Further Discussion On The Motion For Consideration Of The … on 25 November, 2009

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Lok Sabha Debates
Further Discussion On The Motion For Consideration Of The … on 25 November, 2009

Title : Further discussion on the motion for consideration of the Workmen’s Compensation (Amendment) Bill, 2009 moved by Shri Mallikarjun Kharge on the 24th November, 2009.

 

 

 

MR. DEPUTY-SPEAKER: Now the House will take up item no. 16. Shri Arjun Meghwal.

 श्री अर्जुन राम मेघवाल (बीकानेर):उपाध्यक्ष महोदय, आपने मुझे कर्मकार प्रतिकर (संशोधन) विधेयक, 2009 पर बोलने का अवसर दिया, इसके लिए मैं आपका आभारी हूं। मैं आपके माध्यम से सरकार का ध्यान कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923 की ओर आकर्षित करना चाहता हूं। यह एक्ट बहुत पुराना है और वर्षों बाद इसमें संशोधन हो रहा है, जिसके लिए यह संशोधन विधेयक लाया गया है। इसमें मुख्यतः चार प्रावधानों पर विशेष जोर दिया गया है। मैं इन प्रावधानों पर कुछ कहना चाहूंगा और उसके साथ ही कुछ सुझाव देना चाहूंगा। पहली बात तो यह है कि इस संशोधन विधेयक द्वारा परिभाषा बदली जा रही है। पहले जो ‘वर्कमैन’ अर्थात कर्मकार शब्द था उसकी जगह अब ‘इम्प्लाई’ शब्द का प्रयोग किया जाएगा। वर्कमैन और इम्प्लाई की परिभाषा को लेकर नेशनल लेबर कमीशन और आईओएल की कंवेंशन में थोड़ा फर्क है। लेकिन चूंकि यह यहां किया जा रहा है।

          इस संशोधन विधेयक द्वारा जो चार प्रावधान किए जा रहे हैं, उन पर कुछ कहना चाहता हूं। पहला प्रावधान यह किया गया है कि श्रमिक की मृत्यु होने पर वर्तमान दर80,000 रुपए को बढ़ाकर 1,20,000 करने की बात है। दूसरा प्रावधान यह है कि स्थाई रूप से विकलांग होने पर वर्तमान दर90,000 रुपए को बढ़ाकर 1,40,000 रुपए किए जाने की बात कही गई है। इसके अलावा काम करते-करते वर्कर की मृत्यु होने पर उसकी अंत्येष्टि के लिए वर्तमान दर 2500 रुपए थी, उसे बढ़ाकर 5,000 रुपए करने का प्रस्ताव है। हालांकि वर्ष 2000 में इसे 1000 रुपए से बढ़ाकर 2500 रुपए किया गया था। इसका अर्थ यह है कि वर्ष 2000 के बाद अब इसमें संशोधन हो रहा है। संसद की लेबर मिनिस्टरी से सम्बन्धित जो स्थाई समिति की रिपोर्ट थी, उसमें यह अनुशंसा की गई थी कि काम करने पर जब कर्मकार बीमार हो जाता है तो उसके इलाज के लिए रिअम्बर्समेंट का प्रावधान होना चाहिए, जो कि पहले नहीं था। इसलिए उसे मद्देनजर रखते हुए रिअम्बर्समेंट का प्रावधान किया जा रहा है। इस तरह देखा जाए तो मुख्यतः इन चार प्रावधानों पर यह संशोधन बिल केन्द्रित है।

          मान्यवर, यह शायद अकेला ऐसा कानून है, जो वर्कमैन की सोशल सिक्योरिटी से सम्बन्ध नहीं रखता है। इसलिए इस बिल पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए। विभिन्न संगठन इसमें काम करते हैं, उनसे भी चर्चा होनी चाहिए, कुछ असंगठित क्षेत्रों में जो श्रमिक काम करते हैं, उनसे भी चर्चा होनी चाहिए, जो सम्भवतः नहीं हुई है। इसलिए जो प्रावधान इस संशोधन बिल में रखे गए हैं, वे बहुत कम हैं। आपने मृत्यु पर वर्तमान दर 80,000 रुपए को बढ़ा कर 1,20,000 रुपए करने की बात कही है, यह ठीक है कि यह न्यूनतम है, लेकिन आपके एक्ट में पहले से ही गैप है और वह करीब 4000 रुपए का है। जब तक उस गैप को आप ठीक नहीं करेंगे, तो यह दर बढ़ाना भी प्रासंगिक नहीं होगा। आपने इस एक्ट में वेज लिमिट 4000 रुपए तक रखने का प्रावधान किया है। जब तक आप उस वेज लिमिट को नहीं बढ़ाएंगे, तब तक दोनों प्रावधानों में प्रस्तावित दर का कोई फायदा नहीं होने वाला है। मृत्यु होने पर 1,20,000 रुपए, स्थाई रूप से अपंग होने पर 1,40,000 रुपए आप करने जा रहे हैं, इसका लॉजिक मेरी समझ में नहीं आ रहा है। अगर कोई 22 साल का कर्मकार मर जाए तो उसे ज्यादा पैसा मिलना चाहिए। ठीक इसके विपरीत अगर कोई 50 साल का श्रमिक स्थाई रूप से अपंग हो जाए तो उसे आप ज्यादा पैसा दे रहे हैं, तो यह लॉजिक मेरी समझ में नहीं आया। कब मृत्यु होने पर कब पैसा मिलेगा, यह भी साफ नहीं है। फेटेलिटी पर ज्यादा पैसा मिलना चाहिए, कम से कम दस लाख रुपए मिलने चाहिए और स्थाई रूप से अपंग होने पर कम से कम पांच लाख रुपए मिलने चाहिए। इसी तरह आप अंत्येष्टि के लिए वर्तमान दर 2500 रुपए को बढ़ाकर 5000 रुपए करने जा रहे हैं, इसका क्या मतलब है?  अंत्येष्टि के बाद उसे एक-दो दिन और खर्च करना पड़ता है। आप लेबर को सचमुच में कुछ देना चाहते हो तो उसकी सीमा 10 हजार रुपये की जानी चाहिए। मैं नहीं समझता हूं कि पांच हजार रुपये में अंत्येष्टि हो जाएगी। फिर उसका तीन-चार साल तक कोई अमेंडमेंट नहीं आयेगा वरना फिर परेशानी बनी रहेगी। इलाज के खर्च का आप रिइम्बर्समेंट करना चाहते हो। मैं सुझाव देना चाहता हूं कि जिस तरह हैंडलूम और हैंडीक्राफ्ट के सेक्टर में इंश्योरेंस स्कीम चल रही है, जिसमें कुछ अंशदान भारत सरकार का है, कुछ अंशदान स्टेट गवर्नमेंट का है और कुछ प्रमोटर का अंशदान है। उनको मिलाकर के प्रीमियम जमा करा दिया जाता है और अगर हैंडलूम वीवर बीमार होता है, दस्तकार बीमार होता है तो उसका हैल्थकार्ड बनाकर इलाज फ्री होता है। क्यों नहीं उनकी राय लेकर के इस स्कीम को इस वर्कमैनशिप में लागू करें। क्यों आप अभी प्रतिपूर्ति की बात करते हैं। मैं समझता हूं कि अगर कोई वर्कर बीमार हो गया, उसने कहीं इलाज करा लिया और फिर वह कागज लेकर जाएगा तो कहेंगे कि डाक्टर के साइन नहीं हैं, डाक्टर ने यह दवाई क्यों लिख दी, यह दवाई तो हमारे यहां रिइम्बर्समेंट में आती नहीं है। उसे रिइम्बर्समेंट लेते-लेते ही दो-चार महीने का समय लग जाएगा। मेरा यह सुझाव है कि आप जैसे हैंडलूम और हैंडीक्राफ्ट सेक्टर में, इंश्योरेंस स्कीम के माध्यम से, हैल्थ कार्ड बनाकर के सरकारी अस्पतालों में इलाज फ्री में हो रहा है और कुछ चिन्हित प्राइवेट अस्पतालों को भी अधिकृत कर रखा है। वह योजना अगर इसमें लागू करें तो ज्यादा अच्छा होगा।

          दूसरी नेशनल लेबर कमीशर की रिपोर्ट और आईएलओ के कंवेंशन में यह विचार बार-बार किया गया कि वर्कमैन एंड एम्पलाई की क्या एक ही परिभाषा है। इसमें हम एम्पलाई कर रहे हैं। कहीं यह कानूनी जकड़न में न फंस जाए। इसलिए इसे स्पष्ट करना जरूरी है। क्योंकि बिल रचनात्मक श्रमिक कल्याण की थीम पर आधारित होना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी ने सजेशन्स कर दिये और उसे लागू कर दिया।

          धारा(20) में आपने कहा है कि अब कमीश्नर की नियुक्ति होगी, उसका अधिकार आपने स्टेट गवर्नमेंट को दिया है, उसमें क्वालिफिकेशन में भी कुछ बदलाव प्रस्तावित किये हैं। इसमें यह उल्लेख नहीं है कि आपकी इस विषय पर राज्य सरकारों से बात हुई है या नहीं हुई है। एक चीज जो आपने इसमें कही है, हम उस प्रपोजल का स्वागत करते हैं और वह यह है कि तीन महीने में उसका निर्णय हो जाएगा। बहुत अच्छी बात है लेकिन जो अभी तक लेबर कोर्ट और लेबर विभाग का हमारा अनुभव है और जो स्टेट गवर्नमेंट का अनुभव है कि कई सालों तक निर्णय नहीं होता है। अब आप कह रहे हैं कि हम तीन महीने में निर्णय कर देंगे तो मेरा यह सुझाव है कि यह तीन महीने वाली बात प्रैक्टिकल नहीं है। अगर यह प्रैक्टिकल है तो मैं इसमें यह बात जोड़ना चाहता हूं कि अगर 6-7 महीने लग जाते हैं तो तीन महीने के बाद उस वर्कर को कम से कम इतना भत्ता और सुविधाएं मिलनी चाहिए जितनी वह काम करते हुए ले रहा था। यह इसमें संशोधन आना चाहिए, अन्यथा उस तीन महीने का कोई फायदा होने वाला नहीं है। एक और चीज में इसमें संशोधन के माध्यम से जोड़ना चाहता हूं कि प्रस्तावित एक्ट उन लोगों पर लागू नहीं होता है जिन पर एम्पलाई स्टेट इंश्योरेंस लागू है। यह अड़चन इसमें क्यों डाली जा रही है। इसमें वर्कर को ऑप्शन दिया जाना चाहिए कि वह चाहे जिससे लाभ ले सकता है। उसे ऑप्शन देना इस एक्ट में बेहतर हो सकता है।

          मोटर व्हीकल एक्ट में सुप्रीम कोर्ट ने एक मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रीब्यूनल स्थापित किया है और उन्होंने जो फॉर्मूला तय किया है वह बेहतर है, इसीलिए मैं सरकार से अनुरोध करना चाहता हूं कि उसी फार्मूले के आधार पर अगर कंपनसेशन की राशि तय होगी तो वर्कर को ज्यादा पैसा मिलेगा। यह फार्मूला, जब तक 4 हजार रुपए वेज सीलिंग की कैप है, इसे आप नहीं हटाएंगे, तो उसे ज्यादा पैसा मिलने वाला नहीं है।

15.00 hrs.

          मैं एक बात और कहना चाहता हूं कि जो कर्मचारी खतरनाक इंडस्ट्रीज़ में काम करते हैं, वहां अगर मालिक ने सेफ्टी मेजर्स नहीं लगाए हैं जैसे हैल्मेट नहीं है, ग्लब्स नहीं हैं, मास्क नहीं हैं और अगर वहां किसी प्रकार की दुर्घटना हो जाती है, उस स्थिति में उस कर्मचारी को दुगुनी राशि मिलनी चाहिए। यह कारखाने के मालिक की जिम्मेदारी है कि वह सेफ्टी मेजर्स यूज करे और कर्मचारियों का बीमा कराए। मैं सरकार से अनुरोध करना चाहता हूं कि ऐसी स्थिति में अगर किसी कर्मचारी की मृत्यु होती है या वह अपंग हो जाता है, तो उसे दुगुनी राशि मिलनी चाहिए।

          मैं एक बात असंगठित वर्ग के मजदूरों के बारे में जो निर्माण कार्य करते हैं, उनके बारे में कहना चाहता हूं। बीस फुट ऊंची बिल्डिंग पर जो मजदूर काम करते हैं, अगर उनकी किसी दुर्घटना में मृत्यु होती है, तो उन्हें क्लेम मिलता है। लेकिन यदि बीस फुट से नीची बिल्डिंग में काम करने पर किसी दुर्घटना में यदि मजदूर को कुछ हो जाता है, तो उसे कुछ नहीं मिलता है। मैं राजस्थान से आता हूं। वहां केवल दस फीट के मकान बनते हैं। वहां अगर किसी की मृत्यु हो जाती है, तो उस क्लेम नहीं मिलता है। इसमें बीस फुट का बैरियर क्यों लगा रखा है? रूरल एरियाज़ में बीस फुट से नीचे ही मकान बनते हैं। यह भी संशोधन होना चाहिए। कम्पंसेशन एक्ट में जो फार्मूला दिया गया है, उसमें मृतक की पत्नी तथा अन्य वारिसों में अगर किसी कारण संबंध खराब हो गए, तो उसके लिए भी कम्पंसेशन का प्रावधान भी करना पड़ेगा।

          मैं आपके माध्यम से पुनः कहना चाहता हूं कि चार हजार की कैप को हटाएं और तीन महीने की आपने जो शर्त रखी है, वह ठीक है, लेकिन तीन महीने में अगर निर्णय नहीं होता है तो उस वर्कर को इतना पैसा मिले, जितना पैसा वह उस समय ले रहा था, जब वह दुर्घटनाग्रस्त हुआ था।

          आपने बोलने का मौका दिया, इसके लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।

                                                                                           

श्री संजय निरुपम (मुम्बई उत्तर): उपाध्यक्ष महोदय, कामगार मंत्री जी जो विधेयक लाए हैं, उसके लिए मैं उनका स्वागत करता हूं। मैं इस विधेयक का समर्थन करता हूं। यह विधेयक मुख्य तौर पर कामगारों के हितों को सुरक्षित करने के दृष्टिकोण से संशोधन करने के लिए लाया गया है। हमारे देश में बड़े पैमाने पर कामगार हैं। अगर पूरी दुनिया के हिसाब से देखा जाए, तो सोशल सिक्योरिटी के नाम पर उनके लिए कुछ भी नहीं है। एक बहुत पुराना कानून, जो 1923 में अंग्रेजों के जमाने में बना था, जिसमें कहा गया था कि अगर काम करते समय अगर कोई मजदूर दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है, तो उसे मुआवजा मिलना चाहिए। आज से सवा सौ साल पहले इस प्रकार की कोई अवधारणा देश में या दुनिया में नहीं थी। पहली बार जर्मनी में 1884 में इस प्रकार का कानून बनाया गया और इसके लिए कई आंदोलन हुए, उसके बाद यह महसूस हुआ कि जो कामगार काम करते समय अगर शारीरिक रूप से घायल हो जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है, तो उसके लिए कम्पनी के मालिक को या सरकार को कुछ करना चाहिए। तब एक कानून आया और पूरी दुनिया के देशों ने उस कानून को फालो किया। उसी कानून का एक संशोधन मंत्री जी यहां लाए हैं। मुख्य तौर पर इस संशोधन में दो-तीन बातें हैं, जिन पर हमारे बीजेपी के साथी ने बहुत अच्छे ढंग से प्रकाश डाला है। पहली बात तो यह है कि मृत्यु पर या स्थायी अपंगता की स्थिति में पहले जो राशि कम्पनी को देना जरूरी होता था, वह राशि बढ़ाई गई है। 80 हजार रुपए मृत्यु के समय और अगर कोई बुरी तरह से अपंग हो जाए, उसके लिए पहले90 हजार रुपए था, अभी मंत्री जी ने उसे नए संशोधन के हिसाब से उस राशि को बढ़ा कर सवा लाख रुपए से एक लाख चालीस हजार की है। मुझे नहीं लगता कि यह राशि बहुत पर्याप्त है। ठीक है, मंत्री जी ने इस संशोधन में यह भी प्रावधान किया है कि अब केन्द्र सरकार के पास यह अधिकार रहेगा कि वह जब चाहे, इस राशि को बढ़ा सकती है। यानी ऐसा नहीं है कि पार्लियामेंट के अंदर अगले संशोधन के आने की आवश्यकता है। ऐसे में मैं मंत्री महोदय से निवेदन करूंगा कि आने वाले दिनों में जैसे ही आपका विधेयक पास हो और यह कानून लागू हो, यह सवा लाख और 1 लाख 40 हजार रुपये की राशि सीधे दुगुनी होनी चाहिए क्योंकि मृत्यु की कोई कीमत नहीं होती। कोई आदमी मर गया, उसका कोई मुआवजा नहीं हो सकता लेकिन अगर कोई कामगार मरता है और उसके घर में कोई काम करने वाला नहीं है तो पूरा परिवार एक भुखमरी की स्थिति में आ सकता है। ऐसे में उसको इतने पैसे तो मिलें कि वह परिवार आने वाले दिनों में अपना भरण-पोषण कर सके। वैसी स्थिति में सवा लाख रुपये की कोई कीमत नहीं है। आज के जमाने में, आज की मुद्रास्फीति के दौर में सवा लाख रुपये की कोई कीमत नहीं है। इसलिए मैं मंत्री जी से निवेदन करूंगा कि एक बार कानून बन जाने के बाद यह सवा लाख रुपये और 1 लाख 40 हजार रुपये का जो आपने प्रावधान किया है, उस प्रावधान में तत्काल एक परिवर्तन करते हुए उसको दुगुना करें ताकि जिन कामगारों को एक संरक्षण देने के दृष्टिकोण से यह संशोधन लाया गया है, उनको सही मायने में संरक्षण मिल सके।

          बहुत खुशी की बात है कि रेलवे के क्लर्क लैवल के जो कामगार हैं, उनको भी इसमें शामिल किया गया है। पहले ऐसा नहीं था और इसके लिए मैं मंत्री महोदय का अभिनंदन करना चाहूंगा। इसमें जो एक बड़ा संशोधन किया गया है, वह यह है कि कमिश्नर की नियुक्ति के लिए जो योग्यता होगी, उस योग्यता को बदला गया है। उस योग्यता का एक पूरा विस्तार किया गया है। मंत्री महोदय ने अपने विधेयक में बताया है कि इसमें वकील और ज्यूडिशियल सर्विस के लोग भी हो सकते हैं और ऐसे गजटेड अफसर भी हो सकते हैं जिनके पास 5 वर्षों का काम करने का अनुभव हो। लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसा व्यक्ति कमिश्नर बनाया जाए जिसे कि तीन महीने के अंदर मुआवजा देने का काम पूरा करना है। वह एक ऐसा व्यक्ति हो जिसका ट्रैक रिकार्ड कभी भी कामगार विरोधी न रहा हो क्योंकि बहुत याद रखने की जरूरत है कि इस समय हम लोग ग्लोबेलाइजेशन के जमाने में जी रहे हैं। निजीकरण अंधाधुंध हो रहा है। प्राइवेट कंपनियां तेजी से बढ़ रही हैं। हायर एंड फायर की पॉलिसी लागू हो रही है। मजदूर बहुत ज्यादा सुरक्षित नहीं हैं। आर्थिक सुधारों के इस दौर में सबस ज्यादा अगर कोई प्रभावित हो रहा है तो वह हमारा कामगार वर्ग प्रभावित हो रहा है, चाहे वह निजीकरण के जरिये हो या ग्लोबेलाइजेशन की वजह से हो या इसके पहले जो डिसइंवेस्टमेंट वगैरह का काम हुआ जिसमें न जाने कितने कामगार सड़कों पर आ चुके हैं। हमारे मुम्बई में तो कई होटल यूपीए की पहले के सरकार ने बेच डाले, आज कामगार सड़क पर घूम रहे हैं। कई लोगों ने उसमें सुसाइड कर लिया। इसलिए उनको संरक्षण देने के लिए कुछ भी नहीं है। इसलिए मुझे लगता है कि ऐसे परिप्रेक्ष्य में इस वातावरण में इस कानून को लागू करते समय हमें थोड़ी संवेदनशीलता के साथ काम करना पड़ेगा और संवेदनशीलता यह है कि जिस व्यक्ति को कमिश्नर के पद पर नियुक्त किया जा रहा है, उसकी योग्यता के जो मानदंड हैं, उसके साथ-साथ उसका एक ट्रैक रिकार्ड चैक करना चाहिए वर्ना यह होगा कि जो बड़ी-बड़ी प्राइवेट कंपनियां हैं, वे जानबूझकर अपने किसी ऐसे व्यक्ति को कमिश्नर बनाने का प्रयास करेंगी ताकि जब कभी उनके ऊपर कोई संकट आए या मजदूर को मुआवजा देने की स्थिति आए तो वह कमिश्नर मजदूर के बजाए उस मालिक के हित को ज्यादा साधने में लग जाएगा। इसलिए उस कमिश्नर की नियुक्ति के समय विशेष रूप से ख्याल रखा जाना चाहए।

          दूसरे, असंगठित कामगारों के संदर्भ में मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा। आपने इस बारे में ऐसा कहा है और इस कानून में ऐसा प्रावधान है कि जो खतरनाक स्थिति में काम करने वाला मजदूर वर्ग है, उसका ख्याल रखा जाएगा। वह इस कानून की परिधि में आता है। अब हैजारडस का मतलब बहुत ही मसीमित है। उसे विस्तार देने की आवश्यकता है। हमारे देश में अगर संगठित मजदूर 3 या साढ़े तीन-चार करोड़ हैं, तो लगभग 40 करोड़ के आसपास एक ऐसा वर्ग है जो असंगठित क्षेत्र में काम करता है और उसके पास आज भी सोशल सिक्योरिटी नहीं है। अभी भारतीय जनता पार्टी के साथी बता रहे थे कि कहीं-कहीं बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने एक व्यावसायिक लाभ के दृष्टिकोण से सोशल सिक्योरिटी के नाम पर एक स्कीम चली रही हैं, अच्छी बात है लेकिन सही मायने में सिर्फ कंसट्रक्शन के क्षेत्र में ही ऐसा नहीं है, जिसका आपने जिक्र किया है। मैं सिर्फ मुम्बई की बात कहूं तो वहां इतने छोटे-छोटे धंधे चल रहे हैं और लाखों की संख्या में मजदूर काम कर रहे हैं। मुम्बई की झोंपड़पट्टियों में रेडिमेड गारमेंट्स के छोटे-छोटे कारखाने चल रहे हैं। ये कारखाने किसी भी किसी लॉ के तहत रेगुलेटेड नहीं हैं। चमड़ा उद्योग का काम बड़े पैमाने पर चल रहा है। चमड़ा उद्योग में काम करने वाले मजदूरों का जीवन सचमुच नर्क होता है। उन्हें किसी प्रकार की सोशल सिक्योरिटी नहीं मिलती है। हैंडलूम पावरलूम के क्षेत्र का थोड़ा इंतजाम हुआ है लेकिन इसे ज्यादा फोकस नहीं मिला है। मुझे नहीं लगता है कि पूरे देश में बीड़ी मजदूरों की दशा इस कानून की परिधि में आ रही है। जरी का काम करने वाले मजदूर, सबसे ज्यादा दुखद मजदूर है। वे एकदम अंधेरे में काम करते हैं। जहां हवा, पानी और रोशनी नहीं है, वहां वह काम करते हैं और उसे सही पगार भी नहीं मिलती है। मुझे नहीं लगता है कि वे कहीं से भी इस कानून की परिधि में आ रहे हैं। इस तरह से असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूर को क्या इस आधार पर रखा जाएगा चूंकि वह हेजार्डियस कंडीशन में काम कर रहे हैं, सिर्फ इसलिए इस कानून की परिधि में लाए जाएंगे या जिन क्षेत्रों का आपने जिक्र किया है, उन क्षेत्र के मजदूरों को इस कानून की परिधि में रखा जाएगा। मैं चाहता हूं इसके बारे में एक विशेष स्पष्टीकरण मंत्री महोदय की तरफ से आए।

          महोदय, ये जो मजदूर वर्ग हैं, इनके लिए बार-बार आईएलओ कन्वेंशन में जिक्र हुआ है। इसमें बार-बार मजदूरों के बारे में चिंता व्यक्त की गई है। पिछली यूपीए सरकार ने भी हमेशा असंगठित मजदूरों के हित और हक की बात कही है लेकिन इस कानून में इतनी गंभीरता रिफ्लेक्ट नहीं हो रही है। मैं चाहूंगा माननीय मंत्री महोदय पूरे असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के जीवन को सुरक्षित रखने के दृष्टिकोण से सोचें। इसके साथ ही खेतिहर मजदूरों की बात आती है। खेतिहर मजदूर जो कॉटेज इंडस्ट्री में काम करते हैं, उनके पास यूनियन तक बनाने का अधिकार नहीं है। ऐसी स्थिति में अनरेगुलेटेड जिसे हम इन्फार्मल सैक्टर कहते हैं, क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की तरफ ध्यान दिया जाए तो इन कामगारों पर बहुत बड़ा उपकार होगा। आर्थिक सुधारों का एक मानवीय चेहरा होना चाहिए। आर्थिक सुधार हो रहे हैं और बहुत तेजी से हो रहे हैं लेकिन आर्थिक सुधार में इस तरह के कानून आ रहे हैं। मैं आर्थिक सुधारों के अंधाधुंध कार्यक्रमों के दौरान कामगारों के हितों को सुरक्षित रखने के दृष्टिकोण का स्वागत करता हूं और यह उचित दृष्टिकोण से लाया भी जा रहा है। इस आर्थिक सुधार कार्यक्रम में कहीं कामगार पीछे न छूट जाए, आहत न हो जाए, टूट न जाए, इसे देखना आवश्यक है। मैं वर्कमैन कम्पेनसेशन एक्ट 2009 संशोधन विधेयक की आत्मा का स्वागत करता हूं। इस विधेयक के कार्यान्वयन के समय मंत्रालय ने इस कानून को लागू करने के लिए पूरी ईमानदारी से रूल बनाए, ऐसी स्थिति में निश्चित तौर पर उस आत्मा को वहां लागू करने की कोशिश करनी चाहिए तब कहीं जाकर इस विधेयक का उद्देश्य पूरा होगा। मैं एक बार फिर मंत्री जी को इस संशोधन विधेयक को सदन में लाने के लिए बधाई देता हूं और इस विधेयक का समर्थन और स्वागत करता हूं।

 

                                                                                           

 

श्री शैलेन्द्र कुमार (कौशाम्बी): माननीय उपाध्यक्ष जी, आपने मुझे कर्मकार प्रतिकार संशोधन विधेयक, 2009 के बारे में बोलने का अवसर दिया, इसके लिए मैं आपका आभारी हूं। माननीय मंत्री श्री मल्लिकार्जुन खरगे कर्मकार प्रतिकार अधिनियम, 1923 को लेकर इस सदन में आए हैं, मैं इसके समर्थन में बोलने के लिए खड़ा हुआ हूं। मैं इस बिल पर बल भी देता हूं। मैं सबसे पहले माननीय मंत्री को धन्यवाद ज्ञापित करना चाहता हूं कि कल उन्होंने अपना भाषण हिंदी में दिया। आपने बहुत अच्छा प्रयास किया है। खास तौर से हमारे कर्मकार प्रतिकार संशोधन विधेयक में कर्मकार की जगह कर्मचारी शब्द रखने का संशोधन किया है, इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देना चाहता हूं। कर्मकार शब्द कुछ अजीब सा लग रहा था, लेकिन कर्मचारी शब्द तो आम जनमानस में प्रचलित है, इसको हर व्यक्ति जानता है और सभी प्रदेश के लोग अच्छी तरह से जानते हैं। इसमें आपने कुछ विभागों को क्लासिफाइ किया है जिसमें रेल कर्मचारी, पोत मास्टर और नाविक तथा उसके कर्मीदल, वायुयान के कप्तान और उसके कर्मीदल या किसी मोटरयान के ड्राइवर और हैल्पर, मैकेनिक एवं क्लीनर के संबंध में आपने बड़े विस्तार से चर्चा की है। उसमें कुछ संशोधन भी आपने किये हैं। अभी तमाम माननीय सदस्यों ने अपने विचार इस पर व्यक्त किये हैं और यह बात सत्य है कि समय समय पर इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइज़ेशन और तमाम श्रम विभाग के जो कानून हैं, उनके तहत यह कोशिश हुई है कि कर्मचारियों को हम ज्यादा से ज्यादा सुविधा दे पाएँ, उनकी दिक्कतों और समस्याओं पर हमने बराबर इस सदन में भी बात की है।

          अभी कुछ सम्मानित सदस्यों ने संगठित और असंगठित मज़दूरों के संबंध में भी तमाम सुझाव और विचार रखे हैं और उनको भी शामिल करना चाहिए। मेरे ख्याल से तभी इस बिल का सही मकसद सिद्ध होगा। जहां तक आप कर्मचारियों की मृत्यु और आहत होने के विषय पर संशोधन लाए हैं, आश्रितों को 80 हज़ार रुपये से बढ़ाकर 1 लाख 20 हज़ार रुपये किया है और दूसरी तरफ 90 हज़ार की जगह 1 लाख 40 हज़ार रुपये किया है, यह ठीक किया है। लेकिन वहीं पर आज की मौजूदा समय की महंगाई को देखते हुए मेरे ख्याल से यह धनराशि बहुत कम है। इसको और बढ़ाने की ज़रूरत है। इसको बढ़ाया जाना चाहिए। मेरे ख्याल से किसी भी विषय पर अगर बार-बार संशोधन आए तो वह उपयुक्त और अच्छा भी नहीं होगा। वर्तमान समय की परिस्थितियों को देखते हुए अगर हम इसको बढ़ाते हैं तो वह उपयुक्त होगा।

          दूसरी बात आपने चिकित्सा व्यय के संबंध में की है। यहां जो धनराशि आपने बढ़ाई है – 2500 रुपये की जगह5000 रुपये किया है, अभी सम्मानित सदस्य ने कहा कि जो केन्द्रीय कर्मचारी हैं, उनके लिए सीजीएचएस में व्यवस्था की गई है। कुछ तो सीजीएचएस के द्वारा अपना इलाज कराते हैं और कुछ कर्मचारी प्राइवेट अस्पतालों में जाकर इलाज कराते हैं। वर्तमान समय में स्वास्थ्य सुविधाओं पर जो खर्च आ रहा है, एक पैसे वाला व्यक्ति तो अपना इलाज करा सकता है लेकिन जिसके पास पैसे नहीं हैं, वह इलाज नहीं करा सकता। छोटे-मोटे इलाज की व्यवस्था हर व्यक्ति कर लेता है, हर कर्मचारी कर लेता है लेकिन जो गंभीर बीमारियां हैं, जैसे कैंसर, ब्रेन टय़ूमर, हर्ट प्राबलम है या किडनी फेल हो गई तो इस विषय पर भी हमें गंभीरता से सोचना चाहिए जिसमें मेरे ख्याल से पांच लाख से ऊपर का खर्च आता है और 10-15 लाख रुपये तक का खर्च आ जाता है। वह कर्मचारी इतना खर्च नहीं कर सकता। इसलिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि इन कर्मचारियों को चिकित्सा की सुविधा मिले।

          एक बात आपने कही है कि अगर कर्मचारी की मृत्यु होती है तो उसकी अंत्येष्टि पर सहायता राशि को 2500 रुपये से बढ़ाकर 5000 रुपये किया है। यह बहुत अच्छा है। लेकिन मैं इस बिल के संबंध में अपने सुझाव देते हुए आपसे निवेदन करना चाहूंगा कि यह जो बिल है, यह कर्मचारियों के लिए है। कर्मचारी इस देश के विकास की धुरी हैं। इन कर्मचारियों को, चाहे वेतन में हो या उनकी मृत्यु पर आश्रितों को सुविधा की बात हो या उनकी चिकित्सा की बात हो, या उनकी ज़िन्दगी की बात हो, उनके कल्याण की जो भी बातें हैं, अगर हम सही मायनों में उनको सुविधा दे पाएँगे तो मेरे ख्याल से देश के विकास में जो मुख्य भूमिका निभाते हैं, वे इसका लाभ उठा पाएँगे।

          अंत में मैं इस कर्मकार प्रतिकर संशोधन विधेयक का समर्थन करते हुए अपनी बात समाप्त करता हूँ।

                                                                                         

 

 

 

 

                                                  

                                                                                           

 

SHRI KALYAN BANERJEE (SREERAMPUR): Mr. Deputy Speaker Sir, at the threshold I would like to say that the amendments  have been sought for ,are nothing but periodical in nature. From time to time benefits have been extended. I have seen that this time you have brought in the definition of an employee. But there is no amendment in respect of Section 3 of the Workmen Compensation Act itself. You have brought in definition within the statute book relating to an employee. But the benefit of the employee has been extended under Section 7 (b) which would be substituted as Section 4 1(b) of the main Act. By this amendment Government are giving the benefits of an employee who will be working outside the country. But Government are not extending the benefit to an employee who is working within this country. Therefore, you are not giving the benefit under Section 3 to an employee. Section 3 has been restricted only to the workmen. By this amendment you are extending the benefit to an outside employee also. Therefore, this part itself is discriminatory in character. Government must give the benefit. When you have brought the amendment, you have given the definition of an employee, you must extend the benefit of an employee who will be working within the country, apart from the workman. You have engrossed it now by bringing in two identities – employee and workman.

          The other point is that in Section 8 of the new Amending Bill you have said that apart from the member of a State Judicial Service for a period of not less than five years or is or has been not less than five years an advocate or a pleader or a gazetted officer, having educational qualification and experience in personnel management, can be appointed a commissioner. I do not have any difficulty insofar as the State Judicial Service is concerned. But what is the guideline for selecting an advocate for appointment to the post of commissioner? Would it be depending on the ipse dixit of the State Government or whoever is the ruling party there? In their discretion whoever lawyer is there, will he be appointed? What are the criteria for selecting a lawyer to be appointed as a commissioner? I am not against the selection of a lawyer for appointing him as a commissioner. But there must be fixed guidelines for selecting an advocate for appointment to the post of commissioner.

          Similarly, you are appointing a civil servant, who is a gazetted officer, to the post of commissioner. The next point is this amendment has been brought in regarding the disposal of the case by the commissioner. In my humble experience in which I have served for the last 28 years in my practicing career, not a single case is disposed of earlier than one year. Here, you have made a provision that within three months it has to be done. The provision has not been made mandatory, you have made it directory

. I can appreciate your thinking that it should be disposed of. If you want to get it disposed of within three months, it must be made mandatory. Some penal clause has to be there. If the commissioner is not in a position to dispose a matter within a period of three months because of the non-cooperation of the management, under the statute you must make a provision that the employer must give compensation for each and every day and it should be a penalized compensation. Ultimately what is happening? Who is gainer when a workman gets compensation? Ultimately the insurance company, that is, the most nationalized insurance company is fighting against the award of compensation. Now you will find in all litigations which are going up to Supreme Court, there is no shortage of money to the Central Government insurance company.

          They are fighting for cases even where Rs. 100 is awarded as compensation going up to the Supreme Court taking the matter for long, 20 years or 25 years. Is it possible for a workman to contest in such cases? Therefore, an in-built provision has to be made. When the Central Government is bringing the Act for the benefit of the workmen of this country, the Central Government must also restrict its another hand regarding the national insurance companies. At one stage they must accept it. The Commissioner will pass the order, then in the High Court there are two stages and then the matter goes to the Supreme Court. In all matters the national insurance companies are going to court. Therefore, whatever laudable object that has been fixed by the Central Government by giving workmen compensation and to provide benefit to the workmen, it is really frustrated. It is ultimately frustrated in the hands of the national insurance companies whoever those companies may be.

          I would, therefore, request the hon. Minister of Labour to look into this. He is having a tremendous experience when he was in the Assembly. I find that earlier also he has said so many things in favour of labour. I would request you, Sir, to consider these aspects. You must stop your insurance companies from going to the higher courts. Ultimately one of the adjudicating authorities is deciding the matter. Thereafter the High Court is giving its order. Why should they carry every matter up to the Supreme Court? It is not a matter of fight for the moustache and the workman is suffering. … (Interruptions) Therefore, I would humbly request for three things.

 SHRI B. MAHTAB (CUTTACK): What is that fight? 

SHRI KALYAN BANERJEE : It is the fight for moustache – mooch ki ladaai. … (Interruptions) Therefore, you kindly consider about the respect of the workmen. First of all, you kindly fix up a time. You have done it; but it has to be made mandatory. If the employer takes time, you give power to the Commissioner to impose a heavy penalty for the time he takes every time. Secondly, when you have got the definition of the employee under the Act, you extend him the benefits when he is outside the country. You give that benefit to them when he is within the country also.

          My request to you, through the hon. Deputy-Speaker is, there must be a guideline. Rather I would say that there must be a subordinate legislation to this extent fixing up the criteria for selecting a lawyer to be appointed or a gazetted officer to be appointed as a Commissioner. Otherwise, in other things I find that this is really beneficiary so far as the workmen are concerned. To that extent I really support the Bill. Some benefits have also been extended. Of course, these are being extended periodically. To that extent I support this Bill.

         

                                                                                           

 

SHRI BASU DEB ACHARIA (BANKURA):  Mr. Deputy-Speaker, Sir, I rise to support the Workmen Compensation (Amendment) Bill, 2009. This amending legislation has been brought before the House after the second National Labour Commission, set up in 2002, recommended for amending certain provisions of the Workmen Compensation Act, 1923.

          This Act was enacted in 1923. Since then there had been a number of amendments. The Act was amended to enhance the rate of compensation. The Bill was introduced and then it was referred to the Standing Committee. The Standing Committee on Labour has also made certain recommendations. Not all the recommendations have been accepted by the Ministry but some recommendations have been incorporated in the amending legislation.

          Mr. Deputy-Speaker, Sir, when the Act is being amended, there are four main purposes. One is to widen the definition of ‘workman’ and that is why, it is being replaced by ‘employee’ as in the original Act, certain employees were excluded from the ambit of the Act and there, it has referred to the Indian Railways Act, 1989. There, certain categories of employees have been excluded from payment of compensation. Before the enactment of the Indian Railways Act in 1989, there was Railways Act of 1898 where even the permanent employees of railways were paid as per the Workmen’s Compensation Act while in the place of work, if an employee got injured or died because of an accident. When the Indian Railways Act was amended in 1989, in the definition of ‘passenger’, the ‘railway employees on board’ has been included, but certain categories of employees, say casual workers, were excluded. There is no casual worker now, but in the past, there were more than three lakh casual workers in the Railways. While working on the track, if a wagon or coach on another track falls on the workman and he dies because of that, he would be paid as per the Workmen’s Compensation Act. He will not be treated as passenger.

          Now when the Act is being amended and the amount of compensation is also being enhanced after eight years, I would submit that the amount which is being enhanced to be paid in case of death from Rs. 80,000 to Rs. 1,20,000 is not sufficient. I would request the hon. Labour Minister to increase it because it is called ‘minimum’. If certain amount is fixed as minimum, no employer will give more than what has been stated as the minimum in the Bill. We have the experience of the past. We have the Minimum Wages Act which mentions ‘minimum’ wage, but are the contractors’ workers getting more than the minimum wage fixed by the State Government by way of notification? It is very rarely that they are getting more than that. Even the Labour Minister knows that the contractors’ workers do not get even the minimum wages as per the Contract Labour (Regulation and Abolition) Act of 1970. Their exploitation is taking place. So, my request is that the minimum compensation payable on the death of a workman or employee should be enhanced suitably as also in case he sustains injuries. It is mentioned that : “for the words “ninety thousand rupees”, the words “one lakh and forty thousand rupees” shall be substituted.” I would suggest that this amount should also be enhanced or increased.

          Now, we have got the Act. Has the Minister got any report as to how many workmen are getting the workmen’s compensation as per the existing Act? There are a number of cases where the kith and kin of the workmen do not get the minimum compensation after the workman’s death. They do not even get the minimum compensation. Sometimes, they have to compromise or to accept it because they need immediate help. They need immediate succour when the only earning member dies while working in a factory or in a workplace. But the kith and kin have to wait for months together to get the workmen’s compensation. As they have to wait for months together, they generally approach the employees or with the help of the Union they get some amount. It takes time to get compensation through Commissioner with the help of the Act, and because of this he has to accept any amount. Something has to be done to make expeditious payment of compensation. Sometimes, it takes more than one year to get this small amount of Rs. 85,000, which is there today. Therefore, some mechanism has to be developed, and some time-bound process should be there. This three months time — which has been fixed now in this amendment — should be made mandatory, and the families of the workmen should be paid the monthly salary that he gets until that compensation is paid. This provision should also be incorporated in the amending legislation.

MR. DEPUTY-SPEAKER: Mr. Acharia, please conclude your speech.

SHRI BASU DEB ACHARIA : I am concluding. There are only a couple of points left to mention.

          We have a number of labour laws. But what is happening today? These labour laws are being violated or not being observed. They are being violated blatantly. What is the safeguard here when the amending legislation is brought before this House? What is the safeguard here that these provisions of this legislation would not be violated? How can it be safeguarded in case it is violated? How can it be prevented? How many have been prosecuted for violation of the labour laws?

          We have many labour laws. We have the Contract Labour (Regulation and Abolition) Act; the Minimum Wages Act; the Workmen’s Compensation Act; the Maternity Benefit Act; the Payment of Wages Act, and yet the workmen or the employees do not get their salary for months together. There is no such thing to prevent the violation of labour laws. That is the main problem today. The workers of our country are facing this problem. We have 37.5 crore workers who are under unorganized sector. The Social Security Act was enacted in the last Lok Sabha. The social security which the workers in the unorganised sector should get, they are not getting. Even the laws enacted by this Act are also not being implemented properly. So, I would request the Labour Minister that whatever amendments he has brought before this House, these are the good amendments. But there is a scope for further improvement. What is this amount of Rs.1.25 lakhs? It is nothing. It should be increased to minimum of Rs.5.00 lakhs.

15.42 hrs                          (Shri Inder Singh Namdhari in the Chair)

THE MINISTER OF STATE IN THE MINISTRY OF LABOUR AND EMPLOYMENT (SHRI HARISH RAWAT): You pass it first.

SHRI BASU DEB ACHARIA :  Why? When you are amending it, you can increase it.

MR. CHAIRMAN :  Please address the Chair.

SHRI BASU DEB ACHARIA :  मैं आप ही को एड्रैस कर रहा हूं। श्रम राज्य मंत्री श्री हरीश रावत जी हमारे बहुत पुराने दोस्त हैं। श्री मल्लिकार्जुन खरगे बहुत सीनियर मंत्री हैं। हम अक्सर उनसे मिलते हैं। …( व्यवधान) हम तो भगवान में विश्वास नहीं करते हैं। …( व्यवधान) He also knows about the contractor workers. Once he was discussing with me as to how their interests can be protected. How can the contractor workers be saved from exploitation? They are not even getting minimum wages. We have the Contract Labour (Regulation and Abolition) Act of 1970. But nowhere this is being implemented.

MR. CHAIRMAN :  Achariaji,  Will you kindly conclude now?

SHRI BASU DEB ACHARIA :  In the Central Public Sector Undertakings, this is not being implemented. My humble request is to enhance the compensation both for the death and for getting permanently injured and improve the functioning of labour court. There is the Office of the Commissioner. But unless there is some direction, some mandatory provision by which time it has to disposed, till then such penalty has to be given to the workmen and that has to be incorporated in the Bill. Then this Bill will be welcomed by all. 

                                                                                           

 

DR. PRASANNA KUMAR PATASANI (BHUBANESWAR): Mr. Chairman, Sir, today I am delighted to greet you because of your permission to me on the discussion on the Workmen’s Compensation (Amendment) Bill, 2009. Sir, I am delighted to participate on the Workmen’s Compensation (Amendment) Bill, 2009. This Act may be called the Workmen’s Compensation (Amendment) Act, 2009. In the long title to the Workmen’s Compensation Act, the word “employees” shall be substituted throughout the principal Act with the words of “workman” and “workmen”, wherever they occur.

          A worker becomes a worker by his birth. Itihasa ratha pachhaku ghurena, agaku thahargati; itihasa ratha chakrachalak, hemanisha mehnati. The wheels of the world never move back. They always move ahead. The entire world is organised because of the dedication of the poor workers. But they are born as workers and they die as workers. The greatest tragedy on this earth is the life of a worker. He sacrifices his life to construct roads, bridges, mansions, temples, mosques, churches, monasteries, etc. But the living conditions of a worker have almost been the same now as prior to our Independence.

          In my Constituency there are about five hundred slum dwellers who are actually workers. They die without food, without clothing, without shelter and without medicine. This must be the case with every Constituency in the country. The hon. Minister is a senior Member of Parliament. He knows about the Act in and out. We people are sitting here formulating the Act. I would like to ask if the workers are really benefited by the legislations that we are formulating sitting here. They are not benefited at all. They do not have money to go to the court. They do not have money to pay to the advocate to argue their case.

          The Minister has mentioned in the Bill that the compensation which is about Rs.85,000 now would be enhanced to Rs.1,20,000. What is the value of the rupee now? In these days of steep hike in the prices of essential commodities when even the middle class people are suffering, you can imagine what the situation of a poor man could be. The keeper of an Alsatian dog spends more than Rs.200 a day to feed meat to it these days. However, a worker gets less than Rs.100 a day to feed his entire family. Is this amount sufficient to feed a worker’s family during these days of steep prices?

          I would propose to the hon. Minister that it should be doubled for organised as well as unorganised workers. When a worker sleeps on a hungry stomach, the rich man’s mansion would be moving. That natural calamity may come one day if we do not feed the poor workers who are living in the slum areas in our cities.

          These people are living in the slums in the city areas. They are serving in our families. Therefore, I pray to the hon. Minister that  money should be doubled.  At the same time, law should be binding. I would say that Parliament is a law-making body, which is promulgating law, enacting law and the Act for the poor workers. But if the Acts are not being implemented properly, poor workers may not go to the court. Therefore, I would like to pray to the hon. Minister that he should consider doubling the amount.  Everywhere, Bills are brought to Parliament for carrying out amendments. अमेंडमेंट होते रहते हैं और होते रहेंगे, लेकिन हमें देखना पड़ेगा कि अगर हम एक गरीब व्यक्ति के मन को शांति नहीं देंगे, तो फिर देश में भी शांति नहीं रख सकेंगे।

                                                                                                             

MR. CHAIRMAN : I think, the think-tank, the saffron colour would definitely make effect on the  Minister.

                                                                                           

 

श्री चंद्रकांत खैरे (औरंगाबाद): सभापति महोदय, मैं कर्मकार प्रतिकर (संशोधन) विधेयक, 2009 पर शिव सेना पार्टी की ओर से बोलने के लिए खड़ा हुआ हूं। मैं इस बिल को सदन में पेश करने के लिए मंत्री जी और राज्य मंत्री जी, दोनों को धन्यवाद देना चाहता हूं। मैं इस बिल का समर्थन करता हूं। इस बिल में काफी अच्छे प्रावधान किए गए हैं, लेकिन और भी सुधार हो सकते थे, कुछ और भी संशोधन हो सकते थे। …( व्यवधान) मराठी में बोलने के लिए पहले नोटिस देना पड़ता है, वरना मैं मराठी में ही बोलता।…( व्यवधान) इसलिए मैं यहां हिन्दी में अपनी बात कहूंगा। महाराष्ट्र में मैं मराठी में बोलता हूं।

          यह बिल संसद की स्थाई समिति में विचारार्थ गया था और समिति ने अपनी सिफारिशों के साथ इसे सरकार को सौंपा है। इसलिए मैं ज्यादा चर्चा इस पर नहीं करना चाहूंगा, क्योंकि स्थाई समिति में इस पर व्यापक चर्चा हो चुकी है। इस संशोधन विधेयक से वर्कर्स, जो अब इम्पलाइज कहलाएंगे, उन्हें काफी लाभ होगा। मैं स्वयं ईएसआईसी का सदस्य हूं। जैसे ईएसआईसी में डवलपमेंट हुई, आपने और आपके पूर्व जो मंत्री जी थे, हमारे तब के डायरेक्टर जनरल जो आर लेबर सेक्रेटरी हैं, उनका बहुत ज्यादा योगदान उसमें रहा है। इस कारण मेडिकल बेनिफिट्स ईएसआईसी के इम्पलाइज को मिले हैं। ये मेडिकल फेसिलिटीज ज्यादा अच्छी तरह से उन्हें मिल रही हैं और सुपर स्पेशियलिटी बेनिफिट भी उन्हें मिल रहा है। इस एक्ट में उसके लिए कोई प्रावधान नहीं है, वह हमें करना चाहिए। ईएसआई में जैसे 10,000 रुपए की कवरेज लिमिट है वर्कर की, वह लिमिट भी बढ़नी चाहिए। जैसे सरकारी कर्मचारियों को छठे वेतन आयोग का लाभ मिला है, वह फैक्टरीज या कम्पनीज में नहीं मिला है। इसलिए जिन वर्कर्स का 10,000 रुपए से ऊपर का वेजेज होगा, अगर वह किसी ऐसी फैक्टरी या कम्पनी में है, जो ईएसआई के तहत कवर होती है, तो उन्हें भी इसका लाभ मिलना चाहिए। आज के समय में कॉस्ट आफ लिमिट ज्यादा हो गई है। उस कारण से यह बेनिफिट ज्यादा देना चाहिए। इम्पलाइज के लिए कुछेक इम्प्लायर्स ही थोड़ी-बहुत मदद करते हैं। कई इम्प्लायर्स प्राफिट न होने की बात या अन्य कारण बताकर समुचित लाभ वर्कर्स को नहीं देते हैं। आपने जो 1,2000 रुपए और 1,40,000 रुपए की न्यूनतम व्यवस्था की है, यह ठीक है। इसमें यह भी प्रावधान होना चाहिए कि अगर ज्यादा दे सकते हैं तो वह देना चाहिए। कई कम्पनीज जैसे वोल्टास है, वीडियोकोन है या बजाज हैं, इनका प्राफिट अच्छा होता है, उन्हें ज्यादा देना चाहिए। इसलिए जैसे मिनीमम वेजेज होता है, वैसे ही मिनीमम बेनिफिट के नाते यह फिगर होना चाहिए, बल्कि उससे भी ज्यादा दे सकते हैं।

 

 

एक्ट में तो बदल नहीं सकते हैं लेकिन उसमें कोई न कोई सर्कूलर निकालकर कर सकते हैं, ऐसी मेरी विनती है। फ्यूनरल एक्सपेंसेज हमारे हमारे कॉरपोरेशन में उतना ही है, इसलिए यह ठीक है। उसमें भी अगर कोई ज्यादा देना चाहे तो दे सकता है, ऐसा फ्यूनरल एक्सपेंसेज में भी, बैनिफिट में भी देना चाहिए।

          जो कर्मचारी होगा, उसके अस्पताल से घर आने पर उसकी दवा शुरु होती है और वह कई दिनों तक चलती है, तो उसका बैनिफिट भी उसे मिलना चाहिए। जब तक वह ठीक नहीं हो जाता है, उसे बैनिफिट देना चाहिए।

          मेडिकल रिपोर्ट समय पर नहीं आती है। आपने कहा है कि कमिश्नर, लेकिन मैं कहूंगा कि कौनसा कमिश्नर? लेबर कमिश्नर, डिविजनल कमिश्नर या कौनसा कमिश्नर? मैं तो यह कहूंगा कि लेबर कमिश्नर होना चाहिए क्योंकि पहले तो वर्कमैन कंपनसेशन एक्ट में लेबर कोर्ट में जाना पड़ता था। आजकल लेबर कोर्ट्स डिस्ट्रिक्ट में भी हो गये हैं लेकिन लेबर कोर्ट के बदले में हम लोग कमिश्नर करेंगे, लेकिन कमिश्नर बोले तो लेबर कमिश्नर होना चाहिए। लेबर कमिश्नर मुम्बई, बिहार और दिल्ली में होंगे लेकिन जहां हम जिले तक जाएंगे तो जिले में डिप्टी लेबर कमिश्नर्स हैं, कुछ जिलों में असिस्टेंट लेबर कमिश्नर्स हैं, कुछ स्थानों पर गवर्नमेंट लेबर ऑफिसर्स हैं। उन स्थानों पर उन्हें एक्ट में सम्मिलित करना चाहिए। जैसे आपके विदर्भ का एम्पलाई विदर्भ के जीएलओ के पास जाएगा या एएलओ के पास जाएगा, वह बंगलौर में कैसे जाएगा और एक लाख रुपये के लिए बंगलौर के कितने चक्कर लगाएगा? इसलिए कमिश्नर की अपाइंटमेंट जो आप कर रहे हैं उसे नीचे के स्तर तक कीजिए।

सभापति महोदय :   खैरे साहब, इसमें परिभाषा दी हुई है कि कमिश्नर कौन बन सकता है? इसमें वह प्रॉविजन है।

श्री चंद्रकांत खैरे : जी, इसमें वह प्रॉविजन है लेकिन नीचे के स्तर तक वह प्रॉविजन होना चाहिए। नहीं तो गवर्नमेंट लेबर ऑफिसर क्या बोलेगा कि कमिश्नर के पास जाओ, कमिश्नर मुम्बई में रहता है। मुम्बई जाने के लिए एम्प्लाई को कितना खर्चा करना पड़ेगा? इसलिए नीचे के स्तर पर ही यह सैटलमेंट होना चाहिए, यह मैं आपके माध्यम से आदरणीय मंत्री जी से कहूंगा। जैसा कि तीन महीने के लिए कहा है तो डाक्टर को तो रिपोर्ट एक महीने में देना चाहिए। जो आदमी शांत हो गया, नहीं रहा, उसका जो बैनीफिट है वह एक महीने के अंदर उसे मिलना चाहिए। जो घायल हो जाता है उसे तीन महीने में मिलना चाहिए। जो आदमी नहीं रहा, उसे बैनीफिट देने में कोई हर्ज नहीं है, ग्राम पंचायत, म्युनिसिपल कोरपोरेशन या किसी से भी डेथ सर्टिफिकेट आ गया तो उसे बैनिफिट मिल सकता है, लेकिन यह बैनिफिट उसे एक महीने में मिलना चाहिए। आपने मुझे बोलने का समय दिया, धन्यवाद। मैं दोनों मंत्रियों को धन्यवाद दूंगा तथा श्रम-मंत्रालय तथा श्रम सचिवालय को भी धन्यवाद दूंगा कि यह बिल बहुत अच्छी तरह से लाए हैं। हमारा पूरा सहयोग रहेगा और जो हमने सूचनाएं इसमें दी हैं उन पर आप विचार करेंगे।।

                                                                                                             

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

                                                                                           

श्री गोरखनाथ पाण्डेय (भदोही):  सभापति महोदय, आपने मुझे कर्मकार प्रतिकर संशोधन विधेयक, 2009 के समर्थन में बोलने का मौका दिया, इसके लिए मैं आपका आभारी हूं। सबसे पहले मैं माननीय मंत्री जी का आभार व्यक्त करूंगा, क्योंकि इन्होंने कर्मकार शब्द की जगह कर्मचारी शब्द रखा है। वास्तव में कर्मकार शब्द को सामान्य जनता नहीं समझ पाती थी और कर्मचारी शब्द जनसामान्य से जुड़ा शब्द है। मंत्री जी ने संशोधन में कुछ ऐसे बिंदुओं को रखा है, जो वास्तव में कहीं न कहीं किसी संघ या समुदाय से जुड़े हैं, जिन्हें अपनी बात रखने के लिए कोई न कोई समुदाय है। कुछ असंगठित क्षेत्र हैं, जिनमें काम करने वाला व्यक्ति, जब उसकी असमय मृत्यु होती है, जो मुआवजा उसे मिलना चाहिए, वह उसे नहीं मिलता है। आपने मुआवजा बढ़ाने की बात रखी है, वह आज की महंगाई को देखते हुए कम है। हम प्रति दिन महंगाई से जूझ रहे हैं। किसी पीड़ित परिवार को जो यह धनराशि बढ़ा कर दी जा रही है, वह अस्सी हजार की जगह एक लाख बीस हजार और मृत्यु के बाद90 हजार से एक लाख चालीस हजार की है, यह बहुत कम राशि है। इससे न तो उसके परिवार का भरण पोषण होगा और नही उसकी दूसरी कठिनाइयां दूर हो पाएंगी। ऐसे भी परिवार होते हैं, जिनमें एक ही व्यक्ति कमाने वाला होता है। असमय उसकी मृत्यु होने की वजह से उसका परिवार ऐसी स्थिति में आ जाता है, जिसमें उनका जीना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। इस व्यवस्था को और अधिक बढ़ाने की जरूरत है।

          दूसरा आपने चिकित्सा व्यय की पूर्ति में ढाई हजार रुपए की जगह पांच हजार रुपए की व्यवस्था की है, यह स्वागत योग्य है, लेकिन यह भी कम है और इसे बढ़ाने की जरूरत है। आपने किसी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसके अंतिम संस्कार के लिए भी व्यवस्था की है, यह भी स्वागत योग्य है, लेकिन इस राशि को भी बढ़ाने की जरूरत है। यह महंगाई का समय है, ऐसे में इस व्यवस्था को करने में भी उस परिवार के सामने कठिनाई आ सकती है। मैं मंत्री जी का ध्यान असंगठित क्षेत्र के उन मजदूरों की तरफ भी ले जाना चाहता हूं, जहां उनकी न तो यूनीयन है और न ही उनकी बात किसी अधिकारी के पास पहुंच पाती है। काम करते समय यदि वे दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं, तो उनके परिवार के सामने कठिनाई उत्पन्न हो जाती है। जैसे गांव में मजदूर रहता है, गरीब रहता है, किसान रहता है, वह रोज कमाता है, रोज खाता है। जिस दिन उसकी कमाई नहीं होती, उस दिन उसके घर में चूल्हा नहीं जलता है। दुर्भाग्य से जब ऐसी बात होती है, तो उन्हें उसका जो लाभ मिलना चाहिए, उसकी किसी प्रकार की व्यवस्था इस प्रतिकार संशोधन विधेयक में नहीं की गई है। ऐसे लोग जो गांव में मजदूरी करते हैं, किसी का मकान बनाने जाते हैं या किसी अन्य संगठन में मजदूरी करते हैं, जब किसी कारण उनकी दुर्घटना में मृत्यु होती है, तो उनके परिवार को भी व्यवस्था करने के लिए इस संशोधन में उनको सम्मिलित करने की व्यवस्था करनी चाहिए। ऐसे उद्योग जो छोटे गांवों में या कस्बों में चलते हैं, घरों या कमरों में चलते हैं, इसका लाभ बड़े लोगों को मिल जाता है, लेकिन उसमें काम करने वाले मजदूरों को दुर्घटनाग्रस्त होने के बावजूद भी नहीं मिलता है। जैसे बीड़ी उद्योग है, कालीन उद्योग है, पत्थर तोड़ने का काम है या इस प्रकार के असंगठित काम करने वाले लोग हैं, जो गांवों में रहते हैं, जो गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करते हैं, उनके पास किसी और प्रकार का जरिया नहीं है तथा वह कमाने वाला एक ही व्यक्ति अपने परिवार में है, ऐसी स्थिति में जब उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, उसके लिए भी सहायता प्रदान करने की व्यवस्था इस संशोधन विधेयक में करने की जरूरत है। ऐसे जिनकी यूनियन हैं, जिनका संगठन है, जिनकी आवाज उठाने की व्यवस्था है, उनकी आवाज तो सरकारी माध्यम से, संगठन के माध्यम से, अन्य माध्यमों से सरकार तक पहुंच जाती है लेकिन ऐसे गरीब भी हैं, ऐसे मजदूर भी हैं जिनका भरण-पोषण मजदूरी करके होता है, उनको भी इस संशोधन में सम्मिलित करने की व्यवस्था होनी चाहिए तभी तो इस संशोधन का वास्तविक स्वरूप समाज को, देश को मिल पाएगा नहीं तो जैसे कि अभी कहा गया कि कहने के लिए तो उसमें बहुत सारे संशोधन हो रहे हैं, उसका स्वागत है, होना चाहिए लेकिन वह भाग, वे समाज के हमारे अंग भी इसमें सम्मिलित होने चाहिए, वे असंगठित क्षेत्र भी इसमें सम्मिलित हो जाएं ताकि इस संशोधन विधेयक का वास्तविक स्वरूप इस देश, इस समाज और इस जनता तक पहुंच सके, गरीब तबकों और झुग्गी-झोंपड़ी तक पहुंच सके तभी इसका वास्तविक स्वरूप समाज को, देश को मिल पाएगा। इन्हीं शब्दों के साथ मैं संशोधन विधेयक का स्वागत करते हुए अपनी बात समाप्त करता हूं।

                                                                                         

                                                                                           

 

श्री विष्णु पद राय(अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह): सभापति महोदय, सबसे पहले हमारे मंत्री जी को मैं धन्यवाद दूंगा। उनका शुभ नाम है-मल्लिकार्जुन खरगे। मैं उठकर उनके पास पूछने गया था कि मल्लिकार्जुन का क्या मीनिंग है। इस पर उन्होंने मुझे बताया कि इसका मीनिग लॉर्ड शिवा है। भगवान शिव ने सबके लिए न्याय किया।

सभापति महोदय : खरगे का क्या नहीं पूछा?

श्री विष्णु पद राय: खरगे का मीनिंग नहीं जानता हूं। मल्लिकार्जुन ही काफी है।

सभापति महोदय : खरगे का मतलब हुआ: जो हाथ में तलवार लिये हुए है।

श्री विष्णु पद राय: अच्छा। देश के गरीबों के, मजदूरों के भगवान विश्वकर्मा के रूप में मल्लिकार्जुन जी बैठे हुए हैं। जो संविधान संशोधन विधेयक ये लेकर आये हैं, वह लोगों को न्याय दिलाने के लिए लाये हैं। लेकिन जो ड्राफ्ट मैंने पढ़ा, मुझे लगता है, Old wine in new bottle with cocktail. कोई खास परिवर्तन मुझे दिखाई नहीं दिया। जो सरकार वहां बैठी है, कहती है कि यह आम आदमी की सरकार है। प्रोग्रेसिव एलायंस है। इसलिए मैं फिर कहता हूं कि दरिद्र नारायण की सेवा करना लॉर्ड शिवा की सेवा करना है। इसीलिए जो यह विधेयक लाया गया, यह गरीब मजदूर वर्ग के लिए लाया गया है। इन गरीब मजदूर-वर्ग ने रास्ते, हॉस्पिटल, स्कूल बनाये। उस रोड पर चलकर भारत की पार्लियामेंट में हम सब बैठे हुए हैं। इसलिए मेरा निवेदन है कि इसमें ऐसा अमेंडमेंट हो कि सचमुच में लगना चाहिए कि यह आम आदमी की सरकार है जिसने गरीब की चिन्ता की है। मैं एक उदाहरण दूंगा।…( व्यवधान)

          मैं कहना चाहूंगा कि दिल्ली सरकार ने एक अच्छा काम किया। जब डी.ए. बढ़ता है, तब दिल्ली सरकार का सरकुलर भी निकलता है। डी.ए. बढ़ा, मजदूर की तनख्वाह बढ़ा दी। लेकिन तनख्वाह क्या बढ़ी? मैं तो कहता हूं कि 62 वर्ष के बाद पहले बंधुआ मजदूर जमींदार का था, राजा का था लेकिन आज

ठेकेदार का हो गया। महोदय, एक बार फिर दिल्ली चलते हैं। हमारे अंडमान निकोबार भवन का जो लेबर सप्लायर है, जो सिक्योरिटी का सप्लायर है, जो ड्राईवर का सप्लायर है, उस संस्था का नाम एजीडीजी, चूना मंडी, पहाड़गंज है। वह सिक्योरिटी सप्लाई करता है। जो सिक्योरिटी स्टॉफ डय़ूटी में खड़ा रहता है, उनको महीने में तनख्वाह 2200 रुपये मिलती है। यानी डेली 70 रुपया और मिनिमम वेजेज दिल्ली में 140 रुपये है। जो मजदूर काम करता है, उनका जीपीएफ नहीं है, अर्न्ड लीव नहीं है, यूनिफार्म नहीं है, मेडिकल ट्रीटमेंट नहीं है, कोई बैनेफिट नहीं है। बाकी जो डिपार्टमेंट है, चाहे सिक्योरिटी का हो, चाहे लेबर का हो, चाहे ड्राईवर का हो, प्यून का हो, क्लर्क की यह हालत है। अब मैं आपको अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह के बारे में बताता हूं कि वहां क्या हालत है।

अंडमान निकोबार द्वीप समूह में स्टेट गवर्नमेंट नहीं है, वहां डायरेक्ट भारत सरकार बैठी है क्योंकि यह यूनियन टेरिटरी है। मैं आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं कि अंडमान में क्या हो रहा है। वहां एकमात्र म्युनिसिपल काउंसिल है, 12-14 साल काम किया लेकिन आज मजदूर डीआरएम, टीआरएम रखा गया, रेगुलर नहीं हुआ, उन्हें कोई बेनिफिट नहीं मिला। अब प्राइवेट सैक्टर की ओर चलते हैं, वे क्वेरी में काम करते हैं, क्रशर में काम करते हैं, लोडिंग-अनलोडिंग करते हैं, प्राइवेट बोट, डुंगी और होटल में काम करते हैं, सिक्योरिटी करते हैं, रोड कन्सट्रक्शन का काम करते हैं। उनकी हालत क्या है? मैं उदाहरण देना चाहता हूं कि राहुल गांधी जी गांव में गए थे और जिसकी चर्चा पार्लियामेंट में की थी। मैं आपको बताता हूं कि आज सबसे बड़ा कमजोर श्रमिक मजदूर है। उसका परिवार मालनरिश है। हम सबके पिता ने अच्छा कमाया था और हमने खाया था तभी अब हम तगड़े हैं। लेकिन गरीब मजदूर के घर में जो बच्चे पैदा होते हैं, वे मालनरिश हैं। तेलुगू औरतें बम्बू फ्लैट, पोर्टब्लेयर में काम करने आती हैं, मैंने उनसे पूछा आपको कितने रुपए मिलते हैं। वे बोलीं, हमें रोज 150 रुपए मिलते हैं जिसमें से बस और बोट किराया28 रुपए लगते हैं और 122 रुपए बचते हैं। वहां मिनिमम वेजिस 156 की जगह 150 रुपए मिलते हैं। अगर मजदूर आदमी होगा तो ज्यादा रुपए मिलेंगे और अगर मजदूर औरत होगी तो तनख्वाह कम हो जाएगी इसलिए मालनरिश बच्चे पैदा हो रहे हैं। मेरा कहना है कि सही मिनिमम वेजिस बनाइए, दिल्ली सरकार डीए एलाउंस लेकर मिनिमम वेजिस फार्मूला पेपर में निकालती है लेकिन इम्पलीमेंट बाद में होता है। डीए बढ़ता है तो एलाउंस बढ़ता है और दिल्ली सरकार के हिसाब से मिनिमम वेजिस बढ़ता है। अब देखें प्राइवेट सैक्टर में क्या हो रहा है। मजदूर ठेकेदारों के अंडर काम करते हैं, कोरे कागज पर सिग्नेचर होते हैं। अंडमान में मजदूर काम करते हैं जबकि कोई रजिस्टर नहीं होता है। वे वहां काम करते हैं, कागज पर साइन करते हैं और तनख्वाह लेकर चले जाते हैं, नो ईपीए, नो बोनस, नो ग्रेच्युइटी, एक्सीडेंट से मर जाओ, बीमारी से मर जाओ लेकिन कोई कम्पेनसेशन मिलने वाला नहीं है। हमारे देश में यह हालत है।

MR. CHAIRMAN : Shri Bishnu Pada Ray, you give some advice to the hon. Minister.

SHRI BISHNU PADA RAY : I will give. वर्कर का मीनिंग क्या है – A worker is the one who is working for some consideration. वह मैंटली काम करे, फिजीकली काम करे या दोनों काम करे। वर्कर को अलाऊ होना चाहिए – परमानेंट, टेम्परेरी, ट्रेनीज, कांट्रेक्ट, एडहॉक, कैजुअल या डीआरएम। लेकिन जो मजदूर पूरा काम करेंगे वे मजदूर हैं।

सभापति महोदय :  अब आप कन्कलूड करें।

श्री विष्णु पद राय: महोदय, अभी मैंने कुछ कहा ही कहां है। मैं अंडमान, काला पानी से आया हूं। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि मुझे बोलने का मौका दीजिए।

          अब मैं बिल के संबंध में कुछ कहना चाहता हूं। मैंने देखा क्लर्क को बिल से निकाल दिया गया है। क्लर्क गोदाम में काम करेगा और गोदाम में स्टोरेज स्टोर मैन्टेन करेगा, अगर ऊपर से गिर जाएगा तो उसे कम्पेनसेशन नहीं मिलेगा। इसलिए जो मैंटली काम करता है उसे भी इन्कलूड किया जाए। इसमें प्रावधान रखा गया जो लोग गड्ढा खोदेंगे, एक्सकेवेशन करेंगे, 25 मैन पावर होनी चाहिए, 12 महीने का मैन डेज एवरेज लेंगे। जो गोदाम में काम करेंगे, मिनिमम मैन पावर 10 होनी चाहिए। मार्किट में कुली जो सामान उठाएगा, मिनिमम पांच वर्कर काम करेंगे लेकिन मेरा कहना है कि बिल्कुल नहीं होने चाहिए। इस कंडीशन में भारत के किसी मजदूर को फायदा होने वाला नहीं है। मजदूर मजदूर ही रहेगा, कोरे कागज पर साइन होंगे और मजदूर को पेमेंट होगी। मैं मंत्री महोदय से अनुरोध करूँगा कि जो कंडीशंस रखी गई हैं कि इतना नंबर मज़दूरों का हो तो कंपनसेशन मिलेगा, इस कंडीशन को हटा दें। कोई मज़दूर हो, एक दिन करे, पांच दिन करे, दस दिन करे, उसको कंपनसेशन मिलना चाहिए। डैथ के बारे में मैं सुन रहा था बसुदेव जी को। उन्होंने बताया कि कोई मज़दूर काम करते-करते मर गया रेलवे में, तो उसको पांच लाख रुपये मिलते हैं। दिल्ली में ब्रिज गिरा तो मरने वाले मज़दूर के परिवार को पांच लाख रुपये मिले। इसमें क्या रखा गया है? 80 हजार रुपये था और उसको बढ़ाकर 1लाख 20हज़ार रुपये किया गया है। रेलवे में कंपनसेशन पांच लाख रुपये, बार्डर में मरने से पांच लाख रुपये, आतंकवादी कश्मीर में किसी को मार देगा तो उसको चार लाख, पांच लाख या छः लाख रुपये, हमारे मिलिट्री के आदमी मरेंगे तो आठ लाख या दस लाख रुपये और मज़दूर के मरने पर 1लाख20 हज़ार रुपये? आज क्या इंडैक्स है? हमें सुनने में आ रहा है कि एमपी की तनख्वाह 90 हज़ार रुपये तक बढ़ाएंगे कंज्यूमर प्राइस इंडैक्स को आधार बनाकर। इसलिए मज़दूरों को पांच लाख रुपये डैथ केस में पेमेन्ट दिया जाए यह हमारा आग्रह है।

          परमानैंट डिसेबलमैंट में 90 हज़ार रुपये से बढ़ाकर 1 लाख 40 हज़ार रुपये किया है। आप खुद जानते हैं, जो लोग बिस्तर पर हैं, किसी के दो आँखें नहीं होंगी, दो पाँव नहीं होंगे, पैरालिसेज़ हो गया, उसके बच्चे गाली दे रहे हैं। वह बेचारा लंगड़ा बिस्तर में पड़ा है। वह रोता है प्रार्थना करता है कि कब ऊपर वाला मुझे ले जाए। परमानैंट डिसेबलमैंट डैथ के बराबर है। इसलिए उसमें भी पांच लाख रुपये मुआवज़े का प्रावधान किया जाए यह हमारी मांग है। इसके बाद रीइंबर्समैंट की बात है। रीइंबर्समैंट किसके लिए करेंगे? इसमें दो रीइंबर्समैंट हैं। एक तो सीवियरली इंजर्ड और दूसरा पार्शियली इंजर्ड। किसी मज़दूर को काम करते समय चोट लगी तो उसका ट्रीटमैंट करने के लिए वह कहाँ जाएगा? वह सीरियस पेशेन्ट है, बीमारी सीरियस है। उसको जाना पड़ेगा स्पेशलिस्ट के पास। अंडमान में कोई सुपर स्पैशियेलिटी हॉस्पिटल नहीं है। उसको चेन्नई में जाना पड़ेगा। जाने के लिए कौन एयरफेयर देगा? एयर में किराया है 92000 रुपये स्ट्रेचर में। गरीब मजदूर कहां से जाएगा प्लेन में स्ट्रेचर में ट्रीटमैंट कराने के लिए? इसलिए रीइंबर्समैंट स्कीम में जो रिमोट एरियाज़ हैं – लक्षद्वीप, अंडमान निकोबार द्वीप समूह हैं, उनके पेशेन्ट के इलाज के लिए प्लेन का फेयर भी देना चाहिए, यह हमारी मांग है। वह गरीब मज़दूर रीइंबर्समैंट कैसे लेगा? हम लोग एमपीज़ हैं, या कोई सरकारी कर्मचारी हैं तो एस्टिमेट लाओ, 90 प्रतिशत एडवांस पैसा लो और इलाज कराओ। मज़दूर के इलाज में अगर चार पांच लाख रुपये खर्च होंगे, अपोलो में या रामचन्द्र अस्पताल में, तो वह पैसा कहां से लाएगा? उस मज़दूर को भी एस्टिमेट के आधार पर उनको 90 परसेंट एडवांस रुपया देने की सुविधा हो, यह हमारी मांग है। मैं कहना चाहता हूँ कि जो पार्शियल डिसेबलमैंट है, उसको भी प्रोराटा में डैथ में पांच लाख रुपये जो है, उसी के मुताबिक इसको भी बढ़ाएँ।

          अंत में मैं प्रिवैन्टिव प्रोटैक्टिव हैज़ार्ड्ज़ के बारे में कहना चाहूंगा। आप तो खुद माइनिंग एरिया से हैं। अंडमान निकोबार द्वीप समूह में जो लोग सीमैंट में काम करते हैं, रोड में काम करते हैं, क्वैरी में काम करते हैं, उनके लंग्ज़ में एक बीमारी हो जाती है जिसका नाम है सिलिकोसिस, जिसमें सीमैंट और पत्थर की डस्ट फेफड़ों में जम जाती है। वह पेट में जाती है तो स्टोन हो जाता है। इसलिए सीमेंट वेज बोर्ड में भारत सरकार द्वारा यह फैसला किया गया कि हर महीने उस मज़दूर को कम से कम डेढ़ किलो गुड़ देना चाहिए। यह गुड़ खाने से शरीर के अंदर जो सीमैंट और पत्थर का डस्ट जाता है, वह मोशन में निकल जाएगा। साथ में उसे कोकोनट आइल दीजिए शरीर में लगाने के लिए, ताकि बीमारी दूर भाग जाए। अंत में

मैं फिर अनुरोध करूँगा कि जो लोग हैज़ार्डस काम करते हैं, उनकी चिन्ता भी सरकार करे। मैं फिर कहूँगा

कि हे लॉर्ड शिवा मल्लिकार्जुन जी, ऐसा अमैंडमैंट करो कि जिससे सरकार का नाम हो कि यह आम आदमी की सरकार है – एलाइंस प्रोग्रेसिव है, और हर गरीब मजदूर का भला हो। नहीं तो ऐसे लोग चिल्ला चिल्ला कर बोलेंगे कि 500 रुपये का खाना कुत्ता खाएगा, उसके लिए पैसा है लेकिन गरीब के लिए पैसा नहीं है। आम आदमी की सरकार आपको कोई नहीं कहेगा। इतना अनुरोध करते हुए मैं फिर कहूँगा कि सरकार गरीब मज़दूरों के साथ न्याय करे।

                                                                                         

                                                                                           

 

SHRI PABAN SINGH GHATOWAR (DIBRUGARH): Mr. Chairman, Sir,  I thank you for giving me this opportunity to speak on this Bill. I stand to support the Workmen’s Compensation (Amendment) Bill, 2009. Let me, first of all, congratulate the hon. Labour Minister and his colleague for bringing forward this Bill before this House for the consideration of the hon. Members.

          Sir, the Second Labour Commission in 2002 recommended the amendment of the Workmen’s Compensation Act. But it is good of the UPA Government that it has brought forward the Bill. I should say that it is the first step in the right direction. I will confine myself to the proposed amendments in this Bill.

          I want to draw the attention of the hon. Minister, through you, Sir, to the amendment from “Workmen” to “Employees.” Definitely, it will enlarge the coverage of the workmen and it will be gender neutral. Earlier, it was workmen. At one point, the PMO also constituted a Task Force to look into the gender neutrality of the Act. They also suggested that the expression “workmen” should be changed. I would congratulate the hon. Minister that he is going to change the title of the Bill by putting the word “Employees” and enlarging the area. 

          I have a submission in this regard because this Act will benefit those people who are the beneficiaries of this Act. In the changing scenario of the labour market.  There is changing scenario in the industrial behaviour also, what about the other people, those who are not covered by the expression “Employees”, I would request the hon. Minister to look into the definition of “Employees”. It should give protection as much as possible to the employee concerned because  there are diverse type of workmen who are coming to the labour market. It is also true that in this country, only 10 per cent of the workforce is organized and 90 per cent of the workforce is unorganized. Unfortunately, the unorganized lot are always outside the purview of any Act. Hence, I think, the UPA Government is thinking of bringing forward a Bill for the benefit – I mean the social security scheme for the – unorganized workers. Definitely, by this amendment, the Government has taken some bold steps. This time, the Government has empowered itself to revise the wages. In this regard also, I have a submission that there should be a time limitation. So that within four or five years, there should be a revision of the wages. There should be some change in the Workmen Compensation Act. The revision will be based on the Consumer Price Index. The Consumer  Price Index is changing every year.  So, I think, if we wait for an indefinite period, workers are not going to get the benefit. Hence, there has to be a revision by the Central Government. When the Government is empowering itself, I think, Government need not come to this House. This should be periodically revised so that the workmen can get the benefit of the increased wage.

          The State Governments are supposed to frame the rules. The crux of the problem is there because in many States, there are a fewer number of Workmen’s Compensation Courts, Compensation Commissioners. So, I would request the hon. Minister to take up the matter with the State Labour Ministers to see that as many Workmen Compensation Commissioners are appointed. Otherwise, after the disability of the workers or after their death, the family members have to wait for a longer period under distressed condition. Again, I would say that it is a laudable step taken by the Central Government. They are limiting  the period that within three months, the Commissioners have to give the judgment. If there is no Commissioner, who will give the judgment?

          Then, there are fewer numbers of Labour Commissioners and they are loaded with more compensation cases. So, these things have to be looked into by the Government.

MR. CHAIRMAN : Please conclude.

SHRI PABAN SINGH GHATOWAR : Sir, I will take only one or two minutes more.

          The amount of compensation to be given is based on the Consumer Price Index of December, 2000 and they have increased the amount according to this index. It is a good step because it was never looked into by the earlier Government. The NDA Government had never cared to look into the provisions of the Workmen’s Compensation Act. There were continuous demands from the trade union movement of the country, but they were never serious and they never tried to bring this Bill before Parliament.

          Sir, the Government is also enlarging the qualification of the Commissioner. So, the State Governments will be enabled to appoint more and more Commissioners to attend to the cases of aggrieved persons. This is also a good step.

          There are 50 types of injuries mentioned in the Workmen’s Compensation Act and according to the assessment of the injury, they can offer compensation from 1 per cent to 100 per cent and it is a cumbersome procedure. So, I think, the Government has to look into the procedure as to how best it can be simplified.

          Now there are more and more chemical and other hazardous industries coming up in our country. If the worker gets an internal injury, there is no system to assess it and there is no scope of considering the internal injury of the workers. There are many chemical industries functioning in the country now and the workers, who get an internal injury, suffer for a long time. So, there has to be a system to assess their internal injury and they should be properly compensated through this Act because these are emerging industries. There are many outsourcing companies in the country now and we have to look into the conditions of the workers working in the outsourcing industry.

          Sir, the implementation of this Act is totally dependent on the performance of State Governments. There are many good provisions in the Act, but when the time comes for implementation, the responsibility always lies with State Governments. So, I would request the hon. Labour Minister to call for a meeting of the Labour Ministers of all States, after the passing of this Bill, so that they can quickly formulate the rules and implement the policy envisaged in this Bill.

          With these few words, I support the Bill wholeheartedly.

                                                                                           

 

डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह (वैशाली): सभापति महोदय, सरकार ने दावा किया है कि 1923 के कानून को संशोधित करने के लिए हम द्वितीय श्रम सम्मेलन की अनुशंसा पर यह कानून लाये हैं। स्टेंडिंग कमेटी में भी इस पर बहस हुई, चर्चा हुई, अनुशंसाएं हुईं। उन्होंने यह भी दावा किया है कि वर्कमेन का जो शब्द रखा गय़ा है, उसकी जगह पर एम्पलाई, मतलब कर्मकार की जगह पर कर्मचारी रख दिया है। इन्होंने स्वीकार कर लिया है कि स्टेंडिंग कमेटी की अनुशंसा उसमें है।

          हम इनसे सवाल उठाते हैं कि उस कानून का नाम वर्कमेन कम्पेंसेशन कानून है और उसके भीतर वर्कमेन की परिभाषा की जगह पर एम्पलाई रख दिया गया तो फिर इस कानून के नाम में वर्कमेन क्यों है, उसको इन्होंने एम्पलाई क्यों नहीं किया? कानून के अंदर वर्कमैन की जगह इंप्लाई शब्द को इन्होंने स्वीकार कर लिया। भीतरी भाग में जब स्वीकार किया, तो ऊपरी हेडिंग में जो मुख्य नाम है, उसमें वर्कमैन की जगह इन्होंने इंप्लाई क्यों नहीं रखा? यह हमारा सवाल नंबर एक है।

          महोदय, यह दावा किया गया, यह सन् 1923 का कानून है। मरने पर 80,000 रूपए कंपन्सैशन और 90,000 रूपए घायल होने पर, इसमें इन्होंने बहुत साहस दिखाया है। इसे समझा जाए, आप तो स्वयं जानकार आदमी हैं, मजदूरों के हित के लोग हैं। सन्1923 में80,000 रूपए, ये बड़ा साहस किए, वर्कमैन-वर्कमैन करके ये लोग बड़ा धन्यवाद चला रहे हैं और बहुत बधाई भी कर रहे हैं। …( व्यवधान) सन् 2000 से सन् 2009 में क्या हालत है? सत्तापक्ष से मेरा आग्रह है कि आप विधेयक पास कराने में जरूर वोट दे दीजिए। जनता और खासकर गरीब आदमी, जो मेहनतकश मजदूर है, उसके सवाल में वाहवाही मत दीजिए।

          मैं आपको इसमें भेद बताता हूं। कहां गरीब आदमी का काम देखने वाला है? कानून में ऐसी उलझन है, तीन पन्ने में कर्मचारी की परिभाषा है, असली जो कामगार है, वह तो इसमें आएगा ही नहीं। जो कर्मचारी नियोजित है, वह मर गया, जो कर्मचारी बीमित है, निविदा कर्मचारी बीमा निगम में नीमित है उनको नहीं, कुछ लोग ऐसे कार्यरत होते हैं, नियोजित होते हैं, क्या उनको कागज मिलेगा? हमारे यहां से लोग दिल्ली में आते हैं, वे माथे पर ईंट लेकर चलते हैं। वह सीढ़ी पर चल रहा है, चढ़ रहा है, वह गिर गया, मर गया, उसका विधान कहां है? कौन से कानून से उस गरीब आदमी की सहायता होगी? उसको कहां से कंपन्सैशन मिलेगा? छोटे-छोटे कारखाने चलते हैं। वह हाथ से उन्हें चलाता है, उसका हाथ घुस जाता है, हाथ कट जाता है, आदमी मर जाता है, आदमी दौड़-दौड़कर परेशान होता है। कानून में कौन सी परिभाषा होगी? तीन पन्ने में परिभाषा यह लिखे हैं। केवल न वाली परिभाषा लिखे हैं, फलां आदमी इसमें नहीं होगा, फलां आदमी इसमें नहीं होगा, तो कौन आदमी इसमें होगा? परिभाषा पाजीटिव होनी चाहिए। परिभाषा से ही हमें भारी मतभेद है। आप देखिए कि परिभाषा में इन्होंनें क्या लिखा है? एक तो यह लिखा है कि कर्मचारी को कर्मकार, कर्मकारों के बदले कर्मचारियों लिखा जाएगा, इससे क्या कोई मतलब है? असली है परिभाषा, कर्मचारी से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जो अनुसूची दो में यथा विनिर्दिष्ट ऐसी किसी हैसियत में नियोजित नहीं है, यह निगेटिव है, जो नियोजित नहीं है, तो उसमें कौन है? इसमें संपूर्ण पन्ने में खोजेंगे, गरीब आदमी जो कहीं भी काम कर रहा है, क्या उसका कोई नियोजन कागज बनता है? जो छोटे-छोटे कारखाने वाले हैं, क्या उसका कागज बनाते हैं? जो डेली मजदूर है, उन्हें ठेकेदार ले आया, अभी मेट्रो में खतरा हुआ हुआ। दिल्ली वाले वहां देखने गए होंगे। मेट्रो में मजदूर काम कर रहा था। वह मर गया। वह गिर गया, उसका शाहतीर और उसका सिल ऊपर से गिर गया, वह पिचककर मर गया। उसके नीचे जो बैठे थे, वे मर गए। उनका क्या होगा? उनका इस कानून में क्या कहीं उल्लेख है? इसमें बड़ा भेद है। गरीब आदमी के साथ बड़ा भारी छल हो रहा है, खासकर मेहनतकश के साथ ऐसा हो रहा है। उसको कौन से कानून में परिभाषित किया जाएगा, कहां से कानून लाइएगा, विनिर्दिष्ट दो को देखा जाए, क्या-क्या इसमें लिखा हुआ है? …( व्यवधान) मूल अधिनियम की अनुसूची दो में, दादा आप लोगों का काम करते हैं, वामपंथी लोग वर्कमैन-वर्कमैन, खाली यूनियन-यूनियन कहकर रह जाते हैं, लेकिन गरीब का सवाल हल कैसे होगा?

सभापति महोदय :  रघुवंश बाबू, कंक्ल्यूड करिए।

डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह : महोदय, हम मूल बात कह रहे हैं। इन्होंने कानून बना दिया कि कमिश्नर हल कर देगा। लेबर कोर्ट उसको तीन महीने में तय कर देगा। तीन महीने में नहीं करेगा, तीन वर्ष तक रहेगा, पांच वर्ष तक रहेगा, उसका आप क्या करेंगे? गरीब आदमी से संबंधित कितने ही मामले कोर्ट में चल रहे हैं? वह कितने दिनों से चल रहा है, यह जानकारी है। क्या उनके लिए इसमें कोई प्रावधान है? इन्होंने कानून बना दिया कि तीन महीने में हल होगा। इलैक्शन पिटीशन का कानून में लिखा हुआ है कि छ: महीने में फैसला होगा। क्या छ: महीने में फैसला होता है? चूंकि कानून बनाया जा रहा है, इन्होंने कानून बना दिया कि तीन महीने में निष्पादन हो जाएगा, तो हम जानना चाहते हैं कि यदि तीन महीने में निष्पादन नहीं होगा, तीन साल लग जाएंगे, पांच साल लग जाएंगे, तब क्या होगा?

          मारूति बहुत नामी कारखाना है। उसके सपोर्टर बहुत भारी दलाल लोग हैं। डेढ़ सौ, दो सौ कर्मचारी जो उसमें कार्यरत थे, दादा की पार्टी वाले कोई यूनियन चलाते हैं, उन्हें हटा दिया गया, बर्खास्त कर दिया गया। वे कोर्ट में गये। हमें लगता है कि इस बात को पांच-छह वर्ष हो गये। ऐसा जाना जाता है कि वह जो गाड़ी का कारखाना था, जो कोर्ट चलाते हैं, उन्हें गाड़ी दे दी। इस तरह क्या फैसला होगा? इसलिए लेबर कोर्ट में ऐसे लचर कानून न रखे जायें जिससे गरीब लोग जो मर गये, घायल हो गये, उन्हें न्याय न मिल सके। यदि तीन महीने में फैसला नहीं होगा, तब क्या होगा? वह गरीब कहां जायेगा, किसके यहां दरवाजा खटखटायेगा?

          ‘दैनिक जागरण’ में श्रम कानूनों का सच नाम से एक एडिटोरियल है। सभापति महोदय, आप दैनिक जागरण जरूर पढ़ते होंगे। उसमें लिखा है– केन्द्रीय रोजगार एवं श्रम मंत्री श्री मल्लिकार्जुन खऱगे की स्वीकारोक्ति का कोई मूल्य नहीं कि श्रम कानून तनिक भी प्रभावी नहीं है। जब यह प्रभावी ही नहीं है, तो फिर कानून बनाकर क्या होगा? ऐसा मंत्री कहते हैं। श्रम के लिए कानून बनायेंगे तो वह जल्दी प्रभावी होगा। इन्होंने ठीक कहा। श्रमिकों एवं सेवायोजकों के बीच त्रिपक्षीय समझौता कराने के अतिरिक्त उनके मंत्रालय ने अभी तक कोई काम नहीं किया है। उनको कम समय मिला है इसलिए कितना काम करेंगे। जिम्मेदार पदों पर बैठे व्यक्तियों विशेष रूप से केन्द्रीय मंत्रियों से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे केवल समस्या की गंभीरता बयान करें। जो सरकार में नहीं हैं, क्या वे गंभीरता बयान करेंगे? इन्हें काम करना है, लेकिन करते नहीं हैं। दुर्भाग्य से वर्तमान श्रम मंत्री यही कर रहे हैं। विडम्बना यह है कि विभिन्न स्तरों पर श्रम कानूनों में बदलाव की व्यवस्था अनेक बार जतायी जा चुकी है, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात वाला है। यह हम नहीं, अखबार के एडिटोरियल में विद्वान सम्पादक लोगों ने अपना ऑब्जर्वेशन दिया है। लेकिन मैं ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूं कि जो गरीब मेहनतकश लोग हैं, मेहनत करने से दुनिया में कुछ निर्माण हो सकता है। मेहनत से कारखाना चलता है, कपड़ा बनता है, घर बनता है, मेहनत से पार्लियामैंट बनी है। इसके लिए किसी मजदूर ने ईंटें ढोयी होंगी। उनका ख्याल नहीं किया जा रहा है। कानून का ऐसा मकड़जाल बना दिया जाता है कि वह फार्म लेकर दौड़ता रहेगा। मरने वाले की पत्नी एमपी के यहां आयेगी और कहेगी कि लेबर कोर्ट हमारी बात नहीं सुन रही है, हमें कागज नहीं मिल रहा है। जो मेहनत करके रोटी खा रहा था, वह मर गया, तो उसके परिवार का क्या होगा? इसकी चिंता है और यह श्रम मंत्री का दायित्व बनता है कि देश में जो मेहनतकश लोग हैं, असंगठित मजदूर हैं, उनके पास कागज नहीं है। वे दैनिक मजदूरी करते हैं, क्योंकि उन्हें गांव में काम नहीं मिला इसलिए यहां काम खोजने आ गये। वे माथे पर बोरा ढो रहे हैं, ईंटें ढो रहे हैं, कारखाने में मशीन चला रहे हैं, पम्पिंग सेट चला रहे हैं। यदि उसे चलाते हुए वे मर गये, तो उनके बारे में कोई प्रावधान इस कानून में नहीं है। इस कानून से गरीबों का भला होने वाला नहीं है इसलिए कोई कप्रीहैन्सिव कानून आऩा चाहिए। कम्पेनसैशन कम है, तीन महीने वाला एक भी प्रावधान ऐसा नहीं है, जिसमें गरीब और मेहनतकश लोग, जो कारखाने में काम कर रहे हैं, उनको लाभ मिल सके। जो काम करके दौलत पैदा करते हैं या जो कामगार हैं, इस विधेयक से अभी तक हमें उनके भले की कोई संभावना नहीं लगती। इसलिए हम सब पक्षों से और सदन से दरख्वास्त करते हैं कि इस तरह की मनोवृत्ति और इच्छाशक्ति होनी चाहिए कि मेहनत करने वाले निरूत्साहित न हों। सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था ऐसी हो, कि जो भी मेहनत कर रहे हैं, उन्हें ऐसा लगे कि हम काम कर रहे हैं, तो हमारे मरने के बाद भी हमारा परिवार बिखरेगा नहीं, इस तरह की गारंटी होनी चाहिए। इन्हीं सब बातों पर विचार किया जाये।

                                                                                                   

                                                                                           

 

*SHRI P. LINGAM (TENKASI): Mr. Chairman, Sir, I rise to support, on my own behalf and on behalf of the Communist Party of India, the Workmen’s Compensation (Amendment) Bill, 2009 moved in this House on 7th of August, 2009. I would like to thank the Government for this move.

          It is a long awaited action on the part of the Government to improve the lot of the working class of this country. Due to the changes in economic scenario, we find an impetus to both economic and industrial growth. Whether the standard of the industrial labour who contribute to the industrial growth has improved is a moot question. A labour, who is entirely dependent on his body and physical strength to earn his livelihood, is contributing to the industrial growth in his own way. Hence, the labour class must be adequately compensated when there is a dire need at a time when they are disabled.

When there is a sudden stoppage in the lives of the labour class either due to death or disablement or incapacitation or invalidation because of accidents or other causes, there must be an effective mechanism to provide for the social security needs of his family members and other dependents. This Workmen’s Compensation (Amendment) Bill must ensure social security to an individual labour and his dependent family whenever there is a cessation of his productivity either due to disablement or death.

I would like to point out that the quantum of compensation spelt out in this Bill for death and disability is inadequate. I would also like to point out that the allowance provided for cremation at the time of death is very meagre and does not

 

* English translation of the speech originally delivered in Tamil.

meet the present day requirements as available in the wake of rising prices. I would like to place on record that it is incumbent on the part of the Government to ensure that the compensation amounts so paid are adequate and compatible to the needs based on the ground reality.

Social security cover is available to the workers and employees in the organised sector. We cannot afford to ignore the lot of the workmen in the unorganised sector. Their standard of living needs to be improved and it has been neglected all these years. I would like to impress upon the Government to provide a cover to those workers also and, if it is possible, we must ensure that the benefits of this Bill accrue to the workers in the organised sector too.

In this Bill, the compensation provided to workmen has been enhanced from Rs. 80,000 to Rs. One lakh and twenty thousand only. I would like to point out that even in a road accident, the compensation paid is more. While calculating compensation for the victims of road accidents, their annual income is taken into consideration and it is multiplied by 10. Thus, an amount equivalent to 10 years’ annual income is paid as compensation. But in the case of workmen, the compensation sought to be paid through this Amendment Bill is not adequate, particularly when we consider the huge price rise that we are witnessing now. We must recognise the fact that the dependents and the family members of such workmen who die in harness must have befitting compensation to help them come out of the shock and the grief due to an abrupt end to their livelihood. I would request the Government to increase the compensation amount to Rs. Five lakh. Totally incapacitated workmen are to get Rs. 1,40,000 as compensation which has been enhanced from Rs. 90,000. I would like to point out that this is also not adequate. After spending on medical treatment, the worker must ensure that the day-to-day needs of his family must also be met. Hence, the sudden stoppage of livelihood of the worker must also be taken into consideration. I request the Government to enhance this compensation also to Rs. Five lakh while providing for medical assistance and healthcare on a continuous basis from then on.

I would like to point out that the allowance extended to perform the last rites of the workmen in this Bill is much less than what is provided in other social security measures. Even poor people are forced to shell out at least Rs. 20,000 for such ceremonies. At least that compensation must be paid fully taking into consideration the ground realities.

Medical Advance must be extended to workmen for undergoing treatment in place of the medical reimbursement procedure resorted to in this Bill. The sorry plight of the working class must be taken into consideration while providing medical care. Almost all of them are not in a position to spend during such exigencies. It will be meaningless to say that they can take back the money after spending it first during those critical hours when they are in dire need of anything and everything. This Amendment Bill, by itself, could have provided for medical treatment through certain notified hospitals. At least from now on, a holistic view must be taken and a comprehensive compensation package must be extended to workmen. Saving the lives of workmen at the needy hour is more important and this must not be lost sight of.

This Bill provides for the setting up of Statewise Commissions. I would like to impress upon the Government that the wings of such Commissions must be operative in all the district headquarters all over the country considering the vast population and the large number of workmen in our country. Deputy Commissions must be set up in all the districts. Trade union representatives, especially from Central Trade Union organisations, must be roped in to take part in the functioning of these commissions so that the workers’ point of view is not lost sight of. Emphasising the need to cover workmen from the unorganised sector also to get the benefits of this Amendment Bill and also the need to increase the number of members in the commission from 20 to a further enhanced number, let me conclude my speech extending my support again.

 

 

 

MR. CHAIRMAN : Dr. Prabha Kishor Taviad wants to lay her speech on the Table of the House.  She can give her written speech on the Table of the House, which will be taken as read.

                                                                                           

 

श्री गणेश सिंह (सतना): सभापति महोदय, सरकार के द्वारा कर्मकार प्रतिकर संशोधन विधेयक, 2009 में कुछ संशोधनों के साथ इस बिल का मैं समर्थन करने के लिए खड़ा हुआ हूं। इस बिल में मुख्य रूप से चार विषयों का उल्लेख हुआ है। एक, कर्मकार शब्द की जगह पर कर्मचारी शब्द रखा जाये। दूसरा, काम करने वाले कर्मचारी की अगर दुर्घटना में मृत्यु हो जाए तो उसको अभी 80,000 रूपए मिलते थे अब उसको 1,20,000 रूपए मिलेंगे। तीसरा, यदि कर्मचारी स्थायी रूप से विकलांग हो जाए तो पहले उसे 90,000 रूपए दिए जाने का प्रावधान था जिसे अब बढ़ाकर 1,40,000 रूपए कर दिया गया है। चौथा प्रावधान यह है कि पहले कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके अंतिम संस्कार के लिए 2500 रूपए दिए जाते थे जिसे अब बढ़ाकर 5000 रूपए कर दिया जाएगा।

          मैं समझता हूं कि देश की बहुत बड़ी आबादी, इन श्रमिकों की है, जो असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं, इनकी संख्या का अगर अनुमान लगाया जाए तो यह 35 करोड़ से भी अधिक होगी जिनके लिए यह बिल प्रस्तुत किया गया है। मैं मानता हूं कि यह ऐसा क्षेत्र है जो कई हिस्सों में बंटा हुआ है। उनकी सुविधा के लिए, उनकी मदद करने के लिए कानून तो बने हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि इन कानूनों का लाभ उन गरीबों तक नहीं पहुंच पाता है। इसका एक कारण यह है कि जो कानून बने हैं, उनमें शब्दों का खेल है, कानूनों के प्रावधानों में जगह-जगह किन्तु-परन्तु लगे हुए है। इसके कारण भी मजदूरों को इन कानूनों का लाभ नहीं मिल पाता है। यह विधेयक स्वागत योग्य है, इसमें कोई दो राय नहीं हैं, लेकिन इस विधेयक में जो प्रावधान किए गए हैं, वे बढ़ाने लायक हैं। एक गरीब आदमी की जिंदगी क्या है, सिर्फ 1,20,000 रुपए! इसी तरह एक गरीब आदमी अगर स्थाई रूप से विकलांग हो जाए तो उसकी कीमत क्या है, सिर्फ 1,40,000 रुपए! मैं पूछना चाहता हूं कि जिनका बीमा भारतीय जीवन बीमा निगम के माध्यम से बीमा है, उन्हें इन परिस्थितियों में कितना बीमा मिलता है? जब दुर्घटना होती है, तब बीमा मिलता है। अगर सरकार वास्तव में उनकी मदद करना चाहती है तो ये जो सीमित प्रावधान हैं, इन्हें बढ़ाया जाना चाहिए।

          सभापति महोदय, मैं दूसरी बात कहना चाहता हूं। मंत्री जी ने कहा कि ईएसआई के जो मजदूर हैं, उनके अलावा जो श्रमिक हैं, उन्हें हमने इसमें शामिल किया है। मंत्री जी यह बताएं कि इस बिल में किस-किस तरह के श्रमिक आएंगे और कौन-कौन से क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिक आएंगे? यदि इसका भी उल्लेख होता तो जिस व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए आपने एक्ट में संशोधन करने का काम किया है, वह पूरा हो जाता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। अभी भी कई ऐसे सेक्टर हैं, जैसे मैं अपने क्षेत्र की बात बताता हूं। मेरे क्षेत्र में बड़े-बड़े कारखाने हैं, उस क्षेत्र में काफी संख्या में मजदूर काम करते हैं। उनके बारे में भी चिंता करनी होगी। इसके अलावा जो घर में झाड़ू-पोंछा लगाने, बर्तन साफ करने, खेतों में काम करने वाले, जंगलों में काम करने वाले मजदूर हैं, उनके बारे में क्या प्रावधान है? इसके अलावा बीड़ी मजदूर हैं, जो बीड़ी बनाने में ही अपना जीवन खपा देते हैं और उसके फलस्वरूप उन्हें टी.बी., कैंसर जैसे रोग हो जाते हैं, उनके लिए क्या सोचा है, क्या उनका भी प्रावधान इसमें है और क्या उनकी मदद भी आप करने वाले हैं?

16.53 hrs.                                   (Dr. Girija Vyas in the Chair)

          क्या एक मजदूर के जीवन में यही इस बिल में प्रस्तावित तीन-चार स्टेज ही आएंगी कि वह मर जाए, स्थाई रूप से विकलांग हो जाए या उसकी अंत्येष्टि हो। मैं समझता हूं इनके अलावा और भी जरूरत है, जैसे उनके बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था, परिवार के लिए दवा इत्यादि की व्यवस्था। जैसे अभी रघुवंश बाबू कह रहे थे कि अगर किसी मजदूर का हाथ या पांव कट जाए तो वह स्थाई विकलांग की श्रेणी में नहीं आएगा, तो फिर पैसे कैसे मिलेगा। इसलिए हमें ये सब चीजें भी देखनी होंगी। हमें यह भी देखना होगा कि काम करते हुए किसी दुर्घटना में कोई मजदूर घायल हो जाए, तो उसके इलाज की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। संगठित क्षेत्र के मजदूरों का इलाज ईएसआई के अस्पताल के माध्यम से हो जाता है, लेकिन असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे किसी मजदूर को आप कैसे लाभ पहुंचाएंगे? असंगठित क्षेत्र में यह हालत है कि अगर कोई महिला गर्भवती हो, तो वह तब तक काम करती है, जब तक उसके पेट में दर्द न हो जाए। इसी तरह खेत-खलिहानों में काम कर रही महिलाओं के जो बच्चे होते हैं, तो अक्सर देखा जाता है कि दोनों बीमार रहते हैं। ऐसी प्रसूति वाली महिलाओं की हम मदद नहीं कर सकते।

          मेरे राज्य मध्य प्रदेश की सरकार ने एक कर्मकार सहायता योजना चलाई है। मैं उसका उदाहरण देना चाहता हूं कि उस योजना के तहत इस तरह के तमाम श्रमिकों को शामिल किया गया है। पूरे राज्य में ऐसे75 लाख मजदूरों को चिन्हित किया गया है और उन्हें पहचान पत्र दिए गए हैं। जिसके माध्यम से उनके बच्चों की पढ़ाई फ्री, उनके माता-पिता और बच्चों के इलाज की समुचित व्यवस्था की गई है। इसके अलावा दुर्घटना के समय उन्हें मुआवजा भी दिया जाता है। अगर कोई महिला गर्भवती हो तो उसे 40 दिन की मजदूरी अवकाश सहित मिलती है। इसी तरह उसके पति को जच्चा-बच्चा की देखभाल के लिए15 दिन की मजदूरी अवकाश सहित मिलती है।

          आपने इस विधेयक में अंतिम संस्कार के लिए प्रावधान किया है, ऐसा प्रावधान उस योजना में भी है। मैं निवेदन करना चाहता हूं कि एक गरीब परिवार की जरूरत क्या है, उसे हम कैसे पूरा कर सकते हैं, कैसे कानूनी स्वरूप दे सकते हैं, उसका उल्लेख इस बिल में होना चाहिए। मुझे पूरा विश्वास है कि आप इन सब बातों पर भी ध्यान देंगे, क्योंकि आपका दृष्टिकोण सही है। मेरा यह कहना है कि इन चार प्रावधानों के साथ और भी प्रावधान इस बिल में जोड़े जाएं और श्रमिकों को पूरी सुरक्षा मुहैया कराने का काम आप करें। श्रम कानून कई हिस्सों में बंटा हुआ है। इस श्रम कानून की इम्प्लीमेंट एजेंसीज हैं, वे अपने-अपने हिसाब से इम्प्लीमेंटेशन कर रही हैं। आए दिन कारखानों में दुर्घटनाएं होती हैं और रोज मजदूरों की मृत्यु होती है, लेकिन उन्हें मुआवजे के नाम पर कुछ नहीं मिलता। कारखानों में लॉ एंड ऑर्डर को ठीक रखने के लिए प्रशासन के माध्यम दबाव बनाकर से थोड़ा-बहुत पैसा मिल जाता है, लेकिन उससे उन मृतक मजदूरों के परिवार वालों की समस्या का निराकरण नहीं होता है।  न्यायालयों में मुकदमें पंजीबद्ध हैं, कब उनकी निराकरण की समय-सीमा तय होगी? आपने तीन महीने की समय-सीमा बताई है, लेकिन मुझे नहीं लगता है कि इस समय-सीमा का इम्प्लीमेंटेशन न्यायालयों में होगा। आपको उस गरीब का ध्यान रखकर, जिसके लिए इस बिल में संशोधन किया जा रहा है, इस पर नजर रखनी पड़ेगी। उस गरीब को कैसे हम लाभ पहुंचा सके, इस पर भी कड़े कानून बनाने की जरूरत है। मैं इस बिल का इन संशोधनों के साथ समर्थन करता हूं।

                                                                                                   

                                                                                           

 

*DR. PRABHA KISHOR TAVIAD (DAHOD): tThe people of unorganised sector – working in stone crushing factory are inhaling the dust of stone – small micro parts of stone which is known as silica, and the disease is known as silicosis. The lungs are destroyed to such an extent that they are getting infection of lung off and on mostly tuberculosis.  Then the patient has to die as there is no treatment of Silicosis.  Such persons/ workers are to be given compensation.

          In Gujarat ESIS – scheme is there but these workers are not able to get benefit because these persons are not on roll calls because the factory owners are always showing less number of workers on record, when they have a visit of labour officer they are declaring holidays and not allowing them to represent.

          These people are poor.  The factory owners are giving shelter to stay in factory.  These people are not knowing the hazards of 24 hours inhalation of silica – whole family is at risk.

          So I request you to include them and if they are diagnosed any occupational disease they should be given compensation irrespective of duration of exposure.  Any occupational disease, if diagnosed should be given compensation.

 

                                                                                                   

 

 

 

 

 

 

 

 

 

* Speech was laid on the Table.

                                                                                           

 

चौधरी लाल सिंह (उधमपुर): मैडम, आज माननीय मंत्री जी जो बिल लाए हैं मैं उसके समर्थन में बोलने के लिए खड़ा हुआ हूं। आप बेहतर तरीके से जानते हैं कि जिसके लिए यह बिल लाया गया है वह हिंदुस्तान में रहने वाला इंसान बड़ी बुरी हालत में है। हमारा समाज जोकि लोकतांत्रिक समाज है, उसकी जिंदगी सबसे घटिया सदियों से रही है। लगता था कि जब लोकराज आयेगा तो इस मजदूर वर्ग की, वर्कमैन की सुनवाई यकीनन होगी। आज उसके मकान की क्या हालत है? उसके घर पर छत नहीं है, उसकी शक्ल से ही लगता है कि वह मजदूर है, उसके पहनावे को देखें तो दूर से लगता है कि मजदूर है, दूर से ही उसकी बनावट मजदूरों की लगती है। वह दिन कब आयेगा जब यह मजदूर भी, दुनिया के बाकी इंसानों के साथ मिलकर बैठ सकेगा और अपने को इज्जतदार इंसान मान सकेगा। यह ठीक है कि आप बड़ा बिल लेकर आये हैं और बेहतरीन अमेंडमेंट्स लाए हैं लेकिन इन अमेंडमेंट्स से मैं नहीं समझता कि उस मजदूर को कुछ मिल पाएगा। यकीनन इसमें उसे इज्जत देने की बात कही गयी है। यह बहुत बढ़िया बात है। मौत पर 80 हजार से 1 लाख20 हजार रुपये की बात कही गयी है। क्या 1 लाख20 हजार में उसके जो डिपेंडेंट्स हैं उनका पेट भर पाएगा, वह इज्जत की जिंदगी जी सकेंगे। दूसरा आपने जो1 लाख40 हजार रुपया किया है, उसे भी देखें। एक तरफ आपने कहा है कि 1 लाख 40 हजार रुपया अगर वह डिसेबल होता है तो उसे दिया जाएगा। दूसरी तरफ आपने इंजरी के बिल पेश करने की बात कही है, आपने कहीं नहीं लिखा कि अगर वह बीमार हो जाए तो उसके लिए कहीं भी लफ्ज नहीं है कि उसके मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए कुछ होगा। केवल काम करते समय इंजरी के लिए किया गया है। यह क्या बात है? यह बड़ी अफसोस की बात है। मजदूर की बीमारियां क्या हैं? सबसे ज्यादा टीबी किसे होती है, कैंसर किसे होता है। आज मजदूर वर्ग में कैंसर है, टीबी है, बड़े लोगों को तो विदेश से बीमारियां आती हैं। वहां विदेश गये थे और सार्स लेकर आये हैं, एड्स लेकर आये हैं लेकिन गरीब की बीमारी के लिए कोई डिफेंस नहीं है, उसके लिए कोई खड़ा नहीं होता है। मैं कहना चाहूंगा कि यह तो संगठित मजदूर की हालत है, कभी असंगठित मजदूर की तरफ देखें। मेरे यहां वैष्णों देवी में 25 हजार मजदूर यात्रियों को कंधों पर उठाकर यात्रा करने के लिए ले जाता है। उस पर 12 परसेंट टैक्स है। मैंने पांच साल पहले भी यहां कहा था, उस समय माननीय ऑस्कर फर्नानडीज साहब थे, आज सब चैंज है, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।

17.00 hrs.

आज भी वहां उनका शोषण किया जा रहा है। आपने इनकम टैक्स तो सुना होगा, आपने सेल्स टैक्स भी सुना होगा और टोल टैक्स भी सुना होगा, लेकिन क्या आपने लेबर टैक्स सुना है? मैं पूछना चाहता हूं कि वैष्णों देवी की यात्रा पर जो मजदूर काम करते हैं, उन्हें टैक्स देना पड़ता है, कौन इसे लीड कर रहा है? इसे कोई नहीं पूछ रहा है। इसलिए मैं बार-बार कहता हूं कि एमपी जितना मर्जी चिल्लाए, कोई सुनवाई नहीं है। हम सभी गलतफहमी में हैं कि एमपी सदन में कोई बात करेगा, तो स्थिति में बदलाव होगा। नहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा। मैं कह सकता हूं कि एमपी भी मजदूर की भांति है। हमारी भी कोई रिप्रेजेंटेशन नहीं है। आप सोचें, एमपी सम्माननीय है, चीफ सैक्रेटरी से बड़ा है, लेकिन क्या मिलता है। अपने मिलने वालों को चाय नहीं पिला सकता है। एक सैक्रेटरी के आफिस कोई आएगा, तो वहां उसे सरकारी चाय मिलेगी। आपको क्रप्ट दिखाया गया है।

सभापति महोदया :  लाल सिंह जी, आप कृपया विषय पर बोलिए।

श्री दारा सिंह चौहान (घोसी): महोदया, लाल सिंह जी सही बात कह रहे हैं, इन्हें बोलने दीजिए।

चौधरी लाल सिंह : मैं कहना चाहता हूं कि जिस मजदूर ने सुई से जहाज तक बनाया, वह आदमी है, वह बैठ नहीं सकता है। वह दुनिया की बड़ी से बड़ी इमारतें खड़ी कर सकता है, लेकिन इस्तेमाल नहीं कर सकता है। वह गद्दे तैयार कर सकता है, लेकिन उन पर लेट नहीं सकता है। बड़े-बड़े घर बना सकता है, लेकिन झुग्गी में रहता है। हमें उनके लिए क्या किया है? हमने उनके लिए कुछ नहीं किया है। जब मजदूर सुखी होगा, तब इस देश में किसी प्रकार की मुश्किल नहीं रहेगी। मजदूर सबसे ज्यादा दुखी है और जिल्लत की जिंदगी बिताने पर मजबूर है। उसके बच्चे स्कूल जाने को तरसते हैं। किस मजदूर के बच्चे पढ़ते हैं, किस मजदूर के बच्चे पढ़ कर डाक्टर या इंजीनियर बन गए हैं? कौन सा मजदूर ऐसा है, जिसके बच्चे सही ढंग से पढ़ सके हैं? सिर्फ एक मिड डे मील योजना है, लेकिन यह कैसी योजना है, जिसमें बच्चे खाना खाते ही बीमार हो जाते हैं। मेरा सुझाव है कि सौ रुपए नरेगा के तहत किए हैं और वह भी बहुत मुश्किल से किए हैं तथा असंगठित क्षेत्र के लोगों के लिए किए हैं। आज दाल और चावल का क्या भाव है? मजदूर तेल भी नहीं खरीद सकता है। उसके घर तड़का नहीं लगता है। आप तो कहते हैं कि फ्राई करो फ्राई, तड़का लगा लो। आप मजदूर से पूछो कि क्या कभी फ्राई देखा है।

श्री गणेश सिंह (सतना): दाल के अंदर दाल नहीं होती है।

सभापति महोदय : आप बैठ जाएं। माननीय सदस्य आप अपनी बात समाप्त कीजिए।

चौधरी लाल सिंह : महोदया, मैं अपनी बात समाप्त करने जा रहा हूं। पांच लाख रुपए से कम मुआवजा नहीं होना चाहिए। मेरी प्रार्थना है कि आपकी स्टैंडिंग कमेटी की जो अनुशंसा है, वह भी साढ़े चार लाख, पांच लाख की है। समिति ने कुछ सोच कर ऐसा कहा होगा, अगर समिति ने कहा है, तो आपने कम करके उसे क्यों पेश किया है? मेरा कहना है कि स्टैंडिंग कमेटी की जो कार्यवाही है, वह जरूर इम्प्लिमेंट होनी चाहिए। इसके साथ मेडिकल रिइमबर्समेंट की बात कही है, रिइमबर्समेंट लेने के लिए पहले पैसे देने पड़ते हैं। शायद आप लोगों को भी कभी रिइमबर्समेंट लेने के लिए जाना पड़ा होगा, आप जानते होंगे कि मजदूरों की रिइमबर्समेंट कैसे होती होगी? आप मजदूरों का इलाज करवा दो, उसे रिइमबर्समेंट की जरूरत नहीं है। वह पहले दवाई कहां से खरीदेगा? एक्सरे के टेस्ट वह कहां से कराएगा?

          आखिर में मैं कहना चाहता हूं कि कमिश्नर बिठा दो, कौन सा, जो एजुकेशन का तजुर्बा रखता है और मनेजमैंट का। कौन सी मनेजमैंट, जो वर्कर का खून निचोड़ती है। उस संस्था को पूरा ढंग आता होगा कि कैसे मजदूर की जान निकालनी है। आप कमीशन बनाइए लेकिन मैं कहना चाहूंगा कि आप किसी एक्सपीरिएंस होल्डर, तजुर्बेकार यानी मजदूरों से ही किसी एक्स-एम पी को इसका हैड बनाइए जो कम से कम उन पर तरस तो खाएगा। हम जानते हैं कि We are representing the country. हम जानते हैं कि एक एमपी क्या कर सकता है, उसके मन में क्या है? इसलिए आप इस कमेटी का हैड एक्स-एम.पी. को बनाइए, एक्स-एम.एल.ए. को बनाइए और बाकी कोई कमीशन वगैरह बनाने की जरूरत नहीं है।

                                                                                         

                                                                                           

 

*SHRI PRASANTA KUMAR MAJUMDAR (BALURGHAT) : Madam Chairperson, we all discuss about the labourers in the unorganized industrial sector but to date we could not take any concrete steps to improve their lot.  For the first time, a Comprehensive Bill has been introduced in this august House and has been said that it would keep pace with the changing times and scenario.  Therefore, I take the floor to support this Workmen’s Compensation Bill, 2009 and would like to express my views on it.

          We all know that workers are the source of creation.  Be it in agriculture, in industry or in general, workers are creators.  But what is the condition of the workers?  They die unattended.  Their children do not receive education, they do not get proper medical treatment, or pension or gratuity.  This is the ground reality. Labourers in the Bidi Industry, Construction Sector, Motor Vehicle Industry are at high risk.  They are infact bound to obey the instructions of the management and can be retrenched any moment.  Their demands are never met.

          Thus the Bill is here today but it has to be implemented in the right earnest.  Otherwise there is a tendency among the owners and employers to violate the rules.  If rules are not followed properly then the workers do not benefit at all.  A provision should be there by which the employers are kept under control and they do not dare to overstep.  Along with this, I’d say that whenever anyone dies of accident, both the Central Government and the State Government, in the quasi-federal structure, immediately declare a compensation of Rs.5 lakhs.  So why won’t the labourers be paid only Rs. one lakh twenty thousand or one lakh forty thousand? They should also be given 5 lakh rupees and if his/her next kin is suitable for job then they should also be accommodated in job.  This is my request to Hon. Minister.

 

* English translation of the speech originally delivered in Bengali.

          Secondly, there is a provision of Rs.5000 to be paid to the workers to perform the last rites of their near and dear ones.  We know that prices are shooting through the roof.  So this amount is not sufficient at all.  It should be at least Rs.10,000.  If any labourer is injured or incapacitated, he has to bear the primary cost of his own treatment.  This is not proper.  He is not financially sound enough to do so.  Thus the Government should come forward to take the responsibility of medical treatment of the workers this provision should also be there.

          One more thing is that there might be unnecessary delay in payment of compensation to the workers. Often 5 to 10 years pass but still the compensation money is not paid to them this should be mentioned in the Bill as pointed out by Shri Kalyan Banerjee. He should also be given interest along with the compensation money if there is a delay and the officer or commissioner responsible should be punished for non-performance of duty.

          In the country, there are large number of unorganized labourers who are suffering.  Something needs to be done for them and better provisions should be added to this Bill so that the workers are benefited.  With these few words, I thank you and conclude my speech.                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                           

 

 

 

                                                                                                                                                        

 

                                                                                           

 

*SHRI J.M. AARON RASHID (THENI): I welcome this Workmen’s (Amendment Bill). Sir unorganized sector workers particularly Mason, PERIA ALL(big worker) Chithal (Lady worker) and their work-load is more. Their life is miserable. They don’t have any security for job. If they fall from the home (construction site) they cannot afford a private hospital. Thanks to Tamil Nadu State Government for bringing a new law namely ‘KALAIGNAR KAPPETTU THITTAM” to spend one lakh from the Government of Tamil Nadu. Same way I request the Government under the leadership of Dr. Manmohan Singh and under the guidance of Madam Soniaji for providing medical compensation namely actual expenses – even if it is Rs.3 lakh. Our UPA Government have to give the amount that will go directly to the hospital and the Government should give instruction to the Hospital, i.e. actual expenses of medical or whatever it is, even if it is Rs.3 lakh will directly go to the Hospital. The card holders either BPL/Workmen Cardholder should be entitled for that. In an organized sector, you have to increase the compensation for death from Rs.1,20,000/- to Rs.3 to 5 lakh so that they can manage with the money by opening a small shop in a market  and thus manage their livelihood.

There job is not a secured one. If they suffer from any disease, they can be allowed to take treatment in Government ESI Hospital. For that, the Government have to issue orders to the hospitals. Sir Bidi workers’ condition are very pathetic. The weight of a man is not more than 60 kg. and woman is not more than 50 kg. Their health is very pathetic. So the Government have to take special care for these Bidi workers which is an unorganized sector. The Government is bringing this legislation which is of real importance. With this Act, the unorganized labourers and temporary makeshift workers and their poor families will be benefited.

With these words I welcome this historic Bill.                      

 

* Speech was laid on the Table

                                                                                           

 

SHRI MOHAMMED E.T. BASHEER (PONNANI): Madam, thank you very much for giving me this opportunity. I have a special gratification in participating in this discussion as I was also an industrial employee working in a chemical factory for about 15 years, and I am still a humble Trade Unionist. Hence, I had many occasions to deal with the Workmen’s Compensation Act, and I really appreciate the usefulness of this piece of legislation.

          This is a much awaited amendment to the Workmen’s Compensation Act. Even though it is a small piece of legislation, yet I would say that it is the outcome of a laborious work. The intention of this legislation is very good. The Second National Commission on Labour (2002) recommended for such an amendment. Similarly, the Standing Committee on Labour had a series of discussions with the stake-holders, Trade Union people, industrialists, safety officers, etc., and they have made on-the-spot study about the necessity of such an amendment. They have visited industrial cities like Ranchi, Bangalore, Kochi and Trivandrum, and they have had enough threadbare discussions with the concerned persons.

          If we are asked whether this amendment is adequate, then we may not be able to say ‘Yes’. But, it is really meaningful. The definition is changed from workmen to employees, which will be covering most of the employees; the minimum compensation amount has been increased from Rs. 80,000 to               Rs. 1,20,000 and from Rs. 90,000 to Rs. 1,40,000; the funeral expenses have also been increased from Rs. 2,500 to Rs. 5,000; reimbursement for actual treatment is also met in this; and widening of eligibility criteria for Commissioners is also there.  Another important point in this is the time limit, that is, within three months the decision will have to be taken by the Commissioner. These are all good things.

          But, when we analyze all these things, we have to verify certain other things also. For example, in the list of injuries external injuries are listed in it, but it is not sufficient. I would like to quote just a couple of sentences from the Report of the Standing Committee. It says that :

“The Committee strongly, therefore, recommends that besides external injuries, internal injuries caused during the course of employment, which inter alia should include passage from residential workplace, should also be incorporated in the appropriate schedule of the Act to determine the compensation payable to the employees.”

 

          Unfortunately, this part has not been considered in this Bill, and I would humbly request the hon. Minister to give due consideration to this recommendation of the Standing Committee.

          Then, I would like to make some general observations. One is about the industrial accidents. In reply to a question in Rajya Sabha, the figure that is mentioned is really alarming. Industrial accidents are increasing day by day. Statistics is with me. Considering the time constraints, I do not want to enter into that details.

          Madam, this Factories Act says about the safety of the industrial employees. Sections 27 to 40 talk about the precautions to be taken to avoid accidents. Safety clause is there. But unfortunately, it has not been monitored effectively. There are Inspectors of Factories and Boilers. They are not visiting the factories. Even if they are visiting the factories, trade union people are not aware whether they have come to the factory or not. So, I suggest that periodical inspection by the Inspectors of Factories and Boilers should be strictly adhered to. When they visit the factory, the concerned trade union people also may kindly be informed about that. So, in order to avoid the accidents, we have to do such kind of monitoring. When we talk about the industrial workers, factory workers, what about the workers in the unorganised sector? Take an example of Delhi. Now the Commonwealth Games are going to come next year during the same period. About the construction workers engaged in this Commonwealth Games. The Asian Age reports that 48 construction workers have died and another 98 suffered serious injuries in the series of mishaps which have occurred on construction sites during 2008-2009. It is really alarming. It is only an example. So, I would like to say that we must give some emphasis on the unorganised workers. Even though there is the law, it has not been adhered to strictly.

MADAM CHAIRMAN : Please conclude.

SHRI MOHAMMED E.T. BASHEER : I am concluding. I myself was a workers. The compensation rate which is stipulated in this Act may considerably be increased. I would like to point out that also. On the spot visit of the Offices, as I mentioned earlier, that should be made compulsory. I do not want to take much of the time. A comprehensive reform is required in the Workmen’s Compensation Act. I take this as a humble beginning. I hope that the hon. Labour Minister and the Government will come forward and make a comprehensive law on the safety of the workers. With these few words, I conclude.

                                                                                           

 

श्री जगदम्बिका पाल (डुमरियागंज): अधिष्ठाता महोदया, मैं आपका बहुत आभारी हूँ कि आपने इस अत्यंत महत्वपूर्ण विधेयक वर्कमैन कंपनसेशन एक्ट 2009 पर चर्चा में भाग लेने का अवसर दिया। मैं अपने को इसलिए भी सौभाग्यशाली मानता हूँ कि इस विधेयक को 14वीं लोक सभा में पारित होना था। 14वीं लोक सभा में भी जो विधेयक आया था, यह बहुत सम्यक रूप से विचारोपरान्त आया था। जिस तरह से हमारे तमाम साथियों ने कहा है, यह विचार का एक विषय हो सकता है कि चाहे कोई वर्कमैन या इंप्लॉई डिसेबल हुआ हो या किसी की मृत्यु हो गई हो, या उसको चिकित्सा की वास्तविक क्षतिपूर्ति का सवाल हो, उसकी राशि की भिन्नता पर निश्चित रूप से विचार-विमर्श हो सकता है। लेकिन कांग्रेस और यूपीए गवर्नमैंट की नीयत को बधाई देनी पड़ेगी कि देश के उन तमाम कारखानों में काम कर रहे लोग जो अभी तक इंश्योरेन्स एक्ट में कवर नहीं थे, उनको कवर करने का प्रयास किया गया है।

सभापति महोदया, उनकी जो धनराशि बढ़ाई गई है, यह भी अच्छा कदम है। केवल धनराशि ही नहीं बढ़ाई गई है, बल्कि यह अधिकार भी इस एक्ट के द्वारा दिया जा रहा है कि अब भविष्य में उस क्षतिपूर्ति को अगर हमें बढ़ाना है, तो हमें बार-बार विधेयक लेकर संसद में नहीं आना पड़ेगा। मैं इसके लिए भी लेबर मिनिस्टर और उनकी सरकार को बधाई देना चाहता हूं।

महोदया, इस विधेयक पर स्टेंडिंग कमेटी में भी चर्चा हुई। इसके लिए सैकिंड नैशनल कमीशन ऑन लेबर,2002 में सैट-अप किया गया था। उसने तमाम मिनिस्ट्रीज से, तमाम राज्यों की लेबर मिनिस्ट्रीज से और सभी स्टेट और यूनियन टैरीटरीज से डिसकस करने के बाद, जो रिक्मेंडेशन्स दी हैं, उसके आधार पर वर्कमैन्स कम्पेनसेशन एक्ट, 1923 में संशोधित कर के वर्तमान वर्कमैन्स कम्पेन्सेशन एक्ट प्रस्तावित किया गया है। इस प्रकार स्वाभाविक है कि यह पहला विधेयक है, जिस पर पूरे देश की राय ली गई है। इस पर सभी राज्यों की राय ली गई है, सभी यूनियन टैरीटरीज की राय ली गई क्योंकि यह विषय देश के उन तमाम इलाकों के मजदूरों के भविष्य से जुड़ा हुआ है। अगर कोई मजदूर, जो संगठित क्षेत्र के मजदूर की श्रेणी में नहीं आता है, अगर उसकी मृत्यु हो जाए, तो हम लोग कल्पना नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन में देखते हैं कि उसके दाह-संस्कार के लिए भी, उसकी विधवा को कहीं अपने सुहाग का मंगलसूत्र रखना पड़ता है। इसमें दाह-संस्कार की राशि को 2500 रुपए से इसे बढ़ाकर5000 रुपए किया गया है। इससे जहां एक तरफ उसके सुहाग की लाश रखी हो और दूसरी तरफ दाह-संस्कार के लिए पैसे की व्यवस्था करनी हो, तो कम से कम उसे अब अपने सुहाग का मंगलसूत्र नहीं बेचना पड़ेगा। इसलिए मैं इस विधेयक को लाने के लिए सरकार को साधुवाद देता हूं और स्वागत करता हूं।

महोदया, आज अगर कोई भी मजदूर अपंग हो जाता है, स्थाई रूप से विकलांग हो जाता है, तो वह निश्चितरूप से पहाड़ के बोझ की तरह अपने परिवार के ऊपर हो जाता है और उस बोझ को केवल उसकी पत्नी अथवा परिवार ही समझ सकता है। इसलिए इस हेतु जिस तरीके से धनराशि बढ़ाई गई है। वह भी अच्छा है। यदि किसी मजदूर की मृत्यु हो जाती है, तो पहले उसे केवल80 हजार मिलने थे, लेकिन अब उसे बढ़ाकर 1 लाख 20 हजार रुपए किया गया है और स्थाई रूप से विकलांग को 90 हजार के बजाय 1 लाख 40 हजार रुपए देने की व्यवस्था की गई है। इस प्रकार से इस सरकार की कम से कम यह नीयत है कि इस देश के उन तमाम वर्कमैन की परिभाषा को काफी वाइडर किया गया है और उन्हें एम्पलॉइज की श्रेणी में लाया गया है और वे जो तमाम लोग, चाहे रेलवे में हों, चाहे शिप में हों या एयरलाइंस में हों, जो अभी तक इसके अंदर कवर नहीं होते थे, उन सभी को इसके अंदर कवर किया गया है। इस प्रकार से उन तमाम करोड़ों लोगों को आज एक सुरक्षा प्रदान करने का काम इस विधेयक द्वारा किया गया है।        

महोदया, इस विधेयक के संबंध में हमारे वरिष्ठ साथियों और प्रतिपक्ष के माननीय सदस्यों ने जो कहा, श्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा, हम सब सार्वजनिक अथवा व्यावहारिक जीवन में हम देखते हैं कि जिस प्रकार से वर्कमैन्स कम्पैनसेशन के मुकदमे चलते हैं और जिस प्रकार से लेबर कमिश्नर्स को जो एम्पलायर्स हैं, वे किस तरीके से प्रभावित करते हैं, मैं उस विस्तार में नहीं जाना चाहता हूं क्योंकि तमाम शुगर मिल्स हैं और हम लोगों के क्षेत्रों में भी अनेक इस तरह की इकाइयां हैं, उन इकाइयों के तमाम ऐसे असंगठित मजदूरों को इससे लाभ होगा। यह बात सही है कि बहुत थोड़ी सी क्षतिपूर्ति के लिए, मिल वाले पैसा इसलिए नहीं देना चाहते हैं, क्योंकि वे एम्पलायर और कॉर्पोरेट हाउस के लोग उन्हें सबक देना चाहते हैं। वे कहते हैं कि पैसा देंगे, तो अपनी टर्म एंड कंडीशन्स के आधार पर देंगे। इस सरकार ने कम से कम एक कमिशनर को नियुक्त कर के यह कह दिया है कि तीन महीने के अंदर निश्चिततौर से उनकी क्षतिपूर्ति की व्यवस्था होगी और वह सुनिश्चित की जाएगी। इसके बाद भी अगर तीन महीने में नहीं हुआ, तो निश्चित रूप से सरकार इस पर विचार करेगी। जब सरकार इस विधेयक में यह बात ला रही है कि हम उन तमाम मजदूरों, जो विकलांग हुए हों या किसी और कारण से उन्हें क्षतिपूर्ति मिलनी है, फिर चाहे उनकी मृत्यु हो गई हो या मैडीकल की हो, उस क्षतिपूर्ति को दिलाने का भी एक मैंडेटरी प्रॉवीजन किया गया है। निश्चिततौर से यह भी स्वागत योग्य कदम है।

          महोदया, मैं समझता हूं इस विधेयक के माध्यम से जो नया अधिकार दिया जा रहा है उसके लिए मैं सरकार को धन्यवाद देते हुए कहना चाहूंगा कि अगर वर्कमैन्स कम्पैनसेशन को जो इन्फ्लेशन इंडैक्स है, उसके साथ जोड़ दिया जाए और उसे समय-समय पर जिस समय प्राइस इंडैक्स बढ़ता हो, उसी समय इनके कंपैन्सेशन की दरें बढ़ जाएं, तो अच्छा होगा। इस पर अगर सरकार विचार कर सकती है, तो निश्चिततौर से आने वाले दिनों में यह एक स्वागत योग्य कदम होगा। क्योंकि आज यह विधेयक उन लोगों को लेकर आया है, जिनकी आवाज शायद यहां तक नहीं आती, लेकिन निश्चित तौर से हम लोग जिनका प्रतिनिधित्व करते हैं। आज मुझे इस बात की खुशी है कि देश के उन तमाम लोगों को, जो आज इस स्थिति में हैं, उनके लिए इस तरह से चीजें सोची गईं।

          यह बात तो सही है कि 1923 का यह विधेयक 2002 से 2004 तक ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ था। 2004 के बाद कांग्रेस-यू.पी.ए. की सरकार आई तो हमने सैकिण्ड कमीशन ऑफ लॉ की रिपोर्ट को निकाला और उस रिपोर्ट में जो रिकमेण्डेशंस थीं, उन रिकमेण्डेशंस पर हमने विचार किया और सभी राज्यों से हमने उनकी राय ली।

          मैं समझता हूं कि निश्चित तौर से यह सम्पूर्ण सदन सर्व-सम्मति से इस विधेयक को पारित करेगा।

                                                                                                   

                                                                                           

 

SHRI ARJUN CHARAN SETHI (BHADRAK): Thank you, Madam, for giving me this opportunity to speak on certain points regarding this Amendment Bill.

          At the outset, I thank the hon. Minister as well as his colleague for having realized the pitiable condition of the workmen and for incorporating certain aspects. The Standing Committee has made recommendations in the course of their examination of the Bill.  But, whatever recommendations made by the Standing Committee have been accepted by the Government, I must say that that is not enough. More should have been done because all the hon. Members from both the sides have not only spoke for the workmen but they have tried to highlight the problems of the workmen in regard to their conditions, when they get injured, or when the person working in the factory or any other organization get killed. So, I once again thank the hon. Minister for bringing in this Bill.

          At the same time, I would like to point out, as has been pointed out by the hon. Member from Kerala, that all the recommendations of the Standing Committee have not been considered and not given effect to in this particular amending Bill.  As has been pointed out, I would like to again  quote the  recommendation of the Standing Committee:

“The Committee, therefore, strongly recommend that besides external injuries, the internal injuries caused   during the course of employment, which  inter alia,  should include places from residence to workplace and vice versa. We have also incorporated in the appropriate Schedule of the Act to determine the compensation payable to the employee.”

 

          This aspect, I must recommend to the Government that it should consider seriously because workmen are workmen and we all know the condition of workmen. The hon. Minister also, being a very experienced politician and Minister, he must have been aware of it. Hence, I strongly plead to the Government  that it should include this particular recommendation of the Standing Committee that had been given by the Committee, having considered in detail.

Similarly, there are other aspects that have been recommended by the Standing Committee, which have also made other recommendations, which I quote:

“The Committee, therefore, strongly emphasise that the provision for reimbursement of actual medical expenditure incurred for treatment of injuries caused during the course of employment  be made part of the Act.”

 

They have also categorised the period, which means that the claim for reimbursement of the medical expenses submitted below three days of the injury would not be considered.  This categorisation should not be there.  I would plead before the hon. Minister not to categorise the kind of injury as also the period of injury.  The Government should consider this and if possible, at this eleventh hour, bring an amendment to the amending Bill.  As I have stated earlier, workman is a workman.  If a person gets killed due to some accident or some other kind of injury caused in the course of his working in the factory, his whole family becomes orphan.  If the only earning member in a particular family gets killed working in a factory, what will be the condition of the whole family?  So, I would request the Minister to consider these suggestions.

          While pleading for all these facilities for the workmen, I must remind the hon. Minister as well as the House what our Father of Nation, Mahatma Gandhi said, because I consider this quotation very relevant to this particular amending Bill.  Mahatma Gandhi said:

“I shall work for an India in which the poorest shall feel that it is their country in whose making they have an effective voice; an India in which there shall be no high class or low class people.”

 

This is very prophetic and I urge the hon. Minister to consider this.  In the light of these observations of our Father of Nation, the Government should take into consideration all the aspects of this particular amending Bill and the recommendations of the Standing Committee.

 

MADAM CHAIRMAN : Shri Adhir Chowdhury, a number of Members from your Party have already spoken.  So, I would give you just three minutes to speak.

                                                                                           

 

SHRI ADHIR CHOWDHURY (BAHARAMPUR): Thank you Madam for this generosity.  I know that there is a severe time constraint. Therefore, I shall be very brief in my deliberations on this Bill.

          At the outset, I must say that the Workmen’s Compensation (Amendment) Bill 2009, was a long pending and long cherished dream of the labour force of our country that some succour should be provided to the labour force of our country. In this Bill the word ‘workmen’ has been substituted by ‘employee’.  So, now we may say it as the Employees’ Compensation (Amendment) Bill 2009.

          Madam, three or four very salient features are sought to be incorporated in this amendment:

1.     Enhancement of the minimum rates of compensation payable to the workers.

2.     Confer power upon the Central Government to specify the monthly wages in relation to an employee.

3.     Enhancement of the funeral expanses.

4.     Reimbursement of the actual medical expenditure incurred for treatment.

Fifthly, appointment of Commissioners, and last but not least increasing the coverage of the restrictive clause in Schedule II of the Act and inclusion of additional hazardous activities.

          Madam, as per the Directive Principles of State Policy as enshrined in our Constitution, social security must be provided to all the employees of our country. But so far only a fraction of our workmen could avail of this opportunity. Therefore, the Bill seeks to widen the scope of compensation for a larger number of employees in this country. At the time, that is in the year 1923, when this Bill was enacted, there was no outsourcing and there was no computerisation and automation in our country. So, now in the present scenario it is an archaic and obsolete Act and there was a felt need for a review of the entire spectrum of the compensation scenario for workmen and the present Bill under discussion has sought to bring in the aspect of compensation within the purview of legislation. So, the legislative proposal as has been brought before the House after a meticulous examination by the Standing Committee is not only a need of this age but also need of this hour.

          Madam, I would like to put forward two to three points before the hon. Minister for his consideration. In view of the increasing price, when the price indexes of commodities have been rising. The Government has made an enabling provision in this legislative proposal which has sought to review, on one hand, the wages and on the other hand the compensation aspect. I would like to know from the hon. Minister as to what is the maximum limit of the compensation that can be provided. It is because in this Bill there is no reference to the maximum limit that could be given  by the Ministry.

          Secondly, today the labour market scenario is changing very rapidly and therefore, the list of injuries of employees should also be expanded keeping in view the percentage of income of the employees. Another point that I would like to make is that in case there is an insurance coverage, then what will prevail upon – compensation or insurance?

          Madam, I am hailing from a district in West Bengal, namely, Murshidabad where there is a huge concentration of bidi workers. They have been suffering from diseases like Tuberculosis, Asthma and such other diseases. I would like to request the hon. Minister to take into account the sufferings of the labour force in our country and make further amendments to this Act 16 it is so required. I will again then support that legislation as I am now supporting this legislation wholeheartedly which is being brought forward under the nomenclature `Employees Amendment Bill, 2009’.

           

                                                                                           

 

श्री रामकिशुन (चन्दौली):सभापति महोदया, आपने मुझे कर्मकार प्रतिकार (संशोधन) विधेयक, 2009 पर बोलने का अवसर दिया, इसके लिए मैं आपका आभार व्यक्त करता हूं। इस विधेयक में दो-तीन बातें बहुत महत्वपूर्ण कही गई हैं। कर्मकार की जगह कर्मचारी रखा गया और दुर्घटना के रूप में उन्हें जो क्षति-पूर्ति दी जा रही है, उस राशि को बढ़ाने का काम हुआ है। लेकिन जो राशि रखी गई है, वह कम है। 80,000 रुपये की जगह एक लाख 20 हजार रुपये है जिसे बढ़ाने की जरूरत है। आज बहुत सारी चीजें महंगी हुई हैं, इसलिए इस राशि को भी बढ़ाने की जरूरत है। यह निम्न है, आप इसे और बढ़ायेंगे। इसे और ज्यादा मिनिमम करना चाहिए, यह कम से कम दो-तीन लाख रुपये से ऊपर होनी चाहिए। जब स्थायी समिति में यह मामला आया था, तब हमने यही राय दी थी कि इन सब चीजों को रखा जाये।

          दूसरे खंड में ‘नब्बे हजार रुपये’ की जगह एक लाख चालीस हजार रूपए और ढाई हजार की जगह चिकित्सा औंर सारी सुविधाएं हैं। सरकार नेएक अच्छा कदम उठाया है, इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन दो-तीन तरह के मजदूर, कर्मचारी हैं। एक वे मजदूर हैं जो उन कारखानों में काम करते हैं जहां आज भी ठेकेदारी प्रथा है। लेबर कमिश्नर, लेबर इंसपैक्टर द्वारा उनका जो नामांकन होना चाहिए, वह नहीं होता। जब कारखाने में दुर्घटना होती है, तो फिर उन्हें ठेकेदार का मजदूर मानकर उन सारी सुविधाओं से जोड़ा नहीं जाता। इससे कारखाने के मालिक बच जाते हैं। यह जरूरी है कि इसमें ऐसा कानून आना चाहिए कि जो लोग इस तरह के काम कर रहे हैं, उन पर अंकुश लग सके।

          हमारे यहां बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। वहां दुर्घटनाएं होती हैं। दुर्घटनाओं में मजदूर, कर्मचारी से यह लिखवा लिया जाता है। कभी-कभी अज्ञानतावश उन्हें वे सुविधाएं नहीं मिल पातीं। उनको ठेकेदार का मजदूर, कर्मचारी बताकर सुविधाएं नहीं दी जातीं। मैं सरकार से इसमें संशोधन की मांग करता हूं। जो ऐसे कारखाने हैं, उन पर प्रतिबंध लगना चाहिए। कुछ कारखाने ऐसे होते हैं जिनमें दुर्घटना हो या न हो, लेकिन उनमें काम करने से कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे उद्योगों को चिन्हित करके वहां के कर्मचारियों के लिए चिकित्सा की सुविधाओं को मजबूती के साथ लागू करना चाहिए।

          मैं आपके माध्यम से मंत्री जी से अंतिम बात कहना चाहता हूं कि ऐसी जगहों के लिए उन मजदूरों, कर्मचारियों के बच्चों को सामाजिक, शैक्षणिक सुरक्षा मिलनी चाहिए। वहां स्कूल, कालेज, अस्पतालों की कमी है। जब हम स्थायी समिति में बात कर रहे थे, तब मेडिकल कालेज और शैक्षणिक डिग्री कालेज बनाने की भी बात की थी। यह इसलिए कहा गया था कि मजदूर का बेटा कैसे उच्च शिक्षा प्राप्त कर सके। हम उसकी हॉयर एजुकेशन के लिए कैसे सुविधाएं दें। मजदूर का वेतन कम, उसकी आय कम, उसके जो दूसरे स्रोत हैं, वे भी कम हैं। ऐसे मजदूर परिवार के लोगों को शैक्षणिक सुविधाएं हम सस्ती दर पर कैसे मुहैया करायें, इन सब चीजों पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। …( व्यवधान) मैं दो मिनट में अपनी बात समाप्त करूंगा। …( व्यवधान)

सभापति महोदया :   आपकी पार्टी से बहुत लोग बोल चुके हैं। मैंने आखिर में सबको तीन-तीन मिनट बोलने का समय दिया है।

श्री रामकिशुन : मैं दो बातें कहकर अपनी बात समाप्त करूंगा।…( व्यवधान) हमारे वाराणसी और चन्दौली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बुनकर भाई हैं जिनकी हालत बहुत खराब है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना, बुनकर बीमा योजना उनके लिए कहीं लागू की गयी है और कहीं लागू नहीं की गयी है। उसकी यह हालत है कि वहां जो आईसीआईसीआई बैंक है, जिन डाक्टरों को नामित किया गया है, वे पूरे कार्ड का गलत इस्तेमाल करके मजदूर का पैसा जो उसके इलाज के लिए उसे मिलना चाहिए, वह उसे नहीं मिल पाता। उसमें बड़े पैमाने पर करोड़ों रुपये का घपला हुआ है। मैं इस बात को माननीय मंत्री जी के संज्ञान में लाना चाहता हूं कि ऐसे जो घपले करने वाले लोग हैं, उन पर भी आपकी नजर रहनी चाहिए। इसके साथ ही बीड़ी मजदूरों को जो टीबी आदि जो बीमारियां होती हैं, उनके लिए बड़े पैमाने पर अच्छी चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने का काम आपको करना चाहिए।

 

                                                                                           

 

श्री कमल किशोर ‘कमांडो’ (बहराइच) : महोदया, मैं आपको बहुत धन्यवाद देता हूं कि आपने बोलने का मौका दिया। मैं खड़गे साहब को बधाई देता हूं। कर्मकार प्रतिकर संशोधन विधेयक के समर्थन में खड़ा हुआ हूं।

          यूपीए सरकार हमेशा गरीबों की बात सोचती है। यह बात सत्य है कि यह जो विधेयक आया है, वाकई में वह बड़ा प्रशंसनीय है, इसके लिए मैं सरकार को धन्यवाद देता हूं, लेकिन मैं दो-तीन चीजें आपके सामने रखना चाहता हूं। इसमें जो मेडिकल कैटेगरी में रिइम्बर्समेंट का प्राविजन रखा गया है। There are two types of categories, “temporary” and “permanent”.  What does that mean? What sort of arrangement will be made by the Government for “permanent” and “temporary” categories? It should be very clearly defined in the Act. परमानेंट कैटेगरी जिसमें किसी व्यक्ति का हाथ या पैर कट गया है, अपनी जगह से बिल्कुल हिल नहीं सकता है, उसके लिए आप क्या करने जा रहे हैं और अस्थायी कैटेगरी जिसमें किसी व्यक्ति का थोड़ा सा कहीं हाथ या पैर कटा है, जो चल-फिर सकता है, उसके लिए क्या प्रावधान किया गया है? यह बात हो सकता है कि मंत्री जी के जेहन में हो, अगर नहीं है तो इस प्वाइंट को नोट किया जाए।

          दूसरी बात मैं यह कहना चाहता हूं कि आप इंप्लायमेंट देने जा रहे हैं, जो ऑफिसर्स या कमिश्नर्स नियुक्त होंगे, उनसे आप क्या उम्मीद रखते हैं? क्या वह गरीब आदमी उनके पास तक पहुंच पाएगा? उसके लिए जिले और निचले स्तर क्या व्यवस्था हो रही है, इस प्वाइंट को मैं आपके संज्ञान में लाना चाहता हूं। मैं बहराइच से आता हूं, जहां बिल्कुल गरीबी है, उस इलाके के घर-घर में जाकर मैंने देखा हैं कि उन गरीबों की क्या हालत है। यह बहुत अच्छा बिल आया है। अभी एक माननीय सदस्य कह रहे थे कि जैसे एक वर्कर गिरता है दस फिट से, आठ फिट से या जमीन पर चलते हुए गिरकर मर जाता है, उसके बारे में यह प्रावधान होना चाहिए कि एक वर्कर एक वर्कर है, अगर वह मरता है, खासकर कंपनियों में, तो उसको कंपेनसेशन मिलना चाहिए। कंपनियों में काम करते हुए जहां वर्कर्स को बीमारियां होती हैं, अगर वर्कर बीमार होता है, तो उसे एडवांस में पेमेंट किया जाना चाहिए बीमार होने से पहले। जैसे वह हॉस्पिटल में जाता है, उसे एडवांस पेमेंट होनी चाहिए जिससे वह इलाज करा सके। इसलिए जिलास्तर पर इन अधिकारियों की नियुक्ति होनी चाहिए, चाहे आप डिप्टी कमिश्नर की नियुक्ति करें या इंसपेक्टर को जिम्मेदारी दें क्योंकि इंसपेक्टर से कमिश्नर तक पहुंचते-पहुंचते उसका घर ही बिक जाएगा, वह गरीब खत्म हो जाएगा।

          मैं एक बात और कहना चाहता हूं कि जिस कंपनी या फैक्टरी में वह व्यक्ति का काम करता है, अगर वहां किसी कारणवश उसकी मृत्यु होती है, तो उसके बेटे या बेटी को तुंत इंप्लायमेंट मिलना चाहिए। मैं इस बिल का समर्थन करते हुए अपनी बात समाप्त करता हूं।

 

 

                                                                                           

 

THE MINISTER OF LABOUR AND EMPLOYMENT (SHRI MALLIKARJUN KHARGE): Madam, more than 22 hon. Members have spoken on the Bill. Many of them have also appreciated and a few of them criticized also.  But in spite of that, I take it that it is a credit for the Department that the Department is doing its best with the cooperation and help of the Members of the Parliament as well as the Standing Committee Members.  I congratulate all the Standing Committee Members who have given very good suggestions.  We have already implemented a few of them and still we have to implement many more such progressive amendments.

          श्री अर्जुन मेघवाल ने इस संशोधन विधेयक पर चर्चा की शुरूआत की। उनके बाद मुम्बई से आने वाले हमारे नौजवान, फायर ब्रांड साथी संजय निरुपम जी ने अपनी बात कही, लगता है वह इस समय सदन में नहीं हैं। उनके बाद श्री प्रसन्न कुमार पाटसाणी, शैलेन्द्र कुमार जी, श्री कल्याण बनर्जी ने अपनी बात कही। उनके बाद श्री बसुदेव आचार्य ने अपने विचार सदन में रखे, वह इस समय हाउस में नहीं हैं। उनके बाद गोरखनाथ पांडेय जी, मि. राय, पबन सिंह घटोवर जी, डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह जी ने अपने विचार रखे। रघुवंश बाबू हमारे ऊपर बड़े गुस्से में थे। लगता है एडीटोरियल पढ़ कर आए हैं। उनके बाद पी. लिंगम जी ने अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. प्रभा किशोर ताविआड , जिन्होंने अपनी रिटन स्पीच सभा पटल पर रखी। उनके बाद गणेश सिंह जी, चौधरी लाल सिंह जी, प्रशांत कुमार मजूमदार जी, मो. बशर जी ने बहुत से ठोस सुझाव दिए। उनके बाद जगदम्बिका पाल जी ने, जो सी.एम. भी रह चुके हैं, प्रेक्टिकल सुझाव दिए। उनके बाद अर्जुन चरण सेठी जी ने, जो स्टेंडिंग कमेटी में भी हैं, अपने सुझाव दिए। उनके बाद अधीर रंजन जी, राम किशुन जी ने और आखिरी वक्ता के रूप में कमल किशोर जी ने अपने विचार व्यक्त किए।

          इन सभी माननीय सदस्यों ने अपने-अपने बहुमूल्य सुझाव इस संशोधन बिल पर हुई चर्चा के दौरान व्यक्त किए। बहुत सी बातें इस चर्चा में रिपीट हुई हैं। मेरे सामने इस चर्चा के दौरान जो सुझाव दिए गए और जो शंकाए प्रकट की गईं, मैं उनके बारे में बताना चाहूंगा। इस संशोधन बिल पर चर्चा की शुरूआत करते समय अर्जुन मेघवाल जी ने जो कहा, उसके बारे में भी मैं बात करूंगा।

 

 माननीय संजय निरुपम जी ने अच्छा सजेशन दिया है कि जो शैडय़ूल्ड (2) में एक्टीविटीज हैं, डैनजरस, हैजॉरडस कारखानों में काम करने वाले लोगों के लिए, इस शैडय़ूल्ड में जो बदलाव लाया गया है, उसका फायदा बहुत से वर्कर्स को होता है। पहले20 से ज्यादा फैक्ट्री वर्कर्स को ही फायदा होता था, लेकिन अब ऐसे ऑकुपेशन में, जिसकी लिस्ट हमारे वर्कमैन कंपनसेशन एक्ट में है, अगर एक आदमी भी काम करता है तो उसे अब कंपनसेशन मिलेगा, यह इसमें सबसे बड़ा फायदा है। पहले ऐसे कारखाने में अगर 20 वर्कर्स होते थे तो ही फायदा मिलता था लेकिन आज अगर एक या दो आदमी भी, संगठित या असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं, उन्हें विकलांगता, डैथ या मैडीकल एक्सपेंडिचर, ये सारी चीजें उस मजदूर को मिल रही हैं तो इससे बड़ा फायदा वर्कर्स को दूसरा कोई नहीं हो सकता है। अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है और सब चीजें एक दिन में होने वाली नहीं हैं। अगर मैं ऐसा बोलूंगा तो माननीय रघुवंश जी बोलेंगे कि मजबूरी में बात कर रहे हैं। यह मजबूरी की बात नहीं है, हम सभी को मिलकर इसमें निर्णय लेकर इम्प्लीमेंट करने की बात है, सिर्फ आश्वासन की बात नहीं है। इसलिए जो चीजें आज हम कर सकते हैं, उन चीजों को हम लाए हैं। इसमें बहुत से बदलाव भी हम लाए हैं, उदाहरण के लिए, फ्यूनरल के लिए 2500 रुपये से 5000 रुपये किया गया है। यह कम है, यह भी हमें मालूम है लेकिन जो 2500 रुपये का अमेंडमेंट आया, वह वर्ष 2000 में लाए, यानी 9 साल पहले लाए। आज के प्राइस इंडैक्स के मुताबिक और भी ज्यादा होना चाहिए। इसलिए हमने इसमें प्रावधान रखा है कि अगर टाइम टू टाइम प्राइस-इंडैक्स बढ़ता गया तो नोटिफिकेशन करने का अधिकार सरकार को है। इसलिए समय-समय पर नोटिफिकेशन करके हम इसे चेंज करेंगे। माननीय रघुवंश जी आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए।

          इसी ढंग से जो विकलांग हैं या जिनकी मृत्यु हुई है, उनके बारे में भी हमने प्रावधान रखा है कि समय-समय पर हम इसमें चेंज कर सकते हैं, यहां पर बार-बार नहीं आना पड़ेगा। अब तक क्या होता था कि आज के एक्ट के मुताबिक हर चीज के लिए हमें यहां आना पड़ता था। फ्यूनरल एक्सपेंसेज बढ़ाना है, फिर एक बिल में अमेंडमेंट लाना, कंपनसेशन को बढ़ाना है, फिर एक बिल में अमेंडमेंट लाना, डिसेबल्ड को कंपनसेशन देना है तो यहां अमेंडमेंट लाना पड़ता था। लेकिन अब इसमें अमेंडमेंट करके हमने सरकार को नोटिफिकेशन करने का अधिकार रखा है। जब कभी भी जरूरत पड़ेगी तो हम चेंज करेंगे। आज जो हम प्रस्ताव लाए हैं, कानून के तौर पर जो भी कंसेंसस आया है, स्टेंडिंग कमेटी में हो या जैसा आपको मालूम है कि एमप्लाइज, एम्प्लायर, गवर्नमेंट ये सारे लोग मिलकर जो करते हैं, उसमें जो कंसेंसस आया है, उसके आधार पर थोड़ी सी बातें हमने यहां की हैं। लेकिन और जो भी करना है, उसके लिए हमने इस एक्ट में पावर ली है और नोटिफिकेशन के मुताबिक डैफिनेटली जरूरत के अनुसार हम करते जाएंगे।

18.00 hrs.

          तीसरी चीज यह है कि सारे सांसदों ने दो-तीन मुद्दों पर ही अपने सुझाव दिये हैं। डसेबिलिटी के ऊपर, मेडिकल एक्सपेंसिस के ऊपर, अंतिम संस्कार तथा कई अन्य बातों के ऊपर माननीय सदस्यों ने अपने सुझाव दिए हैं।

MADAM CHAIRMAN : It is 6 o’clock now. If the House agrees, the sitting of the House may be extended by half-an-hour.

SEVERAL HON. MEMBERS: Yes.

श्री मल्लिकार्जुन खरगे : जो सुझाव आए हैं, वे सारे सुझाव हम एग्जामिन करेंगे। उनमें जो कुछ भी हम वर्कर्स के हित में कर सकते हैं, वह जरूर करेंगे। अगर किसी जगह दिक्कत है, आपको मेरी सहायता चाहिए, तो मैं उसके लिए तैयार हूं। हमारे 23-24 सदस्यों ने इस विषय पर चर्चा की है।

          माननीय सदस्य ने कहा कि राजस्थान में दस फीट के घर होते हैं और हमने 20 फीट का प्रावधान किया है। इसमें हमने संशोधन करके 12 फीट किया है। इस शेडय़ूल में आप देखें, तमिलनाडु के अमेंडमेंट के बाद देखें :

 

“employed in the construction, maintenance, repair or demolition of any building which is designed to be or is or has been more than one storey in height above the ground or twelve feet or more ….in height from its lowest to its highest point;”

 

अगर इसे दस फीट भी करना है तो राज्य सरकार समय-समय पर नोटिफिकेशन कर सकती है, क्योंकि इसके लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार में एक समिति है। केंद्र सरकार या राज्य सरकार अगर सोचती हैं कि इसे घटाना है, तो इसे घटा सकती है। किसी भी आक्यूपेशन को अगर हजार्ड्स समझते हैं, तो वह ओक्यूपेशन एड कर सकते हैं और यदि किसी आक्यूपेशन को डिलीट करना है, तो उसे डिलीट कर सकते हैं। रूल्स को फ्रेम करने का अधिकार भी सैक्शन 32 में है। राज्य सरकार को भी इसकी पावर है और केंद्र सरकार भी समय-समय पर ऐसी चीजों के लिए सोचेगी। विष्णु पद जी मैं आपकी तरफ देख रहा हूं। आप पहले मुझे बोलने दीजिए, उसके बाद आप बोलिएगा। आप विष्णु हैं और विष्णु तथा परमेश्वर की बात कभी जमती नहीं है। मैं इधर बोलता हूं और आप उधर बोलते हैं, इसलिए आप जरा इंतजार कीजिए।

          आपको मालूम है, रेलवे विभाग के लिए बहुत बड़ी देन दी है। वहां के कलर्क लोगों को फायदा नहीं होता था। आज वह शब्द निकालने से लाखों कलर्क लोग इसका फायदा ले सकते हैं और उसी ढंग से जहाज में काम करने वाले जो लोग हैं, जो पहले 25 लाख टन वजन के जहाज के ऊपर काम करने वाले लोग थे, उनको इसका बेनीफिट था, लेकिन उस 25 लाख टन निकाल कर अगर एक टन है दो टन है, उनको भी फायदा है। ये सारी पाबंदियां हमने निकाल दी हैं। सारी पाबंदियां निकालने की वजह से चाहे एक आदमी है, दो आदमी है, उन्हें इस एक्ट का पूरा-पूरा फायदा होता है। इसलिए इसका स्वागत करना चाहिए। रघुवंश साहब भी स्वागत करते हैं, ऐसा मैंने समझा था लेकिन उनका मूड आज शायद बराबर नहीं था, इसलिए उन्होंने ज्यादा इस पर ध्यान नहीं दिया। उनका हमारे पेपर के ऊपर ही ज्यादा ध्यान गया। इसके ऊपर उनका ध्यान जरा कम रहा। मैं उनका एडमाइरर हूं क्योंकि वह रूरल डवलपमेंट में जब काम करते थे, उन्होंने बहुत ही अच्छा काम किया और वह लोहियावादी हैं। नेचुरली वे अपनी आवाज पहले से ही दबे, कुचले लोगों के बारे में उटाते आये हैं लेकिन मेरी एक ही अपील है जब कभी भी ऐसे समय पर जब आप अपनी बात रखते हैं, जरा हमारा भी बैकग्राउंड देखकर, कानून का बैकग्राउंड देखकर अपनी बात रखें तो मेरे लिए जरा ठीक होगा। इसके अलावा और जो भी कुछ अमेंडमेंट हमने यहां रखे हैं, उसमें खासकर जो स्टैंडिंग कमेटी के 5 अमेंडमेंट हमने एक्सेप्ट किये हैं, और भी हो गये हैं। अब उन्हें भी हमें देखना होगा लेकिन इससे हमने शुरुआत की है। यह अंत नहीं है। यह प्रारम्भ है। अगर इसमें कुछ और बदलाव भी हो सकते हैं तो निश्चित रूप से हम आज नहीं तो कल फिर हम लाएंगे लेकिन कम से कम इसकी शुरुआत हुई है और करोड़ों वर्कर्स को इससे लाभ हो रहा है चाहे संगठित हो या असंगठित हो, कोई भी हो, इसका फायदा वे उठा सकते हैं।

          दूसरे, इसमें सबसे बड़ा अमेंडमेंट यह है कि जो पॉवर आज सरकार को मिल रही है, उसका सदुपयोग जरूर डिपार्टमेंट करेगा क्योंकि जब दो लाख कमपनसेशन, डेढ़ लाख, 1 लाख 40 हजार रुपये महाराज बोलकर चले गये। प्रसन्न कुमार पाटसाणी जो बोलकर चले गये कि कुत्ते के लिए इतना होता है। लेकिन मेरी उनसे इतनी ही विनती है कि हर कानून अलग-अलग है। इस कानून में हमें क्या करना चाहिए, अगर आप बताएंगे तो हम जरूर संशोधन करेंगे, अगर इस कानून को छोड़कर दूसरी जो सलाह अगर आप देंगे तो मेरे लिए उसका जवाब देना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा। मैं यही कहूंगा कि आज जो हम 10 छोटे-छोटे अमेंडमेंट इसमें लाये हैं और जो वर्कमैन कमपनसेशन एक्ट को एम्पलाईज कमपनसेशन एक्ट इसलिए किया, न्यूट्रल जेंडर कर दिया। जेंडर का मामला आजकल है कि मैन क्यों बोले, वीमैन क्यों नहीं बोलें, ऐसा बोला जाता है, इसलिए एम्पलाई-एम्पलायर ये शब्द हम प्रयोग कर रहे हैं। इसलिए इस पर किसी को आपत्ति नहीं हो सकती। सारे अमेंडमेंट्स अच्छे हैं और आपने जो सलाह दी है, उसके लिए मैं सभी को धन्यवाद देता हूं और बहुत से माननीय सदस्यों ने एप्रीशिएट भी किया है। सभी लोगों ने अच्छे सुझाव भी दिये हैं और 22 माननीय सदस्यों ने इसके ऊपर जो बात कही है, उसमें कोई एक ऐसा सदस्य नहीं है जिन्होंने एप्रीशिएट न किया हो। सभी ने इसकी प्रशंसा की है और मुझे ऐसे कानून लाने के लिए हिम्मत दिलाई है। अगर आप इसी रीति से और भी प्रोत्साहन देते रहेंगे तो ईएसआईसी एक्ट है, इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट है तथा अन्य दूसरे एक्ट भी इस सदन के सामने मैं लाऊंगा और गरीबों की भलाई के लिए हम और आप मिलकर कुछ काम करेंगे।

          अंत में क्योंकि मैं हमेशा सुनता हूं, आप बोलते हैं, लेकिन हमारे पास कोलोक्विल से है। हिन्दी में या उर्दू में हमारी भाषा उतनी परफैक्ट नहीं रहती। खासकर रघुवंश प्रसाद जी जब बोलें तो मैं सोच रहा था कि रघुवंश जी को मैं क्या बोलूं क्योंकि यह ऐसा मसला वर्कर्स का है, खासकर कामगारों का ऐसा मसला है कि इनकी समस्या को हम बहुत से शब्दों में बोल सकते हैं लेकिन इसे निभाना कैसे है, लाना कैसे है, करना कैसे है? इसके लिए मुझे एक नेता ने किसी संदर्भ में कहा था-

                    मंजिल बहुत दूर है, रास्ता बड़ा कठिन है, फिर भी हमें पहुंचना है,

                    दिल मिले या न मिले, कम से कम हाथ मिलाते चलो।

MADAM CHAIRMAN: Only three questions, please.

श्री विष्णु पद राय: महोदया, मैं दो शब्द कहना चाहता हूं।

श्री मल्लिकार्जुन खरगे: विष्णु को नहीं सुना, लेकिन विष्णु तो पालने वाला है, पालनकर्त्ता है।

MADAM CHAIRMAN: Please ask only one question, then.

श्री विष्णु पद राय: आप जो बिल लाए हैं मैं उसका समर्थन करता हूं। मेरा लॉर्ड शिवा से अनुरोध है कि अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप यूनियन टेरिटरी है, वहां असैम्बली नहीं है, वे अपना बिल नहीं बना सकते हैं। आपने कंडीशन रखी हैं कि 5, 10, 25 मजदूरों को बेनिफिट मिलेगा।

श्री मल्लिकार्जुन खरगे: इसे हटाया है। अगर एक आदमी भी है, that employee can fight with the employer under this.  This is the Act.

श्री विष्णु पद राय: महोदया, रिइम्बर्समेंट की बात है। अंडमान में प्राब्लम है कि कोई मजदूर एक्सीडेंट में बुरी तरह घायल होता है तो चैन्नई में ट्रीटमेंट के लिए जाना पड़ेगा। लेकिन स्ट्रैचर फेयर कौन देगा?

MADAM CHAIRMAN: You got the answer.

SHRI MALLIKARJUN KHARGE: I would like to clarify that your State or Union Territory or any State can make rules as suitable to them. अगर आप किसी को ज्यादा भी देना चाहते हैं तो कोई रुकावट नहीं है। अगर कोई कम देना चाहता है तो कोई रुकावट नहीं है। हम इसलिए कहना चाहते हैं कि रूल्स सैक्शन 32 के मुताबिक आप वहां एन्फोर्स करने के लिए रूल बना सकते हैं, आप बना लीजिए। अगर उसमें कोई दिक्कत है तो हम जरूर उसके बारे में सोचेंगे।

श्री शैलेन्द्र कुमार : आपने मुझे बोलने का मौका दिया इसके लिए मैं आपका धन्यवाद करता हूं। जैसा माननीय मंत्री जी ने जवाब में कहा है कि कर्मकार की क्षतिपूर्ति प्रतिकार के लिए काफी व्यवस्था की है, इसके लिए मैं आपका आभारी हूं। आपने उत्तर में महिलाओं की बात कही। मैं आपके माध्यम से पूछना चाहता हूं कि खास तौर से कर्मचारी कर्मकार महिलाओं के लिए विशेष तौर पर इस बिल में कुछ करने की योजना है।

श्री मल्लिकार्जुन खरगे: इसमें सभी को सहूलियत दी गई है। एक्ट में कोई डिस्क्रिमिनेशन नहीं है। इसमें डिफरेंट टाइप में डिफरेंट फैसिलिटीज हैं।

श्री जगदम्बिका पाल : माननीय मंत्री जी ने उत्तर में इस बात को स्वीकार किया है कि जो रिकमेंडेशन आई थी वह 2002 की थी। उस समय फ्यूनरल एक्सपेंसिस 2500 था जिसे 5000 किया गया है, मैं इसे कम मानता हूं। हम निश्चित तौर से इस विधेयक को पारित कर रहे हैं। अगर माननीय मंत्री जी इसे कम मानते हैं, हम उनको इस विधेयक के साथ जो पावर हम देने जा रहे हैं कि बिना किसी अमेंडमेंट के नोटिफिकेशन से बढ़ा सकते हैं। क्या इस तरह से बढ़ाने पर विचार करेंगे?

श्री चंद्रकांत खैरे : महोदया, मैं एक ही बात जानना चाहता हूं कि कमिश्नर की बात हुई थी यानी लेबर कमिश्नर होना चाहिए। जहां डिजर्व प्लेस होगा वहां डिप्टी लैवल कमिश्नर, असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ लेबर और जीएलओ गवर्नमेंट लेबर ऑफिसर होना चाहिए, ऐसा होना चाहिए। इनको अधिकार देना चाहिए। मेरे कई साथियों ने कहा कि यह कितना लंबा होगा?

श्रम और रोज़गार मंत्रालय में राज्य मंत्री (श्री हरीश रावत):  इसमें शब्द है कि संशोधन के जरिए गेजेटिड आफिसर को भी एम्पावर कर दिया है। इसके अलावा पांच साल का लीगल प्रेक्टिशनर भी है।

MADAM CHAIRMAN: The question is:

“That the Bill further to amend the Workmen’s Compensation Act, 1923, be taken into consideration.”

 

The motion was adopted.

 

MADAM CHAIRMAN : The House shall now take up clause by clause consideration of the Bill.

          The question is:

                    “That clauses 2 to 10 stand part of the Bill.”

The motion was adopted.

Clauses 2 to 10 were added to the Bill.

Clause 1, the Enacting Formula and the Long Title were added to the Bill.

 

MADAM CHAIRMAN:  Now, the hon. Minister may move that the Bill be passed.

SHRI MALLIKARJUN KHARGE: I beg to move:

          “That the Bill be passed.”

 MADAM CHAIRMAN: The question is:

          “That the Bill be passed.”

The motion was adopted.

 

 

 

 

 

 

 

MADAM CHAIRMAN : Now, we take up the Matters of Urgent Public Importance. 

          Shri Jai Prakash Agarwal – not present.

          Shri Sanjay Nirupam.

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