Discussion Regarding Situation Arising Out Of Rapid Spread Of Swine … on 3 July, 2009

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Lok Sabha Debates
Discussion Regarding Situation Arising Out Of Rapid Spread Of Swine … on 3 July, 2009


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Title: Discussion regarding situation arising out of rapid spread of swine flu in the Country.

 

MR. DEPUTY-SPEAKER: The House shall now take up Item No.18, discussion under Rule 193.

श्री सन्दीप दीक्षित (पूर्वी दिल्ली): उपाध्यक्ष महोदय, आपने हमें जो आज नियम १९३ के अंतर्गत स्वाइन फ्लू पर चर्चा करने का मौका दिया, इसके लिए मैं आपका धन्यवाद करता हूं। आज १५वीं लोक सभा में पहली बार हमें बोलने का मौका मिला है, इसके लिए मैं आपका विशेष धन्यवाद करता हूं।

उपाध्यक्ष महोदय, यह जो स्वाइन फ्लू है, जिसे आज हम लोग आम चर्चा में स्वाइन फ्लू कहते हैं और तकनीकी भाषा में इनफ्लुएंजा ए, एच-वन, एन-वन वायरस के नाम से भी जाना जाता है। पिछले दो-तीन महीने से इसने भारतदेश को ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण विश्व को अपनी चपेट में लिया है। कई तरह के आंकड़े आए हैं – कोई कहता है कि शायद लाख-डेढ़ लाख लोग पूरे विश्व में इससे प्रभावित हुए हैं और कुछ आंकड़े बताते हैं कि उससे ज्यादा भी शायद इसकी संभावित स्थिति हो सकती है। जब तीन-चार महीने पहले मैक्सिको में पहली बार इनफ्लुएंजा के एक म्युटेटेड वायरस का पता चला, तब से अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन इस पर अपनी पैनी नज़र रखे हुए हैं और तमाम देशों के तमाम स्वास्थ्य संगठन भी इस पर नज़र रखे हुए हैं।

उपाध्यक्ष महोदय, हमें निरंतर खबरें मिल रही हैं कि किस तरीके से कुछ प्रदेशों से, राष्ट्रों से शुरू होकर, जिनमें मैक्सिको और अमेरिका शायद प्रमुख थे। जैसे-जैसे धीरे-धीरे यात्री, चाहे पर्यटन के रूप से अन्य देशों में गए हों या व्यावसायिक रूप से अन्य देशों में गए हों। जब वे एक देश से दूसरे देश में जा रहे हैं तो इसके ज़म्र्स उनमें से कुछ लोगों के अंदर से अलग-अलग देशों को प्रभावित करते चले जा रहे हैं। [S16] 

             उपाध्यक्ष महोदय, अगर मैं गलत नहीं हूं, तो जो जानकारी मुझे मिली है, उसके अनुसार ७६ देशों में इसका असर पाया गया है और हिन्दुस्तान में भी अगर आज की संख्या ली जाए, तो शायद ११८ या १२० के करीब लोग इससे प्रभावित हुए हैं। आज सबेरे के अखबार में मैंने यह भी पढ़ा कि दुर्भाग्य से इस एच-१, एन-१ वायरस के असर से एक व्यक्ति की मृत्यु भी केरल प्रदेश में हो गई है। इनफ्लूएंजा वायरस के बारे में जहां तक तकनीकी जानकारी मिली है, उसके अनुसार इन्फ्लूएंजा के जो चार नोन वायरस थे, उनमें से एक सूअरों या स्वाइन्स में पाए जाते थे, जिससे इसका एक कॉमन नाम स्वाइन फ्लू रखा गया है, उसमें से और दो और तरीके के वायरस के मिल कर, दो और वायरस को आपस में म्यूटेट कर के एक नया वायरस बना है। इन्फ्लूएंजा हर साल होता है। विशेषकर जब सर्दियों का मौसम आता है, तो बहुत लोग इसकी चपेट में आते हैं। शायद आधे प्रतिशत से लेकर एक प्रतिशत के बीच में इसका फर्टीलिटी रेश्यो भी माना जाता है। यह जो म्यूटेटेड वर्जन इसका आया है और जिन कारणों से इसके लिए चिन्ता, न केवल हिन्दुस्तान में, बल्कि पूरे विश्व के लोगों में हो रही है, उसमें कुछ प्रमुख बिन्दु हैं, जिनका मैं पहले उल्लेख करना चाहूंगा।

महोदय, पहले तो यह कि पुराने आंकड़ों की बनिस्बत, जिस दर से यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में जा रहा है, शायद इसका जो इन्फैक्शन रेट है, पुराने इन्फ्लूएंजा वायरस से ज्यादा तेज माना जा रहा है। दूसरे ज्यादातर यह देखा जाता था कि जो ज्यादा उम्र के लोग हैं या शारीरिक रूप से जो कमजोर हैं या वे और बीमारियों से ग्रस्त हैं, उन ६०-६५ साल के व्यक्तियों पर पुराने इन्फ्लूएंजा वायरस का ज्यादा असर होता था, जबकि इस स्वाइन फ्लू के वायरस का असर कम उम्र के लोगों, जवानों और नौजवानों को ज्यादा हो रहा है। मैंने एक जगह यह भी पढ़ा कि १७-१८ साल की उम्र से लेकर २५ साल की उम्र के लोगों में इस वायरस का असर ज्यादा हो रहा है। यह भी देखा गया है कि पूरे विश्व में एक वर्ष में अमूमन पहले ३० से ३५ हजार व्यक्तियों की मृत्यु हो जाया करती थी, लेकिन अब यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि अगर पुराने इन्फैक्शन के रेट माने जाएं, तो यह मृत्यु दर ४५ से ६० हजार तक भी पहुंच सकती है। इन दो-तीन विषयों के कारण हम इसे चिन्ता के रूप में देख रहे हैं।

महोदय, अन्तर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन, डब्ल्यू. एच.ओ. ने यह भी एक वॉर्निंग दी है कि इसका कुछ संबंध या इसके कुछ लक्षण, शायद १९६८ में जो इन्फ्लूएंजा का एक वायरस पूरे विश्व में आया था, जिसमें अनुमानित रूप से पूरे विश्व में लगभग १० लाख लोगों की मृत्यु हुई थी, उससे इसका संबंध दिखाया जा रहा है। इन कारणों से वे देश, विशेषकर हमारे जैसे देश, जहां जनसंख्या ज्यादा है, जहां साफ-सफाई के तौर-तरीके इतने अच्छे नहीं हैं, जहां हमारी स्वास्थ्य सेवाएं उतनी सुद्ृढ़ नहीं हैं, इसलिए हमारे लिए यह विशेष चिन्ता का विषय बन जाता है।

महोदय, मैं एक बात के लिए जरूर भारत सरकार का स्वागत करूंगा और इनका अभिनन्दन करूंगा कि जैसे ही इसकी वॉर्निंग, जैसे ही इसके खतरे के संकेत हमें मिले, टूरिज्म विभाग से मिलकर, एयरलाइन से मिलकर, एयरपोर्ट से मिलकर, हमारे स्वास्थ्य विभाग ने जो लीडरशिप दिखाई, उससे लोगों के बीच में बहुत आशा बंधी है और आश्वासन आया है कि इस बारे में हमारी सरकार सजग है। आज जितने लोग बाहर से आ रहे हैं, उनमें आंकड़ों के हिसाब से ढाई से तीन लाख लोग हैं, फिर चाहे वे अमरीका से आ रहे हैं, साउथ अमरीका से आ रहे हैं या आस्ट्रेलिया से आ रहे हैं, उन्हें जांचा जाता है। सात या आठ जगहों पर ऐसी मशीनें भी लगाई गई हैं जिनसे होकर जो भी यात्री गुजरे, अगर उनका बॉडी टैम्परेचर सामान्य टैम्परेचर से ज्यादा होता है, तो वहां घंटी बज जाती है। उस व्यक्ति को जांचने के लिए तुरन्त डॉक्टर आते हैं और अगर उनमें इस वायरस के लक्षण मिलते हैं, तो उन्हें कुछ दिन के लिए अस्पताल में अलग भर्ती कर लिया जाता है या एक वॉर्निंग देकर छोड़ दिया जाता है कि अगर ये सिमटम्स आगे बढ़ते हैं, तो वे स्वास्थ्य सेवाओं को इस बारे में बता दें या इसकी जानकारी दे दें। इस तरह की सुविधाएं बनाई गई हैं।

महोदय, ११७-११८ केस हिन्दुस्तान में पाए गए हैं। मुझे लगता है कि अगर इस तरह के कारगर कदम भारत सरकार द्वारा न उठाए गए होते, तो शायद यह जो नम्बर अभी हमें छोटा लग रहा है, अभी हमें कंट्रोल में लग रहा है, यह शायद और ज्यादा होता, लेकिन इस बात से हम अपने आप को संतुष्ट नहीं कर सकते कि इस समय इसकी फिडेलिटी, इस केस का जो रेट है, वह हमारे यहां कम है।

महोदय, आज सबेरे ही मैंने देखा कि अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की जो अध्यक्षा हैं, उन्होंने कहा है कि इसकी गति और ज्यादा बढ़ने की आशंका है। अब बरसात का मौसम आ रहा है। हिन्दुस्तान में वैसे भी बरसात के मौसम में इस प्रकार के इन्फैक्शन और विकराल रूप धारण कर लेते हैं। उसके बाद सरदी का मौसम आएगा। उसमें इन्फ्लूएंजा या इससे जुड़ी हुई बीमारियां सरदी में और तेज होंगी। यहां स्वास्थ्य मंत्री जी उपस्थित हैं। इसलिए मैं आपके माध्यम से उनका ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहता हूं। [RPM17]  उनके एम.ओ.एस. साहब भी बैठे हुए हैं। इस समस्या को अभी तक तो उन्होंने बहुत कारगर रूप से संभालकर रखा है, लेकिन इसी कारगर तरीके से, इसी मुस्तैदी से वे इस बीमारी पर अपनी पैनी नजर रखें और एयरपोट्र्स के द्वारा और स्वास्थ्य संगठनों के डाक्टरों के द्वारा इस पर जितने तगड़े तरीके से हो सके, इस पर ये कंट्रोल रखें।

एक और चीज़ है, मैंने यह भी देखा है कि हिन्दुस्तान में इसके प्रिवेंशन और बीमारी लगने के बाद जो दवाइयों की आवश्यकता होती है, उसका भी स्वास्थ्य मंत्रालय ने जोड़-तोड़ कर लिया है। कहीं लिखा गया है कि शायद १५ लाख दवाइयां मंगा ली गई हैं, कहीं लिखा है कि नहीं, एक बलियन के करीब दवाइयां मंगा ली गई हैं। अगर सही में यह एक एपीडेमिक का रूप लेती है तो हमारे पास सक्षम रूप से इतनी दवाइयों की संख्या हो जाएगी कि हम अपने नागरिकों को इस बीमारी से बचा पाएंगे।

कुछ यह बात भी चल रही है कि इसके वैक्सीनेशन पर अमेरिका में भी काम चल रहा है और मैंने बीच में देखा कि हिन्दुस्तान में इंडियन काउंसिल ऑफ मैडीकल रिसर्च के डॉक्टरों ने भी इस बात को कहा है कि वे कोशिश कर रहे हैं कि इसके वैक्सीन को वे बना सकें और सितम्बर या अक्टूबर के महीने तक शायद यह वैक्सीन बन जाये। वह बने या न बने, यह तो वैज्ञानिक चीज़ है। मुझे मालूम नहीं है कि कितना आई.सी.एम.आर. के डॉक्टर्स हमें सही रूप में इस बात का आश्वासन दे पाएंगे या नहीं, वैक्सीन बने या न बने, लेकिन उन दवाइयों को तैयार रखने में जो तैयारियां की जा रही हैं, इस चीज़ को सरकार अपनी तरफ से देखे कि तमाम अस्पतालों में ये दवाइयां पहुंचें, खासकर वहां, जहां हमारे हवाई अड्डे हैं, जहां बाहर से ज्यादा लोग उड़कर हिन्दुस्तान में आते हैं। वहां इन दवाइयों की, उपचार की व्यवस्थाएं की जायें।

एक और चीज़, जो कभी-कभी चिन्ता पैदा करती है, कई बार अखबारों के माध्यम से हमें पता चलता है कि कई ऐसे नागरिक, जिन पर इस बीमारी के लक्षण पाये जाते हैं, जब वे एयरपोर्ट पर आते हैं और उन पर लक्षण देखे जाते हैं या उनसे कहा जाता है कि या तो आप कोरण्टीन में कुछ समय के लिए रहिये या अस्पताल में रहिये या डॉक्टरों के बराबर सम्पर्क में रहिये तो या तो किसी डर से या अन्य किसी कारण से कई मरीज ऐसे हैं, जो सुरक्षा चक्र से बाहर निकल गये हैं। वहां थोड़े बहुत सरकार को जरूर अपनी तरफ से कठोर कदम लेने पड़ेंगे, ताकि नागरिकों को यह पता रहे कि सरकार की तरफ से जो स्वास्थ्य की सेवाएं उपलब्ध की गई हैं, यह न केवल उनके लिए, बल्कि बाकी व्यक्तियों के लिए भी आवश्यक हैं और ऐसे घेरे से बाहर जो मरीज निकलते हैं, उनको संवेदनशीलता से क्रमिनल नहीं माना जाये। मैं यह नहीं कह रहा कि उनके ऊपर किसी रूप में कठोर कार्रवाई की जाये, लेकिन फिर भी कठोर रूप में उन पर एक अंकुश रखा जाये कि उनके द्वारा सामान्य जनता में यह बीमारी न फैल पाये। इसको जिस तरह से डब्लू.एच.ओ. ने और हिन्दुस्तानी संगठनों ने कहा है कि इसमें एक पोटेंशियल है कि यह एक एपीडेमिक बन सकती है। उससे हम इस चीज़ को रोक पायें। स्वाइन फ्लू की जहां तक यह बात है, कुछ और सवाल भी इस पर उठाये जा रहे हैं। मैं यह नहीं कहूंगा कि इसके पीछे बहुत तथ्य है या नहीं हैं। मैं यह भी नहीं कहूंगा कि इसके पीछे कोई ठोस सबूत हैं या नहीं हैं, लेकिन कम से कम जो कुछ ऐसे सवाल उठाये जा रहे हैं, उन पर सरकार को ध्यान जरूर देना चाहिए।

एक बात हमने अपनी स्वास्थ्य सेवाओं में देखी है कि स्वास्थ्य से ज्यादा आज दवाइयों पर एक बहुत बड़ा प्रभाव पड़ रहा है। मुझे नहीं पता कि हमारे डॉक्टर्स स्वास्थ्य बेचते हैं या दवाइयां बेचते हैं। मैं सम्पूर्ण मैडीकल फर्टनिटी की तरफ इज्ज़त से देखता हूं। मैं किसी एक पर आक्षेप नहीं लगाता, लेकिन कभी-कभी मन में एक संदेह जरूर पैदा होता है और कुछ लोगों ने न केवल हिन्दुस्तान में, बल्कि बाहर भी इस स्वाइन फ्लू का उदाहरण लेकर, मैं फिर से यह नहीं कह रहा कि इस स्वाइन फ्लू के पीछे यह बात है या नहीं है, लेकिन इस बात को भी मन में रखना पड़ेगा कि कभी-कभी ऐसी बीमारियों को, जब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ये आती हैं तो इसके पीछे फार्मास्यूटिकल कम्पनीज़ जिस मुस्तैदी से दवाइयां सामने ले आती हैं, एक वैक्सीन दो या तीन महीने के अन्दर उत्पादित हो जाती हैं और उस बात से कभी ऐसा लगता है कि जितने आंकड़े हमारे सामने प्रस्तुत किए जा रहे हैं, उन आंकड़ों से जिस तरह का उसके पीछे खौफ फैलाया जाता है, उससे उनका सम्बन्ध नहीं बनता है। उसके ऊपर एक नज़र जरूर सरकार को रखनी चाहिए, क्योंकि जो कुछ बीमारियों में, कुछ केसों में हम लोग देखते हैं, विशेषकर फार्मास्यूटिकल कम्पनीज़ का जो रूप रहता है, वह बहुत ज्यादा जनहित में नहीं रहता है।

हमारी आज जो सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली है, जिसको हम पब्लिक हैल्थ सिस्टम कहते हैं, वह तो जरूर चरमरा गई है। आज हमारे सब हैल्थ सैण्टर्स हों या प्राइमरी हैल्थ सैण्टर्स हों या कम्युनिटी हैल्थ सैण्टर्स हों, मुझे मालूम है कि पिछले ५-७ सालों में जो हमारे हैल्थ मिशन के अन्दर हमने अपने सी.एच.सीज़. को, जी.एच.सीज़. को, एच.एस.ईज़. को सुद्ृढ़ किया है, उससे कुछ सकारात्मक असर कुछ प्रदेशों में पड़ा है। कुछ जगहों में राज्य सरकारों ने भी अपनी तरफ से हमारी स्वास्थ्य प्रणाली को सुद्ृढ़ करने की आवश्यकता समझी है और उस पर कारगर कदम उठाये हैं, लेकिन फिर भी हमारा जो चरमराता हुआ पब्लिक हैल्थ सिस्टम है, जिस कारण से भी हो, लेकिन क्योंकि यहां इनको संतोषजनक सुविधाएं नहीं मिलती हैं या इस कारण से कि एक प्रणाली ऐसी बन गई है कि जब तक आप प्राइवेट हैल्थ सिस्टम में नहीं जाएंगे, आपको वही स्वास्थ्य सेवाएं, जो मिल सकती थीं, नहीं मिलेंगी।[R18] 

            मुझे लगता है कि थोड़ी-बहुत साजिश के रूप में हमारी आज स्वास्थ्य प्रणाली भी इस देश में चल रही है। एक तरफ आप नियमित सुनियोजित तरीके से पब्लिक हेल्थ सिस्टम को बदनाम करते चले जाएं और बार-बार कोशिश करें कि इसमें वांछित लोगों को सेवायें न मिलें। जब व्यक्ति बीमार होता है, खासकर जब बड़ी बीमारी से ग्रसित हो जाता है, तो वह सरकार की डिलेवरी के लिए इंतजार नहीं करेगा। उसको अगर सरकारी अस्पताल में संतोषजनक उपचार नहीं मिलेगा, तो वह अपने आप किसी अस्पताल में चला जाएगा, जो संभवत: प्राइवेट अस्पताल होगा। उस चक्र के अंदर हमने देखा है कि प्राइवेट सैक्टर धीरे-धीरे अपने पंजे हर जगह बढ़ा रहा है, उससे भी हमें थोड़ा-बहुत खतरा दिखता है। उससे हम सब को सजग होने की आवश्यकता है।

यहां बहुत से संसद सदस्य बैठे हुए हैं, सब जानते होंगे कि अगर हमारे पास दिन में १०, २५ या ५० व्यक्ति मिलने आते हैं, हमसे मदद लेने आते हैं, जो चाहते हैं कि सरकार से किसी तरह से उनको मदद मिले, तो शायद २५-३० प्रतिशत लोग ऐसे होंगे, जो स्वास्थ्य से संबंधित किसी न किसी दिक्कत के कारण हमारे पास आते हैं। उनको या तो सुविधायें नहीं मिल रही हैं या खासकर जो हमारे शहर के सांसद होंगे, वे इस बात से मुझसे इत्तेफाक रखेंगे कि इस चीज से वे बेचारे डर जाते हैं कि उनके पिता जी को कोई छोटी सी बीमारी थी, उसको लेकर वे किसी अस्पताल में गए। उन्हें पता भी नहीं चला और तीन-चार दिन के अंदर उनके हाथ में पांच लाख का बिल थमा दिया गया। एक तरफ बीमार बाप है, दूसरी तरफ पांच लाख का बिल है।पांच लाख का बिल दें, तो बर्बाद हो जाए और अगर पिता जी का उपचार करायें, तो परिवार पर कोई न कोई संकट आ जाए। कोई ऐसा शहर नहीं है, कोई ऐसा परिवार नहीं है, कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, क्योंकि सबके सामने आज सबसे बड़ा कोई संकट है, तो वह हेल्थ के बिल का संकट है।

उपाध्यक्ष जी, मैं एक छोटा सा उदाहरण देना चाहूंगा। आज से ७-८ दिन पहले की बात है, मैं एक जगह बैठा हुआ था। कुछ मित्र लोग भी हमारे साथ बैठे थे। जितने मित्र लोग वहां थे, वे संभवत: हिंदुस्तान के अच्छे समृद्ध परिवारों से आते हैं, अच्छी-अच्छी नौकरियां कर रहे हैं।उनमें से कुछ इतनी तरख्वाहें पा रहे हैं कि शायद हम सब अपनी तनख्वाह मिला लें, तो भी उतनी तनख्वाह न पाएं। वे लोग जब मुझसे बात कर रहे थे, तो कह रहे थे कि उनके मन में सबसे बड़ा डर यही रहता है कि कोई ऐसी बीमारी न हो जाए कि किसी बड़े अस्पताल में जाकर वे फंस जाएं। जब हिंदुस्तान के समृद्ध और संभ्रांत परिवारों के लोग भी हेल्थ बिल से डरते हैं, तो बाकी हिंदुस्तान का क्या हाल होगा, इस बात को भी हमें ध्यान में रखना पड़ेगा। महोदय, स्वाइन फ्लू से मैं इसे सिर्फ इसलिए कनेक्शन देना चाहता हूं क्योंकि मुझे कभी-कभी संदेह होता है कि इन कई बीमारियों के पीछे या इन कई प्रणालियों के पीछे कहीं कोई और बड़ी ऐसी साजिश तो नहीं है, साजिश हमें मारने या बीमार करने की नहीं, बल्कि साजिश अपनी व्यावसायिक जरूरतों को आगे बढ़ाने की है, इसमें मुझे जरूर संदेह दिखता है। आज हम अपनी प्रणालियों को भी देखें।

महोदय, यहां स्वास्थ्य मंत्री जी उपस्थित हैं, मैं उनसे दो-तीन बातें कहना चाहूंगा। मैंने भी देखा है कि सरकारी प्रणालियों में हम एक आसान रास्ता लेने लगे हैं। जो नयी-नयी स्कीम्स आती हैं, उन सब में हेल्थ इंश्योरेंस मुझे दिखता है। हेल्थ इंश्योरेंस का बड़े-बड़े देशों में क्या असर रहता है, अमेरिका जैसे देश में भी हेल्थ इंश्योरेंस पर लोगों की क्या टिप्पणी है, यह सबको मालूम है। आज बार-बार यह कहा जाता है कि ज्यादा से ज्यादा उन अस्पतालों के नंबर इसमें हों। हम सांसद लोग भी कई बार डर जाते हैं और हम भी चाहते हैं कि अपने यहां के जो प्राइवेट अस्पताल हैं, सीजीएचएस स्कीम में उनके ज्यादा से ज्यादा नंबर आ जाएं या वहां सेवाओं में उसके नंबर आ जाएं, जहां हमारे गरीब जाकर किसी न किसी हेल्थ इंश्योरेंस के अंदर उसमें अपना उपचार करा सकें।

हेल्थ इंश्योरेंस के बारे में सभी को मालूम है। कुछ लोग यहां जरूर होंगे, जिनके परिवारों एवं मित्रों ने, सहयोगियों ने हेल्थ इंश्योरेंस से पैसा निकालने की कोशिश की होगी। मेरे ख्याल से एलआईसी से पैसा निकालना ज्यादा आसान है, जबकि हेल्थ इंश्योरेंस से पैसा निकालना दूसरी बीमारी की जड़ हो जाता है। अगर आप एक बीमारी से निकलेंगे, तो जब तक हेल्थ इंश्योरेंस से पैसा मिलता है, तब तक शायद आदमी टेंशन से अलग परेशान हो जाए। यह छोटी बात नहीं है, बहुत महत्वपूर्ण बात है।

महोदय, वर्ष १९४५ में जब कांग्रेस के अंदर नए आने वाले हिंदुस्तान के संविधान के बारे में टिप्पणियां की जा रही थीं, तो हिंदुस्तान की स्वास्थ्य प्रणाली को इतने सच्चे और सुद्ृढ़ रूप से लिखा गया था, जो दुनिया में अपने लिए मिसाल हैं। उसके बाद वोहरा कमेटी रिपोर्ट के अंदर जिस तरह से हमने अपनी स्वास्थ्य प्रणाली को बनाया था, जिसे दुनिया में हर किसी ने सराहा कि हिंदुस्तान सही में असली कदम पर चल रहा है। उसका जब क्रियान्वयन किया गया, जब जगह-जगह ये सेंटर्स बने, तब देखा गया कि इस देश के गांव में जहां शायद कुछ भी नहीं था, हमारे दो-तीन सौ साल की गुलामी के अंदर हमारी स्वास्थ्य प्रणाली कहीं नहीं फैली थी। हमें एक विश्वास हुआ कि हमारे डाक्टर्स, हमारी सरकारें जगह-जगह हमें स्वास्थ्य की सुविधायें देंगी। लेकिन १५-२० सालों में इसमें बिल्कुल एक विपरीत प्रभाव दिख रहा है। हम सब उसमें एक जगह शामिल हो जाते हैं। उन सब में हम सब कहीं न कहीं अपने आपको कमजोर पाते हैं। आज हम लोगों ने भी आसान रास्ता इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।अगर सरकारी अस्पताल में जगह नहीं मिलती है, तो प्राइवेट में चले जाते हैं। मैंने खुद एक स्कीम को देखा, जिसका मैं उदाहरण देना चाहूंगा। [p19]  एक सरकार इसी प्रदेश में है, मैं उसका नाम नहीं लेना चाहूंगा। उसके यहां अपने इम्प्लाइज़ का पहले से एक सिस्टम चल रहा था जहां सरकारी अस्पतालों में लोगों का उपचार होता था। किसी कारणवश उसने तय किया कि इसी चीज को हम प्राइवेट सैक्टर में दे देंगे और उनके बिल्स को रीएम्बर्स कर देंगे। छ: महीने के अंदर-अंदर उसी राज्य सरकार को उस प्रोवीजन को वापिस लेना पड़ा क्योंकि केवल छ: महीने के अंदर-अंदर उसका हैल्थ एक्सपैंडीचर चौदह गुना हो गया था। अगर साल में एक लाख रुपये खर्च होते थे तो चौदह लाख रुपये का बिल आने लगा, अगर एक करोड़ रुपये खर्च होता था तो चौदह करोड़ रुपये हो गए और अगर सौ करोड़ रुपये होते थे तो चौदह सौ करोड़ रुपये हो गए। यह बात हमें देखनी पड़ेगी। अगर हम बार-बार कहते हैं कि हमें अपने लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं देनी हैं, तो क्यों न हम एक दूसरे हैल्थ सिस्टम की तरफ फिर से सोचना शुरू करें। आज हमारे सामने एक उदाहरण है जब हमने आज से करीब चालीस साल पहले बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था। आज बहुत से लोग बड़ी आसानी से कह देते हैं क राष्ट्रीयकृत बैंकों ने वे सेवाएं नहीं दीं जो शायद प्राइवेट सैक्टरबैंक दे सकते थे। लेकिन वे भूलते हैं कि आज के राष्ट्रीयकृत बैंक और प्राइवेट बैंकों में वे भले ही आपस में कमपैरीज़न कर सकते हैं। अगर हमें चालीस साल पहले नेशनलाइज़्ड बैंक प्रणाली नहीं मिली होती तो शायद उन तमाम कारीगरों या छोटे-छोटे व्यवसायों को, जो बैंक के लोन से चलते थे, पिछले चालीस साल में लोन न मिलते। आज हम जो आर्थिक रूप से सशक्त हिन्दुस्तान देख रहे हैं, उसमें नेशनलाइज़्ड बैंक प्रणाली का भी एक बहुत बड़ा योगदान है। क्या हम सोच सकते हैं कि हम अपनी हैल्थ प्रणाली को नेशनलाइज़ कर सकें? मुझे मालूम नहीं है, यह एक बहुत ऊंची पॉलिसी का डिसीजन है, लेकिन इसे देखना पड़ेगा। हमें हर बार विदेशों की सफल प्रक्रियाओं के बारे में बताया जाता है। इंग्लैंड भी एक सफल देश है, कनाडा भी एक सफल देश है, उनकी स्वास्थ्य प्रणालियां हमसे अलग हैं। वहां टोटली नेशनलाइज़्ड स्वास्थ्य सिस्टम है। क्या हम उसकी तरफ देख सकते हैं?

मैं स्वास्थ्य मंत्री जी से एक छोटा सा आग्रह और करूंगा। अगर आपको आज की वित्तीय स्थिति की व्यवस्था से लगता है कि हम सम्पूर्ण रूप से नेशनलाइज़्ड सिस्टम नहीं कर सकते, तो उपाध्यक्ष जी, मैं आपके माध्यम से निवेदन करना चाहूंगा कि कम से कम १५ से १८ साल तक के बच्चों के लिए हम फ्री हैल्थ सिस्टम की बात करें। जब मैं फ्री की बात करता हूं तो पूरे रूप से फ्री की बात करता हूं, उसमें ऑप्शनल नहीं रखना चाहता। मैं यह नहीं कहना चाहता कि सरकार यह कहे कि हमने हैल्थ सिस्टम दे दिया, फिर किसी का मन हो तो वह प्राइवेट अस्पताल में चला जाए क्योंकि उपाध्यक्ष जी, आप भी जानते हैं कि अगर मेरी बाहों में मेरा बच्चा बीमार होगा तो मैं उस समय उसे अपने हिसाब से उस अस्पताल में लेकर जाऊंगा, मैं यह नहीं देखूंगा कि कोई सरकारी अस्पताल है या प्राइवेट अस्पताल है। अगर मेरा बच्चा मेरी बाहों में बीमार होगा तो मुझे शहर में जो सबसे अच्छा अस्पताल लगेगा, मैं उसे वहां लेकर जाऊंगा। इसलिए मेरे सामने वह विकल्प नहीं होना चाहिए क्योंकि सबसे अच्छे डाक्टर उसी अस्पताल में मिलने चाहिए जिस अस्पताल की सेवाओं के लिए सरकार कहती है कि मिलेंगी। अगर आप सब उम्र के लोगों के लिए नहीं कर सकते तो कम से कम बच्चों के लिए करें। लेकिन मैं बहुत विनम्रता से आग्रह करूंगा कि इस सरकार को आने वाले समय में पांच साल हैं। पिछली बार भी इस सरकार ने कई क्रान्तिकारी कदम उठाए। जब NREGA की बात आई थी तब बहुत से विशेषज्ञों ने कहा था कि आप एक ऐसे कार्यक्रम की बात कर रहे हैं जो कभी क्रियान्वित नहीं होगा। कुछ आर्थिक लोगों ने यह भी बताया था कि आप ऐसी व्यवस्था की बात कर रहे हैं जिससे सरकार की पूरी आर्थिक व्यवस्था खत्म हो जाएगी, NREGA में ही सारा पैसा लुट जाएगा। हमें जितनी वार्निंग्स मिली थीं, वे कोई भी सही साबित नहीं हुईं, क्योंकि सरकार ने हिम्मत की, जनहित में एक ऐसा कदम रखा जो जनहित के लिए आवश्यक था और आज हमें उसकी नतीजे मिले। आज दिखता है, आज हमारी लेबर भी कम माइग्रेट कर रही है, जगह-जगह रेट्स भी बढ़े हैं। खैर वह अलग बात है। मैं कहना चाहता हूं कि मौका है और हम ऐसे कदम लें जिससे जनता को लगे कि सरकार ने उनके हित में कुछ ऐसे ठोस कदम उठाए हैं, कठोर कदम उठाए हैं। अगर हमें अपना स्वास्थ्य सिस्टम बदलना है तो बदलें और स्वास्थ्य सरविलैंस प्रणाली बदलनी है तो बदलें। मैंने स्वाइन फ्लू से बोलने का मौका इसलिए लिया है कि क्योंकि आने वाले समय में बजट आएगा, उसके बाद हमें तीन-चार महीने के लिए संसद में बात करने का समय नहीं मिलेगा, फिर विंटर सैशन हो जाएगा तो और प्रणालियां चलेंगी। इस समय सरकार कई चीजों को सौ दिन में देखना चाहती है। आदरणीय स्वास्थ्य मंत्री जी को अपना मत रखने का यहां एक मौका भी था।

मैं आज फिर से संसद के माध्यम से स्वास्थ्य मंत्री जी, उनके डिप्टी साहब को भी बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने एक कोशिश की है और एयरपोट्र्स में न केवल कोशिश दिखती है, बहुगुणा जी हमारे बहुत सम्मानित कुलीग हैं, वे अभी बता रहे थे कि वे कुछ दिन पहले विदेश यात्रा से आए। वे आए तो उन्हें पहला द्ृश्य जरूर डरावना दिखा जब उन्हें यह दिखा कि कस्टम के सारे अधिकारी अपने मुंह पर मास्क लगाए हुए बैठे हैं। लेकिन वे बताते हैं कि उन्हें उससे एक संतोष भी हुआ, उन्हें दिल में दिलासा मिली कि इसका मतलब है कि यह प्रणाली मेरी सेवा करने के लिए, मुझे ठीक रखने के लिए, मेरे हिन्दुस्तान को इस वायरस से बचाने के लिए आज सजग है।[NB20]  मेरी बेटी कुछ दिनों पहले बाहर से आयी थी। जब उसे हम एयरपोर्ट से लेने गये तब हमें संतोष हुआ कएयरपोर्ट पर हमारे अधिकारी मुस्तैदी से लगे हुए हैं कि कोई भी स्वाइन फ्लू से पीड़ित व्यक्ति वहां से न निकल सके। इसके लिए मैं इनका स्वागत करता हूं और इन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं। लेकिन अगर डब्ल्यूएचओ ने ये वार्निग्स दी हैं और उन वार्निंग के पीछे तथ्य है, तो उस पर हमें कन्टीन्युअसली पैनी नजर रखनी पड़ेगी।

अंत में, मैं कहना चाहूंगा कि मैंने जो दो छोटी-छोटी बातें कहीं–एक यह कि इसके पीछे स्वाइन फ्लू में वह डर है, जो डब्ल्यूएचओ कहता है, तो उस पर हमारा स्वास्थ्य विभाग एक नजर जरूर रखे। दूसरा, हमारा चरमराता हुआ जो पब्लिक हैल्थ सर्विस सिस्टम है, उसे सुद्ृढ़ करना। आज हमें प्राइवेटाइज हैल्थ से जो चैलेंज मिल रहा है, मैं उसे केवल स्वास्थ्य बांटना नहीं कहूंगा, जो अपने आप में स्वास्थ्य द्वारा मुनाफा कमाने की बात करता है, उस पर अंकुश लगाना है। हमें ये विकल्प भी मिलें कि अच्छे डाक्टर्स, अच्छी दवाइयां हमें अपने अस्पतालों में मिले, अपने प्राइवेट हैल्थ सैंटर्स में मिले, अपने सीजीएचएस में मिले, अपने सब हैल्थ सैंटर्स में मिले। इन तीन बातों के साथ मैं आपको बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं कि आपने मुझे बोलने का मौका दिया।

आदरणीय स्वास्थ्य मंत्री जी और एमओएस साहब को भी मैं धन्यवाददेता हूं कि उन्होंने मेरी बात सुनी।

SHRIMATI MANEKA GANDHI (AONLA): Mr . Deputy-Speaker, Sir, before I begin my speech, I would like to compliment the hon. Minister of Health and Family Welfare – well, not compliment but I would like to appreciate the fact that after five years of ‘drought’ in the Health Ministry, we have the promise of rain. I know that the hon. Minister and the hon. Minister of State are both good administrators and reasonable people. I have a great deal of expectation for the first time from this Department.

            Sir, I have no doubt that the reason I have been asked to speak on Swine Flu by my Party is because it has the word ‘swine’ in it. The pig is a much maligned animal. It is an extremely useful member of our world. It acts as scavenger in areas where there are no humans to clean up the messes that humans create. However, this speech is not a paean to the pig as we know it. It is about the recent so-called Swine Flu epidemic.

            Why is it called Swine Flu? It is because the virus is supposed to have originated in 1918 at a pig fair where humans and pigs got sick together. It later emerged, as it has now, that pigs catch the flu from humans and not humans from pigs. That is the only relationship it has with that poor animal. Actually, it is a simple type, it is a simple influenza strain of which there are hundreds. The H1N1 form of flu is one of the descendents of the strain that caused the 1918 flu pandemic in humans. It was not a pandemic then. But it was even then touted as a pandemic. As well as persisting in pigs, the descendents of the 1918 virus have also circulated in humans throughout the 20th century without causing any epidemic much less, pandemic, except now in the media  and have contributed to the normal seasonal epidemics of influenza.

            Again, I am going to go back. Before I take on Swine Flu or H1N1, I want to talk about Swine Flu in pigs and the reason why I come back to pigs, even though this Swine Flu has nothing to do with them, is because most of the viruses that we stand in danger of getting may originate in the pig. Animals that are reared in inhuman, cooped up, filthy factory farms, fed badly on bad food, often eating their own neighbours are the victims of many diseases of which the strains of flu as in Avian Flu are the most common.

            It will come as a surprise to nobody in this House that sixty per cent of all the antibiotics produced in the world are fed to animals in these factories in which they are reared for meat and milk. Since the meat carries the residues of the antibiotic, it explains why humans are becoming increasingly resistant. The H1N1, H1N2, H3N1, H3N2 and H2N3 are swine influenza strains that are common in pigs in all countries from the Americas to Asia. However, these do not transmit to humans as yet. Even if exposure to them by workers in pig farms takes place, all that happens is that antibodies build up in the body. There has been no transmission from human to human either. But pigs die from flu all the time. [k21] 

  1 [SS22]  5.00 hrs.

            Indian factory farms have extremely unhealthy, flu and other disease ridden pigs all the time and yet people eat their meat. However, to come back to today’s subject, the 2009 swine flu outbreak in human-beings is due to influenza A virus sub-type H1N1 that contains genes which are related to the 1918 influenza, as I said before. But the origin of this new strain is unknown and it has not been isolated in any animal. It is simply transmitted from human to human, and causes the normal symptoms of influenza.     

            In humans, the symptoms of H1N1 or swine flu are similar to those of normal influenza and of influenza-like illnesses – chills, fever, sore throat, muscle pain, severe headache, coughing, weakness and general discomfort. But flu, for a long time now, has been an ideal reason for panic-mongering and this has happened so many times that one gets cynical about the reasons and assumes that they are commercial with panics being created by medicine-sellers. 

            Let us look at the history of H1N1.  In February, 1976, an Army recruit in Fort Dix, America, died after showing symptoms of flu – tiredness and weakness. Two weeks later, American health officials announced that he had died of swine flu. Immediately the country decided that it was in the middle of a pandemic – as you know, a pandemic means a disease that is spreading all over the world –  and President Ford ordered every American to be vaccinated against swine flu. He was vaccinated on television himself and so were 40 million people or 24 per cent of the population. While nobody else got or contracted this flu from February to October, 1976, three people died of the vaccinations, more than 500 people became paralysed because of the vaccinations and after that, 25 people died after being paralysed. In December, it was called off. While the swine flu was said to become a pandemic, the vaccinations were the actual villains.  The programme was called off and swine flu H1N1 was never heard of again.

            Now in 2009, we come to the same sub-type H1N1 and again it was called swine flu because it originated supposedly in people in Mexico who blamed it on pigs, but it was the pigs who got it from the human-beings. Then immediately, the United States declared it a pandemic. Most countries have again been set off on a wrong track and have wasted money and time by killing pigs as they have in Egypt. In fact, they have killed more pigs in Egypt while they have not had a single case so far of Swine Flu, than, they have spent on the entire health budget.

            We, in India, are quick to go completely crazy with every alert sounded by the West. Unfortunately, our scientists do not probe deeply into so called pandemics. The avian flu is one case. We killed crores of birds, mainly belonging to the tribals and poor people. We did not kill a single bird in multi-crore farm factories in Pune, for instance, that keep chickens in much worse conditions than the villagers do. But this is a scandal that needs an enquiry by itself. The previous Health Minister bought hundreds of crores worth of so called avian flu medicines, none of which was ever used or will ever be. That is another scandal that needs an inquiry. What our scientists should realise before adopting western panics as their own is that the swine flu has been compared by WHO itself to all other similar types of influenza virus in terms of mortality. This is what the WHO says. “In the US, for every 1,000 people who get infected with any strain of flu, 40 people need admission to hospitals and one person dies.” This is even a higher ratio than what we claim for swine flu. India has no central records of checking who dies of what and in which hospital, and we are not even working towards central record keeping.[SS23] 

Therefore, we have no idea of how many people die of an average flu, and we resort to knee-jerk reactions prompted by scaremongers in other countries.

            We have spent so much media space and money on detecting people with the so-called flu symptoms. We have isolated people; given press conferences; and gone after people who have supposedly run away from isolation units and recaptured them only to find that we have no cases of swine flu. Have we applied the same vigilance to cases of polio, which crop up regularly? Do we catch those people who refuse to get polio shots? No, we do not. Have we applied it to malaria or to that increasingly dangerous killer, namely, tuberculosis ?

            In my Constituency, just last week, I was called-up by an anxious father whose son of five years had been diagnosed with TB. He was told by the Central District Hospital that the medicines would reach his house on the 23rd of June as is the system in Uttar Pradesh. The system is that people will come to you with the medicine, but you cannot pick it up yourself. The deliverer never arrived, and he called me. I spoke to the CMO and it turned out that the man who was supposed to give him the medicines had instead gone to attend a wedding. Should we not put more time and media space into stopping the diseases that we already have, and improving the delivery systems of medicines instead of adopting new and fanciful completely artificial diseases? Flu is normal, and all its strains are normal including Swine Flu H1NI.

            In humans, the symptoms of the 2009 H1N1 virus are similar to those of influenza in general. It cannot be spread by eating pork products since the virus is not transmitted through food. All we need is the standard prevention against spreading of the flu virus from human to human, which is frequent washing of hands with soap and water, especially, after being out in public, and disinfecting surfaces, especially, household ones as it is important. Influenza can spread by cough and sneezes, but an increasing body of evidence shows small droplets containing the virus can remain on tabletops, telephones and other surfaces in which case an alcohol-based gel or foam or hand sanitizers work well to destroy the viruses and bacteria. Anyone with flu-like symptoms such as fever, cough or muscle aches should stay away from work or public transportation. That is all. We are over reacting. We are spending crores of rupees for something where only these two things work.

            Please do not spend public money again scandalously by buying newly-invented commercial foreign vaccines or spend our scientists’ time in inventing vaccines for a flu that will not be here by next year because it would have mutated into HIN10 or whatever. The normal flu vaccine that has been in the market for several years now has been proven ineffective in every single form of flu that it was supposed to inoculate us against, and a new vaccine will again be more dangerous than helpful. We are told that America is at work on a vaccine for the new strain, but it would have gone and mutated long before we are ready.

            Tamiflu is what you will choose as the answer because you have already stockpiled Tamiflu in crores for Avian Flu. You do not know what to do with it since Avian Flu has disappeared instead of being the pandemic that killed one billion people.  You have said that now we will use Tamiflu for Swine Flu and not for Avian Flu. This is not the answer. It has never been — not even to the predecessor Avian flu and not now also. Have the crores worth of Tamiflu bought by the Health Ministry in the last five years ever been released into the market? Even the antibiotics bought for the so-called plague 20 years ago were lying at the Customs till last year.

            The truth of the matter is that normal antiviral drugs make the flu milder and the patient feels better faster. Palliative care, at home or in hospital, focuses on controlling fever and maintaining fluid balance for the treatment of flu viruses. The adage that applies to all flus applies to this one as well, which is that with medicine it takes a week and without medicine it takes seven days. The majority of people infected with the virus make a full recovery without requiring even medical attention or antiviral drugs.

            This is just another type of flu virus or our typical seasonal flu symptoms. So far, even if you see swine flu cases increase on a swine flu map, experts do not know till today whether this influenza A (H1N1) virus will become a pandemic or even a nuisance. We could just continue to see sporadic cases for a few weeks or months till it stops.[r24] 

            SARS, if you remember, was touted as the killer of millions. Does anybody even remember what SARS stands for or whether it actually killed a single human being? However, I would like to say that the global pharma companies like Roche, Gilead, and Glaxo SmithKline are making a killing through the sales of antivirals like Tamiflu and Relaxin. The US Administration has already opened an emergency window in its authorisation system to allow Tamiflu and Relaxin to be used more widely on flu sufferers across the world. Even the small vaccine producers like Biocryst and Novavax are hiving for profit. India has bought Tamiflu, but has not authorised its retail sales. Strangely enough, the reason that your Ministry has given for not giving Tamiflu to the public in spite of giving the scare that swine flu exists is, “Indiscriminate use of this drug by the public could result in the virus developing resistance to this only known treatment of the H1N1 influenza”. This is what your Government has officially said. You keep buying it, but you never give it to us. You never allow anybody to use it because if we use it, we might get immune to it. We buy an imaginary medicine for an imaginary disease, and who gets to live happily ever after – the companies, the Ministry, the Government, the sellers, the buyers?.

            I would like to say that perhaps we should downplay our great insistence on and the amount of money we are spending on swine flu, and divert it back to our original diseases. Before I finish, I would like to go back again to the word ‘swine’ and ‘pigs’ because it is really important. Pigs are unusual as they can be infected with influenza strains that usually infect three different species: pigs, birds and humans and it can go anywhere. This makes pigs a host where influenza viruses might exchange genes, producing new and dangerous strains. Therefore, I would suggest that the Health Ministry should also start looking at the way we farm pigs. GIGO (Garbage In, Garbage Out) is a standard principle. Come to the basis of what is spreading Tuberculosis or what is spreading malaria or what is spreading diseases.  It all comes back to what we eat and how we treat them. I would urge the Members of Parliament to do checks on all factory farms in their areas and see the hideous conditions in which animals are grown for meat because this has become the norm. All the diseases in the last five years that we have spent our money on have been a result of the way that we have brought up chickens, pigs, goats, and cattle Tuberculosis comes from factory farming of cows and buffaloes. This is the lesson that we can learn from H1N1.

            If we want a healthy happy world, we must understand that all species in it have to be healthy, or we will live in constant danger.

 

 

 

                                                                                        

श्री शैलेन्द्र कुमार (कौशाम्बी): माननीय उपाध्यक्ष जी, नियम १९३ के अंतर्गत स्वाइन-फ्लू पर भाई संदीप दीक्षित जी और पबन सिंह घाटोवार जी ने जो चर्चा सदन में कराई, उसके लिए मैं उनको धन्यवाद देना चाहूंगा। पिछली बार हम लोग शुन्यकाल में स्वाइन-फ्लू पर अपनी बात रखना चाहते थे लेकिन हमें इसके लिए मौका नहीं मिल सका। अभी भाई संदीप जी ने और आदरणीय मेनका गांधी जी ने स्वाइन-फ्लू के बारे में बड़े विस्तार से बातें बताईं।[r25]   आदरणीय स्वास्थ्य मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद बहुत योग्य और वरिष्ठ मंत्री हैं। स्वाइन फ्लू के बारे में चर्चा आज से नहीं बल्कि मार्च २००९ से बहुत जोरों से है। यह पूरे भारत के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। वर्ष १९९८ में जब पहली बार उत्तरी केरोलिना में स्वाइन फ्लू फैला, उसका वायरस टि्रप्पल हाई ब्रीड था। वह आदमियों में भी था, पक्षियों में भी था और जानवरों में भी था। इस बारे में तरह-तरह की भ्रांतियां हैं, हम लोग लेख भी पढ़ते हैं और बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी इस खोज में लगे हैं कि यह स्वाइन फ्लू क्या है, यह कैसे जनरेट हुआ और कहां से आया, यह अभी तक वैज्ञानिक पता नहीं कर पाए हैं। दुनिया के समाचार पत्रों में आंकड़ों के बारे में समय-समय पर लिखा जाता है क 116 देशों में स्वाइन फ्लू फैला हुआ है और २३७१ लोग अभी तक मर चुके हैं।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री (श्री गुलाम नबी आज़ाद): दुनिया के ११६ देशों में स्वाइन फ्लू फैला हुआ है।

श्री शैलेन्द्र कुमार : जी हां, दुनिया के ११६ देशों में स्वाइन फ्लू फैला हुआ है और इससे २३७१ मौतें हो चुकी हैं। जैसा संदीप दीक्षित जी ने कहा और हमने समाचार पत्र में भी पढ़ा कि हिंदुस्तान में भी व्यक्ति की मृत्यु हुई है, जो चिंता का विषय है।

SHRI GHULAM NABI AZAD : Sir, I may not get an opportunity to reply today because hardly ten to fifteen minutes are left and I shall have to reply on Monday only. It has been reported in newspapers and it has appeared in one of the channels also that one patient has died in Kerala. I would like to make it clear that he has not died of Influenza A H1N1 because the State Government had sent the sample for testing to Delhi and the report was found negative.

श्री शैलेन्द्र कुमार : जैसा मंत्री जी ने स्पष्टीकरण दिया है, यह बहुत अच्छी बात है।

SHRIMATI MANEKA GANDHI (AONLA): While I deeply appreciate the measures that you may have taken at airports etc., and perhaps we congratulate ourselves that the measures that have been taken at airports have prevented the swine flu. But all the countries that have taken no measures at airports have also found  no swine flu.

SHRI GHULAM NABI AZAD: I will reply that on Monday. But at this time, since it has already appeared in the Press that one person has died so far, I would say that let us keep our fingers crossed that not a single person has died of swine flu.

श्री शैलेन्द्र कुमार : मंत्री जी ने स्पष्ट किया है, यह बहुत अच्छी बात है। ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि इस प्रकार की बीमारी न फैले और किसी व्यक्ति की मृत्यु न हो। इसके लिए हमें प्रयास करना चाहिए। वैज्ञानिक इस बीमारी की दवाई की खोज करने में लगे हैं, लेकिन अभी तक कोई ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं। लोगों का सही ढंग से टीकाकरण हो और लोगों में यह बीमारी न फैले, इस बारे में डाक्टर्स को सफलता नहीं मिली है। हमें समाचार पत्रों के माध्यम से जानकारी प्राप्त हुई है कि मैक्सिको के अंजान शहर लागलोरिया में यह फ्लू पैदा हुआ है, लेकिन दूसरी तरफ हमने लेख पढ़ा है कि यह सुअर से, पक्षियों से या जानवरों से या कचरे से या फैक्टि्रयों से या केमिकल से या खाद्य सामग्री से फैला, इसके बारे में अभी तक पता नहीं चला है। इस बारे में जानने के लिए दुनिया के वैज्ञानिक लगे हैं। जहां तक हमारे देश की बात है, समाचार पत्रों में हमने पढ़ा, टेलीविजन में भी हम देख रहे हैं कि विदेशों से आने वाली जितनी भी फ्लाइट्स हैं, उन पर निगरानी रखी जाए। केवल दिल्ली ही नहीं, देश के दूसरे बड़े शहर, जहां विदेशों से फ्लाइट्स आती हैं, वहां विशेष तौर से इस बीमारी के लिए लोगों का चैक-अप होना चाहिए।[r26]  मैंने देखा कि लोग बाहर के देशों से यह बीमारी लेकर अपने देश में आ रहे हैं। ऐसी बहुत सी दवाइयां हैं जिन्हें लेकर इस बीमारी को कुछ घंटे तक दबाया जा सकता है लेकिन जैसे ही इन दवाओं का असर खत्म होता है स्वाइन फ्लू का मरीज अपने असली रूप में आ जाता है। यह भी कहा गया है कि एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति से बातचीत करने और साथ उठने-बैठने से भी यह बीमारी फैल रही है। हमें इस ओर विशेष तौर पर ध्यान देना होगा। इस बीमारी से निपटने की जानकारी की व्यवस्था केवल एयरपोट्र्स में ही नहीं बल्कि रेलवे स्टेशनों पर भी होनी चाहिए। लोग हवाई जहाज, रेल और पानी वाले जहाजों में भी यात्रा करते हैं इसलिए तमाम बंदरगाहों पर भी इसका इंतजाम होना चाहिए। इन सभी जगहों पर जांच के लिए एक्सपर्ट डॉक्टर बैठने चाहिए जो विशेष तौर पर इसकी निगरानी करें ताकि एक जगह से दूसरी जगह यह बीमारी न फैल पाए।

जहां तक भारतीय डॉक्टरों की बात है, बाहर के देशों से बहुत से मरीज हमारे देश में आए हैं। मेरे ख्याल से हिंदुस्तान के डॉक्टर स्वाइन फ्लू को डाइग्नोज नहीं कर पा रहे हैं। यही कारण है कि रोज न्यूज पेपर में पढ़ने को मिल जाता है कि इक्का-दुक्का मरीज यहां पाया गया है। इस तरह के समाचार पढ़ने को मिलते हैं। जैसा पूर्व वक्ताओं ने कहा है और मैं इसे दोहराना नहीं चाहता हूं। लेकिन आज शहर के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में पीएचसी और सीएचसी, हैल्थ सैंटरों की तरफ ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि हो सकता है कि बहुत से मरीज डर कर शहर में ही न रहें और कहीं पलायन कर जाएं इसलिए हमें विशेष तौर पर निगरानी करनी पड़ेगी।

महोदय, दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्र के पीएचसी और सीएचसी के संबंध में चाहे सभी प्रदेशों के मुख्य मंत्रियों के साथ वार्ता करने की जरूरत पड़े, वह कीजिए। इसके साथ यह भी बात की जाए कि यह बीमारी जो महामारी के रूप में फैल रही है, इस पर कैसे कंट्रोल करें। इससे पहले चेचक उन्मूलन के लिए वैक्सीन मंगाए गए और यह जड़ से खत्म हुआ। अब पोलियो को खत्म करने के लिए पोलियो ड्राप्स पिला रहे हैं। अभी हमारे निर्वाचन क्षेत्र कौशाम्बी, उत्तर प्रदेश में सैंकड़ों चेचक के मरीज देखने को मिले। पिछले कुछ वर्षों में चेचक खत्म हो गया था लेकिन इस क्षेत्र में छोटे दाने से लेकर बड़ी चेचक के रोगी पाए गए हैं। हमें यह देखकर बहुत ताज्जुब हुआ क्योंकि यह तो देश से खत्म हो गया था लेकिन इस जगह चेचक उभार पर है। अब जरूरत इस बात की है कि जो पुरानी बीमारियां हैं, उसे देखें क्योंकि यह कहा जाता है कि स्वाइन फ्लू मलेरिया का ही बिगड़ा स्वरूप हो सकता है। इससे पहले इसी सदन में तमाम बातें उठाई गई हैं, खास तौर से बांग्ला देश और सीमा से लगे देशों के जिलों में बाढ़ या सूखे के समय तमाम बीमारियां शीघ्रता से मानव के ऊपर असर करती हैं इसलिए इन पर कंट्रोल करना आवश्यक है। आप बहुत सीनियर मनिस्टर हैं, आप चाहें तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री का एक सम्मेलन आयोजित करें ताकि स्वाइन फ्लू का जो खतरा हमारे देश में बढ़ रहा है इसे कंट्रोल किया जा सके। मुझे उम्मीद है कि आप इसे रोकने के लिए कार्य योजना बनाएंगे और रोकने की पूरी कोशिश करेंगे।

मैं इन्हीं शब्दों के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं। आपने मुझे बोलने का मौका दिया इसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूं।

DR. RAM CHANDRA DOME (BOLPUR): Mr. Deputy-Speaker, Sir, I rise to take part in this short duration discussion on rapid spread of swine flu in the country. I thank Mr. Sandeep Dikshit my esteemed colleague and my good friend Mr. Paban Singh Ghatowar for bringing forward this motion for discussion in the House.[KMR27] 

We have hardly discussed, particularly the debate put forward by Shri Dixit, who has deliberated here several aspects of this sort of problem in our country in great detail. My other esteemed colleague, Shrimati Maneka ji, deliberated in detail this issue, the pros and cons of this problem, in her speech. I am entirely in agreement with her views on this problem because with such types of   problems panic is  created. Many times, the real cause is unfounded and this problem is creating panic among the people.  Many times such type of diseases cause epidemic or pandemic health problem.  These days, panic has been created mainly on this sort of problem by the vested interests.

            Sir, on this particular problem,  recently, I have gone through a journal – The New England Journal of Medicine – which surprisingly revealed that a particular virus  is responsible for this sort of infection in the human beings, which is called, Swine Flu.  I am in agreement with Madam Gandhi that basically the swine is not creating this problem but they are the victims of this infection mainly from the human source.  The cause of recent pandemic, according to the new studies, scientists investigating the genetic make up of Flu Virus have concluded that there is a high probability that the H1N1 strain of Influenza A behind the current pandemic might never have been reintroduced in the human population, were it not for an accidental leak from a laboratory working on the same strain  in 1977.

            The New England Journal of Medicine comments that the re-emergence was probably an accidental release from a laboratory source.   Two famous scientists working in this area  – Shanta Zimmer and Donald Burke from the University of Pittsburgh in Pennsylvania –  said that frozen samples of the virus stored in the laboratory since 1950s, and most laboratories doing research on Influenza would  have the 1950s strain and one cannot pinpoint actually a particular laboratory is responsible for  its accidental release but the re-emergence of H1N1 in 1977 made it potentially a man-made pandemic.

            Therefore, it is also reminded that we need to be continually vigilant in terms of laboratory procedures.

उपाध्यक्ष महोदय : माननीय सदस्य अब इसका समय समाप्त हो गया है, साढ़े तीन बजे प्राइवेट मैम्बर्स बिजनेस शुरु होगा। नैक्स्ट टाइम जब यह आयेगा, तब आप इस पर बोलेंगे।

डॉ. रामचन्द्र डोम : ठीक है सर।

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