहूंगा। एक मुद्दा भावना दवे ने उठाया। उसमें कहा गया था जो काटन ग्रोअर्स हैं, उनको बराबर अच्छा भाव नहीं मिलता था लेकिन मैं आपके माध्य्म से सदन से कहना चाहता हूं कि जहां तक कॉटन प्राइस का सवाल है, ग्रोअर्स को अच्छा भाव मिलना चाहिये। जो एम.एस.पी. तय किया गया था उससे ४० से ७० परसेंट काटन का मूल्य किसानों को ज्यादा मिलेगा। अध्यक्ष जी, अब मैं कॉटन की कवालिटी के बारे में बताना चाहूंगा। जैसे जे-३४ कवालिटी का एम.एस.पी. १४४० रुपये था जबकि किसानों को उस कवालिटी के लिये १९५० रुपये और २२३० रुपये दिया गया। एनएच-४४ कवालिटी के लिये एम.एस.पी. १४२० रुपये था लेकिन किसानों को १८४६ रुपये, १९५० रुपये और २२३० रुपये दिया गया है। एनएचएच-४४ के लिये एम.एस.पी. १४२० रुपये था लेकिन किसानों को १८४६ रुपये और २०८० रुपये दिया गया है। इसी प्रकार एच-४ कवालिटी के लिये एम.एस.पी. १६५० रुपया था लेकिन किसानों को १९९१ रुपये और २२२५ रुपये दिया गया । डीसीएच-३२ कवालिटी के लिये एम.एस.पी. १७९० रुपये रखा गया लेकिन किसानों को २२५० रुपये दिया गया है। इतना ही नहीं यह २६०० रुपये तक दिया गया है जो एम.एस.पी. से ४५ परसेंट ज्यादा है। वैसे तो किसानों को कॉटन का प्राइस अच्छा दिया गया है लेकिन कॉटन कापर्ोरेशन आफ इंडिया द्वारा और प्रयास किया जा रहा है। इस साल कॉटन का प्रोडकशन पिछले साल से ज्यादा हुआ है । पिछले साल यह १५६ लाख बेल्स हुआ था जो बढ़कर १७५ लाख बेल्स हो गया है। किसानों को इससे अच्छा प्राइस मिले,इसके लिये सरकार चिन्ता कर रही है। अध्यक्ष जी, हमारे एक माननीय सदस्य ने कॉटन प्राडकशन में बढोत्तरी का जिक़ किया कि इसका ज्यादा यील्ड होना चाहिये और सरकार को चिन्ता करनी चाहिये। इस संबंध में मैं इस सदन को जानकारी देना चाहूंगा कि वर्ष १९८६-८७ में जहां १०७ किलो के बेल का ९५ लाख बेल्स प्रोडकशन था, वह अभी १७५ लाख बेल्स होने की संभावना है। इस प्रकार लगभग दुगने के बराबर प्रोडकशन बढ़ा। १९८६-८७ में टोटल ऐरिया ७०.७५ लाख हेकटेयर था जो आज बढ़कर ९१.६६ लाख हेकटेयर हो गया है। हम कॉटन गन्िनंग एंड प्रैसिंग फैकट्रीज एकट,१९२५ खत्म करने जा रहे हैं लेकिन साथ ही साथ काटन कवालिटी को सुधारने के लिये हमने प्रयास किये हैं। हम कॉटन टैकनालाजी मिशन के जरिये इम्पलीमेंटेशन की दिशा में जा रहे हैं। यह योजना ६०० करोड़ रुपये की है जिसको इसी साल शुरु किया जायेगा। इससे नश्िचत रूप से कॉटन की कवालिटी सुधरेगी। कॉटन की यील्ड भी ज्यादा होगी। इतना ही नहीं, अभी हमारे एक माननीय सदस्य ने कहा कि मार्केटिंग की व्यवस्था हो जिससे उन्हें कॉटन का प्राइस ज्यादा मिले। हमने इसमें मार्केटिंग के लिए भी प्रावधान रखा है। हमारा जो कॉटन टेकनोलॉजी मिशन और टेकनोलॉजी अपग्रेडेशन फंड है, उसमें भी गनिंग और पेसिंग सैकटर रखा है। फिर कंटामिनेटिड कॉटन की कम्पलेंट जो कि देश और विदेश से आ रही है, वह भी दूर हो जायेग तथा हम कॉटन यार्न को देश-विदेश में एकसपोर्ट भी कर सकेंगे जिससे डोमेस्िटक सेल बढ़ेगी। यदि कॉटन की मांग बढ़ेगी तो हम किसानों को भी उसके अधिक भाव दे सकेंगे। अंत में मैं यही कहूंगा कि सदन इस बिल को पास कर दे।
“That the Bill to repeal the Cotton Ginning and Pressing Factories Act, 1925, be taken into consideration.”
The motion was adopted.
MR. CHAIRMAN: The House will now take up clause-by-clause consideration of the Bill.
“That clause 2 stand part of the Bill.”
The motion was adopted.
Clause 2 was added to the Bill.
MR. CHAIRMAN : The question is :
“That Clause 1, The Enacting Formula and the Long Title stand part of the Bill”.
The motion was adopted.
Clause 1, the Enacting Formula and the Title were added to the Bill. SHRI KASHIRAM RANA: Sir, I beg to move:
“That the Bill be passed.”
“That the Bill be passed.”
The motion was adopted.
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