Presentation Of The 13 Th Report Of The Business Advisory Committee. on 28 July, 2005

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Lok Sabha Debates
Presentation Of The 13 Th Report Of The Business Advisory Committee. on 28 July, 2005


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Title: Presentation of the 13th Report of the Business Advisory Committee.

 

17.46 hrs.   BUSINESS ADVISORY COMMITTEE

Thirteenth Report

 

MR. CHAIRMAN : Shri Santosh Gangwar may kindly present the Thirteenth Report of the Business Advisory Committee.

SHRI SANTOSH GANGWAR (BAREILLY): Sir, I beg to present the Thirteenth Report of the Business Advisory Committee.

———

17.47 hrs.

 Natural Calamities in the country – contd.

 

*m10

श्र्ाी राजाराम पाल (बिल्हौर) : सभापति महोदय, आपने मुझे प्राकृतिक आपदा, जो एक राष्ट्रीय समस्या है, के विषय पर बोलने का मौका दिया इसके लिए मैं आपका धन्यवाद करता हूं। मैंने माननीय सदस्यों की चर्चा कल से आज तक सुनी है और गत वर्ष से मानसून सत्र में जो चर्चा सुनी है उससे ऐसा लगता है कि जैसे प्राकृतिक आपदा पर ही नहीं किसी भी राष्ट्रीय समस्या पर न सदन गंभीर है और न हम लोग गंभीर हैं। वास्तव में प्राकृतिक आपदा जो आज से नहीं हजारों वर्षों से आ रही है, उस प्राकृतिक आपदा के लिए आजादी से पहले से हमारे लोग जितने अवेयर थे और उस आपदा से निपटने के लिए सक्षम थे। लेकिन आज इतने हजारों और करोड़ों रुपए राष्ट्रीय सहायता मिलने के बाद भी वे हमें बेचारे नजर आते हैं। मैं आपके माध्यम से एक ही बात कहना चाहता हूं कि यह राष्ट्रीय समस्या है। प्राकृतिक आपदा अचानक नहीं आती है। कुछ आपदाएं तो ऐसी हैं जिनकी तथि ज्ञात होती है कि दस-पन्द्रह दिन, एक महीने बाद या इसके आगे पीछे हो सकती हैं लेकिन उसका आना तय है। इसके बावजूद भी, आजादी के ५७ साल के बाद भी, न तो राज्य सरकारें और न केंद्र सरकार उस आपदा से निपटने के लिए स्थायी हल निकालने के लिए गंभीर नजर नहीं आती हैं। इस गंभीरता को न लेने के कारण मैं एक नतीजे पर पहुंचा हूं, वह नतीजा यह है कि प्राकृतिक आपदाएं जो आती हैं, उन गरीब मजलूम और कमजोर लोगों पर आती हैं जिनके प्रति आजादी के ५७ साल बाद जो भी केंद्र सरकारें रही हैं, उनकी बेहतरी के लिए कोई काम नहीं करना चाहतीं, मात्र रस्म अदायगी करना चाहती हैं।

महोदय, अगर वास्तव में उन गरीबों के प्रति, आजादी के ५७ साल के बाद हमारी जवाबदारी है। यह संविधान की मंशा है और यह हमारी प्रस्तावना में निश्चित था, क्या हम उनके प्रति आज तक गंभीर हो पाए हैं? इस पर भी आज विचार करने की जरूरत है। इस देश के संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर ने ठीक कहा था कि किसी देश का संविधान कितना ही अच्छा क्यों न हो, लेकिन अगर लागू करने वालों की मंशा ठीक नहीं होगी तो संविधान बेकार साबित होगा।

आज राष्ट्रीय प्राकृतिक आपदा के बारे में मैं कहना चाहूंगा कि हमारी राज्य सरकारें और केन्द्र सरकार भी उतनी गंभीर नहीं है। उसके पीछे एक ही कारण है कि जिस राज्य में प्राकृतिक आपदा आती है, पता चला कि केन्द्र में उसकी सरकार नहीं है। इसलिए केन्द्र उसके प्रति गंभीर नहीं होता। जिस राज्य में जिस इलाके में वह आपदा आती है, पता चला कि राज्य सरकार और वहां के एम.पी. या एम.एल.ए. नहीं जाते। उधर उसका वोट बैंक नहीं है इसलिए वे नहीं जाते। मैं इस सदन के माध्यम से कहना चाहता हूं कि यह देश हम सबका है और जिस सदन में हम चुनकर आए हैं, इस देश के जिन लोगों ने जिस मंशा से देश को आज़ाद करवाया था, आज़ादी के ५७ साल बाद भी उसको कायम रखने में हम अक्षम रहे हैं। इसको हमें बखूबी मानना चाहिए। हमें संसद में बैठकर इस देश के प्रति गंभीर होना पड़ेगा। हर समस्या के प्रति गंभीर होना पड़ेगा और इन प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए हमें कोई स्थायी हल ढूंढने की आवश्यकता है। इस पर गंभीर चिन्तन करने की आवश्यकता है। चूंकि हमारे तमाम माननीय सदस्यों ने एक ही बात कही है कि ऐसा लगता है कि जैसे हर साल मानसून सत्र में प्राकृतिक आपदाओं के बारे में हम यहां पर सदन में बैठकर चिन्ता कर लेते हैं लेकिन वास्तव में क्या हम उन लोगों के प्रति उतने संवेदनशील हैं जहां बार बार प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं? आज पूरे देश में कई प्रदेश ऐसे हैं जहां बाढ़ आई है। महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर बाढ़ से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। बिहार के बारे में मैं लगातार सुनता आया हूं कि उधर प्राकृतिक आपदा नियति बन गई है, बिहार के लोग उसका सामने करने को अपनी नियति मान चुके हैं। उत्तर प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है। उसमें आज दर्जनों जनपद ऐसे हैं जो बाढ़ की चपेट में आ गए हैं और हजारों लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।

मान्यवर, हमारे उत्तर प्रदेश में गंगा, यमुना, बेतवा, केन आदि नदियां हैं। ये तमाम ऐसी नदियां हैं जो हर साल अपना कहर बरपाने का काम करती हैं। अगर हम इस दैवी आपदा के कारणों का गंभीर चिंतन करें तो पाएंगे कि हम बराबर प्रकृति से खिलवाड़ करने का काम कर रहे हैं। हमारे पास एक समय जो जल संचयन की क्षमता थी, गांवों में तालाब थे, नदियां थी, उनकी गहराई बालू के कारण कम हो गई है। इस कारण बाढ़ रोकने की उनकी क्षमता समाप्त हो गई है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने नदियों को जोड़ने के बारे में बड़े पैमाने पर बल देने का काम किया। यह बात सही है कि नदियों के जोड़ने से भी इस समस्या का सही हल ढूंढा जा सकता है। मैं आपके माध्यम से कहना चाहता हूं कि उत्तर प्रदेश में बांदा जनपद में कैन नदी ने जिस तरह का कहर बरपाया है, उससे सैकड़ों लोगों की जानें गई हैं, हजारों मवेशी मारे गए हैं। बहराइच में घाघरा नदी ने तमाम गावों को काल का ग्रास बना लिया। कानपुर जनपद में गंगा नदी पर बैराज इस उद्देश्य से बनाया गया था कि यहां पानी का जल स्तर बड़े पैमाने पर कानपुर में घट रहा है, पेयजल की गंभीर समस्या है[h55] ।

[MSOffice56] 

पेयजल की गंभीर समस्या है। लगभग चार सौ करोङ रुपए उस बैराज में लगाए गए थे ताकि लोगों को अच्छा पीने का पानी मिल सके और जल स्तर जो गिर रहा है, उसे गिरने से रोका जा सके। जल स्तर को घटने से रोकने की बात तो छोड़िए, पेयजल मुहैया कराने की बात तो छोड़िए, हमारे गंगा बैराज के जिम्मेदार अधिकारियों ने तकनीकी कमी के कारण बैराज के निर्माण में जो पैसा लगना चाहिए था, उसमें बड़े पैमाने पर घोटाला करने का काम किया है। बैराज के बनने से जो गांव हजारों सालों से गंगा नदी के तट पर बसे हुए थे, जिनमें आज तक गंगा का पानी नहीं गया था।

सभापति महोदय : राजा राम पाल जी समस्या और कारणों पर काफी चर्चा हो चुकी है, अब कुछ सुझाव आने चाहिए।

श्री राजाराम पाल : मान्यवर, बैराज के कारण हमारे दर्जनों गांव पूरी तरह से गंगा के काल के गाल में जा चुके हैं। हजारों एकड़ उपजाऊ जमीन गंगा नदी बहा ले गई है। दर्जनों गांव जैसे देबिनपुरुवा, गिन्निपुरवा, दल्लापुरवा, सम्भरपुरवा, रामपुर, रामानिहालपुरवा आदि गांवों में एक भी मकान साबुत नहीं बचा है। गंगा के कटावन् के कारण उपजाऊ भूमि गंगा में चली गई है। लगभग डेढ़ हजार परिवार कानपुर के वभिन्न स्कूलों में ठहरे हुए हैं। पशुओं के खाने की व्यवस्था नहीं है। लोग आज भूखों मरने की कगार पर हैं। आज प्रशासन उन डेढ़ हजार परिवारों के लिए कोई स्थायी व्यवस्था नहीं कर पा रहा है। अलबत्ता प्रशासन उन्हें वापस लौट जाने को कह रहा है। गंगा नदी के कारण उनके मकान बह चुके हैं और वे वहां बसने की स्थिति में नहीं हैं। मैं आपके माध्यम से यह कहना चाहता हूं कि उत्तर प्रदेश सरकार उन पीड़ित लोगों के प्रति उतनी गंभीर नहीं है। इसलिए मैं आपके माध्यम से मांग करता हूं कि मेरे निर्वाचन क्षेत्र बिल्हौर के कटरी में बाढ़ के कारण बेघर हुए लोगों को पुनर्वास करने के लिए स्पेशल पैकेज देकर उनको बसाने का प्रबंध किया जाए। मैं आपके माध्यम से यह मांग करता हूं।

 

*m11

श्री सीताराम सिंह (शिवहर) : सभापति महोदय, मैं आपका आभार प्रकट करता हूं कि इस महत्वपूर्ण विषय पर बोलने के लिए आपने मुझे मौका दिया। यह विषय देश और विशेषकर बिहार के लिए भी महत्वपूर्ण है।

17.59 hrs.                           (Mr. Deputy. Speaker i n the Chair)

महोदय, कल से चर्चा हो रही है और मैं बड़े ध्यान से उसे सुन रहा हूं।मैं दो-चार बिंदुओं पर अपने सुझाव देना चाहता हूं। माननीय सदस्य ठीक बोल रहे थे कि प्राकृतिक आपदा दो तरह की होती है, एक तो वह जो अचानक आती है और दूसरी वह जो प्रतिवर्ष आनी तय है। जो अचानक आती है, मैं उसके बारे में कहना चाहता हूं। यह देश विज्ञान की द्ृष्टि से बहुत आगे बढ़ा है। नई-नई तकनीकें आयी है[MSOffice57] ।

18.00 hrs.

MR. DEPUTY-SPEAKER: Shri Sitaram Singh, please wait a minute. Twenty-two hon. Members are yet to speak. आप देख लें कि किस हिसाब से बोलना है। रिप्लाई भी आज ही होना है।

श्री खारबेल स्वाईं (बालासोर) :  उपाध्यक्ष महोदय, आज आठ बजे तक समय बढ़ा दीजिए। जितने माननीय सदस्य बोल सकते हैं, बोल लेंगे। रिप्लाई कल हो जाएगा।…( व्यवधान) 

THE MINISTER OF STATE IN THE MINISTRY OF DEFENCE AND MINISTER OF STATE IN THE MINISTRY OF PARLIAMENTARY AFFAIRS (SHRI BIJOY HANDIQUE): Sir, we can extend the time of the House up to seven o’clock and then see later whether we have to extend it again. … (Interruptions)

उपाध्यक्ष महोदय : पहले एक घंटे का समय बढ़ा लेते हैं। रिप्लाई भी आज ही होगा।

श्री देवेन्द्र प्रसाद यादव (झंझारपुर) : आज चर्चा पूरी हो जाए। अगर संभव नहीं हो पाया तो जवाब कल हो जाएगा।

उपाध्यक्ष महोदय : जवाब आज होना है।

श्री संतोष गंगवार (बरेली) : उपाध्यक्ष महोदय, मूवर तो एक घंटा बोलते हैं और हमें आप पांच मिनट से भी कम का समय दे रहे हैं। सब माननीय सदस्य बोलना चाहते हैं। आप हाउस आठ बजे तक चलाइए।…( व्यवधान) 

उपाध्यक्ष महोदय : अभी एक घंटे का समय बढ़ा देते हैं। कोशिश करेंगे कि जल्दी क्लोज़ करें।

…( व्यवधान)

SHRI BIJOY HANDIQUE: For the time being, let us extend the time up to seven o’clock; and, if necessary, we can extend it again later. We should try to finish this discussion today. … (Interruptions)

श्री खारबेल स्वाईं : बीएसी में भी तय हुआ था कि हाउस देर तक चलाएंगे, लेकिन फिर ऐडजर्न कर दिया गया। कल भी हाउस देर तक चलना चाहिए था। हमारे काफी सदस्य बोलना चाहते हैं। कल मैं तीन मिनट के लिए बाहर गया था, उसी समय हाउस ऐडजर्न कर दिया गया।…( व्यवधान) 

SHRI BIJOY HANDIQUE: I am for concluding this discussion, including the reply today. Please rest assured. … (Interruptions)

चौधरी लाल सिंह (उधमपुर) : उपाध्यक्ष महोदय, आप हाउस का समय बढ़ा दीजिए।…( व्यवधान) 

उपाध्यक्ष महोदय : एक घंटे का समय बढ़ा देते हैं, बाद में देखेंगे।

…( व्यवधान)

श्री सीताराम सिंह :  उपाध्यक्ष महोदय, मैं कह रहा था कि विज्ञान बहुत आगे बढ़ गया है, लेकिन हमारे देश में अभी यह जानकारी नहीं है कि आने वाले दो-चार दिनों में कौन सी प्राकृतिक आपदा आने वाली है, सुनामी की तरह या मुम्बई की तरह।…( व्यवधान) 

MR. DEPUTY-SPEAKER: Shri Sitaram Singh, you have only five minutes’ time.

श्री सीताराम सिंह : ठीक है, मैं प्वाइंट्स ही बोलूंगा। हम बहुत कम बोलते हैं, इसलिए हमारा दो-चार मिनट का समय बढ़ा दीजिए।…( व्यवधान) 

मुम्बई में वर्षा हो रही है। मौसम विभाग प्रतदिन बोलता है कि यहां वर्षा होगी, वहां वर्षा होगी। मैं समझता हूं कि दिल्ली के बाद मुम्बई इस देश का सबसे महत्वपूर्ण शहर है। लेकिन वहां वर्षा थोड़ी ज्यादा हुई तो सड़कों पर तीन-तीन फीट पानी कैसे भर गया। क्यों नहीं वहां की नालियां इस तरह की बनाई गईं जिससे वर्षा का पानी अपनी सतह पर चला जाता। मैं सुझाव देना चाहता हूं कि सरकार को इस बारे में सजग होना पड़ेगा।

जहां प्राकृतिक आपदा प्रति वर्ष आती है, उसमें बिहार है। बिहार में प्रति वर्ष बाढ़ आना तय है। ऐसा लगता है कि इस बार देर से आएगी। पिछले वर्ष तो बाढ़ ने कोहराम मचा दिया था। प्रति वर्ष बाढ़ से हमारी तबाही होती है, कुछ इलाके सूखे से प्रभावित होते हैं, उनके बारे में मैं बाद में बोलूंगा, पहले बाढ़ के विषय पर बोलना चाहता हूं। वहां वर्षों से बाढ़ आती है, बर्बादी होती है, सड़कें टूटती हैं, किसान और मजदूर तबाह होते हैं, गांव और शहर तबाह होते हैं।

बाढ़ नेपाल से आती है। भारत सरकार को नेपाल से बात करने का काम करना चाहिए। जब से हमें आजादी मिली, तब से भारत सरकार इस बारे में कभी गंभीर नहीं हुई। कभी नहीं सोचा कि बाढ़ से प्रति वर्ष जो बर्बादी होती है, उस पर हम काफी रुपया खर्च करते हैं, तो क्यों नहीं नेपाल सरकार से बात करके इसका कोई स्थायी निदान निकालें।

मैंने कई बार, कई माध्यमों से सदन में अपनी बात रखने का प्रयास किया। आज मैं बहुत कम शब्दों में कहना चाहता हूं कि इस तरह की आपदा से बचने के लिए भारत सरकार ने कुछ प्रयास किया है। सात जगहों पर अपने दफ्तर खोले हैं, लेकिन दफ्तर खोलने मात्र से नहीं होगा, आप उस दिशा में प्रयास करें[R58]  ।और  प्रयास करके भारत सरकार के साथ अपने टेक्नोक्रेट्स को बैठाकर बात करें कि कैसे हम बाढ़ का स्थायी निदान करें ताकि नदी का पानी सिंचाई और बिजली बनाने में काम आये, लोगों को बर्बाद करने के काम में न आये। मै सरकार से आग्रह करना चाहता हूं कि इसका कोई न कोई स्थायी निदान निकाला जाये। तीसरी बात यह है कि राज्य सरकार और भारत सरकार ने जो बांध तैयार किये हैं, वे आज बिल्कुल अस्तव्यस्त की स्थिति में है। जितनी भी नदियां हैं चाहे वह बागमती हो, कोसी हो, अदवारा हो, सिकराना हो या गंगा हो, वहां बाढ़ से बचाव के लिए जो बांध बांधे गये, वे आज बिल्कुल बुरी हालत में है। पिछले वर्ष की बाढ़ में अकेले हमारे लोक सभा क्षेत्र में १० जगहों पर बांध टूटा। उन बांधों के टूटने से जितनी बर्बादी हुई, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता, उसकी भरपाई नहीं हो सकती। क्योंक जब से वह बना है तब से उसकी मरम्मत नहीं हुई। इस बार सरकार ने ऐलान किया कि हम पैसा दे रहे हैं लेकिन एक इंच भी बांध की मरम्मत नहीं हो सकी। कई जगहों पर सुलिसगेट की आवश्यकता है,लेकिन वह तब से खाली पड़ा है। वह आज तक नहीं बन पाया। कुछ जगह पर बनाने का प्रयास हुआ तो उसका नट वगैरह गायब हो गया। आज सरकार इस पर गंभीर नहीं है जिसके कारण सरकार का जो इन्फ्रास्ट्रक्चर है, जो बांध बांधे गये हैं, वे सब अस्तव्यस्त स्थिति में है। मैं सरकार को सलाह दूंगा कि आपकी जितनी एजेंसियां हैं,अब भारत सरकार की एजेंसी है, उसने गंगा परियोजना करके एक थिंक टैंक बनाया हुआ है। हमारे यहां लोक सभा क्षेत्र ढाका के गोआबारी में एक बांध आजादी के पहले से बना है। वह बांध लाखों लोगों की रक्षा कर रहा है। पिछले साल वह बाढ़ में टूट गया तो उससे काफी बर्बादी हुई।

उपाध्यक्ष महोदय:   अब आप कन्कलूड कीजिए।

…( व्यवधान)

श्री सीताराम सिंह : मैं आपको दुबारा बोलने का मौका नहीं दूंगा। आप हमें दो मिनट बोलने दीजिए। उन बांधों को बांधने की बात हुई तो बिहार सरकार ने कहा कि बांध दिया जायेगा लेकिन भारत सरकार की केन्द्रीय टीम वहां गयी तो उसने कहा कि इस बांध को बांधने से कोई लाभ होने वाला नहीं है और उसे बांधने नहीं दिया। खैरियत है क पानी अभी नहीं आया। अगर आ जाये तो मैं समझता हूं कि वह दस लाख की आबादी को बर्बाद करेगा। यह क्या सोच है?  इस बात को मैंने कमेटी की बैठक में भी उठाया था लेकिन वह आज तक नहीं हुआ॥ मैं कहना चाहता हूं कि बाढ़ से होने वाली तबाही से बचाने के लिए जिन राज्यों में भी ऐसी समस्या है, हमारे बिहार में तो है, मैं चाहूंगा कि कोसी, अदवारा, बागमती से लेकर इन तमाम बांधों को दुरस्त किया जाये और जहां गैप है, उसको ठीक किया जाये।

महोदय, प्राकृतिक आपदा हमारे यहां दूसरे रूप में यानी सूखे के रूप में भी आती है। इस साल भी सूखा पड़ रहा है। हमारा आधा इलाका सूखे से ग्रस्त हो जाता है। तीसरा, जल जमाव की समस्या अलग है। बरसों से यह प्रयास होता रहा कि सिंचाई की बेहतर सुविधा दी जाये। कुछ सुविधा देने का प्रयास भी हुआ लेकिन बिहार सरकार के पास संसाधन कम थे। भारत सरकार को जिस रूप में संसाधन देना चाहिए, पैसा देना चाहिए, उसकी अब तक उपेक्षा होती रही है। मैं इसे बहुत विश्लेषित करूं तो ज्यादा अच्छा नहीं होगा क्योंकि समय कम है। मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि भारत सरकार को सिंचाई उपलब्ध कराने के लिए उन राज्यों में जिसमें बिहार एक नम्बर पर आता है, उसमें अधिक से अधिक पैसा दे जिससे सिंचाई और सूखे से निपटने की व्यवस्था हो जाये तो इससे किसान और गांव का हित होगा।

तीसरी बात मैं यह कहना चाहूंगा कि एक इलाका हमारे बिहार में है पटना का मोकामा टाल है। उसकी वचित्र स्थिति है। उसको भी सरकार समेकित रूप से दिखलाना चाहती थी मगर कर नहीं पाई। मैं आग्रह करूंगा कि सरकार इसको समेकित रूप से दिखलाकर वहां के किसानों के हित के लिए उसे समतल करने और सिंचाई उपलब्ध कराने के लिए कार्रवाई करेगी। इसके अलावा हमारे इलाके में कुछ बातें ऐसी हैं जिसे मैं कहना उचित समझता हूं। महोदय इस बार हमारे यहां बाढ़ से तबाही कम हुई लेकिन दो-तीन जिले ऐसे हैं जहां आप चाहकर भी नहीं जा सकते। वहां ट्रेन की सुविधा भी लम्बे रूट से है। एनएच पर भी अभी ढाई-तीन फीट पानी आ गया है[r59] ।

पिछले साल से वह प्रयास हो रहा है। स्वयं उसमें एनएच के मनिस्टर लोग भी गये थे जब बाढ़ आई थी। लाख प्रयास किये गये लेकिन मुजफ्पऱपुर कमिश्नरी शहर है और सीतामढ़ी जिला का शहर है। लेकिन आज तक फिर उस पर तीन फीट पानी बढ़ रहा है। आप वहां नहीं जा सकते। मैं सरकार का ध्यान उस ओर आकृष्ट करना चाहता हूं कि इस पर विशेष ध्यान देकर उस रास्ते को चालू करने के लिए प्रयास करें। यह प्राकृतिक आपदा समझी हुई है और सरकार इसे अपने आप से देख रही है। जनता तो भुगत रही है लेकिन इसका निदान नहीं निकल रहा है। मैं चाहूंगा कि सरकार इस दिशा में ध्यान देगी।

श्री रामदास आठवले (पंढरपुर) : उपाध्यक्ष महोदय, मुझे भी बोलने का अवसर दिया जाए।…( व्यवधान) 

उपाध्यक्ष महोदय : रामदास जी, आप बैठ जाइए। मैं बाद में आपको समय दूंगा।

…( व्यवधान)

MR. DEPUTY-SPEAKER: Mr. Athawale, I assure you that I will give you time to speak on this issue. I will try my best to accommodate you.

*m12

श्री राकेश सिंह (जबलपुर) : उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपके प्रति आभार व्यक्त करना चाहता हूं कि आपने मुझे बोलने का अवसर दिया। पिछले दो दिनों से यह पूरा सदन प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अपनी चिंता व्यक्त कर रहा है। प्राकृतिक आपदाएं पहले भी आई हैं, आती रहती है और ये किसी एक राज्य तक सीमित नहीं हैं। ये एक ही समय में अलग-अलग राज्यों में या अलग-अलग समय पर आती रही हैं। इनका प्रकोप बहुत भीषण रूप से पूरे देश में होता रहा है लेकिन क्या हम यही मान लें कि चूंकि इन पर हमारा बस नहीं है, इसलिए हम इन प्राकृतिक आपदाओं को और उनसे होने वाले नुकसान को झेलते रहें और उनसे होने वाले नुकसान का आकलन करके राहत कार्यों को प्रारम्भ करते रहें ? लगभग प्रत्येक वर्ष ही ये प्राकृतिक आपदाएं आती हैं। कोई भी साल बाकी नहीं है जब देश के किसी न किसी हिस्से में कहीं बाढ़ का या कहीं सूखे का प्रकोप न हुआ हो। लेकिन इनसे सबक लेकर कोई स्थायी समाधान किया जाए, ऐसा प्रयास सरकार का दिखाई नहीं दे रहा है और न ही ऐसी किसी योजना पर सरकार विचार कर रही है, ऐसा दिखाई दे रहा है। यह बहुत ही चिंताजनक स्थिति है क्योंकि देश का कोई भी भाग इस द्ृष्टि से सुरक्षित नहीं है। जिन राज्यों को हम यह मानते थे कि इनमें प्राकृतिक प्रकोप नहीं होता, वे राज्य भी अब उस गिनती में बढ़ते जा रहे हैं। अभी-अभी मुम्बई में हुई भारी वर्षा इस बात का प्रमाण है और साथ ही एक बार फिर से यह साबित हो गया है कि हमारा पूरा तंत्र इन प्राकृतिक आपदाओं से निपटने मे अक्षम है। हम बाद में राहत कार्यों के लिए सिर्फ दिनों की अवधि बढ़ाने के अलावा और कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं।

महोदय, पहली बार इस देश में माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने इसके प्रति अपनी इच्छा-शक्ति का परिचय दिया था औऱ एक दीर्घकालिक योजना, नदियों को जोड़ने वाली योजना पर विचार प्रारम्भ किया था। अगर इस योजना पर आगे भी काम हो तो निश्चित रूप से न सिर्फ बाढ़ से मुक्ति पाई जा सकती है बल्कि देश के जिन हिस्सों में सूखा पड़ता है, वहां पर भी हरित-क्रांति हो सकती है। लेकिन बहुत अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि यह सरकार इस योजना के प्रति गंभीर दिखाई नहीं पड़ रही है। मैं यह कहना चाहता हूं कि वह योजना ही ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। यह बहुत चिंता का विषय है क्योंकि जब प्राकृतिक आपदाओं का कहर टूटता है तो उससे सर्वाधिक मध्यम वर्गीय तथा गरीब लोग प्रभावित होते हैं। ये वे लोग होते हैं जो उन प्राकृतिक आपदाओं के बाद सिर्फ मदद पर निर्भर होकर रह जाते हैं[R60] ।

 पर्यावरण संतुलन के लिए हमारा देश पूरी दुनिया में जाना जाता था। सबसे अच्छा मौसम सबसे अच्छा  पर्यावरण हमारे देश का माना जाता था, लेकिन आज बहुत दुखद स्थिति है कि  पर्यावरण असंतुलन का सबसे ज्यादा असर हमारे देश में हो रहा है। इससे जो हालात पैदा हो रहे हैं उसका असर देश के बहुत ही निर्धन और निचले स्तर के लोगों को भुगतना पड़ रहा है। अभी-अभी मध्य प्रदेश में जो स्थिति उत्पन्न हुई है उससे लगभग १६ जिले प्रभावित हुए हैं जिनमें से ९ जिले सर्वाधिक प्रभावित हैं। लगभग १० लाख से अधिक बीपीएल परिवार इससे प्रभावित हुए हैं और जो एपीएल के लोग हैं वे भी बहुत बड़ी संख्या में इससे प्रभावित हुए हैं, हालांकि बीपीएल परिवारों की स्थिति ज्यादा चिन्ताजनक है क्योंकि उनके पास अब कुछ भी नहीं बचा है – न खाने को अनाज और न सिर छिपाने के लिए जगह। एपीएल लोगों की स्थिति भी लगभग ऐसी ही है, क्योंकि जो भी कुछ भी उनके पास था, बाढ़ के प्रकोप के कारण वह उनके पास बाकी नहीं रह गया है। मेरे अपने लोकसभा क्षेत्र में जहां से मैं चुनकर आता हूँ, वहां पर जबलपुर और कटनी, दोनों स्थान इस अतिवर्षा और बाढ़ से प्रंभावित हुए हैं और वहां भीषण तबाही हुई है। कटनी जिले में अतिवृष्टि से और बाढ़ से दस से अधिक मौतें हो चुकी हैं, सैकड़ों मवेशी बाढ़ में बह गए हैं और हजारों लोग बेघरबार हो गए हैं।पूरा कटनी शहर लगभग पांच दिनों तक बाढ़ में डूबा रहा। मैंने स्वयं अपनी आंखों से देखा है कि जब मकान की पहली मंजिल पानी से डूब गयी तो लोग दूसरी मंजिल पर चले आए और जब पानी दूसरी मंजिल तक भी पहुंच गया तो लोग छत पर जाकर खड़े हो गए, जहां से उनको मोटरबोट और नावों के सहारे बचाया जा सका।मेरे लोकसभा क्षेत्र कटनी के बहोरीवन विधानसभा क्षेत्र में १६०० मिलीमीटर वर्षा हुई।उस क्षेत्र में जहां वर्ष में ५० से ५५ इंच वर्षा होती थी वहां पिछले लगभग १० से १५ दिनों में ६४ इंच वर्षा हुई है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इससे कितनी भीषण तबाही हुई होगी।

पानी की मार से कच्चे मकान तो नष्ट हो ही गये, जो मकान बचे हुए हैं वे भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए हैं और वे किसी भी समय गिरने की स्थिति में आ गए हैं। वहां रहने वाले लोग दोतरफा मार झेल रहे हैं – एक तो उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा है और दूसरी तरफ वे लोग जो क्षतिग्रस्त मकानों में अपने परिवार और छोटे-छोटे बच्चों को लेकर रहते हैं, वे रात-रात भर इस डर से सो नहीं पाते कि पता नहीं कब वह मकान गिर जाए। लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं है क्योंकि पूरा का पूरा गांव ही प्रभावित है। जबलपुर जिले के सिहोरा और पनागर विधानसभा क्षेत्र बाढ़ से अत्यधिक प्रभावित हुए हैं। वहां सैकड़ों मकान गिर गए हैं, खेतों में आज भी पानी भरा है और सैकड़ों मवेशी मारे गए हैं। खेतिहर मजदूरों की स्थिति बहुत बुरी है। उनके लिए यह समय ऐसा होता था जिसमें वे खेतों में काम करके पूरे वर्षाकाल के लिए अनाज एकत्र करते थे जिससे उनका उदरपोषण होता था। लेकिन आज खेतों में पानी भरा हुआ है, खेतों में काम नहीं हो सकता है, ऐसी स्थिति में वे मजदूर जाएं तो कहां जाएं? उनके उदरपोषण का भी संकट खड़ा हो गया है। मैंन अभी जब स्वयं इन क्षेत्रों का दौरा किया तो कई ऐसे गांव देखे जहां पहुंचने का रास्ता सिर्फ और सिर्फ नाव है। नाव भी ऐसी है कि जिसमें एक बार बैठने के बाद स्वयं मैंने भी भय महसूस किया और जब वह नाव बीच धारा में पहुंची तो मैंने महसूस किया कि अगर इस नाव में हल्की सी गड़बड़ी हुई तो शायद मैं लौटकर किनारे तक नहीं पहुंच पाऊंगा।मैंने यह महसूस किया कि जो लोग वहां से रोज अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर आते-जाते हैं, वे किस पीड़ा से गुजर रहे हैं। मध्य प्रदेश सरकार ने ऐसी स्थिति में प्रभावित लोगों के लिए राहतराशि की घोषणा की है। उसके वितरण और तात्कालिक राहत का कार्य प्रारंभ हो गया है। [cmc61] 

लेकिन राज्य सरकार के अपने सीमित संसाधन हैं। वह उन सीमित संसाधनों से इतनी बड़ी संख्या में प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए, उनके रोजगार के लिए और उनकी जरूरतों के लिए सारी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकती, वह भी ऐसी स्थिति में। मेरे अपने लोक सभा क्षेत्र में मात्र दो जिलों जबलपुर और कटनी में ही २५० करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। प्रदेश सरकार प्रभावित लोगों को, जिनके मकान ध्वस्त हो गए हैं, मदद दे रही है, साथ में ३० किलोग्राम अनाज भी दे रही है। अब तक इन कार्यों पर प्रदेश सरकार १०० करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है।

प्राकृतिक प्रकोप जब आते हैं, किसी राज्य को पहचान कर नहीं आते हैं। देश के किसी भी हिस्से में जब कोई प्राकृतिक आपदा आती है, तो वह देश के नागरिक पर आती है और वह उससे प्रभावित होता है। इसलिए जब प्रभावित लोगों को राहत देने की बात की जाए, तो वहां कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए। लेकिन बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि मध्य प्रदेश सरकार को अभी तक केन्द्र से मात्र ९५ करोड़ रुपए की राशि ही उपलब्ध कराई गई है। केन्द्र सरकार के एक मंत्री मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल गए थे और वहां से उन्होंने हेलिकॉप्टर से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया था। बाद में उन्होंने घोषणा की थी कि जो लोग इस आपदा से मारे गए हैं, उनके परिवारजनों को एक-एक लाख रुपए की राशि दी जाएगी। लेकिन आज तक वह घोषणा सिर्फ घोषणा ही रही है, कोई राशि उन मृतकों के आश्रितों को नहीं मिल पाई है।

मेरा मानना है कि इस तरह से किसी भी राज्य के साथ, जो प्राकृतिक आपदा से ग्रस्त हो, ऐसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। सबको समान द्ृष्टि से देखा जाना चाहिए। मैं आपके माध्यम से केन्द्र सरकार से निवेदन कहना चाहता हूं कि मध्य प्रदेश जो पर्यावरण की द्ृष्टि से सबसे ज्यादा संतुलित राज्य है और पूरे देश में सबसे ज्यादा वन क्षेत्र वहां है, उस क्षेत्र को भी पर्यावरणीय असंतुलन का सामना करना पड़ रहा है और उसकी पीड़ा को भोगना पड़ रहा है। इसलिए मैं कहना चाहता हूं कि केन्द्र सरकार मध्य प्रदेश के लिए विशेष आर्थिक सहायता की घोषणा करे। खेतीहर मजदूरों और गरीब किसानों के लिए, जबलपुर तथा कटनी जिलों में काम के बदले अनाज योजना लागू करे, ताकि मजदूरों के उदर पोषण की व्यवस्था हो सके। साथ में इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत बड़ी संख्या में वहां मकान बनाकर बीपीएल परिवारों को दिए जाएं।

उपाध्यक्ष महोदय, मैं इतना ही निवेदन करना चाहता हूं और आपने सदन में मुझे बोलने का मौका दिया, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं।

*m13

चौधरी लाल सिंह (उधमपुर) : उपाध्यक्ष जी, आपकी अपार कृपा से मुझे बोलने का मौका मिला है। मैं ज्यादा समय नहीं लेना चाहूंगा। मैं सबसे पहले यह कहना चाहता हूं कि हमें सबसे पहले बुनियादी बातों की ओर गौर करना चाहिए। फंड तो सारे राज्य मांगते हैं और यहां से वभिन्न दल दौरा भी करते हैं। लेकिन होता क्या है कि महल तो खड़े रहते हैं, लेकिन हर साल झुग्गियां बह जाती हैं, तबाह हो जाती हैं। इसके पीछे जो मूल कारण है, वह यह है कि हमें पहले प्लानिंग करनी चाहिए। जिस जगह पानी बहता है, जो नाले थे, नदियां थीं, दरिया थे, लोकल नाले थे और जो छोटे-मोटे खड्डे थे, चाहे सरकारी हो या गैर सरकारी, एक-एक करके सब ग्रैब कर लिए गए। पूरे हिन्दुस्तान में इतना अतिक्रमण किया गया कि जहां से पानी बहता था, उसका रास्ता रोक लिया गया। जब आप पानी का रास्ता रोकेंगे, तो फिर पानी अपना रास्ता बदलेगा। फिर हम चिल्लाते हैं कि पानी हमारे घरों में आ गया। इसलिए मैं अपने भाइयों से कहना चाहता हूं कि परमात्मा बड़ा है, कुदरत की अगर आप बात करते हैं, नेचुरल केलेमिटी की बात करते हैं, तो कुदरत के साथ ज्यादती करोगे तो फिर डूबोगे नहीं, बह नहीं जाओगे, तो फिर क्या होगा। इसलिए मैं कहना चाहता हूं कि सबसे महत्वपूर्ण पैसा नहीं, प्लानिंग है, वह करनी चाहिए और देखा जाना चाहिए कि हमारे नाले कहां चले गए[R62] ।

 जिस शहर में एक लाख लोगों के लिए जगह नहीं थी आज वहां ५० लाख लोग रह रहे हैं, जहां ५० लाख लोगों के रहने की जगह नहीं थी वहां आज १० करोड़ लोग रह रहे हैं। आज पहली बार मुम्बई वालों ने भी देखा कि पानी आया है। पानी के बढ़ने का कारण यह है कि जंगल सारे काट लिये गये। हर तीसरे आदमी के हाथ में कुल्हाड़ी होती है कि इस जंगल को मैं काट लूंगा, उस पेड़ को मैं काट लूंगा, तो पानी तो आयेगा ही।

हमारे यहां मलिटेंसी आई तो मलिटेंटों ने जंगल काट लिये। उनको रोकने के लिए हमारी आर्मी आई तो उन्होंने भी वही काम किया। पिछली दफा हमारे यहां अवलांचेज आये। वे तो आयेंगे ही जब आप पहाड़ों से पेड़ काट दोगे तो ऐसा तो होगा ही और फिर वहां बर्फ गिरी तो हम लोग मीटर के हिसाब से उसमें दब गये। पहले हमारे यहां बर्फ कहीं १५ फीट थी कहीं १८ फीट थी और पांच या छह महीने पहले जिन गरीब लोगों के मकान बर्फ में धंस गये थे, आपने उनके लिए तो कुछ नहीं किया और नयी प्लानिंग बनाने लगे। हमारी प्लानिंग का नमूना देखो कि हम पिछला तो संभाल नहीं सके, उसको ठीक नहीं कर पाये और आगे प्लानिंग करनी शुरु कर दी। अगर टांग में लग जाए तो मालूम नहीं पड़ता है लेकिन आंख में लगती है तो मालूम पड़ता है। हमारे यहां जहां पहले बिजली जलती थी आज दीया भी नहीं जलता है। आप बशोली को ले लीजिए, बिलावर, बनिहाल, रामबन, कठुआ, गुल-अरनास, डोडा, इंद्रवार, किश्तवार, भद्रवार, चिनेनी के पहाड़ में बिजली नहीं है। मैंने जब वहां का टूर किया तो लोगों ने कहा कि कुछ साल पहले जो हमारे बिजली के पोल टूट गये थे वे अभी तक नहीं लग पाये हैं। पिछला नुकसान पूरा नहीं हुआ और आगे की प्लानिंग कर रहे हैं और प्लानर कौन हैं जो एयर-कंडीशन्ड कमरों में बैठकर प्लानिंग करते हैं। जमीन के लोग प्लानिंग करें तभी काम होगा।

एक आदमी बता रहा था कि उसने किसी से कहा कि मैं एमपी हूं तो वह बोला तो क्या हुआ? हरियाणा की बात कोई सुना रहा था। आपकी जब यह इमेज है तब आप देश को कैसे बचाएंगे? मैं यह कहना चाहता हूं कि आपकी इमेज को खराब करने के लिए जो सीडीज बन रही हैं उनको रोकिये। आप गांव के नाले, नदियों को बचाइये। आपने जमीन से पानी निकाल लिया और फिर कहते हैं कि खुश्की हो गयी। तेल नहीं लगाओगे तो खुश्की होगी ही। जिस जमीन से पानी निकल जाएगा, जिस जमीन से एनर्जी निकल जाएगी तो जमीन में ताकत कहां रहेगी? हमें पानी ग्रैविटी से मिल सकता है और उसके कारण हम सूखे से बच सकते हैं। मैं जो यहां बोल रहा हूं वह भी मैं फोर्मेलिटी कर रहा हूं, होने वाला कुछ भी नहीं है। लोग कहेंगे कि लाल सिंह जी ने दमदार भाषण किया लेकिन भाषण से क्या गरीब का भला होने वाला है, उसका भला तो उसके लिए प्लानिंग बनाने और उस पर इम्प्लीमेंटेशन से ही होगा[r63] ।

 मैं उसी अन्दाज से कह रहा हूं। किसानों की जमीन बह गई। वह हर साल बहती है। एक तरफ एग्रीकल्चर की जमीन कम हो रही है और दूसरी तरफ एग्रीकल्चर खत्म हो रहा है, हॉर्टिकल्चर डैमेज हो गया है। ये टूरिज्म की बातें कर रहे हैं और खूबसूरत बनाने की बातें कर रहे हैं। यहां लम्बी-चौड़ी तकरीरें हुईं। गावों का विकास करने की आवश्यकता है। हर साल साढ़े चार लाख लोग दिल्ली और मुम्बई आते हैं। आप इसे रोकें। अग्रवाल साहब, आप जब तक इसे नहीं रोकेंगे, तब तक कुछ काम नहीं होगा। एक मॉनिटरिंग कमेटी बनाइए। इसका डिपार्टमैंट किस को दिया है? बाढ़ से किसानों की जमीन बह गई, मकान ढह गए, रेवेन्यू रिलीफ वाले आ गए। ३२ डिपार्टमैंट हैं। हिन्दुस्तान में सब ने बहुत बातें की लेकिन ठीक से डिजास्टर मैनेजमैंट नहीं बन पायी है। किसी को पता ही नहीं किस को क्या कहना है? नम्बर मिलाते हैं लेकिन कोई फोन नहीं उठाता है। इनके फ्रॉडयूलैंट कंट्रोल रूम हैं। फोन करोगे तो घंटी बजेगी, अगर वह बजेगी तो बजती रहेगी, नहीं बजेगी तो नहीं बजेगी, यह स्थिति है। उन गरीबों, उन देशवासियों का जिन का असली देश है, आप उनको देखने की कोशिश करें। आपकी बड़ी मेहरबानी, शुक्रिया, धन्यवाद, आपने मुझे बोलने का समय और मौका दिया।

 

MR. DEPUTY-SPEAKER:  Now, Mr. Ramdas Athawale.  You have to conclude your speech within five minutes.

SHRI RAMDAS ATHAWALE : Mr. Deputy-Speaker, Sir…

SHRI BASU DEB ACHARIA (BANKURA): Sir, when will be the reply to this discussion?  Will it be tomorrow?

MR. DEPUTY-SPEAKER:  I think, the reply should be today.

SHRI BASU DEB ACHARIA : Why today, Sir? The Home Minister is not here.  He has gone to Maharashtra.  Would he come back today? … (Interruptions)

 उपाध्यक्ष महोदय: जैसा मैम्बर चाहेंगे। आज करना चाहेंगे तो आज कर लेंगे वरना कल कर लेंगे।

श्री बसुदेव आचार्य : आज नहीं, कल कर लें।

उपाध्यक्ष महोदय: हम आठवले जी को पहले सुन लेते हैं।

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श्री रामदास आठवले (पंढरपुर) : उपाध्यक्ष महोदय, सरकार ने बहुत बार प्राकृतिक आपदा का सामना करने की कोशिश की है। इसे रोकने के लिए एक प्लानिंग करने की आवश्यकता है। मुम्बई में सौ साल के बाद इतनी बारिश हुई। मुम्बई शहर समुद्र के पास है। वहां लगातार १२ घंटे तक बारिश आई जिससे वहां पानी-पानी हो गया। मुम्बई देश की आर्थिक राजधानी है। मुम्बई हर साल ४० हजार करोड़ रुपए भारत सरकार को देता है। मुम्बई में ड्रेनेज सिस्टम का रैनोवेशन करने की आवश्यकता है। इसलिए हमारी मांग है कि प्रधान मंत्री जी मुम्बई के विकास के लिए १० हजार करोड़ रुपए दें। …( व्यवधान) 

प्रधान मंत्री जी हालात का जायजा लेने के लिए मुम्बई गए हैं। उनके साथ श्री शरद पवार, श्री मणिशंकर अय्यर भी गए हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री विलासराव देशमुख रायगढ़, रत्नागिरी, नांदेड़ में हुए नुकसान की देखरेख कर रहे हैं और लोगों की ज्यादा से मदद करने की कोशिश कर रहे हैं। हर साल बाढ़ आती है। वह बिहार, यूपी और महाराष्ट्र के कई जिलों में आती है। देश में कुछ जगहें ऐसी हैं जहां सूखा भी पड़ता है। श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार ने सवा लाख करोड़ रुपए की एक योजना बनायी थी और नदियों को जोड़ने की बात कही थी। अगर एक नदी में बाढ़ आती है तो उसका पानी दूसरी नदी में जाना चाहिए[R64] ।

लोगों को नुकसान न हो इसके लिए प्लानिंग करने की आवश्यकता है। मुंबई में इस तरह नुकसान हुआ है, वहां इतनी बारिश आने वाली है इसके बारे में डिपार्टमेंट को बताने की आवश्यकता है जो नहीं होता है। हमने देखा है जिस तरह से सुनामी में नुकसान हुआ, अगर उसकी जानकारी पहले लोगों को मिल जाती तो जानें नहीं जातीं। इसके लिए भारत सरकार से हमारी मांग है कि प्राकृतिक आपदा से प्रभावित लोगों की मदद करने के लिए, जैसा श्री लाल सिंह जी कह रहे थे कि प्राकृतिक आपदा जब आती है जिस तरह से मकान बनाने के लिए अलग डिपार्टमेंट है, एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट है, अलग-अलग डिपार्टमेंट हैं, उसी तरह प्राकृतिक आपदा मंत्रालय पर विचार करने की आवश्यकता है। एक मंत्रालय इसके लिए होना चाहिए क्योंकि हर साल भूकंप आता है, सुनामी आती है, बाढ़ आती है, सूखा होता है, इससे लोगों को नुकसान होता है, हजारों-लाखों लोगों की जानें जा रही हैं इसलिए मेरी मांग है कि इसके लिए प्राकृतिक आपदा मंत्रालय, एक स्वतंत्र मंत्रालय की आवश्यकता है। इसके लिए हम माननीय प्रधानमंत्री जी से अपील करते हैं, श्रीमती सोनिया गांधी जी से अपील करते हैं कि प्राकृतिक आपदा मंत्रालय बनाने के संबंध में विचार करने की आवश्यकता है।

महोदय, मैंने बीच में सुझाव दिया था कि मुंबई से कोपन किन्नर पट्टी, जहां भी समुद्र के पास बारिश ज्यादा होती है, जहां भी पानी कम है, जहां सूखा होता है, उस पानी को रोककर वहां ले जाने की आवश्यकता है। अभी मुंबई में इतनी बारिश होने के बाद सबको ध्यान आ गया है कि मुंबई में भी इतनी बारिश होती है इसलिए उस पानी को रोककर, कैनाल के माध्यम से या अलग माध्यम से जहां पानी कम होता है, जहां बारिश कम होती है, वहां पानी ले जाने की आवश्यकता है। इसके लिए डैम बनाने की आवश्यकता है, इस तरह की प्लानिंग करने की आवश्यकता है। मुझे पूरा विश्वास है कि अभी माननीय प्रधानमंत्री जी इसके बारे में विचार कर रहे हैं।

महोदय, पीने के पानी की समस्या बहुत जगह पर है, इस संबंध में भी विचार करने की आवश्यकता है। जहां सूखा होता है वहां समुद्र के पानी का एक्सपेरिमेंट करने की आवश्यकता है। जो साल्टिड पानी है, उस सॉल्टिड पानी को पीने के लायक बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए कोई एक्सपेरिमेंट करने की आवश्यकता है, इसके बारे में कोई विचार होना चाहिए। मैं समझता हूं कि हर साल जो हजारों लाखों लोगों की जानें जा रही हैं, करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है, उसे रोकने के लिए कोई न कोई प्लानिंग करने की आवश्यकता है। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारी यूपीए सरकार है, यह प्लानिंग करने में बहुत होशियार है। डॉ. मनमोहन सिंह जी इकोनामिस्ट हैं इसलिए अपने देश की इकोनॉमी को सुधारने के लिए इन पांच सालों में अच्छा काम करने वाले हैं। पिछले छ: सालों में उन लोगों न कुछ काम नहीं किया इसलिए उन लोगों को जाना पड़ा। हमें मालूम है कि हमें सरकार चलानी है, हमारे ऊपर जिम्मेदारी है इसलिए इन पांच सालों में लोगों की ज्यादा प्रॉब्लम्स सॉल्व करने का प्रयत्न करेंगे और प्राकृतिक आपदा के बारे में एक अच्छी प्लानिंग बनानी चाहिए। लोगों को ज्यादा सुविधा मिलनी चाहिए, इसके लिए विचार करना चाहिए। मैं आपका ज्यादा समय नहीं लेना चाहता हूं क्योंकि घंटी बज रही है और लोगों को भी बोलना है…( व्यवधान) 

उपाध्यक्ष महोदय : आपको बोलने के लिए आठ मिनट दे दिए हैं क्योंकि आप महाराष्ट्र से हैं।

श्री रामदास आठवले : मुंबई और महाराष्ट्र के लिए ज्यादा मदद मिलनी चाहिए, यह मांग मैं भारत सरकार से करता हूं। आपने मुझे बोलने का मौका दिया इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं।

 

MR. DEPUTY-SPEAKER: Next speaker is Shri W. Wangyuh Konyak.

श्री संतोष गंगवार (बरेली) : उपाध्यक्ष महोदय, अभी सूचना मिली है कि राजगीर पटना श्रमजीवी सुपर फास्ट एक्सप्रैस में विस्फोट हो गया है और सौ से अधिक लोग घायल हुए हैं। हम चाहते हैं कि इसके संदर्भ में सदन की बैठक स्थगित होने से पहले तथ्यात्मक जानकारी दी जाए क्योंकि सौ से अधिक लोग घायल हुए हैं। हम चाहते हें कि सरकार की ओर से ध्यान दिया जाए।

श्री ब्रज किशोर त्रिपाठी (पुरी) : उपाध्यक्ष महोदय, इसकी जानकारी मिलनी चाहिए।

श्री संतोष गंगवार : उपाध्यक्ष महोदय, यह महत्वपूर्ण ट्रेन है, दिल्ली तक आती है, राजगीर पटना सुपर फास्ट ट्रेन है, हम चाहते हैं कि सरकार इस ओर ध्यान दे।

MR. DEPUTY-SPEAKER: I will look into it.

 

*m15

SHRI W. WANGYUH KONYAK (NAGALAND): Sir, a natural calamity is a problem created by the nature.  But it is for the Government to solve the problem. When Assam is flooded, the entire north-eastern States are affected.  It is because all the buses, trucks, essential commodities, etc. generally get through Assam only[pkp65] .

Therefore, at least one comprehensive plan should be formulated so as to avoid flood-affected areas in Assam in the interest of the entire North-Eastern States and so, I want that the Government takes up that project.

            Secondly, on 26th May 2005, a massive landslide occurred in Mokokchung Town. Altogether, 15 people were killed, ten houses were completely damaged, and six people got injured. Out of the 15 people killed, six were from Bihar, one from Assam and the rest are from Nagaland. On the same day, unusual and unexpected flash floods occurred in Tuli Town. Two hundred and eighty two houses have been damaged beyond repair and many properties have been lost including the National Highway No.61. After a gap of 20 days, the Central Government has sent a Central Ministerial Team headed by the Joint Secretary, Shri D.S. Mishra from the Home Ministry and they have submitted a report to the Central Government. Today, after more than two months of the incident, no relief has been sanctioned. Had it happened in any other part of the country, the Prime Minister would have visited that place, the Home Minister would have visited that place and immediate relief measures would have been taken and many other things would have been undertaken. But in Nagaland, even after a gap of more than two months, not a single pie has been sanctioned for that State. It clearly shows the step-motherly treatment being meted out to that State.

            The Memorandum of Understanding along with the damage report and estimate has been submitted to the Central Ministerial Team. But till today, not a single pie has been sanctioned. If I am not mistaken, if it had happened in any other part of the country, thousands of crores of rupees have been announced as relief measures.

This is a serious problem for the entire country. Nagaland is an economically poor State in the country and the Central Government should not show step-motherly treatment to any State. Therefore, I urge the Central Government to treat the entire country equally, and immediate relief should be given to the State of Nagaland.

I, therefore, request the Central Government to release the funds immediately as per the report submitted by the Central Ministerial Team. 

                                                                                                                       

*m16

श्री श्रीपाद येसो नाईक (पणजी) : माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपका आभारी हूं कि आपने मुझे इस बार चर्चा में भाग लेने का मौका दिया। आज से छ: महीने पहले हमारे देश में सुनामी आई। उससे बचाव करते हुए अभी छ:-सात महीने हुए हैं, हम उस संकट से उबरकर अभी सिर उठा ही रहे थे कि इतने में इसी सत्र में पूरे वैस्टर्न इंडिया में भयंकर बाढ़ आ गई और उसने सब लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया। यह भी मालूम हुआ है कि १५० साल पहले जिस तरह की वर्षा हुई थी, उसके बाद यह अबकी बार हुई है। इसका पूरे वैस्टर्न इंडिया, मुम्बई, कर्नाटक और बेलगाम तक असर पड़ा है। जगह-जगह पर यातायात सम्पर्क टूट गया है। सड़कें बंद हो गई हैं, रेलें बंद हो गई है। विमान सेवा बंद नहीं हुई थी, अब वह भी बंद हो गई है। यह सब देखकर मन में विचार आता है कि बाढ़ और सूखा जैसी नैसर्गिक आपदाएं हर बार आती हैं[R66] ।

 प्राकृतिक आपदा आने के बाद देश के लोग हर तरह की मदद करते हैं, केन्द्र सरकार भी मदद करती है। मैं कहना चाहता हूं कि जो हमारा डिज़ास्टर मैनेजमैंट है, वह ठीक काम नहीं कर रहा है। अगर ठीक काम कर रहा होता तो बहुत जान-माल का बचाव हम कर पाते और नुकसान को कम कर सकते थे। लेकिन आज तक इसके बारे में उपाय केन्द्र सरकार की ओर से नहीं हो पा रहे हैं। आज ही डिज़ास्टर मैनेजमैंट अथॉरिटी का बिल सबमिट हुआ है। ५७ साल की आज़ादी के बाद देश में कितनी आपदाएं आई होंगी लेकिन सब लोगों के सहयोग से यह सब कम होता जा रहा है। अगर हम एक सही सिस्टम डैवलप करें तो जो नुकसान हो रहा है, उसको हम टाल सकते हैं।

उपाध्यक्ष महोदय, करीब १०० साल के बाद गोवा में भी ऐसी भयंकर बाढ़ की स्थिति आई है। गोवा एक छोटा राज्य है। वहां जो नुकसान हुआ है, छोटा राज्य होने के कारण उसकी इतनी ताकत नहीं है कि वह नुकसान को उठा सके। इसलिए तुरंत जो कुछ नुकसान हुआ है, उसके लिए मदद करना केन्द्र सरकार का काम है। साउथ गोवा में दिक्करपाल गांव में लैंडस्लाइड में १० लोग मारे गए। बहुत से घर वर्षा में टूट गए। उज्गांव जो फोंडा तालुका में है, वहां एक आदमी की पानी में बहने से मृत्यु हो गई। डिचौली, साखई में बहुत से घरों में पानी भर गया और इस तरह का जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करना लोकल गवर्नमैंट के लिए काफी मुश्किल होगा। किसानों ने जो खेत बोये थे, उनकी फसल भी नष्ट हो गई और आगे फसल होने का भी कुछ चांस नहीं है। कम से कम चार-पांच करोड़ रुपये का नुकसान हुआ होगा। मैं केन्द्र सरकार से मांग करता हूं कि जो कुछ नुकसान हुआ है, तुरंत गोवा राज्य को उसकी भरपाई की जाए।

        उपाध्यक्ष महोदय, गोवा के एक तरफ कर्नाटक राज्य है और दूसरी तरफ महाराष्ट्र का कोंकण इलाका है। वहां भी भारी नुकसान हुआ है। पानी में सब कुछ तबाह हो गया है। चिपड़ून, खेड़, पेण, माणगांव जो रायगढ़ और रत्नागरि जिले में हैं, वे पानी में डूब गए हैं और बहुत जान-माल का नुकसान हुआ है। इसलिए मैं मांग करता हूं कि महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक के इन भागों में केन्द्र सरकार द्वारा एक टीम भेजी जाए जो नुकसान का जायज़ा लेकर तुरंत वहां आर्थिक सहायता प्रदान करे। यही मेरी विनम्र प्रार्थना है।

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SHRIMATI PRENEET KAUR (PATIALA): Thank you very much for giving me the opportunity to speak today on this subject.

            Over the last couple of years we have witnessed major natural calamities in India; be it the long four years drought in Rajasthan, floods and cyclones in Orissa, earthquake in Gujarat and the recent and the most terrible human tragedy in India, the Tsunami.  Even the cursory analysis of the scale of these natural calamities shows us that the economically developed countries of the world are very much better equipped and have a greater resilience to deal with these natural calamities and they have lesser loss of lives[R67] .

This bias – you can call it of nature against our country – may be due to the fact that we do not have that much development and also the lack of funds that the poorer and the developing countries are facing.  For us, if a premium quality of weather reporting is linked up with the good insurance system, I think it would be a very efficient way of imparting knowledge and information to our rural sectors and our fisher folk. 

            The Seventeenth Report of the Estimates Committee of the Lok Sabha, 2003 on `Relief and Rehabilitation Measures in Natural Calamities’ observed that India is one of the most disaster prone countries of the world.  There are many Ministries, Departments and  organisations in the Central Government which are responsible for rescue, relief and rehabilitation work.  But the Estimates Committee further observed:

“Experience has taught that more than dearth of funds, relief materials, infrastructure and personnel, it is proper coordination, direction and prompt response which are found lacking. ”

 

            I think  necessary arrangements should be made so that the Central Government and the State Governments can work together and address natural disasters that are of a rare severity in nature and that can be effectively taken care of.

            Besides these major natural calamities and disasters that come to the country, there are natural calamities in areas that come year in and year out.  Though the traumatic effect of Tsunami is not felt, the people of these areas die a bit every year because every year they have to face the destruction that is wrought on them and on their livelihood without any fail.

            One such case is in my Constituency, Patiala in Punjab.  We have a river called Ghaghar River which originates in the Shivalik mountain hills.  It has a total length of 242 kilometres, which flows through Punjab, Haryana and then rests in the sand dunes of Rajasthan.  Out of these 242 kilometres, 165 kilometres go through Punjab, 77 kilometres go through Haryana and out of the 165 kilometres, 102 kilometres go through my parliamentary constituency of Patiala.  Every year 300 villages are flooded causing  damage to crops worth about Rs.4710 lakh.  It does not include the damage that is done to the milk cattle, the houses and the fodder.  This is an estimate made on the compensation given to the farmers at the rate of Rs.2000 an acre which is really a token because actually the loss would be in the range of Rs.12000 to Rs.14,000 an acre.  I am ashamed to say that every year I have to go to my constituency, face the people and give them lip sympathy because in spite of repeated efforts for the last six years, we have not been able to do anything as it is an inter-State matter.  Somehow we cannot get together the three concerned States and do something about it. Primarily, I think as Shri Suresh Prabhu and even Shri Lal Singhji mentioned that the land use should be seen in order to find out whether there should have been check dam to stop this perennial flooding.  The State of Haryana I think has made a lot of development and a lot of colonies. So I really do not know when this problem is going to be sorted out.  Only last year, the situation was so bad that the Army had to be called in.  They were there for 15 days.  If we did not have the Army there, we would have had a total disaster[r68] .

            They did a commendable job in rescuing people and in providing food to the people. This neglect I can only see in my constituency. Maybe, it is a constituency tucked in a corner in Punjab and everybody feels that the State of Punjab never has floods. But we have floods because it is a seasonal flooding every year by this river and now this river in my constituency is known as the `river of sorrow’. The people of Patiala parliamentary constituency deserves every assistance from the Government at the Centre. We too form part of this great nation and consequently a part of this natural calamity system that takes place every year.

            The other thing to worry about is the lowering of the ground level water. I am constrained to mention that the Minister of Water Resources told me two months ago that Punjab has become a worst affected State as far as lowering of ground water is concerned. I think, this would turn into a natural calamity of a great enormity if we do not start doing something about it now. Maybe, we already are too late. Eighty-five per cent of our irrigation, in spite of our having an immense canal network, we have taken out from the ground and with that we have impoverished ourselves at the cost of our State where we  have fed ourselves during the Green Revolution and also have fed the entire country.

            So, I would like to conclude by saying that tragedies are great teachers but unfortunately many people draw wrong lessons. We must look forward and with now science and technology and modern life, in general, providing us enormous amount of protection from the most difficult hazards of nature, we must go forward to build a safer environment with substantial development for our people.

           

*m18

श्री शैलेन्द्र कुमार (चायल) : माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आपने मुझे श्री बसुदेव आचार्य द्वारा नियम १९३ के अन्तर्गत देश में प्राकृतिक आपदा पर उठाई गई चर्चा में बोलने के लिए मौका दिया, मैं आपका आभारी हूं।

कल से यह चर्चा चल रही है। हमारे पक्ष-विपक्ष और अन्य दलों के तमाम साथियों ने विस्तार से इस आपदा के बारे में चर्चा की है। अगर अत्यधिक बारिश हो गई तो बाढ़ की समस्या आ गई, बारिश न हुई तो सूखे की समस्या आ गई। वहीं पर चाहे भूकम्प का नाम लें या अभी हमारे देश ने सुनामी की त्रासदी झेली है, पहाड़ों पर हिमपात होता है, बादल फटने की घटनाएं घटती हैं और लैंड स्लाइडिंग, आंधी, तूफान या बिजली गिरने से हमारे देश में अक्सर तमाम दैवी आपदाएं आती हैं और मेरे ख्याल से प्रतिवर्ष यह सब होता है। हमें और सरकार को भी, चाहे राज्य सरकार हो या केन्द्र सरकार हो, सब को मालूम होता है कि किस समय ये सब त्रासदियां आती हैं, आपदाएं आती हैं, लेकिन हम उनकी रोकथाम नहीं कर पाते हैं। इसके लिए हमें पहले से एक योजना बनानी चाहिए ताकि आने वाले खतरे से हम लड़ सकें। जहां पर इस प्रकार की समस्या आती है, वहां पर रोजगार की समस्या होती है, वहां पर खाद्य सामग्री पहुंचाने की बात होती है, दवा का छिड़काव या रोजमर्रा की, दैनिक जीवन की आवश्यकता की वस्तुएं पहुंचाने की जरूरत होती है, ऐसी स्थिति में हमें पड़ोसी राज्यों से ऐसे सम्बन्ध बनाने चाहिए कि इस प्रकार की अगर त्रासदी हो तो हम एक दूसरे के सुख-दुख, मुसीबत में उनकी मदद कर सकें।

मैं सुझाव के तौर पर कहना चाहूंगा कि जो बाढ़ की भीषण त्रासदी आती है, उसमें हम नदियों को जोड़ने की बात कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी जी के प्रधानमंत्रित्व काल में एक योजना बनाई थी कि बड़ी नदियों को जोड़ा जाये, इससे भी समस्या का हल हो सकता है। जिन नदियों में ज्यादा बाढ़ आती है, ज्यादा पानी आता है, वहां का पानी अगर ट्रांसफर हो जायेगा तो इससे बाढ़ की रोकथाम हो सकती है।[i69] 

19.00 [MSOffice70]  hrs.

दूसरी तरफ देखा जाए तो नदियों का कटाव इतना होता जा रहा है और बालू खनन के नाम पर माफिया लोग आपस में झगड़ते रहते हैं। इसमें जानें भी चली जाती हैं। अगर बालू खनन हो जाए तो पानी नीचे चला जाएगा और पानी आराम से निकल जाएगा। इससे बाढ़ की समस्या भी नहीं आएगी।

        दूसरी बात यह है कि वर्षा नहीं हुई तो सूखे की समस्या आती है। तमाम माननीय सदस्यों ने पेयजल की समस्या पर अपनी बात रखी है। मेरे क्षेत्र में एक तरफ गंगा और दूसरी तरफ यमुना है। बीच में १२० किलोमीटर लम्बा मेरा क्षेत्र है। राजा-महाराजा भी नदियों के किनारे अपना महल बनाते थे। बहुत-सी ऐसी जातियां हैं जो नदियों के किनारे रहती हैं, जो दूध का व्यवसाय करते हैं तथा पशु पालते हैं। वे खेती के लिए कछारों मे जाते हैं। जब नदियों में बाढ़ खत्म हो जाती है, वहीं पर वे खेती करते हैं और अपने जानवरों के लिए चारे का इंतजाम करते हैं। उनका पूरा जीवन नदियों के किनारे ही बीतता है। ऐसी परिस्थितियों को देखते हुए हमें ठोस कदम उठाने चाहिए। पेयजल की समस्या के बारे में मैं कह रहा था कि इस समय पानी बहुत ज्यादा है। सभी माननीय सदस्यों के क्षेत्रों में छोटी-छोटी नदियां हैं।

उपाध्यक्ष महोदय : अगर सदन की सहमति हो तो सदन का समय एक घंटे बढ़ा दिया जाए।

कुछ माननीय सदस्य : जी हां, महोदय।

उपाध्यक्ष महोदय : सदन का समय एक धंटे के लिए बढ़ाया जाता है।

श्री शैलेन्द्र कुमार : उपाध्यक्ष महोदय, मैं कह रहा था कि पेयजल की समस्या के निदान के लिए चैकडैम बनाने की आवश्यकता है। मेरे निर्वाचन क्षेत्र में ससुरखदेरी और किलनहाई दो नदियां हैं, जिनके ऊपर हमने पांच चैकडैम बनाए हैं। इससे पानी रुक जाता है। यदि इसी तरह से पानी को रोकने के लिए चैकडैम बनाएंगे तो आने वाले समय में सूखे की समस्या या पेयजल की समस्या से मुक्ति मिल जाएगी। मैंने अभी पुस्तकालय में पढ़ा था कि बिहार में सूखे के नाम पर मदद दी गई थी, लेकिन वहां पर घोटाला हो गया। केंद्र सरकार दैवीय आपदा से निपटने के लिए जो मदद देती है, उस पर रोक लगाने की बात कही गई है। मैं सरकार से निवेदन करना चाहूंगा कि दैवीय आपदा से निपटने के लिए जो आर्थिक मदद दी जाती है, उस पर रोक न लगाई जाए। यदि कहीं पर इस तरह का मामला सामने आता है तो उसे हमें सतर्कता से देखना चाहिए। सेना और स्वयंसेवी संस्थाएं, जो बढ़-चढ़ कर ऐसी परिस्थितियों में लोगों की मदद करती हैं, मैं उन्हें धन्यवाद देना चाहूंगा और केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों से आग्रह करूंगा कि उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

तीसरी बात यह है कि जो आर्थिक मदद दी जाती है, उसमें कई बार घोटाले हो जाते हैं, जैसा कि बिहार में हुआ। हमारे प्रधानमंत्री जी ने प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया है। सन् २००४ से ले कर सन् २००७ तक एक योजना भी बनाई गई है, जिसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों को सम्मिलित किया गया है। इन बातों को गंभीरता से लेते हुए यदि सरकार कोई कदम उठाएगी तो दैवीय आपदाओं से निपटने में काफी मदद मिलेगी।

इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं और आपको धन्यवाद देता हूं कि आपने मुझे अपने विचार व्यक्त करने का मौका दिया।

19.04 hrs.                  (Shri Giridhar Gamang in the Chair)

*m19

SHRI K. FRANCIS GEORGE (IDUKKI): While we are discussing natural calamities which affect our country, in the last few days there have been heavy rains and landslides in various parts of our country.  As usual, as it happens during monsoon, this time also the State of Kerala has also been hit and lashed by heavy rains and there have been landslides in various districts.  There have been heavy loss of life, damage to property and standing crops.  The worst hit district is the district of Idukki, which is my constituency in the State of Kerala.  The hill station of Moonar, in Idukki district, has been very heavily hit this time.  In one single day, there has been 47 inches of rain.  Consequently there have been landslides and people have lost their lives.  I would like to cite this as an example.  In this town of Moonar, which is a tourist centre, of late large-scale construction activity has been taking place. Taking into consideration the ecological impact of such activities, the Government should come out with a proper law to regulate these kinds of activities so that the ecological destruction may not cause this kind of mishaps in future. 

            I would request the Government to appoint an appropriate Central agency to study the future developmental needs of Moonar, which is a very important tourist centre in our country, to suggest ways and methods to regulate construction and developmental activities so that there will be a balanced growth without causing ecological problems.  I would request the Government to make special studies the disaster-prone areas in our country so that we can avoid mishaps in future.   We have to revise the norms of Natural Calamity Contingency Fund because States like Kerala, Orissa, etc. are hit by natural calamities every year.  There is a huge loss as far as standing crops are concerned; agricultural fields are washed away and houses get collapsed.  These States will have to be compensated adequately by the Central Government.  Without Central Government’s liberal financial assistance, these States cannot tide over these crises.  I would request the Government to have a re-think on the norms of the NCCF and compensate the States adequately to cope with natural calamities every year. 

            My colleagues have mentioned several issues. I do not want to go into all those issues again.  Our country should have a proper disaster management policy.  Soon we are going to come out with a Bill to face this kind of calamities in our country.  We have floods, earthquakes, and drought every year in various parts of the country. Calamities like this occur every year. We should be ready with proper mechanism to help the States and the people to face these kinds of calamities. 

            Once again I would request the Government to make a proper study of major disaster-prone areas in our country to help the States to combat these calamities.

*m20

SHRI SURESH ANGADI (BELGAUM): Mr. Chairman, Sir, thank you very much.  Karnataka State is also very much affected by flood. I am from Belgaum district, which is in the border of Maharashtra and Goa. The entire Belgaum district is covered with water.  More than 25 villages have been submerged in water.  About 7 to 8 people have lost their lives.  I would request the hon. Prime Minister, through this House and through you, Sir, that the Government should give special relief to Karnataka. Only Rs. 4 crore have been given to flood-affected areas[r71] .

More than 5,000 acres of agricultural land has got spoiled. Major crops like paddy, potatoes, vegetables and sugarcane have already been affected by water. There is continuous drought for the last three years. This year, due to flood, my district farmers are in great trouble.  My district is one of the historical places.  I come from that region where Kittor Rani Chenamma, the first lady fought for freedom.

            Respected, Sir, please direct the hon. Prime Minister to send a team for studying the affected areas not only in Belgaum district but other parts of Karnataka like Karwar, Mangalore, etc. About more than 1 lakh acres of land have been affected in all these areas. I would request the Government of India that a minimum of Rs. 1000 crore relief should immediately be given to Karnataka and save the losses to the farmers affected by this flood – flood relief immediately. If you send any other team from the Government of India for studying this problem, I will be grateful.

           

 

 

*m21

PROF. CHANDER KUMAR (KANGRA): Hon. Chairman, Sir, I am very much thankful to you for giving me the time. Under Rule 193, Shri Basu Deb Acharia has moved this Motion in this House on natural calamities. When he initiated discussion on natural calamities in the whole of the country, I also want to make some suggestions to combat the  natural calamities.

            Natural calamities are not in the shape of only floods. This is a natural phenomenon. These natural calamities are in the form of earthquakes, floods, cloud bursts, forest fires, Tsunami and other types of catastrophic changes which are taking place on the earth. The characteristics of the rivers in Himalayas are entirely different from those of the southern rivers. The Himalayan rivers have not attained the base level of erosion whereas the southern rivers have attained the base level of erosion.  In all the rivers which have their source in the Himalayas, there is a tremendous erosion and flood whereas in the southern part of the country, all the rivers have attained the base level erosion and there is no geological problem in those rivers. In the Starred  Question when it was asked in this House, hon. Minister, Shri P. Dasmunsi, was giving the reply.  In my Supplementary Question  about Himalayan rivers,  those rivers which are having their source in Himalayas which are young mountain and very fragile in nature and require a long perspective plan, how to club all these rivers. There is tremendous silt and flood coming from the Himalayan rivers – right from western Himalayas to Northeast. So, it requires a long-term strategy and planning so that we can club all these rivers.

            Hon. Chairman, Sir, I come from Himachal Pradesh. All the big rivers which are having their source in the Himalayas, like Ravi, Beas, Sutlej and Chenab, are passing through Himachal Pradesh.  Due to their source in the Himalayas, there is always erosion and the people residing along the banks of these rivers have to live in constant danger.  Every year, some of the people are just washed away and marooned along these rivers’ courses when rivers are in spate[mks72] .

That is the Beas River. The course of the Beas River has been diverted towards Satluj River and that is called the Beas-Satluj link and the water diverted in the Bhakra dam. When Beas-Satluj link was constructed, base level of the Beas was raised to the extent of 30 metres in height and the whole of the backlash came to Kullu and Manali. Due to the backlash there is a flood, the whole of the river banks have been  washed away.  There is a tremendous erosion and flood in those areas. So, the characteristic of the Himalayan rivers is entirely different from the Southern rivers.  Hence, while formulating all these plans and long-term strategy in those areas for hydel generation, we should not  inbound the water of those rivers but it should be channelised  in a proper manner. All these rivulets, tributaries and the catchment areas should be channelised in such a way so  that all these rivers are not flooded during the rainy season. In downstream also, we are facing the same problem. There are  the seasonal streams and rivers in the Shivalik which are called cho.  That aspect has rightly been pointed out by the hon. Members Shrimati Pratibha Singh and Smt. Praneet  Kaur. These reasonal streams (Cho)  during the raining season flooding  whole of Punjab and Rajasthan and other areas as well. It also requires large scale channelisation and the farm land can be reclaimed.

            It is rightly said that there is a tremendous deforestation in the catchment areas. We must identify certain catchment areas of Himalayas. That should be kept in tact whether in the lower Shivalik or in the mid Shivalik or in the high reaches of the Himalayas so that there is least disturbance of ecology and environment in those areas. It requires a long-term strategy and planning. The  hon. Prime Minister late Shri Rajiv Gandhi created the Ganga Development Authority. On the analogy of the ‘Ganga Development Authority’, he said that there should be an Himalayan Development Authority. With bilateral assistance from different  donor countries, we can get the money for planning and  all these rivers from  their source. The river system  can be channelised in such a way that it should not be the sorrow of the people but it should be the prosperity of that particular region.

            Floods are not a new thing and us, and  the whole of the country. Every year, we are experiencing these types of problems in the upper areas, in the Himalayan region, downstream in plain areas. So, it requires a long-term strategy. The rules and the regulations, which have been formulated by different States, should be strictly adhered to. We know that some of the areas are very fragile and some of the other areas are seismically very sensitive ones. But you will see that the housing pattern is entirely different. If you go to  Kangra, Shimla, Konkan region, you can see multi-storey buildings coming up. Nobody adheres to the rules and regulations of that area. So, it requires immediate steps to be taken by the Government.  The State Governments and the Central Government have enacted rules, regulations and Acts. They should adhere to the Acts and Rules which constructing house so that people can be saved from these natural calamities.  In the seismically very sensitive areas, the construction work of the building should be according to the nature and the features of that particular area.

            Sir, just a few days back, there was a big flood furry in Himachal Pradesh. River Satluj was in spate and has brought havoc to these areas. The hon. Chairperson of the UPA Government Shrimati Sonia Gandhi visited some of the affected areas to take stock of the situation. She was accompanied by the Union Minister Shri Shivraj Patil and the State Chief Minister Shri Virbhadra Singh. We are very much thankful to Shrimati Sonia Gandhi. She took stock of the situation of that area. Right in the whole of the river Satluj, catchment in the upper course, from Rampur onwards to Kinnaur, there is a large-scale damage. The rise in the level of the river water  was about 50 feet. It has caused havoc to the whole region[R73] .

There is a tremendous loss in those areas.  The loss is to the tune of Rs. 1000 crore.  When Shrimati Sonia Gandhi visited these areas, she had an interaction with the people of these areas.  Hindustan-Tibet road is the only road which serves whole of the Kinnaur district. We are having a bumper crop of apples and other type of fruits in those areas.  So, it requires immediate attention of the Government.

MR. CHAIRMAN : Please conclude.

PROF. CHANDER KUMAR :  I urge upon the Government for immediate restoration of all these roads and network of all these bridges. Sir, 18 bridges have been damaged and more than 10 bridges have been washed away.  So, it requires immediate attention of the Government to give some of the money.  I want to make  some suggestions that relief manual, which has been enacted by the Government of India and different States, that should be revised.

MR. CHAIRMAN: I have given enough time to you.

PROF. CHANDER KUMAR :  There should be a disaster management programme in all the States.  A Committee should be constituted that wherever and whenever there is any natural calamity then all the departments should coordinate.  You know that in the States and Centre also, all the departments are just not working in unison.  Different departments are looking after different aspects of all these things. 

MR. CHAIRMAN: There are so many speakers waiting for their turns.  So, please conclude.  

PROF. CHANDER KUMAR :  It requires that there should be a core network of offices within the State and also in the Centre so that we can have immediate relief work and other type of relief operations.  With these words I thank you very much for the time given to me. 

*m22

श्रीमती जयाबेन बी. ठक्कर (वडोदरा) : अनहोनी को कोई टाल नहीं सकता, यह सही बात है। प्रकृति के प्रकोप को हम चाहें या न चाहें, हमें झेलना ही पड़ता है। कहा गया है कि – होई है वही जो राम रची राखा, का करी तरक बढ़ाई रही शाखा। हम तर्क न करें, लेकिन ऐसा समय आ गया है कि अब हमें आपदा प्रबंधन और उसकी व्यवस्थाओं के लिए जरूर सोचना चाहिए। पूरे मौसम की बरसात सात दिन में होना, २४५ प्रतिशत तक की बरसात पादरा, भगोड़िया जैसे मंडल में होना कोई सोच नहीं सकता था। वड़ोदरा शहर ही नहीं, पूरे गुजरात में इस बार की बारिश से जो तबाही मची, उसे सब लोगों ने देखा है। अब तो गुजरात ही नहीं, महाराष्ट्र भी उसकी चपेट में आ गया है। मैं कहना चाहती हूं कि आपदा प्रबंधन के बारे में हमें एहतियात बरतने चाहिए। मौसम विभाग से हमें जानकारी तो मिल जाती है कि इस बार मानसून अच्छा रहेगा, लेकिन इतना अच्छा रहेगा कि वह बुरी से भी बुरी हालत लोगों की कर दे, इसकी जानकारी क्यों नहीं हमें प्राप्त होती। इसके लिए हमें सोचना चाहिए।

प्राकृतिक आपदा की चपेट में हमारे गुजरात राज्य के २४५ तालुका आ गए हैं। मैं वड़ोदरा की बात कहना चाहती हूं। वहां सिर्फ पादरा मंडल में ही मौसम की २०० प्रतिशत से ज्यादा बारिश हो चुकी है। जिसके कारण वहां के ५५ गांव रोड्स और अन्य सारी सुविधाओं से अलग-थलग हो गए थे। जैसे पहले नदी, नालों और तालाबों की व्यवस्था होती थी कि मानूसन आने से पहले उन्हें साफ किया जाता था, जिससे स्वाभाविक रूप से बहने वाला पानी अपना रास्ता ले लेता था। लेकिन आज बढ़ती हुई बस्तियां और अतिक्रमण जैसी समस्याएं पानी को रोक कर बाढ़ की स्थिति पैदा कर देती हैं। उसके कारण जब हमारी व्यवस्थाओं को सम्भालने की बात होती है, तो यह भी ठीक है कि केन्द्र सरकार से फंड के रूप में व्यवस्था करने की कोशिश की जाती है[R74] ।

 गुजरात राज्य को भी ५०० करोड़ रुपये का फंड मिला है, उसके लिए हम आभारी हैं। लेकिन जिस प्रकार से यह अनहोनी हुई है और उसमें हमारी राज्य सरकार ने जो अंदाजा लगाया है वह ८ हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा की जरुरत का अंदाजा लगाया है।

गुजरात राज्य का महत्व सारे देश की अर्थव्यवस्था और उसकी समायोजना में रहा है, चाहे टैक्स पेमैंट के रूप में कहिये या इंडस्टि्रयल विकास के रूप में कहिये। आज गुजरात बाढ़ की चपेट में है और उसको जल्दी से फंड दिया जाए और उसको सुनामी के पैटर्न पर राहत पहुंचाई जाए।

        मैं अपने क्षेत्र बड़ौदा की जब बात करती हूं तो आज से १०० साल पहले हमारे महाराज सहजीराव जी ने इसकी कल्पना की थी। उन्होंने प्रताप पुरा और अजवा सरोवर बनाया था। उसका एक भाग पानी में बह गया है और उसके कारण बगोडिया मंडल प्रभावित हुआ है। प्रताप पुरा सरोवर का एक भाग नष्ट हो गया है जो कच्ची मिट्टी से बना हुआ था। उसके लिए भी केन्द्र सरकार द्वारा कोई राशि दी जाए, ताकि अगले कुछ सालों में हम इसकी अच्छी व्यवस्था कर सकें। There is a need of strengthening of border of Pratap Pura Sarovar and Ajwa Sarovar.  हमारे यहां बाढ़ के कारण दो लाख लोग प्रभावित थे, जिनको वहां से हटाने की व्यवस्था करनी पड़ी। एक लाख लोगों को बचाने की व्यवस्था भी हमारे प्रशासन ने अच्छी तरह से की है। उनका भी मैं अभिनंदन करना चाहूंगी।

इंडस्टि्रयल डैवलेपमेंट हमारे यहां बहुत अच्छा है, पब्लिक सैक्टर भी ज्यादा है। उनको हमें पांच दिन तक बंद करना पड़ा। वहां जो नुकसान हुआ वह अन-एकाउंटेबल है। इसलिए उनको करों में राहत देना भी अहम कदम रहेगा। वहां एक दिन में करोड़ों रुपयों का नुकसान हमारे लोगों ने भुगता है। मैं जिस गांव में रहती हूं, वह ऐसा गांव हैं जिसमें अनाज के थोक व्यापारी रहते हैं। दो करोड़ रुपये तक का तो मेरे गांव में अनाज के व्यापारियों का नुकसान हुआ है। ऐसे ही पादरा नगरपालिका का १८ करोड़ का नुकसान हुआ है। इन सारी बातों को ध्यान में रखकर केन्द्र सरकार से मेरी प्रार्थना है कि गुजरात सरकार द्वारा जो राशि मांगी गयी है वह उन्हें दी जाए।

*m23

श्री भरतसिंह माधवसिंह सोलंकी (आनन्द) : माननीय सभापति महोदय जी, मैं आप का बहुत आभारी हूं कि आपने मुझे बोलने का मौका दिया।नेचुरल कैलामिटी के बारे में हमारे सम्मानित सदस्यों ने बहुत सारी बातें बताईं और विचार प्रकट किए। फिलहाल गुजरात में जो रेल संकट आया और उसमें भारत सरकार ने, यूपीए की अध्यक्षा आदरणीय सोनिया जी ने, प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी ने जिस तरह से गुजरात की मदद के लिए गृहमंत्री श्री शिवराज पाटिल जी को वहां भेजा और जैसा कि जयाबहन ने बताया कि ५०० करोड़ रूपए की मदद दी गई।मेरे कहने का मतलब यह है कि चाहे हम सरकार में हों या न हों, फिर चाहे गुजरात में साइक्लोंन हो, रेल-संकट हो, फेमाइन हो, भूकम्प हों, किसी भी बात में हमेशा सोनिया जी और कांग्रेस पार्टी गुजरात में लोगों की सहायता के लिए खड़ी रही है। भूकम्प के समय तो इतनी आपत्ति के बावजूद १५० करोड़ रूपए दिए गए। इस रेल-संकट में केन्द्र की यूपीए सरकार ने ५०० करोड़ रूपए देकर सीधे गुजरात की मदद की है इसके लिए हम सोनिया जी और मनमोहन जी के आभारी हैं। लेकिन साथ ही यह बात भी है कि इतनी मदद के बावजूद भी जैसे दंगों के समय गुजरात में, बीजेपी की नरेन्द्र मोदी की सरकार की प्रजा के प्रति सहानुभूति में बहुत कमी दिखाई दी। इस बार भी ऐसा लगा कि गुजरात मेंWhen more than 60 per cent people were suffering, the State Government was very weak to act at that point of time.

 जिस तरह से लोगों की जल्द से जल्द मदद होनी चाहिए थी, वह समय के साथ होनी चाहिए थी। जुलाई की पहली तारीख को हमने हमारे जिले के कलेक्टर को बताया और रिक्वेस्ट की कि आर्मी और एयरफोर्स की मदद की जरूरत है जिससे लोगों की जान बचायी जा सके।इसके बावजूद सरकारी मशीनरी का काम वहां बहुत धीमा रहा और जो भी लोग मारे गए हैं, उनको पूरा मुआवजा नहीं मिला और साथ में यह कहा जाता है कि आप पोस्टमार्टम रिपोर्ट ले आओ।

श्रीमती जयाबेन बी. ठक्कर : सहायता तो लगभग सभी लोगों को मिल गयी है।

श्री भरतसिंह माधवसिंह सोलंकी : सहायता नहीं मिली है। जयाबहन आप हमारी तरफ से नरेन्द्र भाई से रिक्वेस्ट कीजिए। जिनकी रिपोर्ट गयी, उन्हीं को मदद मिलेगी। उसके बाद हमने प्रशासन से रिक्वेस्ट की, रेवेन्यु सैक्रटरी से बात की तब उन्होंने बताया कि एक कमेटी फार्म की जाएगी।

श्रीमती जयाबेन बी. ठक्कर : सभी २१३ लोगों को मदद मिल गयी है। इतना अच्छा काम करने वाली सरकार है।

सभापति महोदय : मैडम, वे इन्टरप्शन नहीं एक्सप्लेन कर रहे हैं। सोलंकी जी, आप अपने प्वाइंट पर आइए। Please take your seat.  He is not yielding.

श्री भरतसिंह माधवसिंह सोलंकी : मैडम, पोस्टमार्टम रिपोर्ट मांगी गयी है। हमने एडमनिस्ट्रेशन से इस सम्बन्ध में रिक्वेस्ट की कि जब आप कलेक्टर और दूसरे पदाधिकारी लोग अपनी सिटी से पांच-छ: दिनों तक बाहर नहीं निकल सकते थे, तब एक मरे हुए आदमी को पांच-छ: दिन तक रखना और पोस्टमार्टम करवाना एक नामुमकिन बात थी। इसके बावजूद एक नयी कमेटी का गठन किया गया है। हमने एक रिजोल्युशन पास करके, पूरे एरिया के सभी सोशल वर्कर्स से मिलकर बताया कि कम से कम सात दिनों में इस बात का फैसला हो जाए और उनकी मदद की जाए। इसी प्रकार से पशु और अन्य जीवों की भी यही हालत रही।हमारा कहना यह है कि कैश-ड्रॉल में भी डिस्क्रिपैंसीज रहीं। कुछ जगहों पर दो दिन की मिली, कहीं पर पांच दिन की और किसी जगह १५ दिन की मिली और पूरा मुआवजा भी नहीं मिला। इस प्रकार कुल मिलाकर १८ करोड़ रूपए गुजरात की सरकार ने प्रजा को दिए हैं। अब आप सोचिए कि पांच करोड़ की जनता में से ६० प्रतिशत लोग प्रभावित हुए हों और १५ दिनों तक प्रभावित रहे हों और सिर्फ १८ करोड़ रूपए कैश-ड्रॉल हो।

सभापति महोदय : आप कंक्लूड कीजिए।

श्री भरतसिंह माधवसिंह सोलंकी : गुजरात में मेरे इलाके में, मेरा जिला सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ, इसलिए मुझे बोलने के लिए ज्यादा समय मिलना चाहिए।आप यह सोचिए कि घटना के इतने विस्तार के बावजूद सरकार ने मात्र यह फिगर्स दी हैं।आवास के लिए सिर्फ ८० करोड़ रूपए उन्होंने बताए हैं।[c75] 

 जबकि ज्यादा पैसे की जरूरत है। आठ हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। केन्द्र सरकार ज्यादा मदद दे। जो मदद केन्द्र सरकार ने पिछले समय में अर्थक्वेक और साइक्लोन के समय में की, लेकिन गुजरात की भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने उस पैसे का ठीक से उपयोग नहीं किया, उसे मिसयूज किया। स्थिति को सुधारने के लिए इसरो की मदद लेनी चाहिए। हमारे यहां दरियाई क्षेत्र है, कोस्ट लाइन है, जो इस देश में सबसे बड़ी है। हम सभी तरफ से प्रभावति होते हैं। उस समय हमें मदद ज्यादा मिलनी चाहिए। हमारे यहां नर्मदा योजना सबसे बड़ी योजना है। सैंटर इसके लिए ज्यादा मदद दे जिससे हमारी स्टेट को फायदा होगा और स्थिति बदलेगी। इतना ही मुझे कहना है।

*m24

श्री चन्द्रमणि त्रिपाठी (रीवा) : माननीय सभापति जी, लगता है यह देश प्राकृतिक आपदाओं का देश हो गया है। ऐसा कोई वर्ष नहीं होता जब देश के किसी न किसी सूबे या किसी न किसी इलाके में कभी बाढ़ से, कभी सूखे से, कभी ओला से भारी धन-जन की हानि नहीं होती हो। कुछ प्राकृतिक आपदाएं ऐसी हैं जिन के बारे में सरकार चाह कर कुछ नहीं कर सकती – जैसे भूकम्प आने पर उसका आसानी से अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता है, सुनामी की घटना का अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता है, ओला कब पड़ जाएगा, इसका अन्दाजा लगाया नहीं जा सकता है लेकिन बाढ़ और सूखे से निपटने के लिए अगर देश की सरकारों ने स्थायी और मुकम्मल हल निकाला होता तो बहस नहीं होती। आज इस विषय में जब बहस हो रही है तो मुम्बई में बारिश से भारी तबाही हुई। मैं अन्य सूबों की बात नहीं करना चाहता हूं क्योंकि हर सदस्य ने अपने-अपने सूबे की बात कही है।

मध्य प्रदेश में बाढ़ की भयावह स्थिति है। वहां धन-जन की जो हानि हुई, उसके बारे में सदन का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। श्रीमन्, ७ जुलाई २००५ की स्थिति के बारे में जो सरकारी आंकड़ा है, मैं उसके बारे में बताना चाहता हूं। रीवा, सागर, कटनी, जबलपुर, सतना, दमोह पन्ना, नरसिंहपुर, छतरपुर, उमरिया और वदिशा जिलों में भयावह तबाही हुई है। पूरे मध्य प्रदेश के इन जिलों में ३५८ ग्राम भी प्रभावित हुए हैं। लगभग २.५ लाख जनसंख्या इस बाढ़ से प्रभावित हुई है। ६ नगर प्रभावित हुए हैं जिन की जनसंख्या ९ लाख ५० हजार है। मैं जिलेवार इनका ब्योरा देना चाहता हूं। सागर जिले में १९ लोग मारे गए, ८ गुमशुदा हैं, कटनी में ६ लोग मारे गए, जबलपुर में तीन लोग मारे गए, दो गुमशुदा हैं, सतना में ३ लोग मारे गए, तीन गुमशुदा हैं, दमोह में एक मर गया, पन्ना में कोई जन की हानि नहीं हुई, केवल धन की हानि हुई है, नरसिंहपुर में एक आदमी मर गया, रीवा में एक आदमी मर गया, उमरिया में एक आदमी मर गया और दो गायब हैं, वदिशा में दो लोग मर गए। कुल ३७ लोगों की इस बाढ़ से मौत हुई और १५ लोग गायब हैं। १२९ गांव प्रभावित हैं। मध्य प्रदेश सरकार ने काफी राहत के काम किए हैं। इन जिलों में ११७ रिलीफ कैम्प खोले गए। २४ हजार ५३९ लोगों को राहत पहुंचायी गई लेकिन मैं बड़ी विमध्रता से कहना चाहता हूं कि मध्य प्रदेश सरकार चार वी,सी में संशोधन करके अपनी ताकत से राहत करवा रही है। बाढ़ पीड़ितों को मुआवजा दे रही है और क्षति-पूर्ति कर रही है। भारत सरकार ने उसमें भी चूंकि भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, पर्याप्त राशि नहीं दी, केवल ९३ करोड़ रुपए दिए हैं[R76] ।

[p77] 

मैं इस अवसर पर मध्य प्रदेश सरकार के सभी सांसदों और विधायकों को धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने सांसद और विधायक नधि से पांच लाख रुपए बाढ़ प्रभावित लोगों को दिए और एक माह की तनख्वाह सांसदों और विधायकों ने दी। लेकिन केंद्र सरकार से हमें भरपूर सहयोग नहीं मिल रहा है। मैं निवेदन करना चाहता हूं कि चूल्हे की आग में हर कोई रोटी सेंकता है, चिता की आग में रोटी सेंकने का काम नहीं करना चाहिए। केंद्र सरकार से मेरा आग्रह कि बाढ़ प्रभावित लोगों को क्षतिपूर्ति दे। मैं अपनी बात समाप्त करते हुए दो बातें और कहना चाहता हूं। महोदय, मैं आपके माध्यम से सरकार को ध्यान दिलाना चाहता हूं कि कुछ दीर्घकालीन योजनाएं बनाए, मुकम्मल योजनाएं बनाए ताकि बाढ़ और सूखे जैसी समस्याओं से निपटा जा सके। मान्यवर श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के समय में नदियों को जोड़ने की एक दीर्घकालीन योजना का काम शुरू हुआ था। नदियों को जोड़ने का काम बंद सा हो गया है, उसे पुन: प्रारंभ किया जाए। अगर नदियों को जोड़ने का काम हो गया तो बाढ़ से भी मुक्ति मिलेगी और सूखे से भी राहत मिलेगी। नदियों के पेट को साफ किया जाए, वहां बालू भर गया है, मिट्टी भर गई है। अगर उनकी सफाई हो जाए तो बाढ़ कम आएगी। नदियों के किनारे आवास परिसरों पर रोक लगाई जानी चाहिए और मजबूत तटबंध बनाए जाने चाहिए। जहां भारी बारिश होती है वहां गांव डूब जाते हैं, घर नष्ट हो जाते हैं, उस पानी को एकत्रित करके गांव में कहीं एक जगह बड़ा जलाशय बनाकर संचित किया जाना चाहिए ताकि बाढ़ से भी बचाव हो सके और गर्मी में पेयजल और सूखे की समस्या से भी निपटा जा सके। प्रत्येक गांव में पहले तालाब बनाए जाते थे लेकिन आज जलाशय पर अतिक्रमण कर लिया गया है। मैं प्रार्थना करना चाहता हूं कि तालाब बड़े पैमाने पर बनाए जाएं। इसके साथ एक काम और किया जाए कि सबसे ज्यादा मकान गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों को दिए जाएं। इंदिरा आवास योजना के तहत जितने मकान गिरे हैं, बारिश से नष्ट हुए हैं, व्यापक पैमाने पर गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों के लिए मकान बनाए जाएं।

महोदय, तत्काल राहत कार्य खोला जाए और जो लोग नष्ट हुए हैं उन्हें बसाने की मुकम्मल व्यवस्था हो। मैं समझता हूं कि समय ज्यादा हो रहा है, आप ज्यादा समय की अनुमति नहीं देंगे। अगर केंद्र सरकार प्रदेश सरकारों की मदद करे और बाढ़ से जिन प्रदेशों में जितनी क्षति हुई है उस हिसाब से सहायता दे, कोई राजनीतिक उद्देश्य से नहीं दे तो मैं समझता हूं कि ज्यादा लाभ होगा। आपने मुझे बोलने का अवसर दिया इसके लिए मैं आपको बहुत धन्यवाद देता हूं।

*m25श्री मनोरंजन भक्त (अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह) : माननीय सभापति जी, प्राकृतिक आपदा के विषय पर चर्चा हो रही है, मैं इस विषय में अपने विचार व्यक्त करना चाहता हूं। इस सदन के सभी माननीय सदस्यों को पता है कि बाढ़ आने से क्या तकलीफ होती है, सूखा होने से क्या तकलीफ होती है। इसके साथ सुनामी नई चीज जुड़ गई है, यह चीज हमने पहले नहीं देखी, जानते नहीं थे। अभी देखने को मिला कि समुद्र के अंदर पानी का इतना प्रबल जोर आया जिसका नतीजा यह हुआ कि वहां घरबार, की सारी चीज़ें खत्म हो गईं। लोगों का जान-माल का नुकसान हुआ जिसका हिसाब लगाना बहुत मुश्किल है। अभी बहुत लोग लापता हैं, लापता तो समुद्र में होंगे नहीं, उनकी जान चली गई होगी। इस बारे में माननीय सांसदों ने अपने विचार अच्छे तरीके से व्यक्त किए। मैं कहना चाहता हूं कि यह सब जानते हैं कि बीमारी क्या है। लेकिन बीमारी का इलाज क्या है, वह हमें ढूढ़ना पड़ेगा[p78] ।

बीमारी का इलाज ढूंढ़ने के लिए हमें यह करना पड़ेगा कि ग्राम पंचायत से लेकर लोक सभा तक इसके बारे में खुलकर चर्चा तथा विचार होना चाहिए कि किस तरीके से किस समय पानी ऊपर चढ़ता है, कब ज्यादा वर्षा होती है और उस स्थिति में हमें क्या करना चाहिए। लोगों को हर एरिया में सुरक्षित रूप से बचाने के लिए कोई प्रबंध होना चाहिए। लेकिन यह सब कैसे होगा, इसके लिए हमें बहुत बड़ी चर्चा करने के साथ योजना बनानी पड़ेगी, तभी कुछ हो सकता है। यदि हम लोग यहां पर केवल बातें करते रहेंगे कि इधर पानी चढ़ गया, उधर रास्ता बंद हो गया, इधर पुल टूट गया तो इन सब चीजों का कोई नतीजा निकलने वाला नहीं है।

एक दूसरी बात अहम् महत्व रखती है। आप यहां से रिलीफ देते हैं। रिलीफ देने का मतलब यह है कि तुरंत पीड़ित आदमी को बचाने के लिए मदद पहुंचानी है। अगर वही रिलीफ आप छ:-सात महीने के बाद देंगे तो उसका क्या फायदा है। रोगी अगर मर गया तो फिर उसे बचाने के लिए कोरामिन का इंजैक्शन लगाने से वह कैसे बचेगा। इसलिए आज इस बात की जरूरत है कि जो किसान, फिशरमैन, मजदूर और मेहनतकश लोग हैं, उन्हें बचाने के लिए तुरंत सहायता प्रदान करनी चाहिए। इसके लिए एक सिस्टम होना चाहिए। पंचायत से लेकर लोक सभा तक इसके अंदर कोऑर्डिनेशन होना चाहिए। यदि इस तरह से एक सिस्टेमैटिक तरीके से हम लोग काम करेंगे तो सचमुच में हम लोगों को राहत पहुंचा पायेंगे, अन्यथा कुछ नहीं होगा।

        सभापति महोदय, सब जानते हैं कि सुनामी के कारण हमारे यहां कितना नुकसान हुआ। देश के राष्ट्रपति से लेकर अनेक वरिष्ठ मंत्रीगण और सरकारी विभाग के सभी अफसरगणों ने वहां वजिट की। गृह मंत्री और प्रधान मंत्री जी ने वहां वजिट की और यू.पी.ए. सरकार की चेयरपर्सन सोनिया जी ने वहां वजिट की। इस तरह से वहां बहुत अच्छा काम हुआ। लेकिन फिर भी जहां कमी है, उस कमी के बारे में हमें बोलना पड़ेगा। वहां कमी यह है कि किसानों की जो स्टैंडिंग क्रॉप थी, वह नष्ट हो गई। वर्तमान हालात में वे लोग हल नहीं जोत सकेंगे, चूंकि वहां समुद्र के नमक के पानी का लैवल दो मीटर ऊपर हो गया है। और कुछ जगहों पर यह नीचे चला गया है। इस स्थिति में रास्ते को बचाने के लिए वहां तीन मीटर मिट्टी डाली गई, उसके बाद भी पानी उसके ऊपर आ गया। इस सारी स्थिति पर सोच-विचार करने की आवश्यकता है। पहले वैज्ञानिक जिस तरह से कहा करते थे कि पेड़ नहीं काटने चाहिए, बालू नहीं उठानी चाहिए, इससे बहुत नुकसान हो जायेगा। लेकिन अब सब कुछ नये तरीके से देखने की आवश्यकता है। वैज्ञानिकों ो सारे देश की नदियों और नालों के बारे में नये तरीके से विचार करना चाहिए और बताना चाहिए कि इनके बारे में क्या नीति होनी चाहिए। हमारे यहां इतना कीमती मैंग्रोव का जंगल था, वह सारा खत्म हो गया। मैंग्रोव का जंगल दुनिया में बहुत कम जगहों पर है। वहां बालू उठानी बंद थी। लेकिन वही बालू बाद में मैंग्रोव की जमीन में भर गई और सारा मैंग्रोव नष्ट हो गया। आज भी फॉरेस्ट डिपार्टमैन्ट इस बारे में कोई इंकवायरी या एनालाइज नहीं कर रहा है। जैसे कहा गया कि पेड़ काटने से वर्षा नहीं होगी। लेकिन पेड़ काटे तो इतनी वर्षा हो गई कि सब जगह बाढ़ आ गई। इसलिए इन सबके बारे में नये तरीके से सोचने की आवश्यकता है। हमें इसे वैज्ञानिक द्ृष्टिकोण से देखना चाहिए और इसके ऊपर एक रिपोर्ट आनी चाहिए, जिससे कि सदन के सदस्यों को भी इस बारे में जानकारी तथा सुविधा मिल सके।

मैं एक बात और कहना चाहता हूं कि आज हमारे यहां रिकंस्ट्रक्शन के साथ इम्पलॉयमैन्ट को जोड़ने की जरूरत है। आपने लोगों के लिए घर बना दिये। लेकिन उस घर में वे कैसे रहेंगे, क्या खायेंगे। उनके लिए खाने का इंतजाम करना होगा, उन्हें रोजगार के साथ बाकी सब कुछ भी देना होगा। जब तक विकास के काम को इम्पलॉयमैन्ट के साथ नहीं जोड़ा जायेगा, तब तक बहुत सी मुश्किलें सामने आती रहेंगी[R79]।

हमको ज्यादा समय आप नहीं दे रहे हैं। हमारा बोलना आवश्यक है।

सभापति महोदय :   आपके पॉइंट्स अच्छे हैं, लेकिन समय कम है।

श्री मनोरंजन भक्त : सभापति जी, मैं जो नए तरीके से देखने की बात कर रहा हूं, इस पर सरकार को गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। अभी हमारे यहां सारे बाज़ार टूट गए। दो चार लोग जो सामान लेकर बैठे हैं, उनका सामान नहीं बिक रहा है। कुछ लोगों का सामान बिक जाता है तो उनका काम चल जाता है। इस विषय पर हमें जिस गंभीरता से विचार करना चाहिए, मैं सरकार से अपेक्षा करता हूं कि वह उस गंभीरता से काम करेगी।

*m26

डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया (खजुराहो) : मान्यवर, प्रकृति के साथ जो छेड़छाड़ हो रही है, भू माफिया खनन कर रहे हैं, जंगल काट रहे हैं उसके कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है और उसके परिणामस्वरूप सूनामी, अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाएं आती हैं जिनका सामना हम कर रहे हैं।

मान्यवर, विज्ञान ने बड़ी प्रगति की है लेकिन यदि हम मौसम विभाग के काम को देखें तो वे जो उद्घोषणा करते हैं, वे सही नहीं होतीं। जहां कहते हैं कि मूसलाधार वर्षा हो, वहां एक बूंद पानी नहीं गिरता और जहां मूसलाधार वर्षा होती है, वहां के लिए कहते हैं कि पानी नहीं गिरेगा। आज के वैज्ञानिक युग में हमें इस तकनीक को सुधारना पड़ेगा ताकि हम समय पर लोगों को सावधान कर सकें।

मान्यवर, आज मध्य प्रदेश भीषण बाढ़ की चपेट में है। हजारों गांवों के लोग इससे प्रभावित हुए हैं और सैकड़ों गांव नष्ट हुए हैं। हजारों पशु नष्ट हुए हैं। इस बाढ़ से लगभग २४ लाख लोग प्रभावित हुए हैं। १० जिले भीषण रूप से बरबाद हुए हैं। ६७ लोगों की मृत्यु हुई है। ४२,००० पशु मरे हैं, ६१,००० मकान नष्ट हुए हैं और २२ हजार हैक्टेयर भूमि पर फसल नष्ट हुई है। इसके लिए मध्य प्रदेश सरकार ने अपनी लीक से हटकर और आरवीसी में संशोधन करके ज्यादा से ज्यादा राशि लोगों को देकर राहत का काम किया है। केन्द्र सरकार से जो २२५ करोड़ रुपये नैचुरल कैलामिटी रिलीफ के मिलने थे, उसमें से हमें राशि नहीं मिली। मात्र ९३ करोड़ रुपये दिये हैं और बड़ा ढोल बजाए जा रहे हैं कि हम बहुत सहायता कर रहे हैं। हमने ५०० करोड़ रुपये की मांग की थी लेकिन अभी भी राज्य सरकार ने २०० करोड़ रुपये के अपने संसाधनों के द्वारा वहां पर राहत के कार्य किये हैं। मैं निवेदन करना चाहता हूं कि केन्द्र सरकार द्वारा आवश्यक राशि तत्काल मुहैया कराई जाए।

मान्यवर, प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए मैं कुछ सुझाव आपके सामने रखना चाहता हूं। मौसम विभाग को चुस्त-दुरुस्त किया जाए ताकि सही उद्घोषणाएं वे कर सकें और सही जानकारी लोगों को मिले और वे समय पर सावधान हो सकें। इसी तरह से जो जंगल माफिया हैं, जो खनन माफिया हैं, इनके द्वारा प्रकृति से छेड़छाड़ करने पर पाबंदी लगाने के लिए सख्ती बरतनी होगी ताकि प्रकृति का संतुलन न बिगड़े और प्राकृतिक आपदाओं से हम बच सकें। पूर्व प्रधान मंत्री माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने नदियों को जोड़ने के कार्यक्रम की घोषणा की थी जिससे बाढ़ और सुखाड़ से निपटा जा सकता था। मध्य प्रदेश में अभी कैन नदी में बाढ़ आई जिसमें कई नदियों का पानी आया। उसने पन्ना, दमोह और छतरपुर जिलों को बरबाद कर दिया। छतरपुर और टीकमगढ़ की नदियों में वर्षा न होने के कारण पानी नहीं आया और वे खाली पड़ी रहीं। यदि इन नदियों को जोड़ दिया गया होता तो हम बाढ़ से निपट सकते थे। इसलिए हमारी प्रार्थना है कि इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जाए।

इसी तरह से जिनके घरबार उजड़ गए हैं, उनको केन्द्र सरकार द्वारा विशेष सहायता आवास के रूप में दी जाए क्योंकि जो लोग उजड़े हैं, जो बेघरबार हुए हैं, वे गरीब लोग हैं और ज्यादातर गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग हैं। उनको इंदिरा आवास जैसी योजनाओं के माध्यम से बसाने का काम किया जाए[h80] ।

 महोदय, पुनर्वास के लिए वहां पर जमीनें नहीं हैं। वन विभाग की कई जमीनें वहां पर खाली पड़ी हैं, जो काफी अच्छे स्थानों पर हैं। प्रभावित लोगों को रहने के लिए वे जमीनें दे दी जानी चाहिए ताकि लोगों को वहां पर बसने के लिए जगह मिल सके। इसी तरह पशु हानि काफी हुई है। पशुओं के पोस्टमार्टम की भी व्यवस्था होनी चाहिए। इसके लिए कानून बना दिया जाए और गांव में पंचनामा पशु गणना के आधार पर किया जाए। जिन पशुओं के शव नहीं मिल रहे हैं, उसके लिए लोगों को पंचनामे के आधार पर मुआवजा दिया जाना चाहिए। इस तरह जिन किसानों की भूमि बह गई है उनकी क्षति पूर्ति करना आवश्यक है।

इसके साथ ही खाद और बीज का भी इंतजाम किया जाए। ज्यादातर सड़कें टूट गई हैं, बिजली के खंभे उखड़ गए हैं, बांध टूट गए हैं। इन सभी के पुनर्निर्माण के लिए बंदोबस्त किया जाए। इससे बेरोजगार लोगों को काम भी मिल सकेगा। इन कार्यों को करने के लिए तत्काल राहत कार्य शुरू करने का इंतजाम किया जाए।

*m27

श्री सुरेश चन्देल (हमीरपुर, हि.प्र.) : सभापति महोदय, आपने मुझे इस महत्वपूर्ण विषय पर बोलने का अवसर दिया, इसके लिए मैं आपका आभार व्यक्त करता हूं। कल से सदन में बाढ़ पर चर्चा हो रही है। बहुत से वक्ताओं ने कहा कि पिछले कई वर्षों से जैसे-जैसे बाढ़ पर चर्चा बढ़ी है, वैसे-वैसे बाढ़ का प्रकोप भी बढ़ा है। प्राकृतिक आपदाओं का आना इस देश की नियती बन गई है और हर साल इन पर चर्चा होती है। तात्कालिक उपाए होते हैं और अगले वर्ष उससे भी ज्यादा खतरनाक रूप में इन्हीं समस्यों से हमें जूझना पड़ता है। मैं भारत सरकार से निवेदन करना चाहता हूं कि जहां तात्कालिक उपायों की आवश्यकता है वहां पर कुछ दीर्घकालिक द्ृष्टि से विचार करने की भी आवश्यकता है। मैं जिस प्रदेश से आता हूं उस प्रदेश में अभी पिछले दिनों बाढ़ आई थी। चीन के तिब्बत प्रदेश में बहने वाली पारछू नदी में बनी कृत्रिम झील का पानी सतलुज नदी में मिल जाने के कारण आठ सौ करोड़ रुपयों की सरकार एवं गैर-सरकारी संपत्ति की क्षति हुई है। इस झील के ऊपर न तो हिमाचल प्रदेश सरकार का और न ही भारत सरकार का अधिकार हैे। ऐसी बाढ़ वर्ष २००० में भी आई थी और अभी पिछले दिनों फिर से बाढ़ आई है। जब श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे तब एक शिष्ट मंडल वहां पर गया था। तब तय हुआ था कि नदी के पानी का डाटा आपस में ट्रांसफर किया जाए। मैं भारत सरकार से कहना चाहता हूं कि राजनीतिक संबंधों का प्रयोग करते हुए वहां पर भारतीय विशेषज्ञों को जाने की अनुमति दी जाए, ताकि वहां पर जा कर अंदाजा लगाया जा सके कि उस नदी में कितना पानी है और उस पानी से कितना खतरा है। पिछली बार भी भारत के अधिकारियों को वहां जाने की अनुमति नहीं मिली और इस कारण सेटेलाइट से जो चित्र मिलते हैं उसी के आधार पर आकलन होता है।

इसी प्रदेश में प्राय: बादल फटने के कारण अनेक घटनाएं होती हैं। पिछले कई वर्षों से बादल फटने की घटनाएं बढ़ी हैं, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि अभी तक उसके लिए कोई तंत्र स्थापित नहीं किया जा सका है जिससे वहां बादल फटने से पहले ही अंदाजा लगाया जा सके। बादल फटने का कारण एक जगह पर इतना पानी बरसता है जिसके कारण छोटा नाला भी बड़ी नदी का रूप धारण कर लेता है और सैंकड़ों लोग उसकी चपेट में आ जाते हैं। इसके लिए कोई न कोई तंत्र विकसित किया जाए। दुनिया में जो भी इस ढंग के विशेषज्ञ हैं उनसे सलाह ली जाए और जो भी खतरा इस कारण उत्पन्न हो सकता है, उससे बचने की आवश्यकता है।

सभापति महोदय : आठ बज गए हैं। सदन का समय समाप्त हो रहा है।

श्री खारबेल स्वाईं (बालासोर) : महोदय, सदन का समय १५ मिनट के लिए और बढ़ा दिया जाए[i81] ।

20.00 [rpm82]  hrs.

SHRI GHULAM NABI AZAD: Sir, we can extend the time of the House by 15 minutes more. We can extend it till 2015 hours.

सभापति महोदय: ठीक है। सदन की अवधि २०१५ बजे तक बढ़ाई जाती है।

श्री सुरेश चन्देल जी, अब अपना भाषण कंटीन्यू करें।

श्री सुरेश चन्देल : सभापति जी, पिछले दिनों गुजरात में भी भयंकर बाढ़ आई थी। वहां की सरकार ने बाढ़ से निपटने हेतु बहुत सराहनीय कार्य किया है। वह पहला राज्य है, जहां आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण की स्थापनी की गई है जिसके लिए उस प्रदेश को इनाम भी मिला है। मेरी जानकारी के अनुसार वह शायद पहला प्रदेश है जिसने कनाडा से इमेजिंग सैटेलाइट प्रणाली को प्राप्त करने की दिशा में पहल की है। इस प्रणाली को प्राप्त करने से हर मौसम में और हर प्रकार के चित्र उपलब्ध हो सकते हैं और मैं समझता हूं कि भारत सरकार को भी ऐसा प्रयास करना चाहिए कि देश के सभी प्रदेशों को इस सिस्टम को उपलब्ध कराना चाहिए।

महोदय, गुजरात में आई बाढ़ के बाद इमेजिंग सैटेलाइट प्रणाली के माध्यम से प्राप्त चित्रों से यह जानकारी मिली है कि वहां स्थलाकृतियों में कुछ परिवर्तन होने के कारण बाढ़ आई। यदि इस प्रणाली का प्रयोग होता और बाढ़ आने से पहले ऐसे चित्र प्राप्त हो जाते, जिनसे वहां बाढ़ आने के खतरे का आभास हो जाता, तो शायद इतनी तबाही नहीं होती, क्योंकि बाढ़ आने से पहले ही बचाव कार्य प्रारम्भ कर दिए जाते और बाढ़ की विभीषिका को कम किया जा सकता था।

महोदय, आपके माध्यम से, मैं मंत्री जी का ध्यान आकर्षित करते हुए कहना चाहता हूं कि बाढ़ एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं की जानकारी पूर्व में प्राप्त करने के लिए इमेजिंग सैटेलाइट प्रणाली अथवा अन्य प्रणालियों का अध्ययन करने और उन्हें भारत में प्राप्त करने के लिए यदि आवश्यक हो, तो विशेषज्ञों को अध्ययन करने हेतु विदेशों में, जहां इस प्रकार की व्यवस्था हो, वहां भेजा जाए और पूर्व चेतावनी की प्रणाली को भारत में प्राप्त करने हेतु पहल की जाए।

महोदय, पिछले सत्र में भी मैंने यह सुझाव दिया था कि हिमालय के पर्यावरण को बचाने, सुरक्षित रखने एवं संरक्षित करने के लिए एक ट्रांस हिमालयन डैवलपमेंट अथॉरिटी की स्थापना की जाए जिसमें हिमालय की तलहटी में आने वाले सभी प्रदेशों को शामिल किया जाए और हिमालय के पर्यावरण को बचाने के लिए प्रयास किए जाएं। बाढ़ पर हुई बहस में भाग लेने वाले लगभग सभी माननीय सदस्यों ने पर्यावर्णीय सन्तुलन के बिगड़ने की बात कही है और वह दिन प्रति दिन विकराल रूप धारण करता जा रहा है। इसलिए मेरा आग्रह है कि ट्रांस हमालयन डैवलपमेंट अथॉरिटी की स्थापना की जाए।

महोदय, चीन के तिब्बत क्षेत्र में बहने वाली परिछू नदी में बनी कृत्रिम झील के टूटने से हिमाचल प्रदेश में दिनांक २२ जून, २००५ को सतलुज नदी में आई भयंकर बाढ़ के कारण प्रदेश में सरकारी एवं गैर सरकार सम्पत्ति को लगभग ८०० करोड़ रुपए की क्षति पहुंची है, लेकिन भारत सरकार ने केवल १०० करोड़ रुपए की ही मदद अब तक दी है। मैं चाहूंगा कि प्रदेश सरकार को हुई क्षति की पूर्ति हेतु कम से कम ५०० करोड़ की मदद नैशनल कैलेमिटी कंजिनजेंसी फंड से और मदद दी जाए।

*m28

श्री वीरेन्द्र कुमार (सागर) : महोदय, हमारे सभी माननीय सदस्यों ने प्राकृतिक आपदा के सम्बन्ध में अपने-अपने राज्यों और देश की परिस्थितियों के संबंध में अपने-अपने विचार प्रस्तुत कि हैं और जैसा कि सभी ने बताया कि प्रकृति का सन्तुलन बराबर बिगड़ रहा है और प्रकृति असंतुलित होती जा रही है, इसी कारण भयंकर बाढ़ और सूखे की स्थिति देश में पैदा हो रही है।

महोदय, पहले हम देखते थे कि बादल फटने की घटनाएं कभी सिर्फ हिमाचल प्रदेश में हुआ करती थीं, लेकिन अब मैदानी भागों में भी होने लगी हैं। पिछले दिनों मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में असाधारण रूप से पानी बरसा, उसके कारण भीषण परिस्थिति पैदा हुई। मैं आपका ध्यान मध्य प्रदेश की ओर आकर्षित करते हुए कहना चाहता हूं कि मैं मध्य प्रदेश के सागर संसदीय क्षेत्र से आता हूं। वहां ३ और ४ जुलाई को एक दिन में, यानी २४ घंटे में २० इंच बारिश हुई। शहर का नाम सागर है, लेकिन वहां कोई सागर नहीं है। वहां एक तालाब है जिससे पानी बहने के कारण कुछ क्षेत्रों में लोग अपने घरों में घिर गए और उन्हें निकालने के लिए सेना को बुलाना पड़ा और सेना की मदद से उन फंसे हुए लोगों को निकालना पड़ा।

महोदय, मध्य प्रदेश के १७ जिलों में से ९ जिले बाढ़ से गम्भीर रूप से प्रभावित हुए हैं जिनमें ६७ लोगों की मृत्यु हुई। इनमें से सर्वाधिक लोग मेरे सागर जिले के हैं। अकेले सागर जिले में २७ लोगों की मृत्यु बाढ़ के कारण हुई। बारौदा से रहली जाने वाली एक बस में ६० लोग जा रहे थे। बस के बहने के कारण ४५ लोग बस में से निकाल लिए गए, लेकिन १५ लोग बस में फंसे रहे और दोनों तरफ से बहुत प्रयास करने के बावजूद उन्हें नहीं निकाला जा सका। इसी प्रकार परसोरिया के पास एक गांव पडरिया है। वहां एक दादी और उसकी पोती अपने घर में फंसी रह गईं। मकान कच्चा था और चारों तरफ से पानी भरता चला गया। दादी और पोती, दोनों ही सहायता के लिए चिल्लाती रहीं और दूर से लोग खड़े हुए सिर्फ देखते रहे, लेकिन अचानक चारों ओर से पानी बढ़ जाने के कारण उन्हें बचाया नहीं जा स्ाका[rpm83] ।

उन्होंने अथक प्रयास किये, लेकिन सारे प्रयत्नों के बावजूद भी वह आवाज धीमी होती चली गई और उनको बचाया नहीं जा सका। सागर जिले में सर्वाधिक २७ लोगों की मृत्यु हुई। सागर के ७५२ गांव इस बाढ़ से प्रभावित हुए हैं, फसली क्षेत्र लगभग ३७५५ हैक्टेयर भूमि में प्रभावित हुआ है और ३१४७ पशुओं की हानि हुई है। कुल मिलाकर जो कच्चे-पक्के, आंशिक और पूर्णतया मकान क्षतिग्रस्त हुए, वे लगभग ५३ हजार इस बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। लगभग ६६ करोड़ रुपये का नुकसान सागर जिले में इस बाढ़ से हुआ, जिसमें हितग्राही परिवार लगभग २२,६८८ हैं। ६ दिन पूरी तरह से सागर का सम्बन्ध बाहर से कट गया था, इन ६ दिनों में रेल मार्ग बन्द हो गया था, वहां पर कोई ट्रेन नहीं चली। राज्य सरकार अपने प्रयासों से जितना कर सकती थी, उतना करने का प्रयत्न किया है। जो प्रयास हो रहे हैं, वे प्रयास केवल राज्य सरकार और सामाजिक संस्थाओं की तरफ से हो रहे हैं, लेकिन उनके भरोसे उसकी पूर्ति नहीं की जा सकती है।

हमारे कुछ मित्रों ने राजनैतिक पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर बात की, लेकिन मेरा कहना यह है कि बाढ़, भूकम्प और सुनामी ऐसे मामले हैं, जिनको मानवीय मूल्यों से जोड़ा जाना चाहिए और पूर्वाग्रहों को एक तरफ छोड़कर मानवीय मूल्यों को द्ृष्टिगत रखकर इसमें सहायता करने के लिए आगे आना चाहिए।

१२वें वित्त आयोग में मध्य प्रदेश के प्राकृतिक आपदा फंड के लिए २२५ करोड़ रुपये का प्रोवीजन है। मध्य प्रदेश को करण्ट ईयर में २२५ करोड़ रुपया दिया जाना चाहिए, लेकिन दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि इसमें से मात्र ९५ करोड़ रुपये की पहली किश्त मध्य प्रदेश को दी गई है। जो मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सरीखे बाढ़ से प्रभावित राज्य हैं, इन राज्यों में इन राशियों के अलावा भी वहां पर जो सर्वे हुआ है, जो आकलन हुआ है, मध्य प्रदेश की सरकार ने ५०० करोड़ रुपये का सर्वे का आकलन किया है, लेकिन कुल मिलाकर देखा जाये तो १००० करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। मैं आपके माध्यम से सरकार से अनुरोध करूंगा कि मध्य प्रदेश को केन्द्र सरकार अधिक से अधिक राशि की सहायता प्रदान करे।

इसके साथ-साथ मैं मात्र २-३ सुझाव देना चाहता हूं कि ऐसी स्थिति से निपटने के लिए विकसित राष्ट्र और मौसम विज्ञान विभाग लेटैस्ट टेक्नोलोजी का प्रयोग कर रहे हैं, हमारे यहां भी उसका प्रयोग करना चाहिए, जिससे भूकम्प, बाढ़, अतिवृष्टि और नुकसानों से बचा जा सके। नदियों को आपस में जोड़े जाने की योजना से पानी का ठीक ढंग से व्यवस्थित उपयोग भी हो सकेगा और बिजली और सिंचाई का भी उसमें प्रयोग किया जा सकेगा।

भूकम्परोधी मकानों के निर्माण पर बल देना चाहिए और बगैर नगर-निगम, नगरपालिका और ग्राम पंचायतों के एन.ओ.सी. के मकान नहीं बनाये जाने चाहिए, भूकम्परोधी मकान ही बनाये जाने चाहिए। अन्तिम बात जो मैं कहना चाहता हूं कि जो लोग-बाग बेघर हुए हैं, उनमें बी.पी.एल. परिवारों के लिए इन्दिरा आवास योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना और बीड़ी मजदूर आवास योजना, इन सारी योजनाओं की राशि का उपयोग इन गरीब लोगों के मकानों के लिए किया जाना चाहिए।

आपने मुझे जो अवसर दिया, उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

*m29

श्री चन्द्रभान सिंह (दमोह) : माननीय सभापति महोदय, आपने मुझे मध्य प्रदेश एवं मेरे निर्वाचन क्षेत्र में आई बाढ़ की समस्या पर सदन में बोलने का अवसर दिया, मैं आपके माध्यम से केन्द्र शासन का ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगा। विगत दिनों में अतिवृष्टि से भीषण बाढ़ आने के कारण मध्य प्रदेश के १० जिलों में करीब चार हजार ग्रामों में करीब १२ लाख लोग प्रभावित हुए हैं तथा मध्य प्रदेश में एक हजार करोड़ रुपये से अधिक की सम्पत्ति का नुकसान हुआ है और लाखों मकान गिर गये हैं, सैंकड़ों लोगों की मृत्यु हो गई है और अनेक लापता हैं। हमारे पांच लाख लोग बेघरबार हो गये हैं।

मेरे निर्वाचन क्षेत्र में वायुसेना के पांच हैलीकॉप्टर तथा स्टीमर तथा सेना भेजी गई थी, जो एक सप्ताह तक सेवारत थी, जिसके कारण हजारों लोगों की जानें बचाई गई हैं। मैं स्वयं वहां पहुंचा और वभिन्न ग्रामों में चार जुलाई से २३ जुलाई तक लगातार हैलीकॉप्टर से लेकर स्टीमर और ट्रैक्टरों तथा मोटरसाइकिल से बचाव कार्य में रहा हूं। मध्य प्रदेश के १० प्रभावित बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में से सर्वाधिक बाढ़ मेरे निर्वाचन क्षेत्र दमोह एवं पन्ना जिले में अतिवृष्टि के कारण आई थी, जिसका सर्वे का कार्य पूरा हो चुका है। मेरे निर्वाचन क्षेत्र में दमोह जिले में ६ और पन्ना जिले में ६ आदमियों की मृत्यु बाढ़ आने के कारण हुई है तथा ५० हजार से अधिक पशु गाय, बैल, भैंसों की मृत्यु हुई है।

१५०० से अधिक पक्के तथा २०,००० से अधिक कच्चे मकान पूर्णत: नष्ट हो गए हैं। ३००० से अधिक पक्के २५००० से अधिक कच्चे मकान आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए हैं, एवं ४५० से अधिक ग्राम बाढ़ से प्रभावित हुए हैं तथा ५०,००० से अधिक परिवारों के मकान बाढ़ से पूर्णत: नष्ट या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए हैं। मेरे निर्वाचन क्षेत्र के २,५०,००० से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। मैंने कलैक्टर से जानकारी ली है कि मेरे निर्वाचन क्षेत्र में ३० करोड़ से अधिक की राशि आरवीसी ६-४ के तहत बाढ़ पीड़ितों को राहत के रूप में दी जा चुकी है। २१० करोड़ रूपये से अधिक का नुक्सान मकानों, पशुओं और जनहानि इत्यादि का हुआ है। मेरे निर्वाचन क्षेत्र के शासकीय भवन, रोड़ एवं डेम टूट जाने से २०० करोड़ रूपये से अधिक की हानि हुई है। सिर्फ दमोह एवं पन्ना जिले में ही कुल ४१० करोड़ रूपये से अधिक का नुक्सान हुआ है। इसके अलावा दमोह से कटनी के बीच का ७०० मीटर लम्बा रेल ट्रेक व्यारया नदी में बह गया था, जिसके कारण तीन दिनों तक रेल मार्ग बन्द रहा। घटेरा रेलवे स्टेशन पूर्ण रूप से डूब गया था। दमोह जिले की टेलिफोन व्यवस्था तीन दिन तक बंद रही।

        महोदय, मेरा सुझाव है कि मेरे निर्वाचन क्षेत्र दमोह, पन्ना एवं छतरपुर जिलों से सात नदियां, जैसे सुनार, कोपरा, व्यारया, पतने, केन इत्यादि निकलती हैं, जो केन नदी में जुड़ जाती हैं। मैंने हेलिकॉप्टर से बाढ़ की स्थिति को देखा है। यदि इन नदियों के पथरीले स्थानों की गहराई एवं चौढ़ाई बढ़ा दी जाए तो बाढ़ का स्थायी समाधान हो सकता है। मेरा अनुरोध है कि केन्द्र सरकार तुरन्त राहत राशि देने की व्यवस्था करे।

महोदय, मैं आपके माध्यम से चार मांगे अतिवृष्ट एवं बाढ़ पीड़ितों को राहत एवं सहायता के लिए केन्द्रीय शासन से मांग करता हूं कि मध्य प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री जी द्वारा मांगी गई ५०० करोड़ की राशि यथाशीघ्र दिलावायी जाए। मध्य प्रदेश के दस बाढ़ प्रभावित जिलों में से सर्वाधिक नुक्सान दमोह एवं पन्ना जिलों में हुआ है। मैं आपके माध्यम से केन्द्र सरकार से अनुरोध करता हूं कि पन्ना एवं दमोह जिलों को काम के बदले अनाज योजना के साथ जोड़ा जाए, जिससे अतिवृष्टि एवं बाढ़ पीड़ित जिलों से किसानों एवं मजदूरों का पलायन न हो सके। बाढ़ में मृत व्यक्ति के परिवारों की सहायतार्थ एक-एक लाख रूपये देने की घोषणा केन्द्रीय राज्य मंत्री श्री सुरेश पचौरी जी ने मध्य प्रदेश में की थी, वह राशि यथाशीघ्र उनको दी जाए।

अन्त में, मैं आपके माध्यम से केन्द्र सरकार से निवेदन करता हूं कि मेरे निर्वाचन क्षेत्र के २,५०,००० बाढ़ पीड़ित परिवारों को जिनके मकान पूर्णत: नष्ट हो गए हैं व जो लोग बेघरबार हो गए हें, उनके लिए स्थायी समाधान एवं व्यवस्थापन के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना एवं इंदिरा आवस योजना के तहत २५,००० रूपये कुटीरों इत्यादि के लिए नि:शुल्क दिया जाए।

MR. CHAIRMAN : The House stands adjourned to meet tomorrow, the 29th July, 2005 at 11 a.m.

 

20.14 hrs. The Lok Sabha then adjourned till Eleven of the Clock on

Friday, July 29, 2005/Sravana 7, 1927 (Saka).

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