Further Discussion Regarding Suicide By Farmers In Various Parts Of … on 22 May, 2006

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Lok Sabha Debates
Further Discussion Regarding Suicide By Farmers In Various Parts Of … on 22 May, 2006

Title : Further discussion regarding suicide by farmers in various parts of the country raised by Shri Ramji Lal Suman on 16th May, 2006 (Discussion concluded).

 

कृषि मंत्री तथा उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री (श्री शरद पवार) : सभापति महोदय, सबसे पहले मैं श्री रामजी लाल सुमन को धन्यवाद देना चाहता हूं कि देश के सामने जो बहुत बड़ी समस्या पैदा हुई है, किसानों की स्थिति, किसानों की आत्महत्या करने की स्थिति और साथ-साथ कई ऐसी बातें -जो पिछले कई सालों से हमारे सामने आयी हैं, उसकी तरफ सदन का ध्यान आकर्षित किया है। यदि हम इसमें मिलकर तुरंत कदम नहीं उठायेंगे तो देश की बहुत बड़ी आबादी, जिनके ऊपर इस देश की भूख की समस्या को हल करने की जिम्मेदारी है, वह संकट में जा सकती है। कई घंटे इस विषय पर चर्चा हुई है। सदन के सभी दल के सदस्यों ने इस चर्चा में हिस्सा लिया और बहुत अच्छे सुझाव दिये। मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि राजनीतिक निष्ठा को दूर रखकर देश के किसानों और खेती की समस्या को हल करने के लिए एक चर्चा इस सदन में हुई थी।

किसानों द्वारा आत्महत्या करने के इश्यू पर इससे पहले भी सदन में दो-तीन बार चर्चा हो चुकी है, जिसमें कई सवाल पूछे गये थे। पिछले कई दिनों से देश के मीडिया ने भी इस पर काफी ध्यान दिया है। मीडिया ने इस इश्यू को देश के सामने लाने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। कई राज्यों में यह परिस्थिति हो रही है। अब किन राज्यों में कितनी आत्महत्याएं हुईं, इसका रिकार्ड राज्यों सरकार के माध्यम से भारत सरकार के पास आता है, जिसका जिक्र मैंने इससे पहले सदन में किया है, मगर मेरे पास कुछ नयी इन्फोर्मेशन भी आयी है। वह इन्फोर्मेशन यह है कि इस देश के हर पुलिस स्टेशन में, जो कुछ क्राइम होते हैं – चाहे डकैती हो, मर्डर हो या थ्रेफ्ट हो, इसके साथ-साथ आत्महत्या भी एक केटेगिरी है। सभी पुलिस स्टेशनों की इन्फोर्मेशन इकट्ठा होकर गृह मंत्रालय के पास जाती है। गृह मंत्रालय इस बारे में हर साल एक किताब पब्लिश करती है। उस किताब के माध्यम से देश के सामने यह स्थिति जाती है। वस्तुस्थिति देखने के लिए मैंने पिछले कई सालों की रिपोट्र्स, जिन्हें होम मनिस्ट्री ने ब्यूरो ऑफ क्राइम में पब्लिश किया है, मंगाईं, तो एक बात मेरे सामने आयी कि आत्महत्या की समस्या आज की समस्या नहीं है। आत्महत्या की समस्या का स्वरूप दिन-ब-दिन गंभीर हो रहा है।

        मैं पिछले ५० सालों की फिगर देकर सदन का समय नहीं लेना चाहता, मगर वर्ष १९९८ की मैं इन्फोर्मेशन देना चाहता हूं। …( व्यवधान)   वर्ष १९९५ की इन्फोर्मेशन मेरे पास है। वर्ष १९९५ से भी मैं इन्फोर्मेशन दे सकता हूं। यदि आपको वर्ष १९९८ की इन्फोर्मेशन चाहिए, अब इसमें कोई फर्क नहीं है क्योंकि स्थिति वही है। इस रिपोर्ट के दो हिस्से हैं जिसका एक हिस्सा यह है कि देश में कुल कितनी सुसाइड्स हुई हैं और वर्ष १९९५ से एक अलग रिकार्ड रखने की तैयारी गृह मंत्रालय ने की कि उनमें से कितनी सुसाइड्स किसानों की हैं। इसकी अलग से इन्फार्मेशन देना शुरू किया गया है। वर्ष १९९८ में पूरे देश में १,०४,७१३ लोगों ने आत्महत्या की थी, उनमें से १६,०१५ किसान परिवार से थे। In the year 1999, the total number of suicides in the country was 1,10,587. Out of it, 16,082 suicides were committed by the persons coming from the farming community or farmers.

SHRI B. MAHTAB (CUTTACK): Were they farmers or from the farming community?

SHRI SHARAD PAWAR: It is written here ‘farmers’.  In the year 2000, the total suicides in the country were 1,08,593 out of which farmers were 16,603. In the year 2001, the total suicides in the country were 1,08,506 out of which 16,415 were committed by farmers. In the year 2002, the figure was 1,10,417 for total suicides in the country out of which farmers were 17,977.  In the year 2003, 1,10,851 suicides were committed in the country out of which there were 17,164 farmers.  इससे एक बात सामने आ रही है कि देश में होने वाली कुल आत्महत्याओं में से १५-१६ प्रतिशत आत्महत्याएं किसानों की हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि यह समस्या पिछले कई सालों से चली आ रही है, लेकिन मैं मीडिया को धन्यवाद देना चाहता हूँ कि मीडिया ने पिछले दो सालों में इस पर पर विशेष ध्यान दिया, जिससे यह बात देश के सामने आयी और इस सदन में भी इस पर चर्चा शुरू हुई। कुछ ऐसे राज्य हैं जिनमें अधिक आत्महत्याएं हुई हैं। इन राज्यों में आत्महत्याएं क्यों हुई, इस पर ध्यान दिया गया है, कुछ एक्सपर्ट कमेटीज भी नियुक्त की गयीं और उनके माध्यम से इसकी डिटेल्ड जांच करने की कोशिश की गयी। आन्ध्रा प्रदेश में फार्मर्स सुसाइड डेथ्स इन आन्ध्रा प्रदेश की जांच की जिम्मेदारी National Institute of Agriculture Extension and Management नामक संस्था को दी गयी। उन्होंने सुसाइड करने वाले किसानों के परिवार के लोगों से बातचीत करके इन्फार्मेशन लेने की कोशिश की है और आत्महत्या के कारणों को अपनी रिपोर्ट में जाहिर किया है। कर्नाटक में, Karnataka Government has appointed Viresh Committee under the chairmanship of Dr. G.K. Viresh.  उनकी रिपोर्ट सरकार के सामने आई है। नेशनल इंस्टीटयुट ऑफ रूरल डेवलपमेंट, हैदराबाद ने आन्ध्रा प्रदेश और कर्नाटक में किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं के बारे में जांच करके अपनी रिपोर्ट दी। जहां तक महाराष्ट्र की स्थिति है, टाटा इंस्टीटयुट ऑफ सोशल साइंसेज के ऊपर इसकी जांच की जिम्मेदारी मुंबई हाईकोर्ट ने दी थी। उन्होंने इसकी विस्तृत इन्क्वायरी करके अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार और मुंबई हाईकोर्ट को सौंप दी है। आन्ध्रा प्रदेश में प्रोफेसर जयन्ती घोष के नेतृत्व में कमीशन ऑफ दि फार्मर्स वेलफेयर की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की गयी थी, जिसकी रिपोर्ट आ गयी है। महाराष्ट्र में एक अन्य संगठन – इन्दिरा गांधी इंस्टीटयुट ऑफ डेवलपमेंट एण्ड रिसर्च के ऊपर इसकी जांच की जिम्मेदारी दी गयी थी और उसने भी अपनी रिपोर्ट दे दी है । क्यों किसान आत्महत्या के रास्ते पर जाते हैं, इस बारे में पूरा नक्शा उन राज्य सरकारों के सामने रखा है। सभी रिपोट्र्स में करीब-करीब पहला कारण कामन है और वह है, natural calamities causing high indebtedness, and the reason given is failure of crops. जो कर्ज का बोझ किसानों के सिर पर होता है, जब मानसून खराब हो जाए, क्राप फेल्योर हो जाए या प्राकृतिक आपदा आ जाए तो, उससे उनकी फसल को नुकसान हो जाता है। इस कारण बैंकों से या प्राइवेट मनी लैंडर्स से उसने जो कर्ज लिया होता है, वह रकम वापस करने की उसकी ताकत नहीं रहती, इस कारण किसान आत्महत्या के रास्ते पर जाने के लिए मजबूरी में कदम उठाता है। The second reason given is uncertainty of monsoon; third reason is non-availability of the term-loan; fourth reason is high rate of interest; fifth reason is high rate of interest from private moneylenders; sixth reason is diversion of loan for marriage, sickness, education, etc.; seventh reason is monocrop; eighth reason is no supplementary income other than agriculture; and ninth reason is too much pressure on the land because of the growing population. एक जमाने में, करीब ५० साल पहले जिस परिवार के पास २० एकड़ जमीन थी, बाद में उसके चार बच्चे होने से बंटवारा होकर वह जमीन पांच-पांच एकड़ रह जाती है। उसके बाद अगर एक बेटे के दो या तीन बच्चे हो गए, तो वह जमीन और घटते-घटते एक या दो एकड़ रह जाती है। इसलिए बढ़ती हुई आबादी और जमीन के प्रेशर के चलते खेती पर बुरा असर पड़ता है, क्योंकि खेती छोटी हो जाती है। एक कारण यह भी दिया गया है।

शायद ये सब कारण या अन्य भी हो सकते हैं जो किसान को आत्महत्या करने पर मजबूर करते हैं। इन कारणों का जिक्र सभी रिपोट्र्स में मोटे तौर पर सामने आया है, इसलिए इस बारे में कुछ करने की आवश्यकता है। देश के १५-१६ प्रतिशत किसान आत्महत्या करें, तो यह किसी भी सरकार के लिए अच्छी बात नहीं है। इस बारे में हम क्या-क्या कर सकते हैं, इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

नई सरकार केन्द्र में आए करीब दो साल हो गए हैं। हम लगातार बार-बार बोल रहे हैं कि इस सरकार का सारा ध्यान जिस चीज पर केन्द्रित है, वह किसान है। हमारी सरकार का कामन मिनीमम प्रोग्राम, जो हमने देश के सामने रखा है, उसमें हमने कुछ वादे किए हैं। जो वादे किए गए हैं, The proposed initiatives for the agriculture sector include stepping up public investment in this sector in a significant manner, and accordingly giving highest priority to infrastructure for irrigation; nursing back to health the rural cooperative credit system; doubling the flow of rural credit within three years; easing the burden of debt and high interest rates on farm loans; making more effective crop and livestock insurance schemes; introducing special programmes for dryland farming in the arid and semi-arid regions; taking up watershed and wasteland development programmes on a massive scale; ensuring adequate protection to the farmers from import; and ensuring fair and remunerative prices for the farmers. These are issues, which this Government has selected, and this Government has taken a decision to concentrate on all these areas.

             इसतरह से कई कदम पिछले दो सालों में उठाए गए हैं। मैं कहना चाहता हूं कि टोटल एग्रीकल्चर और एग्रेरियन प्राइसिंग जानने के बाद पहली बार प्रधान मंत्री जी के नेतृत्व में एक कमेटी गठित की गई है। इस कमेटी में वित्त मंत्री, कृषि मंत्री, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, ग्रामीण विकास मंत्री, जल संसाधन मंत्री, ऊर्जा मंत्री और उर्वरक मंत्री शामिल हैं । इस कमेटी की रेग्यूलर बैठक करके हम देखते हैं कि इन क्षेत्रों में हम क्या कर सकते हैं और क्या-क्या कदम उठाने की आवश्यकता है। जो कुछ निर्णय हम करते हैं, उन्हें अमल में लाने के लिए हमने क्या प्रयास किए, इस बारे में भी यह कमेटी काम करती है। प्रधानमंत्री स्वयं इस कमेटी को प्रीसाइड करते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र को ज्यादा महत्व देने की बात हमारी सरकार सोचती है।

किसानों की आत्महत्या करने की जो रिपोर्ट आई है, इसमें सबसे बड़ा कारण किसानों को लोन का न मिलना है। इसके दो कारण हैं। पहला कारण यह है कि जिन किसानों ने पैसा लिया है चाहे कोओपरेटिव बैंक हों, सोसायटी हो या कमर्शियल बैंक हों, इनसे पैसा लेने के बाद किसान अपना पैसा खेती में लगाता है और उसके बाद अगर मौसम खराब हो गया, इस वजह से फसल खराब हो गई तो वह लिए गए पैसे को बैंक को वापिस देने की ताकत नहीं रखता और वह डिफाल्टर बन जाता है। डिफाल्टर बनता है तो आगे आने वाले साल के लिए चाहे मौसम अच्छा क्यों न हो या बारिश अच्छी क्यों न हो, तो भी उसे क्रोप लोन नहीं मिलता है, क्योंकि वह डिफाल्टर होता है। ऐसी परिस्थिति में वह प्राइवेट मनी लेंडर के पास जाता है और २५ परसेंट से ४५ परसेंट इंटरेस्ट रेट पर पैसा लेने की नौबत आ जाती है। इतना सूद देने के बाद उनकी हिम्मत नहीं रहती कि वे यह पैसा वापिस कर सकें और कर्जे के बोझ तले दब जाते हैं तथा आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं।

इस सरकार ने सत्ता में आने के बाद सबसे पहले कदम यह उठाने की सोची कि किस तरह किसान को एग्रीकल्चर क्रेडिट बढ़ा सकते हैं। वर्ष २००४-०५ में १,०५,००० किसानों को क्रोप लोन देने का टार्गेट रखा। इससे पहले ८६००० किसानों को क्रोप लोन देने का टार्गेट था, लेकिन अब १,०५,००० किसानों को क्रोप लोन देने का वायदा सरकार ने किया और मुझे खुशी है कि पहले साल में एक्युअल डिसबर्समेंट १,२५,३०९ करोड़ किसानों को हुआ। दूसरे साल १,४१,००० किसानों को क्रोप लोन देने का टार्गेट फिक्स किया लेकिन १,५७,४७९ किसानों को क्रोप लोन दिया गया। पिछले कई सालों से इस देश में किसानों को इतने बड़े पैमाने पर क्रोप लोन देने का प्रबंध नहीं हुआ था। मुझे विश्वास है कि तीसरे साल में दुगना करने की सरकार ने जिम्मेदारी ली है, हम उससे भी आगे निकल जाएंगे, इसमें कोई दो राय नहीं है। इतने बड़े पैमाने पर एग्रीकल्चर क्रेडिट सप्लाई करने के बाद एक बात और सामने आई है कि इसका लाभ देश के सिर्फ ४० प्रतिशत किसान ही ले सकते हैं। बाकी ६० प्रतिशत किसान बैंकों और कोओपरेटिव सोसायटी के दायरे के आसपास नहीं है और हम कैसे इन्हें बैंक और कोओपरेटिव बैंकों के दायरे में ला सकते हैं, इस बारे में अलग से प्रोग्राम बनाने की आवश्यकता है।

इसके साथ-साथ किसान क्रेडिट कार्ड के बारे में ध्यान दिया गया है। ५ करोड़ ७ लाख किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड दिसम्बर, २००५ तक दे दिया है और इससे उनको दो पैसे उधार मिलने का अच्छा इंतजाम हो गया है। मगर इसके साथ दूसरी समस्या पैदा हो गई। मैंने इसी सदन में एक बार कहा था कि देश में कई सालों से जो हमारा क्रेडिट सिस्टम है उसमें खेती के बारे में ध्यान नहीं दिया गया है। किसी को मारुति कार खरीदनी है तो उसे ८ परसेंट पर पैसा देने के लिए बैंक तैयार रहते हैं, किसी को फ्लैट खरीदना है तो उसके लिए भी एचडीएफसी आदि बैंक ८ परसेंट पर पैसा देने के लिए तैयार हैं, लेकिन चाहे कोओपरेटिव बैंक हो या कोई दूसरा बैंक हो किसानों को १२ या १४ परसेंट पर पैसा देने के लिए तैयार नहीं हैं। इतना मंहगा क्रैडिट दुनिया में कोई देश किसानों को देता नहीं हैं। इसमें कुछ सुधार करने की आवश्यकता थी। मुझे खुशी है कि वित्त मंत्री जी पिछले साल बजट में एक अच्छा कदम उठाया और वह था कि किसानों ने जो पैसा लिया था, या उनके ऊपर टोटल इंटरस्ट का जो बोझ था, उनमें से २ परसेंट का एमाउन्ट उनके एकाउंट में ३० मार्च के पहले भरने की जिम्मेदारी भारत सरकार ने उठायी। ३० मार्च, २००६ से पहले १७०० करोड़ रुपए देश के सभी बैंकों में भरने का काम किया गया और किसानों के ऊपर पुराने इंटरस्ट का जो बोझ था, उसे कम करने की दिशा में पहला कदम उठाया गया।

सभापति महोदय, सदन जानता है कि अटल जी जब देश के प्रधान मंत्री थे, तब उन्होंने पहला कदम यह उठाया था कि इंटरस्ट रेट कम से कम किया जाए। हम ५० हजार रुपए तक लोन लेने वाले किसानों का इंटरस्ट रेट कम कर सकते हैं। उन्होंने ९ परसेंट से इंटरस्ट रेट कम करने का बहुत अच्छा कदम उठाया था। इसमें सुधार करने की आवश्यकता थी और वह सुधार इस बजट के माध्यम से हुआ। इस सुधार के मुताबिक ५० हजार रुपए के लोन की जो लमिट है, वह तीन लाख रुपए तक की गई और रेट ऑफ इंटरस्ट ९ परसेंट से ७ परसेंट पर लाने का काम किया। इस साल से पहली बार ७ परसेंट पर इंटरैस्ट देने का काम किया गया। …( व्यवधान)   इसमें जो कोआपरेटिव बैंक, प्राइवेट बैंक और ऑल ओवर इंडिया के बैंक हैं, इन सब की जिम्मेदारी है। इसमें कोई फर्क नहीं है।

कुँवर मानवेन्द्र सिंह (मथुरा) : आप इंटरैस्ट को और कम करिए।

श्री शरद पवार: हम उसे १२ परसेंट से ७ परसेंट पर लाए हैं। …( व्यवधान)   आप जो चाहें बोल सकते हैं, क्योंकि बोलने में कोई दिक्कत नहीं है। सिम्पल बात यह है कि हम इसे १२ परसेंट से ७ परसेंट पर लाए हैं। कुछ राज्य सरकारों ने इससे पहले दो कदम उठाए। कर्नाटक में, वहां की हुकूमत आने के बाद रेट ऑफ इंटरैस्ट जो हमने ७ परसेंट किया है, इसमें तीन परसेंट देने की तैयारी रखी और वह अपने किसानों के लिए ४ परसेंट पर लाए। भारत सरकार ने रेट ऑफ इंटरैस्ट जो ७ परसेंट किया है, उसे महाराष्ट्र सरकार ने अपना कंट्रीब्यूशन एक परसेंट करने की तैयारी की और जिसे ले लिया। इस साल महाराष्ट्र में ६ परसेंट पर रेट ऑफ इंटरस्ट लाने की कोशिश की गई है। यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। …( व्यवधान) 

SHRI C.K. CHANDRAPPAN (TRICHUR):  Swaminathan Committee had recommended four per cent.

SHRI SHARAD PAWAR: I would say that I would be happy to give at two per cent.  Why should we wait for Swaminathan? But there has to be money.  One should not forget that we… … (Interruptions)

SHRIMATI TEJASWINI SEERAMESH (KANAKAPURA): Sir, I would like to urge the Central Government to support Karnataka Government to help its farmers by giving remaining three per cent because….… (Interruptions)

SHRI SHARAD PAWAR: You would get an opportunity to speak.  Till then, please do not disturb me.  … (Interruptions)हम १२ परसेंट से ७ परसेंट पर लाए हैं। हमारी यह कोशिश रहेगी कि ७ परसेंट से नीचे लाया जाए और जिसे करने की भी आवश्यकता है। हम बार-बार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, नाबार्ड और सभी कोआपरेटिव बैंकों से बातचीत कर रहे हैं तथा इसे कैसे नीचे ला सकते हैं, यह देख रहे हैं। इसका रास्ता निकल सकता है, लेकिन अभी बातचीत चल रही है। मैं डिटेल में इस बारे में बोलना नहीं चाहता हूं। मैं एक छोटा सा उदाहरण देता हूं। नाबार्ड स्टेट कोआपरेटिव बैंक को ४ परसेंट पर पैसे देती है। नाबार्ड ४ परसेंट पर देने के बाद, स्टेट कोआपरेटिव बैंक अपना एक परसेंट देकर ५ परसेंट से डिस्टि्रक्ट सैंट्रल कोआपरेटिव बैंक को देती है। डिस्टि्रक्ट सैंट्रल कोआपरेटिव बैंक अपने दो परसेंट वहां लगा कर ७ परसेंट पर गांव की सोस्याटी को देती है। गांव की सोसायटी ९ परसेंट या ११ परसेंट पर किसानों को देती है। इसमें एक सुझाव यह था कि चार लैवल्स की क्या आवश्यकता है? हमने इनमें से एक लैवल उठाया। दो परसेंट शायद यहां बचा सकते हैं, लेकिन सभी लोगों को मिल कर कोई कदम उठाना होगा। हमने यह बात रिजर्व बैंक और नाबार्ड से शुरू की है। हर राज्य के स्टेट कोआपरेटिव बैंक से बातचीत की है कि इनमें एक लैवल कम करो। हमने ये सब इंस्ट्टीटयूशन्स किसानों की मदद करने के लिए खड़े किए हैं ।इसमें किसानों का ही नुकसान होता है। इसलिए इनमें से कोई इंस्टीटयूशन कम करने की आवश्यकता है, यह कदम उठाना होगा। इस पर हमने बातचीत शुरू की है। हमें विश्वास है कि इसमें कुछ न कुछ रास्ता निकलेगा और सात परसेंट से नीचे जाने की जो आवश्यकता है, सदन की भावना है, और डॉ. स्वामीनाथन कमेटी ने रिकमेंडेशन की है, इसके आसपास हम जा सकते हैं, हमारे पैर उसी रास्ते पर जो रहे हैं – यह मैं सदन के सामने बताना चाहता हूं।

             आज पूरे देश में कोऑपरेटिव मूवमेंट संकट में है। देश में आज से पांच साल पहले टोटल एग्रीकल्चरल सीड की सप्लाई ६० परसेंट कोऑपरेटिव माध्यम से होता था और बाकी कमर्शियल बैंकों के माध्यम से होता था। आज स्थिति यह है कि कोऑपरेटिव का हिस्सा २७ परसेंट है, ६० परसेंट से ऊपर कमर्शियल बैंक्स चले गए हैं और बाकी आर.ओ.आर. हैं। कोऑपरेटिव बैंक २७ परसेंट पर आ गया है – यह क्यों आया, हमने इसकी जांच की और एक कमेटी प्रोफेसर वैद्यनाथन के नेतृत्व में एपांइट की। उन्हें कहा गया कि आप छ: महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट दीजिए क्योंकि हमने इसे दुरुस्त करना है। इससे एक बात हमारे सामने आ गई कि गांव की कोऑपरेटिव सोसाइटीज कई जगह संकट में है। इससे किसान की स्थिति खराब हुई, वे पैसे वापिस नहीं कर सके, जिससे सोसाइटी का नुकसान हुआ। जब सोसाइटी का नुकसान हुआ, तो सैंट्रल कोऑपरेटिव बैंक से पैसे लिए गए पैसा वापिस नहीं कर सके। सैंट्रल कोऑपरेटिव बैंक से पैसे लिए और वापिस नहीं कर सके – यह पूरी चेन ऐसी है, जिससे पूरा कोऑपरेटिव सिस्टम संकट में है। इस मामले मे कुछ न कुछ कदम उठाने की आवश्यकता है, इसलिए वैद्यनाथन कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद देश के सभी मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री, कोऑपरेटिव मनिस्टर्स की कान्फ्रेंस माननीय प्रधानमंत्री जी की अध्यक्षता और नेतृत्व में बुलाई, जिसमें एक बहुत बड़ा निर्णय लिया गया कि इस देश में जिन कोऑपरेटिव बैंक से सोसाइटीज को नुकसान हुआ है, उस नुकसान की जिम्मेदारी चौदह हजार करोड़ रुपए की है, जिसमें से बारह हजार करोड़ रुपए की राशि भारत सरकार अपनी ट्रीजरी से सोसाइटी में भरेगी, जिससे सोसाइटी संकट से बाहर निकालने की कोशिश करेगी। इसके अलावा दो हजार करोड़ रुपए राज्य सरकार को देना चाहिए और बारह हजार करोड़ रुपए की जिम्मेदारी भारत सरकार लेगी – इस तरह चौदह हजार करोड़ रुपए देश की सभी सोसाइटीज़ में हम भरेंगे। इससे उनकी हैल्थ इम्प्रूव हो जाएगी और वे सोसाइटीज पैसे बैंक में भरेंगी, जिससे बैंकों की हैल्थ ठीक हो जाएगी और किसानों को क्रेडिट मिलने का रास्ता खुल जाएगा।

आज सात प्रतिशत किसान क्रेडिट के दायरे में नहीं है। उनके लिए रास्ता खोला जाएगा। इसके लिए अच्छा कदम उठाने की तैयारी की गई है और पैसे भरने की तैयारी की गई है। हर राज्य में डिटेल मे काम शुरू हुआ है। हमें विश्वास है कि यह काम जल्दी से जल्दी पूरा हो जाएगा, जिसकी आज आवश्यकता है।

जैसा मैंने कहा कि जो किसानों द्वारा आत्महत्याएं हुई हैं, इसके कई कारण हैं। इसका एक कारण है – डाइवर्जन ऑफ क्रेडिट, यानी फसल के लिए पैसे ले लिए लेकिन परिवार में कोई बीमार हो गया, उस बेचारे किसान ने जो पैसा फसल के लिए लिया था उस पैसे का खर्चा बीमारी, अस्पताल और डॉक्टर के लिए कर दिया। दूसरी वजह है कि फसल के लिए पैसा लिया और बच्चे की शादी आ गई। गांव में यह स्थिति होती है कि शादी के लिए कुछ न कुछ करना पड़ता है और वह क्रेडिट शादी के लिए डाइवर्ट हो गया। तीसरा कारण है और ऐसे केई केसिस हमारे सामने आए हैं कि एग्रीकल्चर क्रेडिट क्रॉप के लिए ले लिया, लेकिन जब बच्चों की पढ़ाई की समस्या पैदा हुई तब उनके पास फीस भरने के लिए पैसा नहीं था और एग्रीकल्चर क्रेडिट वहां डाइवर्ट हो गया। आज यह स्थिति क्यों है? देश में हर वर्ग के लोगों को पैसा दिलाने के लिए कोई न कोई रास्ता है, लेकिन किसानों के लिए पैसे दिलाने के लिए कोई ऑल्टरनेटिव रास्ता नहीं है। इसलिए फाइनेंस मनिस्ट्री और रिजर्व बैंक के सामने हमने एक प्रस्ताव रखा है जिस पर अभी डिसीजन नहीं हुआ है। वह है कि जैसे आप एग्रीकल्चर क्रेडिट देते हैं इसके साथ-साथ इन्वेस्टमेंट क्रेडिट और कन्ज्यूमर क्रेडिट देने का नया सिस्टम इस देश में शुरू करने की आवश्यकता है। इन्वेस्टमेंट क्रेडिट इस लिए कि किसी को टयूबवैल लेना है, किसी को पाईपलाइन लगानी है या इलैक्टि्रक मोटर लगानी है[v3] ,

किसी को ऑयल इंजन लगाना है, किसी को एग्रीकल्चर से संबंधित कुछ और काम करना है। इससे पहले पूरे देश में लैन्ड डैवलपमैन्ट बैंक नाम का एक इंस्टीटयूट था। आज पूरे हिन्दुस्तान में ९० प्रतिशत लैन्ड डैवलपमैन्ट बैंक बंद हो गये हैं, जिससे किसानों को इनवैस्टमैन्ट क्रेडिट मिलने का रास्ता बंद हो गया है। इसे फिर से चालू करने की आवश्यकता है। इसलिए जिन वैद्यनाथन जी को हमने क्रेडिट बैंक और सोसाइटीज की स्थिति को देखने की जिम्मेदारी दी थी, उन्हीं वैद्यनाथन जी को हमने यह जिम्मेदारी दी है कि इनवैस्टमैन्ट क्रेडिट देने वाले लैन्ड डैवलपमैन्ट बैंक इंस्टीटयूशन्स, जो खत्म हो गये हैं, उन्हें हम कैसे रिवाइव कर सकते हैं। इसकी रिपोर्ट अगले महीने फाइनैन्स मनिस्ट्री और मेरे पास आयेगी, तब उस पर हम कदम उठायेंगे।

तीसरी बात यह है कि जैसे परिवार में किसी की शादी हो, कोई बीमार हो जाए, बच्चों की पढ़ाई हो, इन सब कामों के लिए जो एग्रीकल्चर क्रेडिट डाइवर्ट होता है, इसके लिए एक नई योजना कंजम्पशन क्रेडिट इस देश में शुरू करने की आवश्यकता है। जब तक हम यह नहीं करेंगे, तब तक किसानों का प्राइवेट मनी-लैंडर के पास जाना नहीं रुकेगा और इस कारण से उनके ऊपर जो बोझ पड़ता है, उससे उन्हें छुटकारा नहीं मिलेगा। इसलिए हमने इस ओर ध्यान देने की तैयारी की है।

सभापति महोदय, क्रेडिट सबसे महत्वपूर्ण समस्या है, इस पर भी हम लोगों ने ध्यान दिया है और कुछ कदम उठाये हैं। उन कदमों के कुछ आंकड़े मैंने आपके सामने रखे हैं। इसके अलावा फसल बीमा भी बहुत महत्वपूर्ण योजना है। पिछले एक-दो सालों से एग्रीकल्चर इंश्योरेंस की स्कीम हमने चालू है, लेकिन इसमें कुछ कमियां हैं और इन कमियों के कारण हमने एक नया नक्शा तैयार किया है। इस नक्शे के तैयार होने के बाद, मैंने पूरे देश के मुख्य मंत्रियों और संसद सदस्यों के पास इस नक्शे का प्रारूप लिखकर भेजा है। बहुत से सांसदों और राज्य सरकारों ने इसमें सुधार करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं। जिन पर बहस के दौरान कुछ सूचनाएं आई थीं, जैसे इंश्योरेन्स में एरिया अप्रोच ब्लॉक में सुधार करने की आवश्यकता है। इसके अलावा आपके यहां से सुझाव आये थे कि पंचायत भी इसमें ध्यान दें। कई वक्ताओं ने विलेज की मांग की थी कि कम से कम विलेज न हो, तो पंचायतों द्वारा इसे करने की आवश्यकता है। इसे भारत सरकार ने स्वीकार किया है और हम फाइनैन्स मनिस्ट्री और प्लानिंग कमीशन से इसका फाइनल अप्रूवल लाने की प्रोसैस में हैं। हम इस बात पर अमल करेंगे और इसे स्वीकार करेंगे। अगर विलेज एज ए यूनिट हम नहीं ले सकते, तो कम से कम पंचायत को एज ए यूनिट निश्चित रूप से लेने के लिए हम कदम उठायेंगे।

श्री गणेश सिंह (सतना) : मध्य प्रदेश सरकार ने अपनी सहमति दे दी है।

श्री शरद पवार : नौ-दस राज्यों ने अपनी सहमति दी है और बाकी भी दे रहे हैं। मुझे विश्वास है कि इसमें सभी राज्य हमें सहयोग देंगे। इसी के साथ कई नये कदम उठाने की भी आवश्यकता थी, जैसे हम सप्लीमैन्टरी इंकम किस तरह से ला सकते हैं, इर्रिगेशन का परसैन्टेज हम किस तरह से ज्यादा बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा जो सीमित पानी है, उसे हम माइक्रो इर्रिगेशन सिस्टम में ठीक तरह से कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं, डाइवर्सफिकेशन कैसे कर सकते हैं। चाहे हॉर्टिकल्चर हो या कुछ और हो, इस पर भी पिछले दो सालों में हमने ध्यान दिया है। मैंने यह बात इससे पहले भी सदन के सामने बतलाई थी। इर्रिगेशन के लिए भारत सरकार द्वारा करीब तीन हजार करोड़ रुपये का बजटरी प्रोविजन होता था, जिसे इस साल हम सात हजार करोड़ करने में कामयाब हुए हैं। मगर मै इससे खुश नहीं हूं, क्योंकि इर्रिगेशन के लिए बजट का जो टोटल अमाउंट जाता है, that amout is only 0.35 per cent. It is not even half a per cent. This is not good. इसमें इम्पलीमेंट हुआ, ठीक है। ३००० से बढ़कर ७००० करोड़ तक पहुंची है लेकिन पूरा बोझ राज्य सरकारों के ऊपर डालना मुझे ठीक नहीं लगता। इसलिए कुछ न कुछ जिम्मेदारी भारत सरकार के ऊपर देने की आवश्यकता है। सूखा पड़ने के बाद पूरी जिम्मेदारी भारत सरकार ने ली और सूखा रोकने के लिए इरीगेशन की आवश्यकता हुई। इसलिए भारत सरकार को इस पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। इस पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दिया गया है। थोड़ा-बहुत सुधार इसमें हुआ है लेकिन इससे भी जयादा सुधार कैसे हो सकता है, इस पर हम ध्यान देने वाले हैं। यह हमारा प्रॉयोरिटी का विषय है।

दूसरे, पानी का इस्तेमाल हम कैसे कर सकते हैं और आज सीमित पानी का इस्तेमाल करने के लिए नयी टैक्नॉलोजी इजरायल जैसे देशों ने विकसित की है जिसे भारत ने स्वीकार किया है। एनडीए की पहले जब हुकूमत थी तो चन्द्राबाबू नायडू के नेतृत्व में एक कमेटी अपाइंट की गई थी डि्रप इरीगेशन सिस्टम और स्िंप्रकलर इरीगेशन सिस्टम कि इस देश को हम इस बारे में कैसे मजबूत कर सकते हैं। इसकी रिपोर्ट आ गई और रिपोर्ट आने के बाद आज इस रिपोर्ट को हमने स्वीकार किया है और स्वीकार करने के बाद इसके पहले १५० करोड़ रुपये से लेकर २०० करोड़ रुपये की राशि का जो प्रबन्ध किया गया था, इस साल हमने दुगुना बढ़ाकर साढ़े चार सौ करोड़ रुपये की राशि इसमें दी है। जिन राज्यों ने इस पर ध्यान देने की तैयारी की है, जो किसान इसमें सामने आएंगे, चालीस प्रतिशत सब्सिडी देने का प्रबन्ध आज इस टैक्नॉलोजी को स्वीकार करने वाले किसान को देने की तैयारी भारत सरकार ने की है। सभी राज्य सरकारों को हमने लिखा है और मैं विश्वास दिलाना चाहता हूं कि इस साल साढ़े चार सौ करोड़ इस ओर दिये गये हैं, अगले साल इससे भी ज्यादा दिये जाएंगे और ज्यादा से ज्यादा सब्सिडी किसानों को कैसे मिले, इस पर हमारा ध्यान देना जरूरी है।

डाइवर्सफिकेशन की भी आवश्यकता है। बार-बार वही किसान फसल लेता है। इसमें कोई परिवर्तन करने की आवश्यकता थी और इसीलिए हॉर्टिकल्चर मिशन की स्थापना की गई। १००० करोड़ रुपये का इस साल प्रबन्ध किया गया। खास तौर पर जिन राज्यों में ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है तो उन राज्यों में ज्यादा धनराशि देने की तैयारी भारत सरकार ने की है। मैं सदन को कहना चाहता हूं कि इसमें हमें सबसे अच्छा सहयोग जो मिल रहा है, वह हमें उड़ीसा राज्य से मिल रहा है। उड़ीसा में बारह जिले हम लोगों ने स्वीकार किये थे। पांच मुख्य मंत्रियों ने हमारे सामने प्रस्ताव दे दिया है और चार जिलों में इसे स्वीकार करने की आवश्यकता है। यह बात उन्होंने हमारे सामने रखी और इसे हमने स्वीकार किया तथा आवश्यक रकम देने के लिए पूरी तैयारी की है। कई जगहों पर जहां वेस्ट लैंड है, वह वेस्ट लैंड हॉर्टिकल्चर के अंदर हम लाएंगे और इसमें क्लिस्टर एप्रोच लेकर एक ही चीज पर हम ध्यान देंगे, जैसे आम है तो आम का एरिये पर ध्यान देंगे, अमरूद है तो अमरूद का एरिया और सेब है तो सेब के एरिया पर ही कंसनट्रेट करेंगे। इससे एक बात हो सकती है कि हम इसके लिए प्रोसैस करने की इंडस्ट्री लगा सकते हैं और ज्यादा वैल्यू एडेड कीमत किसानों की तरफ जाने का एक रास्ता खुला हो सकता है। अपने देश में टोटल एग्रीकल्चर प्रोडक्शन जो होता है, खास तौर पर वेजीटेबल्स, मिल्क एंड हॉर्टिकल्चर आइटम्स जो होते हैं, उनमें से सिर्फ दो प्रतिशत प्रोसैस होता है जबकि बाकी देशों में सत्तर प्रतिशत से लेकर नब्बे प्रतिशत तक प्रोसैस होता है। मैंने सदन में इससे पहले कहा था कि हम सिर्फ दो प्रतिशत ही प्रोसैस करते हैं, इससे हमारे पोस्ट हॉर्वेस्िंटग लॉसेज सबसे ज्यादा है। हर साल पचास हजार करोड़ रुपये से ज्यादा नुकसान पोस्ट हॉर्वेस्िंटग लॉसेज के माध्यम से इस देश के किसानों को होता है। इसीलिए एग्रो बेस्ड इंडस्ट्री को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। यह एग्रो बेस्ड इंडस्ट्री कब चलेगी कि जब रॉ मेटीरियल उपलब्ध होगा और रॉ मेटीरियल कब होगा जब ज्यादा से ज्यादा क्षेत्र हॉर्टिकल्चर के अंदर लाएंगे। इसीलिए एक नयी स्कीम भारत सरकार के माध्यम से शुरु की गई है और इसमें भी पचास से साठ प्रतिशत तक सब्सिडी राज्य सरकार को देने का काम इस माध्यम से शुरू हुआ है। जो १००० करोड़ रुपये का प्रावधान था, इसमें से ४०० करोड़ रुपये हमने स्टेट्स को देने का काम किया है और यह काम ठीक तरह से कैसे हो, इस पर ध्यान दिया है। एक नया रास्ता आज खेती के काम में लाने का काम इस माध्यम से हम लोग कर रहे हैं। इसके साथ-साथ यहां मनिमम सपोर्ट प्राइस के बारे में बहुत बात कही गई। ज्यादा क्षेत्र हॉर्टिकल्चर के अंदर लाएंगे। इसीलिए एक नयी स्कीम भारत सरकार के माध्यम से शुरु की गई है और इसमें भी पचास से साठ प्रतिशत तक सब्सिडी राज्य सरकार को देने का काम इस माध्यम से शुरू हुआ है। जो १००० करोड़ रुपये का प्रावधान था, इसमें से ४०० करोड़ रुपये हमने स्टेट्स को देने का काम किया है और यह काम ठीक तरह से कैसे हो, इस पर ध्यान दिया है। एक नया रास्ता आज खेती के काम में लाने का काम इस माध्यम से हम लोग कर रहे हैं। इसके साथ-साथ यहां मनिमम सपोर्ट प्राइस के बारे में बहुत बात कही गई।

            महोदय, यह बात सही है कि सभी चाहते हैं कि मिनीमम सपोर्ट प्राइस बढ़े। मिनीमम सपोर्ट प्राइस तय करने के लिए एक मशीनरी तैयार की गई है। पिछले कुछ सालों से वह काम भी कर रही है। इसमें एक्सपर्ट लोग हैं। वे देश के सभी राज्यों को नोटीफिकेशन भेजते हैं और कॉस्ट ऑफ कल्टीवेशन की इन्फर्मेशन लेते हैं। देश की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटीज से आंकड़े कलैक्ट करते हैं और इसके माध्यम से एक रिपोर्ट तैयार कर के भारत सरकार को देते हैं। उसे स्वीकार करने अथवा में सुधार करने का अधिकार भारत सरकार का है। भारत सरकार द्वारा उसे स्वीकार करने के बाद मिनीमम सपोर्ट प्राइस देश के सभी किसानों के लिए हर साल एनाउंस की जाती है। सोइंग ऑपरेशन से पहले मिनीमम सपोर्ट प्राइस एनाउंस होनी ही चाहिए और किसानों को फसल बोने से पहले उस फसल का न्यूनतम मूल्य क्या मिलेगा, यह मालूम होना चाहिए। इसकी शुरूआत हमने की है, लेकिन खाली मिनीमम सपोर्ट प्राइस देने से काम नहीं चलेगा क्योंकि मिनीमम सपोर्ट प्राइस एनाउंस होने के बाद भी, उससे नीचे कीमत जाती है, तो भारत सरकार की जिम्मेदारी है कि वह डिस्ट्रैस सेल से किसान को बचाने के लिए, उसकी उपज को खरीदना आवश्यक हो जाता है। इस बारे में हमने अब कदम उठाने शुरू किए हैं।

महोदय, राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश के हमारे साथी हमेशा सरसों की प्रक्योरमेंट नहीं किए जाने की शिकायत करते थे। डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार आने से पहले प्रक्योरमेंट करने, मैर्केट इंटरवेंशन और डिस्ट्रेस सेल से बचाने के लिए, जो टोटल राशि रखी थी वह ३०० करोड़ रुपए थी। मुझे सदन को यह बताते हुए खुशी हो रही है कि लास्ट ईयर, पूरे राजस्थान में तथा हरियाणा एवं मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों से, यानी इन तान राज्यों के किसानों से हमने ३००० करोड़ रुपए की सरसों खरीदी। देश में ऑयल सीड्स की कमी थी। इसलिए राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश ने ऑयल सीड्स की पैदावार बढ़ाने के लिए कुछ प्रयास किए और उनके प्रयासों से मस्टर्ड की इतनी पैदावार हुई जिसके कारण सरसों की मिनीमम सपोर्ट प्राइस १७०० रुपए प्रति क्िंवटल से नीचे गिरकर १३०० रुपए प्रति क्िंवटल रह गई। तीनों राज्यों के मुख्य मंत्रियों ने अनुरोध किया कि केन्द्र को कुछ करना चाहिए और उनकी डिमांड जायज थी। हमने इस पर ध्यान दिया और मुझे सदन को बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि हमने ३००० करोड़ रुपए की सरसों खरीदी। The amount of money received by way of distress sale this year was Rs. 3000 crore.

             महोदय, इस सरकार ने ३०० करोड़ से बढ़ाकर ३००० करोड़ रुपए किया है और मुझे यह बताते हुए प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है कि इस वर्ष यह खरीद ३६०० करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। कुछ माननीय सदस्यों ने शिकायत की कि सीकर में अथवा कुछ अन्य जिलों में अभी तक किसान का माल पड़ा है जिसे कोई खरीदने वाला नहीं है। हम सी.एम. साहिबा से बातचीत करके कोई न कोई रास्ता जरूर निकालेंगे।

श्री भँवर सिंह डांगावास (नागौर) : मंत्री महोदय, मेरी आपसे प्रार्थना है कि राजस्थान में सरसों की खरीद हो रही है, यह बात तो आपकी ठीक है, लेकिन किसान को एक महीने के बाद सरसों तुलवाने के लिए बुलाया जाता है और टोकन दे दिया जाता है। फिर एक महीने के बाद उसे पैसे लेने के लिए बुलाया जाता है। इस प्रकार किसान को दो महीने पैसे प्राप्त करने में लग जाते हैं। …( व्यवधान) 

श्री दीपेन्द्र सिंह हुड्डा (रोहतक) : सभापति महोदय, मैं माननीय सदस्य की बात का समर्थन करता हूं।

श्री शरद पवार: महोदय, टोटल पेमेंट एट ए टाइम करना मुश्किल था। इसलिए ऐसी व्यवस्था की गई है। हम प्रदेश सरकार को २००, ३०० और कभी ४०० करोड़ रुपए रिलीज करते हैं।

महोदय, मैं बताना चाहता हूं कि राजस्थान में सरसों की खरीद के संबंध में स्थिति ऐसी है कि मैं देश के किसी भी भाग में जाऊं, ऐसा कभी नहीं होता जब कि राजस्थान की मुख्य मंत्री का फोन न आए। वे बराबर इस बारे में बात करती हैं और धन की व्यवस्था हम करते हैं। इसका भी हम कोई न कोई रास्ता अवश्य निकालेंगे। बजिटरी प्रॉवीजन जितना था, उससे हमें कहीं ज्यादा रुपए की व्यवस्था करनी पड़ी। मिनीमम सपोर्ट प्राइस और डिस्ट्रैस सेल में जो अन्तर था, वह काफी था। हम माननीय सदस्यों को बताना चाहते हैं कि इस बारे में कोई कमी नहीं आने दी जाएगी और बराबर किसानों का भुगतान किया जाएगा। हम उन्हें समय से पैसा देने का पूरा प्रयास करेंगे और उन्हें परेशान नहीं होने दिया जाएगा।

महोदय, उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों की एम.एस.पी. के बारे में एक बहुत बड़ी समस्या थी। सालों से पैसा नहीं दिया गया। इस पर उत्तर प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक, आन्ध्रा प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा सरकार ने ध्यान दिया। मुझे कहते हुए खुशी होती है कि इस साल गन्ना किसानों को पुरानी पेमेन्ट का १८ हजार करोड़ रूपये दिया गया है। आज आउटस्टैडिंग एमाउन्ट चार प्रतिशत से भी कम है। इतने बड़े पैमाने पर पहले कभी काम नहीं हुआ था। इस बारे में सबसे ज्यादा काम उत्तर प्रदेश सरकार ने किया है। इसके लिए मैं उत्तर प्रदेश सरकार को बधाई देता हूं।

SHRI TATHAGATA SATPATHY (DHENKANAL):  Sir, I would like to know about genetically modified seeds.

SHRI SHARAD PAWAR:  I will tell you about it.

महोदय, जहां-जहां से माल खरीदने की आवश्यकता है, इसके लिए हम लोगों ने मार्किट से माल खरीदने का काम शुरू किया है। इस सदन में यह बात उठायी गयी कि इस देश के किसानों ने फूड सिक्योरिटी के लिए बहुत बड़ा काम किया है, फिर भी हमें अनाज इम्पोर्ट करने की नौबत क्यों आयी? यह बात सभी साथियों ने उठायी। मैं इसके बैकग्राउंड में जाने की आवश्यकता समझता हूं। हमारे देश में एग्रीकल्चर मार्किटिंग एक्ट नाम से एक कानून है। एनडीए सरकार के समय में नीतीश कुमार जी एवं राजनाथ सिंह जी ने सभी राज्यों को विश्वास में लेकर एक नया कानून माडर्न एग्रीकल्चर प्रोडयूस एक्ट का एक पेपर तैयार किया। यह राज्य सरकारों को दे दिया गया और उनसे कहा गया कि हमने सभी राज्य सरकारों से बातचीत करके यह पेपर तैयार किया है और आप अपने-अपने राज्य में एग्रीकल्चर प्रोडयूस एक्ट में परिवर्तन कीजिए। यह परिवर्तन क्या था? एपीएमसी एक्ट के माध्यम से किसानों के ऊपर एक बंधन था कि उन्हें अपनी उपज एपीएमसी की मण्डी में ही बेचनी है और जिसे लाइसेंसधारी एजेंट ही खरीद सकते हैं। माडर्न एक्ट में यह सुधार सजैस्ट किया गया कि किसानों के ऊपर से यह बंधन हटाया जाए और किसान जहां चाहे अपना माल बेच सकें। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा ने एडमनिस्ट्रेशन आर्डर निकाला कि किसान कहीं भी अपनी उपज बेच सकते हैं। इससे पहले जब पंजाब और हरियाणा में गेहूं पैदा होता था तब किसान मण्डी में गेहूं लाता था और वहां फूड कापोरेशन आफ इण्डिया, नाफेड और कुछ आड़तिए इत्यादि खरीदने के लिए आते थे। इसलिए किसान को वहीं माल बेचना पड़ता था। जिस दिन से एपीएमसी एक्ट में सुधार हुआ, उस दिन से मार्किट में माल आना कम हो गया क्योंकि किसान को जहां कीमत मिलती है, वहीं वह अपना माल बेचता है। व्हीट का प्रोडक्शन पिछले साल से इस साल ज्यादा है।

16.00 hrs.

एरिया ज्यादा है, मगर मार्केट में माल कम आया। मार्केट में माल इसलिए कम आया, क्योंकि गांवों में जाकर ट्रेडर्स ने किसानों का माल खरीदने का काम शुरू किया। मैंने सभी मुख्यमंत्रियों को, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब…( व्यवधान) 

सभापति महोदय : व्यवस्था है कि चार बजे से दूसरी मद लेनी है, या तो आप शीघ्रातिशीघ्र खत्म करें, नहीं तो सदन इसके लिए अनुमति दे।

            …( व्यवधान)

सभापति महोदय :  बात सुनी जाये। कृपया शान्त रहिये। चार बजे से दूसरी मद लेनी है, सदन की सहमति से मंत्री जी के रिप्लाई तक सदन का समय बढ़ाया जाता है।

संसदीय कार्य मंत्री तथा सूचना और प्रसारण मंत्री (श्री प्रियरंजन दासमुंशी) : हमारा आपसे आग्रह है कि मंत्री जी का रिप्लाई खत्म होते ही नैक्स्ट आइटम लिया जाये। …( व्यवधान) 

श्री शरद पवार : इसीलिए इस साल गेहूं का एरिया बढ़ा है, उत्पादन भी बढ़ा है। बीच में एक समस्या पैदा हुई थी, खास तौर से हमारे हरियाणा और पंजाब के प्रतनधि जानते होंगे। उनको मालूम होगा कि जब गेहूं में फ्लावरिंग की स्टेज आती है, जब एक ठण्डी हवा होती है, वह खत्म हो गई और गरमी का १५ दिन की सीजन आ गया, जिससे एक मुश्किल समय आ गया। फिर भी टोटल प्रोडक्शन पर ज्यादा असर नहीं हुआ। हमने किसानों को गेहूं की कीमत ६५० रुपये तय की…( व्यवधान) 

श्री भँवर सिंह डांगावास : वह कम है, बाजार में, मंडी में ९०० से ११०० रुपये के बीच गेहूं बिक रहा है।…( व्यवधान) 

श्री शरद पवार :  हो सकती है। ६५० रुपये जो कीमत है, वह इसके पहले ६४० रुपये थी, उसके पहले साल ६३० रुपये थी और उससे पहले लगातार दो साल ६१० रुपये थी और इस समय ६५० रुपये हो गई। सच बताऊं तो हमेशा प्रिक्यूरमेंट जो होता है, प्रिक्यूरमेंट तो एक अप्रैल से शुरू हो गया, मगर सच्चा प्रिक्यूरमेंट बैसाखी के बाद होता है और बैसाखी १४ अप्रैल के आसपास होती है, १४ अप्रैल को बैसाखी होने के बाद १५ अप्रैल से गेहूं मार्केट में आता है। ऐसा पिछले १० साल का रिकार्ड मैंने देखा था। ८-८, ९-९ लाख टन परचेज हर दिन बैसाखी के बाद होती है, मगर १४ तारीख को बैसाखी होने के बाद १५, १६, १७ और १८ को चार दिन में जितनी हम चाहते थे, उतनी गेहूं की आवक मार्केट में नहीं हुई। तुरन्त मैंने तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों, श्री मुलायम सिंह यादव, कैप्टन अमरेन्द्र सिंह और श्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को काँटैक्ट किया और उनको पूछा कि यह क्या हो रहा है, मार्केट में माल क्यों नहीं आ रहा है। उन्होंने इन्फोर्म किया कि आपका जो रेट है, उसमें और मार्केट के रेट में फर्क है। हमने पूछा कि क्या करने की आवश्यकता है तो तीनों ने सुझाव दे दिया कि ५० रुपये बोनस आप एनाउंस करिये। मैंने कहा कि अगर बोनस एनाउंस करेंगे तो बहुत बड़ा बोझ पड़ेगा। We tried to have the consent of the Finance Minister.  He was not available. With great resistance he agreed to it.  Ultimately to protect the interests of the farmers, by then, we have practically accepted to bear a burden of Rs. 700 crore. जब हमने भाव एनाउंस किया तो सभी ट्रेडर्स ने ७५० रुपये एनाउंस किया। मध्य प्रदेश में ८०० हो गया, गुजरात में कई जगह पर ८५० हो गया और टोटल प्रिक्यूरमेंट, जो हम चाहते थे, करीब १६ मलियन टन के आसपास, आज तक हम ९२ लाख टन के आसपास पहुंचे हैं।

आज देश को जो टोटल फूडग्रेन की, व्हीट की जरूरत है, वह १४० मलियन टन के आसपास है। ९०-९२ लाख टन का हमारा प्रिक्यूरमेंट ९५ तक जायेगा, थोड़ा सा २० लाख टन हमारा पुराना स्टाक है, इसलिए बफर पर एक समस्या पैदा हो सकती है। यह संकट हमारे सामने आने के बाद हम लोगों ने इम्पोर्ट करने का डिसीजन ले लिया, क्योंकि समझो for this and that reason कहीं मानसून फेल हो जाये, हालांकि होना नहीं चाहिए, होगा भी नहीं, लेकिन अगर हो जाये तो भुखमरी की समस्या किसी राज्य में आने की आवश्यकता नहीं है, इस पर ध्यान देना चाहिए और इसलिए अपना स्टाक बिल्ट अप करने की आवश्यकता है तो हम बिल्ट अप करेंगे और इस समस्या से हमारा छुटकारा हो जायेगा। इसलिए आज इस सरकार ने शुरू में ३.५ मलियन टन लाने के लिए डिसीजन ले लिया। यह बात हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं, उत्पादन की ऐसी जिम्मेदारी हमारे ऊपर है। इस देश के आम गरीब लोगों को पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के माध्यम से अनाज देने की जिम्मेदारी हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम मजबूत करना हो, गरीब लोगों की अनाज की समस्या ठीक करनी हो, तो हमें बफर स्टाक को बेहतर करना ही पड़ेगा। एक बात बतायी गयी कि आप यहां के किसानों को साढ़े छ: सौ और सात सौ रूपए देते हें और बाहर से जो अनाज लेते हैं, उनको आप ज्यादा पैसा आप दिए। मैं सदन के सामने बताना चाहता हूं कि जो हम बाहर के किसानों को कीमत देते हैं, उसका सिस्टम अलग है। उसका सिस्टम यह है कि पूरे देश में फूड कारपोरेशन आफ इंडिया गेहूं प्रोक्योर करता है, पूरे देश के गोदामों को भेजता है। मुझे पंजाब और हरियाणा से साउथ में एक क्िंवटल गेहूं भेजने के लिए १४० से १५० रूपए टन ट्रांसपोर्ट कास्ट आती है। शुरू में परचेज के बाद मंडी के चार्जेज, उसके बाद बारदाना चार्जेज, उसके बाद कमीशन, कमीशन के बाद लोडिंग, लोडिंग के बाद ट्रांसपोर्टेशन, उसके बाद अनलोडिंग, वहां के गोदामों में रखना, वहां एक साल रखने के बाद इसका इंट्रेस्ट, यह सब मिलाकर डोमेस्टिक परचेजेज में इसकी कीमत ग्यारह हजार कुछ रूपए प्रति टन हे और जिसकी कीमत क्विटंल में डोमेस्टिक परचेज में ग्यारह सौ रूपए के आसपास पड़ती है। विदेश से परचेज किया गया, इसकी डिलेवरी चेन्नई, मुंबई, कालीकट, तूतीकोरन और विशाखापत्तनम, इस एरिया में, बाद में कांडला के बारे में भी हम सोच रहे हैं, यहां लाने के बाद वहां से डिस्ट्रीब्यूट करके गोदाम में रखने की जो टोटल प्राइज आती है, वह ९९७ रूपए के आसपास आती है। डोमेस्टिक प्राइज १११० के आसपास आती है और इंपोट की प्राइज ९९७ के आसपास आती है। आपने यह सुझाव दिया कि यहां सात सौ दिया गया, इससे ज्यादा क्यों नहीं कर सकते थे? मगर ज्यादा करने के बाद अल्टीमेटली उपभोक्ता का इंट्रेस्ट हम कैसे सेव कर सकते थे? मनिमम सपोट प्राइज देने की जिम्मेदारी मेरी है। डिस्ट्रेस सेल नहीं होना चाहिए, यह मेरी जिम्मेदारी है, ज्यादा बोनस देने की आवश्यकता है, यह चीफ मनिस्टर का सुझाव आया है, इस पर अमल करने की जिम्मेदारी मेरी है। मगर इसके साथ-साथ एबनार्मल भार जो अल्टीमेटली उपभेक्ता पर पड़ेगा, ऐसी परिस्थिति यहां पर नहीं आने देंगे, इस पर भी हमें ध्यान देना होगा, इसीलिए आज इंपोर्ट करने की नौबत आयी।

As the Agriculture Minister, I am the most unhappiest person that I have to import.  But I have no choice. As the Minister for Food, it is my responsibility to protect the interest of the consumers and provide sufficient food and keep sufficient buffer stock through which we can face any eventuality tomorrow.  That is the reason why such a decision has been taken by the Government of India.  I am confident that we will be able to fulfil our requirement, the responsibility to provide sufficient food grains to each and every person who got every right to ask food grains from our side. 

इसमें यह काम है। दूसरा जैसे गेहूं की कमी हो गयी। तीसरा इस साल पैडी परचेज की स्थिति बहुत सुधरी है। कभी इतने बड़े पैमाने पर परचेज नहीं हुआ था, जितना इस साल इसमें हुआ है। पैडी का राइस जो टोटल परचेजेज हैं, हमेशा इससे पहले हम पंजाब, हरियाण और वेस्ट यूपी से खरीदते थे। दो साल से हमारा ध्यान इस ओर है कि हम डीसेंट्रलाइज्ड मैनर प्रोक्योरमेंट कैसे कर सकते हैं? मुझे खुशी है कि इस साल पंजाब तो पहले नंबर पर है, मगर दो नंबर इस समय छत्तीसगढ़ का है, हरियाणा का नहीं है। तीसरा नंबर आंध्रा प्रदेश का है, चार नंबर उड़ीसा का है, पांचवां नंबर वेस्ट बंगाल का है और इस साल बिहार ने भी हमें सहयोग दिया है। हमें हरियाणा ने भी सहयोग दिया। जिन राज्यों में कभी प्रोक्योरमेंट की स्थिति नहीं थी। आज उड़ीसा, वेस्ट बंगाल, बिहार, इन तीन राज्यों को मुझे चावल भेजने की कोई आवश्यकता नहीं है। इतना बड़ा योगदान वहां के किसानों ने, वहां की सरकारों ने किया। वहां परिस्थिति बहुत सुधरी है। इसलिए आज मेरे पास राइस का ज्यादा स्टाक है। जिन राज्यों को ज्यादा राइस की आवश्यकता हे, वहां का गेहूं कम करके हम वहां ज्यादा राइस दे करके वहां की स्थिति में सुधार करेंगे।

साथ-साथ हमने कोर्स ग्रेन प्रोक्योरमैंट में ध्यान दिया है। हमारे पास पिछला दस लाख का स्टॉक है और इस साल राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, आंध्रा प्रदेश, कर्नाटक, इन राज्यों में कोर्स ग्रेन का ज्यादा एरिया कैसे आ सकता है, चाहे बाजरा हो, चाहे ज्वार हो, इन्हें खरीदने का इंतजाम भी हम करते हैं जिससे बफर स्टॉक की परिस्थिति को सुधारने की हमारी कोशिश रहेगी। इस तरह हमने इसमें कमद उठाए हैं।

मैं एक बात बताना चाहता हूं कि पंजाब और हरियाणा जो हमारी ग्रेनरी है, उससे बार-बार गेहूं और चावल की फसल लेने से एक बुरी परिस्थिति पैदा हुई है क्योंकि ग्राउंड वाटर लैवल बहुत नीचे जा रहा है, सॉयल टैक्सचर खराब हो रहा है और स्टैगनेशन की स्थिति पर पहुंचा है। इसमें कुछ न कुछ सुधार करना होगा। इसके लिए बाकी राज्यों को फूडग्रेन्स की पैदावार में ध्यान देने की आवश्यकता है। आज उत्तर प्रदेश में इतने बड़े पैमाने पर गेहूं पैदा होता है, लेकिन उत्तर प्रदेश ने इस साल भारत सरकार को टोटल टोटल सप्लाई सिर्फ पचास हजार टन की है। उत्तर प्रदेश के पूरे राज्य की फूडग्रेन्स की रिक्वायरमैंट ९२ लाख टन है। जिस राज्य में सबसे ज्यादा गेहूं पैदा होता है, वह राज्य सैंट्रल गवर्नमैंट की किटी को पचास हजार टन देगा और कहेगा कि मेरे लोगों को अनाज देने की जिम्मेदारी आप पूरी करें, वह करेंगे और उसे पूरा करने के लिए आप पंजाब से मांगें। बार-बार पंजाब के किसानों पर इतना बोझ डालना ठीक नहीं होगा। हम लोगों को डीसैंट्रलाइज़ मैनर में गेहूं, चावल कोर्स ग्रेन करना पड़ेगा, नहीं तो कुछ राज्य सिर्फ महंगी क्रॉप पैदा करेंगे और कुछ राज्यों में सिर्फ फूड ग्रेन बनाने का काम रहेगा। इससे उन राज्यों की स्थिति खराब हो जाएगी। आज पंजाब में सबसे ज्यादा फाइनैंशियल बर्डन इनडैटेडनैस पंजाब के किसानों पर है।

आज के टि्रब्यून अखबार में एक आर्टीकल है। उसमें लिखा है कि हर साल पंजाब में एक मीटर ग्राउंट लैवल नीचे जा रहा है। अगर इस देश में दो-तीन साल बाद भी यह समस्या रही तो भूख की समस्या पैदा हो सकती है। इसलिए हम सब राज्यों को इस पर ध्यान देने और काम करने की आवश्यकता है। चाहे फूड ग्रेन्स की समस्या हो, चाहे किसानों की आत्महत्या की समस्या हो, इसे नेशनल समस्या समझकर देखना होगा, राजनीतिक परिस्थिति नहीं लानी होगी। साथ ही हर राज्य को अपनी जिम्मेदारी समझकर खेती के क्षेत्र में ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। भारत सरकार उन्हें पूरा सहयोग देगी, यही विश्वास मैं सदन के माध्यम से देश के किसानों को देना चाहता हूं।…( व्यवधान)                                     

सभापति महोदय :  अब बात समाप्त हो गई है।

…( व्यवधान)

श्री भँवर सिंह डांगावास : कृषि में इनपुट्स की कीमत घटा दीजिए। लाभ पर फसल नहीं मिल रही है। …( व्यवधान)   आप ब्याज की बात कह रहे हैं, आपको मूल भी नहीं मिलेगा।…( व्यवधान) 

सभापति महोदय : मद संख्या ४०।

…( व्यवधान)

सभापति महोदय :  आपने बहुत लम्बा भाषण कर लिया।

…( व्यवधान)

श्री रामजीलाल सुमन (फ़िरोज़ाबाद) : मैं सिर्फ यह निवेदन करना चाहता हूं कि कृषि मंत्री जी ने बताया कि प्रधानमंत्रीजी की अध्यक्षता में वभिन्न मंत्रालयों की कमेटी बनाई गई है। मैं कृषि मंत्री जी से जानना चाहता हूं कि सिंचाई की तमाम जो परियाजनाएं लम्बे समय से लंबित हैं, उन्हें पूरा करने के लिए प्रधान मंत्री जी की अध्यक्षता में जो कमेटी बनाई गई है, क्या वह कारगर प्रयास कर रही है?…( व्यवधान) 

सभापति महोदय : वह करेंगे।

 

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